भले ही मप्र के विश्वविद्यालयों में सेमेस्टर सिस्टम लागू है, लेकिन इसने पूरी व्यवस्था को चौपट कर दिया है। न तो विश्वविद्यालयों में समय पर परीक्षाएं होती है और न ही परिणाम समय पर आ रहे हैं। इसके चलते कई विश्विद्यालयों में पूरा परीक्षाक्रम बार-बार डिस्टर्ब हो रहा है। मप्र में निजी विश्वविद्यालय खोलने की होड से मची है, कॉलेज तो खोलने का दौर थम सा नहीं रहा है, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय सरकार खोली जा रही है, लेकिन इस बात पर गौर ही नहीं किया जा रहा है कि आखिरकार हम राज्य की नौजवान पीढ़ी को क्या शिक्षा दे रहे हैं और वे अपना भविष्य किस प्रकार गढ़ रहे हैं। जब समय पर परीक्षाएं और परिणाम ही नहीं आयेंगे, तो फिर युवा पीढ़ी अपनी प्रतिस्पर्धा में कैसे कामयाब हो पायेगा। कई बार सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि उच्च शिक्षा के मामले में मप्र लगातार पिछड़ता जा रहा है। निजी विवि और कॉलेज डिग्रियां बांटने के अड्डे बन गये हैं। इनसे डिग्रियां तो मिल रही है, लेकिन मनचाहा रोजगार नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के लिए नौजवान पीढ़ी को मप्र छोड़कर दिल्ली, मुंबई, पुणे, बैंगलोर, हैदराबाद की शरण लेनी पड़ रही है। इसके बाद भी
उच्च शिक्षा विभाग शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने पर बार-बार मंथन बैठकें तो करता है, लेकिन उसके परिणाम शून्य ही सामने आये हैं। आलम यह है कि किसी भी विवि में समय पर पढ़ाई नहीं हो रही है। विभाग के आयुक्त और सचिव लगातार मॉनिटरिंग करते हैं मगर फिर भी परिणाम जब खोजे जाते हैं कि सेमेस्टर सिस्टम कहीं भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया। कहीं-कहीं तो सेमेस्टर सिस्टम को ब्रेक भी करना पड़ रहा है। दुखद पहलू यह है कि मप्र के एक दर्जन से अधिक विवि में जो कुलपति नियुक्त हैं, वे अपना कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर पाते हैं और बीच में ही उन्हें विदाई लेनी पड़ती है। इस वजह से भी शिक्षा व्यवस्था पर किसी का कोई अंकुश नहीं है। विवि और कॉलेजों की बाढ़ भले ही आ जाये, लेकिन हम अभी भी शिक्षा के स्तर में वो ऊंचाईयां नहीं पा सकें हैं, जो कि अन्य राज्यों को मिल चुकी है। इस दिशा में शिक्षा विदो और सरकार को नये सिरे से सोचना आवश्यक है अन्यथा परिणाम घातक होंगे।
''मप्र की जय हो''
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