पहली बार मध्यप्रदेश में अपना स्वयं का गीत बना है जिसके गान पर एकजुटता का भाव जगाता है। प्रदेश के 56 साल के सफर के बाद भी आज तक राज्य का कोई गीत नहीं था और न ही इस दिशा में कोई पहल हुई। इस राज्य की पहचान मिली-जुली संस्कृति रही है। 01 नवंबर, 1956 को जब राज्य का गठन हुआ था, तब महाराष्ट्र, विदर्भ, नागपुर सहित आदि राज्यों से मिलकर मध्यप्रदेश का गठन हुआ था। इसके चलते मध्यप्रदेश में विभिन्न राज्यों के लोग आकर बस गये थे। धीरे-धीरे यह काफिला बढ़ता ही गया। मप्र में गठन के बाद दो बड़े उद्योग धंधे केंद्र सरकार ने स्थापित किये, जिसमें भोपाल में भेल कारखाना तथा भिलाई में इस्पात कारखाना स्थापित किया गया। इसके चलते दक्षिण भारत के लोगों ने मप्र में प्रवेश किया, जो कि अब काफी तादाद में निवास करते हैं और वे राज्य की संस्कृति में रच बस गये हैं। इसके बाद भी वर्ष 2000 में राज्य का विभाजन हुआ और छत्तीसगढ़ एक नया राज्य मप्र से अलग होकर बन गया। 56 साल के सफर में मप्र में कभी भी अपने गान और गीत पर जोर नहीं दिया और न ही इस दिशा में किसी भी राजनेता ने पहल की और न ही कोई कमी महसूस की गई। वर्ष 2010-11 के बीच राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मप्र को लेकर कई सपने गढ़े हैं, वे मप्र को स्वर्णिम राज्य बनाने का सपना देखे हुए हैं, तो आओ मप्र बनाओ अभियान भी चलाए हुए हैं। इन अभियानों को गति देने के लिए उन्होंने मप्र गीत तैयार कराया जिसके सृजनकार वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव हैं। इस गीत का गायन प्रत्येक सरकारी कार्यक्रमों में हो रहा है। पंचायत से लेकर मंत्रालय के प्रत्येक सरकारी दफ्तर में सरकारी गान चस्पा है, जो कि बार-बार हर मप्र वासी में एकजुटता के भाव का अहसास कराता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी सपना है कि मप्र की एक अलग पहचान बने इस दिशा में नये इरादों के साथ राज्य को ताकत दी जा रही है। निश्चित रूप से मप्र का गीत हम सब लोगों के लिए एक गौरव का अहसास कराता है।
''मप्र की जय हो''
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