गुरुवार, 27 सितंबर 2012

न जमीन पर ताकतवर और न ही आक्रमक तेवर फिर भी सपना देख रहे कांग्रेसी


                  मध्‍यप्रदेश के कांग्रेसी नेता सपनों की दुनिया में रहने के आदी हो गये हैं। उन्‍हें दिन में भी सुनहरे सपने सताते हैं। जिसके चलते न तो वे एसी रूम से बाहर निकलने की जरूरत समझते हैं और न ही कहीं आक्रमक तेवर दिखाने की उनकी मंशा है, बल्कि उन्‍हें लगता है कि अब तो दस साल बाद जनता अपने आप कांग्रेस को सत्‍ता में वापस लायेगी। कांग्रेसियों को कोई नींद से जगाने वाला लीडर भी नहीं है। इसके चलते वे अपनी दुनिया में मस्‍त हैं और अपने नेताओं के दरवार में जिंदा वाद के नारे लगाना और किसी न किसी तरह नेता के पैर पड़ लेने की कला सीखना उनकी जिंदगी का लक्ष्‍य हो गया है। इसके चलते मप्र की कांग्रेस चार, पांच धड़ो में बंटकर रह गई है। पिछले आठ सालों में तीसरी बार प्रदेश अध्‍यक्ष बने आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया भी इन दिनों अग्निपरीक्षा से गुजर रहे हैं। उन्‍हें भी कांग्रेसी बार-बार असफल बताकर नये अध्‍यक्ष के लिए पलक पावड़े बिछाने का सपना भी खूब देख रहे हैं। यह सच है कि भूरिया ने एक साल में कांग्रेस के भीतर जो उत्‍साह और उमंग पैदा करनी थी वह उसमें कामयाब नहीं हुए। उनके खाते में मार्च के महीने में मप्र बंद करना एक बड़ी कामयाबी है और छुट-पुट धरना प्रदर्शन और ज्ञापन देना भी उसमें शामिल हैं।  
      अब कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और महासचिव बीके हरिप्रसाद की नींद खुली है और वे बार-बार भोपाल आकर कांग्रेसियों को धमकाने की अदा में कह रहे हैं कि भीड नहीं लाये तो कार्यवाही होगी। इससे साफ जाहिर है कि हरिप्रसाद को भी अहसास हो गया है कि कांग्रेस नेताओं को हड़काना पड़ेगा तब वे जाग पायेंगे, लेकिन उनसे भी यह सवाल किया जाना चाहिए कि आखिरकार वह लंबे समय से प्रदेश प्रभारी हैं फिर उन्‍होंने संगठन में जान फूंकने के लिए क्‍या किया। कुल मिलाकर मप्र कांग्रेस संगठन की निष्क्रियता देखकर कांग्रेसियों को भी भीतर ही भीतर पीड़ा होती है पर वे अपने इस दर्द को आपस में बांट भी नहीं पाते हैं और कांग्रेस जिस हाल में है उसी में छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। अगर यही हाल रहा तो भाजपा के लिए तीसरी बार फिर से सत्‍ता का मुकुट पहनने में कोई बाधाएं नहीं आयेगी। यूं भी आम आदमी से लेकर नौकरशाही के बीच यह संदेश चला गया है कि भाजपा ही तीसरी बार सरकार बना रही है। इस कड़ी को तोड़ने के लिए कांग्रेसियों को बेहद पसीना बहाना पड़ेगा जिसके लिए कांग्रेस फिलहाल दिखती नजर नहीं आ रही है। 
                                       जय हो मप्र की

बुधवार, 26 सितंबर 2012

भोपाल की हरियाली और झील की खूबसूरती पर फिदा हुई जूही चावला

        मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल की प्रा‍कृतिक सौंदर्यता और झील के मनोरम दृश्‍य पर हर कोई फिदा होता है। यहां पर चारो तरफ फैली हरियाली और उनमें महकती फूलों की खुशबू का आनंद हर कोई उठाता है। भोपाल की खूबसूरती की प्रशंसा करने में कोई भी पीछे नहीं रहता है फिर चाहे वह बॉलीबुड का स्‍टार हो या अभिनेत्री। यहां की खूबसूरती पर अपनी जुवा खोली ही देती हैं। यूं तो भोपाल की खूबसूरती पर हर कोई फिदा होता है, क्‍योंकि प्राकृतिक सौंदर्यता लोगों को आकर्षित करती है।
         25 सितंबर, 2012 को भोपाल में फिल्‍म अभिनेत्री चूही चावला ने भी भोपाल की सौंदर्यता और खूबसूरती की भी जमकर तारीफ की और यह कहने से भी नहीं चूकी कि भविष्‍य में वे भोपाल में किसी फिल्‍म की शूटिंग की करेंगी। पिछले पांच सालों में भोपाल के प्रति बॉलीबुड का आकर्षण बढ़ा है। यहां पर बॉलीबुड के शहशांह अमिताभ बच्‍चन, शत्रुघन सिन्‍हा, अजय देवगन, रणधीर कपूर, शाहरूख खान, नाना पाटकर तथा प्रकाश झा सहित आदि भी भोपाल की खूबसूरती पर फिदा हो चुके हैं। प्रकाश झा ने तो भोपाल में दो चर्चित फिल्‍मों का निर्माण भी किया है। भाजपा सरकार ने मप्र में बॉलीबुड को आकर्षित करने के लिए फिल्‍म सिटी भोपाल में बनाने का प्रस्‍ताव है इसके लिए जमीन तलाशी जा रही है। पिछले एक दशक से लगातार फिल्‍म सिटी की योजना पर काम चल रहा है। निश्चित रूप से भोपाल की खूबसूरती को फिल्‍मों में कैद करने के लिए हर कोई आगे आ रहा है। 
                                        ''जय हो मप्र की''

             

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

दिल और दिमाग पर छाई उमा भारती

          उनकी राजनीति इन दिनों पग-पग सोच विचार कर चल रही है। वे कभी अब उदेलित नहीं होती और न ही अपने समर्थकों के लिए कहीं दबाव बनाती हैं, जो पार्टी लाइन मिल रही है उस पर काम कर रही हैं। यहां हम चर्चा कर रहे हैं साध्‍वी और मप्र की पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती की। जो कि इन दिनों एक पवित्र मिशन 'गंगा बचाओ अभियान' के तहत यात्रा पर हैं। उन्‍होंने मप्र की भाजपा राजनीति से अपने आपको अलग-थलग सा कर लिया है। वे राज्‍य यात्रा पर आती है, लेकिन अपने मिशन के तहत यात्रा करके वापस भी चली जाती है और मीडिया को भनक तक नहीं लगती है। यह सिलसिला उनका पिछले एक साल से चल रहा है। इसके बाद भी भाजपा के नेताओं के दिल और दिमाग पर उमा भारती छाई रहती हैं। उनकी धमक नेताओं को अज्ञात भय से भयभीत करती रहती है। चाहे मंत्रि मंडल की बैठक हो अथवा संगठन की रणनीति की होने वाली बैठकों में भी उमा भारती का साया मंडराता रहता है। 11-12 सितंबर, 2012 को खंडवा में हुई भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी उमा भारती ने न तो शिरक्‍त की और न ही कोई एजेंडा अपनी तरफ से पेश करवाया, बल्कि वे तो उन दिनों गंगा बचाओ अभियान के तहत योजना पर काम कर रही थी। यह यात्रा हाल ही में बंगाल से शुरू हुई है, जो कि यूपी में समाप्‍त होगी। उमा भारती यूपी विधानसभा में विधायक हैं और वे अब अपनी राजनीति का केंद्र बिंदु उप्र को बनाने में जुटी हुई हैं। भारतीय राजनीति की धुरी यूपी है। यही से देश को प्रधानमंत्री मिलते रहे हैं। यही वजह है कि भावी राजनीति के अध्‍याय तैयार करने के लिए उमा भारतीय ने अपने आपको यूपी में झोंक दिया है। इसके बाद भी मप्र के नेताओं को उमा का भय सताता रहता है, जबकि वे बार-बार कह चुकी है कि अब वे मप्र की तरफ पलट कर भी नहीं देखेंगी, लेकिन फिर पार्टी नेताओं को लगता है कि उमा भारती कभी भी मप्र में ताकतवर हो सकती हैं। खंडवा में हुई भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी पार्टी अध्‍यक्ष प्रभात झा ने उमा भारती का जिक्र करते हुए कहा कि खंडवा हमारे लिए विजय भव की स्‍थली है, क्‍योंकि इसी स्‍थल से वर्ष 2003 में उमा भारती ने जीत का संकल्‍प लिया था और तब भाजपा की सरकार बनी थी। वर्ष 2013 का मिशन भी हम इसी विजय पथ पर यही से अग्रसर होंगे। इस बार हमारा लक्ष्‍य वर्ष 2003 में जीती गई 173 सीटों से आगे बढ़ना है, फिर चाहे वह एक सीट ही क्‍यों न हो, उन्‍हें हर हाल में उमा भारती के मिशन से आगे जाना है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार ने भी उमा को याद कर ही लिया। उनका इशारा लोकसभा चुनाव था जिसमें भाजपा ने उमा भारती के नेतृत्‍व में 24 लोकसभा सीटें जीती थी। अब अनंत कुमार 29 सीटें जीतने का लक्ष्‍य बनाने का सपना दिखा रहे हैं।
मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्‍व में वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में 143 और लोकसभा संसदीय क्षेत्रों में 16 सीटे जीती थी साथ ही पिछले चार सालों में हर उपचुनाव पर भगवा रंग फहराया है। इस नाते भाजपा को लगता है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी भगवा झंडा फिर से राज्‍य में चहु ओर फैलेंगा। इस अभियान के लिए पार्टी पूरी ताकत से जुट गई है। अब देखना यह है कि इस अभियान को कितनी गति मिलती है और कामयाबी का झंडा कहा तक पहुंचता है। कुल मिलाकर साध्‍वी उमा भारती को बार-बार मप्र की सरजमी पर याद करना यह साबित करता है कि कहीं न कहीं भाजपा नेताओं को उनकी कमी खलती है।
                                                            ''जय हो मप्र की''

सोमवार, 24 सितंबर 2012

नौकरशाह क्‍यों छोड्ना चाहते हैं मप्र


          मध्‍यप्रदेश की सरजमी नौकरशाहों के लिए न सिर्फ लुभावनी है, बल्कि न तो कहीं उन्‍हें विरोध का सामना करना पड्ता है और न ही कोई उनके भ्रष्‍टाचार पर शोरगुल करता है। यहां तक कि पूरी सेवा के बाद भी भ्रष्‍टाचार की जांच करने वाली एजेंसियां अनुमति का इंतजार करती ही रहती हैं और नौकरशाह सेवानिवृत्‍त हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि नौकरशाह भी साफ सुथरे हैं, बल्कि पिछले दो दशक की यात्रा में तो ऐसे अफसरों की संख्‍या लगातार बढ़ रही है, जो कि केंद्र और राज्‍य की योजनाओं को बंटाढार करने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आयकर छापों में भी इन अफसरों के यहां करोड़ों की सम्‍पत्ति हाथ लग रही है फिर भी इन अफसरों का मप्र से  क्‍यों मोह भंग हो रहा है यह समझ से परे है। बार-बार मीडिया में यह खबरें उछाली जाती हैं कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी मप्र में काम नहीं करना चाहते हैं और वह केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्‍छुक हैं। इसके पीछे का तर्क यह बताया जाता है कि उन्‍हें काम करने के अवसर कम मिलते हैं और राजनैतिक हस्‍ताक्षेप ज्‍यादा होते हैं। यह तस्‍वीर भी विद्रूप ढंग से पेश की जा रही है। अधिकांश अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियो के सामने राजनेता दंडवत से नजर आते हैं, क्‍योंकि मप्र के राजनेता जब राज्‍य के विकास के लिए दिल्‍ली और भोपाल में लड़ते नजर नहीं आते हैं, तो वह अखिल भारतीय सेवा के खिलाफ कहां से मोर्चा खोलते होंगे। यह आसानी से समझा जा सकता है। इक्‍का-दुक्‍का मामलों में आईएएस अधिकारियों के खिलाफ उनके विभाग के मंत्रियों ने ही मोर्चें खोले हैं। मामला मुख्‍यमंत्री तक पहुंचा और फिर मामला शांत हो गया। इससे यह आंकलन नहीं किया जा सकता है कि नौकरशाहों की प्रदेश में नहीं चल रही है। 
इन्‍हें रास नहीं आ रहा है मप्र -      
    अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का मप्र में खासा वर्चस्‍व है। इस सेवा के अधिकारियों में आईएएस, आईपीएस और आईएफएस शामिल हैं। इनमें सबसे ज्‍यादा विवादों के घेरे में आईएएस अफसर आते हैं। वर्ष 2004 से 2012 के बीच करीब 44 आईएएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर दिल्‍ली जा चुके हैं।  इनमें सबसे अधिक संख्‍या तेज-तर्राट और ईमानदार अफसरों की है। इनका पलायन निश्चित रूप से गंभीर विषय है पर जो अफसर मलाईदार पदों पर रहकर अपने प्रमोशन चैनल के तहत केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर गये हैं उन्‍हें ईमानदारी के तमंगे से नहीं नवाजा जा सकता है। हाल ही में एक दर्जन से अधिक अफसरों ने पुन: प्रतिनियुक्ति पर जाने की इच्‍छा जाहिर की है इनमें अजयनाथ, दिलीप सामंतरे, डॉ0 संजय गोयल, शैलेंद्र सिंह, ई-रमेश, ज्ञानेश्‍वर बी0पाटिल, मधुमति तेवतिया, आयरन सिंथिया शामिल हैं। इन अफसरों में शैलेंद्र सिंह और अजय नाथ निश्‍चित रूप से अपनी कार्यशैली से पहचाने जाते हैं, इन्‍होंने जहां-जहां भी काम किया, वहां अपना डंका बजाया और राजनेता की‍ सिफारिशों को भी मानने से इंकार कर दिया। इससे हटकर आईपीएस अफसरों का मप्र से जाना भी चौंकाने वाली सूचनाएं हैं। अभी तक कुछ महीनों में ही आधा दर्जन से अधिक अफसर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गये हैं और इतनी ही संख्‍या में केंद्र में जाने के लिए कतार में शामिल हैं। आईपीएस अफसरों की संख्‍या में लगातार कमी हो रही है जिसके चलते प्रदेश के 50 जिलों में से 21 जिलों की कमान प्रमोटी अफसरों के हाथों में हैं। वैसे तो केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए पांच साल सेवा देने का नियम है, लेकिन अधिकारी इससे ज्‍यादा समय तक कार्य करते रहते हैं, क्‍योंकि वहां की कार्यशैली और मप्र की कार्यशैली में जमीन आसमान का फर्क रहता है और दूसरा कारण पारिवारिक जिम्‍मेदारियां होती है जिस पर अफसर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। इन अधिकारियों के बच्‍चे दिल्‍ली में उच्‍च अध्‍ययन में रहते हैं, ऐसी स्थिति में अधिकारियों की मंशा उनके पास रहने की होती है, लेकिन बहाना मप्र से मोहभंग का बताया जाता है, जो कि राज्‍य की छवि धूमिल करने का एक गंदा प्रयास है। इस पर राजनेताओं को गंभीरता से विचार विमर्श करना चाहिए कि आखिरकार अधिकारी दिल्‍ली की तरफ बार-बार क्‍यों भागते हैं।  यही हाल आईएफएस सेवाओं का है। इस सेवा के भी अफसर दिल्‍ली जाने के लिए बेताब रहते हैं। कुल मिलाकर मप्र के राजनेता अपने दुनिया में खाये रहते हैं अगर वह नौकरशाहों से जवाब तलब करने लगे और योजनाओं की जमीनी हकीकत जानने लगे तो फिर अधिकारी अपने आप उनके पीछे घूमते हुए नजर आयेंगे। 
                                      जय हो मप्र की

रविवार, 23 सितंबर 2012

सीटियों की गूंज और महिलाओं की थैलियों से चला शौचविहीन अभियान


 
         एक तरफ कल-कल करती नर्मदा नदी का किनारा और विंध्‍यांचल पर्वत के बीचों-बीच बसे गांवों में सुबह और शाम को निकलते समय यदि आपको सीटे बचाते हुए बच्‍चे मिल जाये या हाथों में राख या मिट्टी लिये हुए महिलाएं मिल जाये, तो चौकिये नहीं। यह गांव-गांव में खुले में शौच से मुक्ति का अभियान चले बच्‍चों और महिलाओं की टोलियां है ताकि सदियों से व्‍याप्‍त गंदगी को हमेशा के लिए दफन किया जा सके। दिलचस्‍प यह है कि यहां पर सुबह 5 से 6 और शाम को 6 से 7 के बीच जब महिलाएं शौच करती है, तो उन्‍हें पुरूष टोका-टाकी करते हैं और वही जब पुरूष लोटा लेकर निकलते हैं, तो महिलाओं के दल खड़े हो जाते हैं, तब लज्जित होकर महिला एवं पुरूष वहां से आगे बढ़ जाते हैं जिसका परिणाम यह हुआ कि गांव-गांव में शौचालय बनने लगे। 
        यह करिश्‍मा मप्र की राजधानी भोपाल से 70 किमी दूर मुख्‍यमंत्री‍ शिवराज सिंह चौहान के बुधनी विधानसभा क्षेत्र में जन समुदाय कर रहा है। इस अनोखे अभियान की अलख जगाने का जिम्‍मा जनपद पंचायत बुधनी के कार्यपालन अधिकारी अजीत तिवारी ने उठाया है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इस अभियान से इस कदर प्रभावित हुआ है कि उन्‍होंने मर्यादा अभियान के प्रचार प्रसार की गाइड लाइन को बुधनी को मॉडल के रूप में फोकस किया है। यह गाइड लाइन सिंतबर 2012 में जारी हुई है। यहां यह बता दें कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 में स्‍वच्‍छता अभियान शुरू किया था, तभी से तिवारी गांव-गांव में स्‍वच्‍छता की अलख जगाने की मुहिम में जुट गये थे। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक कार्यक्रम में स्‍वच्‍छता अभियान से प्रभावित होकर वर्ष 2011 में मर्यादा अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत मार्च, 2013 तक प्रदेश के 5800 गांव में खुले में शौच से मुक्‍त करने का लक्ष्‍य है, जबकि इसी साल बुधनी जनपद पंचायत के 138 ग्राम खुले में गंदगी से निजात पाने का मुक्ति महोत्‍सव मनाते नजर आयेंगे। बुधनी जनपद पंचायत में आज भी सुबह-सुबह बच्‍चों की टोलियां हाथों में सीटियां लेकर सड़क मार्ग पर निकल पड़ती है, जहां किसी को शौच करते हुए देखा वहां जोर-जोर से सीटियां बजाना शुरू कर देते हैं। बच्‍चों के पीछे-पीछे पुरूष्‍ा और महिलाओं का दल होता है, जो कि सीटियों के बाज के साथ ही पुरूषों के सामने महिलाएं एवं महिलाओं के सामने पुरूष खड़े हो जाते हैं। तब कुछ पलों के लिए आंखे अपने आप शौच करने वालों की झुक जाती हैं। कक्षा-9 से 11वीं में पढ़ रहे ग्राम पंचायत पीली करार के बच्‍चों की टोलियों में नरेश मीणा, चंदेश मीणा, मोहन, आका‍श आदि शामिल हैं। इस गांव में एक साल के भीतर 140 शौचालय बन गये हैं, जबकि इससे पहले 50 बामुश्किल शौचालय थे। गांव के बुजुर्ग मोतीलाल बताते हैं कि वाकई में विश्‍वास नहीं होता है कि सड़कों के किनारे कभी शौच भी बंद हो सकता था। अब 99 प्रतिशत लोग अपने घरों में शौच का प्रयोग कर रहे हैं। इसी इलाकें से लगे आदिवासी बाहुल्‍य गांव पांढुडो की महिलाएं भी सुबह और शाम नारे लगाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं। यह महिलाएं हाथों में पॉलीथिन में राख लिये निकलती है और जहां उन्‍हें गंदगी दिखती है वहां डाल देती हैं इसके चलते गांव में 35 शौचालय बन गये हैं। गांव में रहने वाली ओझा जाति की महिलाएं पिछले 13 म‍हीनों से सुबह-शाम लोगों को जागरूक कर रही हैं। इस गांव की बुजुर्ग महिला धनिया बाई कहती हैं कि जब हम पुरूषों के पीछे-पीछे जाते हैं तो वे अपने आप शौच के लिए रूक जाते हैं। 
जनसमुदाय को सौंपी मशाल : 
        इस अनौखे अभियान के सूत्रधार और बुधनी जनपद पंचायत के सीईओ अजीत तिवारी बताते हैं कि उन्‍होंने वर्ष 2009 में अमेरिका के एक भारतीय डॉक्‍टर से प्रेरणा लेकर गांव-गांव में साफ-सफाई अभियान शुरू किया था, क्‍योंकि यह बताया गया कि गांव में बीमारी की वजह गंदगी है तभी से यह अभियान को गति दी, लेकिन वर्ष 2011 में जब राज्‍य सरकार ने मर्यादा अभियान शुरू किया तो फिर इसके तहत गांव-गांव में जनसमुदाय को आगे करके सफाई की मशाल उनके हाथों में सौंप दी। पहले चरण में गांव-गांव में शर्म यात्राएं निकाली गई। समुदाय के लोग गांव के बाहरी रास्‍तों पर फैली गंदगी तक पहुंचते थे, जहां मास्‍टर ट्रेनर्स द्वारा गांव वालों को बताया जाता था कि प्रतिदिन खुले में की जा रही गंदगी किस तरह गांव में बीमारी फैला रही है। बहु-बेटियां तब शर्म और लज्‍जा का अनुभव करती थी। यही वह क्षण था जब जनसमुदाय इस कुप्रथा के खिलाफ उठ खड़े होने का संकल्‍प लेता था। गांव-गांव में शर्म यात्रा निकालने के बाद गांव के लोग स्‍वयं निगरानी समिति बनाते थे और खुले में की गई गंदगी पर मिट्टी और राख डालकर उसे साफ करते थे। यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में बुधनी जनपद में 8 हजार शौचालय बन गये है। अगले मार्च तक 138 गांवों को शौच मुक्‍त करने का लक्ष्‍य है। इस अभियान से 10 हजार परिवारों के जीवन में बदलाव आया है, जो कि अपने आप में सामाजिक बदलाव का एक बड़ा पड़ाव है।

शनिवार, 22 सितंबर 2012

श्रीलंका में सीता माता का मंदिर और मप्र में साधू-संत कर रहे जल सत्‍याग्रह

        मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घोषणाएं करने में बेहद अव्‍वल हैं। वे हर कार्यक्रम में कोई न कोई ऐसी घोषणा करते हैं जिसको लेकर सरकारी तंत्र के हाथ-पैर फूलने लगते हैं। सीएम की घोषणा पर थोड़े दिन योजनाएं बनती है, फाइले दौड़ती हैं और फिर उन पर विराम लग जाता है। ऐसी एक नहीं अनगिनत घोषणाएं मप्र की फाइलों में तैरती मिल जायेगी। अब मुख्‍यमंत्री चौहान ने जनता के सहयोग से श्रीलंका में सीता माता का मंदिर बनाने का एलान किया है। दिलचस्‍प यह है कि मुख्‍यमंत्री चौहान 21 सितंबर को सांची में सीता माता का मंदिर बनाने का सपना जनता के सामने परोस रहे थे तब राजधानी के बड़े तालाब में साधू-संत जल सत्‍याग्रह कर रहे थे। उनकी पीड़ा यह है कि मंदिरों को तो सरकार तोड़ रही है और साधू-संतों पर कोई गौर नहीं कर रही है। उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने जाकर साधू-संतों को मनाया, तब वे तालाब से बाहर निकले।
         मध्‍यप्रदेश सरकार इन दिनों धार्मिक पर्वों और तीर्थ स्‍थल की यात्राएं कराने का कार्यक्रम उत्‍सव की भांति मना रही है। तीर्थ यात्रियों के जत्‍थे जहां तहां से रवाना हो रहे हैं। बुजुर्ग भी खुश हैं कि उन्‍हें सरकार के सहारे यात्रा करने को मिल रही है। यूं भी भाजपा नेता धर्म की पुडि़या के सहारे अपने वोट बैंक को मजबूत करने में लगे रहते हैं। अब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सपना है कि श्रीलंका में सीता माता का मंदिर बनाया जाये। इसके साथ ही श्रीलंका की धार्मिक यात्रा के लिए सब्‍ि‍सडी और बौद्व गया को मुख्‍यमंत्री तीर्थ दर्शन यात्रा में शामिल करने का एलान किया गया है। चौहान का कहना है कि श्रीलंका में सीतामाता जिस वाटिका में रही हैं जहां उन्‍होंने अग्नि परीक्षा दी वहां भव्‍य मंदिर बनाया जाये। इसके लिए मप्र सरकार धन की कमी नहीं होने देगी। गांव-गांव से करोड़ों रूपया एकत्रित कर श्रीलंका पहुंचाया जायेगा। इससे पहले भाजपा राम मंदिर के लिए करोड़ों का चंद एकत्रित कर चुकी है, लेकिन राम मंदिर आज भी एक दिव्‍य स्‍वप्‍न बनकर रह गया है। दूसरी ओर मप्र के साधू-संत सरकार के कामकाज से बेहद नाराज हैं। अखिल भारतीय संत समिति की प्रदेश इकाई के मुखिया दंडी स्‍वामी के नेतृत्‍व में साधू संत 21 सितंबर को बड़े तालाब के पानी में धरने पर बैठ गये। जैसे-तैसे उद्योग मंत्री ने उन्‍हें मनाया, तब वह पानी से बाहर निकले। साधू संतों का कहना है कि राज्‍य सरकार अब तक प्रदेश के 1400 मंदिरों को अतिक्रमण और यात्रायात में बाधिक होने के कारण हटा चुकी है इसमें भोपाल के 22 मंदिर शामिल हैं। कई बार कार्यवाही पक्षपात पूर्ण ढंग से की गई है। इससे साफ जाहिर है कि सरकार श्रीलंका में मंदिरों के लिए तो बड़े-बड़े वादे कर रही है, लेकिन दूसरी ओर साधू-संत परेशान हैं।

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

बौद्व विवि और वाइको के विरोधी तेवर नहीं हुए ठंडे



              मध्‍यप्रदेश के सांची स्‍तूप की पहचान अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर है। इस स्‍थल पर भाजपा सरकार द्वारा बौद्व एवं भारतीय ज्ञान अध्‍ययन विश्‍वविद्यालय खोले जाने को लेकर मप्र का विरोध पक्ष तो शांत है पर तमिलनाडु में अपनी राजनीतिक मौजूदगी दर्ज कर चुके डीएमके नेता वाइको ने विरोधी तेवर दिखाकर सरकार की नींद उड़ा दी है। वाइको के साथ-साथ उनके समर्थक 19 सितंबर से 21 सितंबर के बीच मप्र के विभिन्‍न हिस्‍सों में वाइको समर्थकों को रोकने के लिए पूरी ताकत लगानी पड़ी। इसके बाद भी वाइको अपने विरोध पर अडिग हैं। वाइको के विरोध के पीछे का मुख्‍य कारण विवि की आधारशिला रखने के लिए श्रीलंका से आ रहे राष्‍ट्रपति महिन्‍द्रा राजपक्षे हैं। 
वाइको कह चुके हैं कि वह हर हाल में श्रीलंका के राष्‍ट्रपति भारत में कहीं भी जायेंगे तो उसका विरोध करेंगे। इस विरोध के चलते वे 40 घंटों से महाराष्‍ट्र की सीमा से लगे छिंदवाड़ा के पांढुर्ना में डेरा डाले हुए हैं, जहां प्रशासन उन्‍हें एक कदम भी आगे नहीं बढ़ने दे रहा है इसके बावजूद भी डीएमके के एक दर्जन पूर्व सांसद एवं विधायक 20 सितंबर को रात्रि में भोपाल पहुंच गये थे, जो कि छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर अलग-अलग मार्गों से सांची में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिस को जिनका पता लग रहा है उन्‍हें रोका जा रहा है। इस विरोध से मप्र की राजनीति भले ही न गरमाई हो, लेकिन बौद्व विवि की आधारशिला रखने से पहले ही जो हाय-तौबा मची है उसने प्रशासन की तो नींद उड़ा रखी है। पूरे कार्यक्रम के लिए 1500 से अधिक जवान सिर्फ मेहमानों की सिर्फ सुर‍क्षा के लिए है, जबकि सुबह से लेकर शाम तक विदिशा, रायसेन और भोपाल जिले के 58 गांवों के रहवासियों को हिदायत दी गई है कि वे बाहर न निकले। इससे आम आदमी को स्‍वाभाविक रूप से नाराज होना लाजमी है, लेकिन श्रीलंका के राष्‍ट्रपति महिन्‍द्रा राजपक्षे का विरोध न हो इसके लिए सरकार ने कड़ी नाकेबंदी की है। डीएमके के नेता वाइको ने मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा है कि वे तो उन्‍हें काफी संवेदनशील व्‍यक्ति मानते थे, लेकिन उन्‍होंने एक अत्‍याचारी राष्‍ट्रपति को आमंत्रित कर अपनी निष्‍ठुरता का परिचय दिया है। अपने हक की लड़ाई लड़ने वाले लाखों तमिलों पर श्रीलंका में महिन्‍द्रा राजपक्षे की सरकार ने खूब अत्‍याचार किये हैं। ऐसा व्‍यक्ति भारत में कहीं भी आयेगा उसक हर स्‍तर पर विरोध किया जायेगा। इस विरोध के चलते मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अपने सहृदयता दिखाते हुए वाइको को छिंदवाड़ा प्रशासन से फूल देकर स्‍वागत कराया गया, लेकिन वाइको ने स्‍वागत से इंकार कर दिया और 19 तारीख की शाम से वे पांढुर्ना की सड़क पर 24 घंटे से अधिक समय तक अपने समर्थकों के साथ बैठे रहे। चौहान ने कहा है कि सांची में बौद्व विवि की स्‍थापना से भारत के बौद्व देशों से सांस्‍कृतिक संबंध मजबूत होंगे, राष्‍ट्रों के मध्‍य मैत्रीभाव बढ़ेगा, सांची विवि विश्‍व को दया, करूणा तथा शांति का संदेश देगा। 
        सांची में बौद्व विवि 300 करोड़ की लागत से तैयार होगा। यह विवि निश्‍चित रूपे से मप्र के लिए मील का पत्‍थर साबित होगा। विवि के लिए सांची में 100 एकड़ जमीन सरकार ने दी है। करीब 2300 साल पहले महान सम्राट अशोक ने शिलान्‍यास किया था। इस पवित्र स्‍थल पर ही बौद्व धर्म की बौद्विकता और हिन्‍दू धर्म की सनातनता में समन्‍वय के सूत्र खोजने और उन्‍हें आधुनिक संदर्भों में परिभाषित करने के लिए विवि की स्‍थापना हो रही है। देश में यह पहला स्‍टडी केंद्र होगा, जहां बौद्व धर्म और सनातन धर्म का अध्‍ययन होगा, लेकिन इसके पीछे राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की भी अहम भूमिका है, जो कि बौद्व अनुयायी को अपने पक्ष में करने के लिए इस विवि के पीछे खड़े हुए हैं। भूटान और श्रीलंका को भी यह विवि रास आ गया है। 

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

पत्‍नी ने कराया पति का दूसरा विवाह

दाये रवि वर्मा , बीच में पायल दूसरी पत्‍नी  एवं बायें भावना पहली पत्‍नी

        चौकिये मत, यह सच है कि आध‍ुनिक जमाने की नारी श्रीमती भावना अपने पति रवि वर्मा का इसलिए दूसरा विवाह करा दिया कि उन्‍हें बार-बार अपने पति को संतान नहीं होने की पीड़ा से आहत होते देखना पसंद नहीं था। यह अपने आप में सामाजिक बदलाव की बड़ी मिसाल है अन्‍यथा पत्‍नी कभी भी अपने पतियों को किसी महिला के साथ कदमताल करना तो दूर अगर हंसते हुए बात कर लें, तो ही पत्‍नी को नागवार गुजरता है। ऐसी स्थिति में मप्र की औद्योगिक नगरी इंदौर में रहने वाली एक आम घरेलू महिला भावना वर्मा ने लंबे समय तक जब संतान को जन्‍म नहीं दिया तो उन्‍हें भीतर ही भीतर गिलानी होने लगी, यहां तक कि घर परिवार में भी पति को संतान नहीं होने पर बेहद दुखी अवस्‍था में देखने पर पत्‍नी ने भीतर ही भीतर तय किया कि वह अपने पति का दूसरा विवाह रचायेगी ताकि पति बाप बन सके। इसके लिए लड़की की तलाश हुई और पायल नामक युवती से रवि वर्मा की शादी करा दी गई। इस शादी के बाद पायल के घर वालों ने अपनी बेटी की जबरन शादी कराने का मामला थाने में दर्ज करा दिया। खुशियों के बीच पुलिस पहुंच गई और देखते ही देखते मामला गंभीर हो गया। अंतत: रवि वर्मा की दूसरी पत्‍नी पायल सामने आई और उसने बयान दिया कि वह अपनी मर्जी से शादी करके पति के साथ रह रही हैं। 
मिसाल पेश की महिला ने : 
दूसरी पत्‍नी पायल के साथ रवि
         अमूमन भारतीय महिलाएं अपना नजरिया आज भी बदलने को तैयार नहीं है। यह सच है कि उदारीकरण ने महिलाओं की सोच में आंशिक बदलाव आया है अब हर कहीं महिलाएं तेजी से दौड़ती नजर आती हैं, लेकिन आज भी महिला का अपने पति पर कब्‍जा जैसी प्रवृत्ति यथावत कायम है। शादी के बाद महिला को लगता है कि पति उसके अलावा किसी का नहीं हो सकता है। यह सच भी है कि शादी के बंधन में बंधने के बाद अमूमन अधिकांश पुरूष परिवार और समाज में घुल मिल जाते हैं। एक्‍का- दुक्‍का पुरूष ही इधर उधर परेशान हाल में नजर आते हैं। इसके बाद भी महिलाओं के नजरिए में कोई बदलाव नहीं आ रहा है। ऐसे वातावरण में इंदौर की भावना नामक महिला ने जो निर्णय किया है वह अपने आप में इतिहास बना गया और समाज में नई रोशनी का आगाज करेगा।
पहली पत्‍नी भावना वर्मा

बुधवार, 19 सितंबर 2012

पेंशन घोटाले की रिपोर्ट सिरदर्द बनी मंत्री के लिए

           शिवराज सरकार के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के लिए पेंशन घोटाले की रिपोर्ट सिरदर्द बन गई है। इस रिपोर्ट को लेकर विपक्ष उनके पीछे पड़ गया है। उनके विरोधियों ने एक बार फिर से तगड़ी घेराबंदी की है पर विजयवर्गीय की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ा। वे अभी भी विंदास अंदाज में गणेश उत्‍सव के कार्यक्रमों के जरिए अपने सामाजिक सरोकार में लगे हुए हैं।
फिर मंत्री टारगेट पर :
            मध्‍यप्रदेश की शिवराज सरकार फीलगुड में है। सरकार के मुखिया शिवराज सिंह की नजर में मंत्री बेदाग हैं पर विपक्ष किसी न किसी मंत्री को टारगेट पर ले रहा है। मंत्रिमंडल विस्‍तार में भी विपक्ष ने खामिया निकाली थी। अब कांग्रेस विधायक डॉ0 कल्‍पना परूलेकर ने उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय पर निशाना साधा है वजह है इंदौर का करोडों का पेंशन घोटाला। इस घोटाले को लेकर एक सदस्‍यीय आयोग काम कर रहा है। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मंत्री की भूमिका पर सवाल उठाये हैं। फिलहाल रिपोर्ट किसी के पास नहीं हैं, लेकिन आरोप प्रत्‍यारोप का दौर चल रहा है। यूं भी शिवराज सरकार के कैबिनेट मंत्री विजयवर्गीय पिछले दो महीनों से भाजपा और कांग्रेस की राजनीति में लगातार मीडिया की सुर्खिया बटोर रहे हैं। कभी उन पर उनकी ही सांसद सुमित्रा महाजन हमला कर रही हैं, तो कभी केंद्रीय राज्‍यमंत्री सिंधिया से क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में पराजय मिल रही है, तो अब इंदौर में महापौर रहते हुए पेंशन घोटाला उनके लिए सिरदर्द बन गया है। 
जिन्‍न बाहर आया :
         इंदौर के पेंशन घोटाले की जांच जस्टिस एनके जैन आयोग कर रहा है। आयोग की रिपोर्ट को लेकर संशय हैं फिलहाल आयोग का कार्यकाल कई बार बढ़ चुका है। इस आयोग की भूमिका पर भी समय-समय पर सवाल उठे हैं। कुल मिलाकर पेंशन घोटाला एक बार फिर जिन्‍न की तरह बाहर आ गया है।

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

मप्र में पर्यटन विकास पर जोर नहीं नए स्‍थल तलाश का फरमान


              पर्यटन स्‍थलों के विकास की परिकल्‍पना बार बार बुनी जा रही है पर उन अमल पर गौर करने की जरूरत न तो राजनेता महसूस करते है और न ही नौकरशाही को आवश्‍यकता महसूस होती है, हालात यह हो गए है कि आजकल मप्र में पर्यटकों की संख्‍या में तेजी से इजाफा हो रहा है पर उन्‍हें जो सुविधाएं मिलना चाहिए उस दिशा किसी भी स्‍तर पर गंभीरता नहीं दिखती है, सोमवार यानि 17 सितंबर को मप्र के सीएम शिवराजसिंह चौहान ने राज्‍य पर्यटन विकास परिषद की बैठक में सुझाव दे दिया है कि नए पर्यटन स्‍थलों को तलाश किया जाए पर यह सवाल आज भी मॉजू है कि जो पर्यटन स्‍थल है उन्‍हें और बेहतर रूप देने पर लगातार मशक्‍कत क्‍यों नहीं होती है, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्‍ताराखंडसहित आदि राज्‍यों ने पर्यटन को उघोग का दर्जा देकर व्‍यापक स्‍तर पर न सिर्फ रोजगार के द्वार खोले है बल्कि आय के स्‍त्रोत भी विकसित किये है, इस दिशा में मप्र में प्रयास किए गए पर वे सार्थक परिणाम नहीं दे पाए है, इसके बाद भी विचार की प्रक्रिया धीमी रफतार से चल रही है, सीएम का चितिंत होना स्‍वभाविक है पर उन्‍हें पर्यटन के विकास और भविष्‍य को लेकर लगातार बैठकें करना चाहिए, राज्‍य में पर्यटन स्‍थलों के प्रति आम पर्यटकों का रूझान है बल्कि धार्मिक पर्यटन के विकसित होने की संभावनाएं प्रबंल है, इसके बाद भी नौकरशाही गहरी नींद में रहती है 
पर्यटन को बढावा और चुस्‍त चाल - 
           पर्यटन को बढावा देने के सपने तो खूब दिखाए जाते है पर उन्‍हें जमीन पर उतारने की दिशा में पहल नहीं हो पाती है, अब प्रदेश में पर्यटन को बढावा देने के लिए 10 विशेष जोन बनाए जांएंगे, इको पर्यटन के विकसित करने का सपना तो लंबे समय से देखा जा रहा है, पर बजट के अभाव में कोई काम नहीं हो पा रहे है,जबकि बीते पांच साल में पर्यटकों की संख्‍या चार गुना बढ गई है, हेरिटेज टूरिज्‍म को बढावा देने के लिए 24 निजी और राज्‍य के स्‍वमित्‍व वाली सात गढी तथा किला का चुनाव किया गया है, इसके साथ पर्यटकों सुविधाएं उपलब्‍ध कराने के लिए हवाई और रेल मार्गो का विस्‍तार किया जा रहा है, कितना दुखद है कि राज्‍य को बने पचास साल हो चुके है पर अभी तक पूरे प्रदेश में हवाई और रेल सेवाएं मुहैया नहीं हो पाई है बडा हल्‍ला मचने के बाद तो भोपाल मे अंतरांष्‍टीय विमानतल स्‍थापित हो पाया है, भोपल के आसपास अंतराष्‍टीय पर्यटन स्‍थल है पर उन तक पहुंचने के लिए सार्थक और समय पर पर्यटन सेवाएं भी नहीं है और न ही ठहरने की व्‍यवस्‍था हो पा रही है इस दिशा में राजनेताओं के साथ साथ अफसरों को भी अपनी गति को बढाना होगा तभी पर्यटन को सार्थक् रूप मिल पाएगा 

उत्‍सव और खुशियों में डूबा मप्र

           मौसम का राग बदलते ही मप्र की आवो-हवा भी करवट लेने लगी है। झमाझम बारिश के बाद अब उत्‍सव और खुशियों का दौर शुरू हा गया है। सितंबर से नवंबर तक हर तरफ खुशियों के नजारे ही नजारे नजर आने लगे हैं। सितंबर के अंतिम सप्‍ताह में गणेश चतुर्थी से जो उत्‍सव का सिलसिला शुरू होगा तो वह दीप पर्व तक चलेगा। इस दौरान सड़कों पर जश्‍न और झिलमिलाते रंग-बिरंगी रोशनी पूरे माहौल को नया जज्‍वां मिलेगा। निश्चित रूप से मप्र उन बिरले राज्‍यों में शामिल है, जहां पर झणिक तनाव, मतभेद, बाद‍ विवाद और संघर्ष की स्थिति बनती है, लेकिन थोड़े समय बाद राज्‍य फिर अपनी गति से चल पड़ता है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि 01 नवंबर 1956 को जब मप्र की स्‍थापना हुई तब विभिन्‍न राज्‍यों से मिलकर मप्र का निर्माण हुआ है। जिसके फलस्‍वरूप अलग-अलग भाषा, संस्‍कार और परंपराओं ने लोगों को अपने-अपने हिसाब से बांध रखा है। भले ही मप्र को अपने विभाजन की पीड़ा भोगनी पड़ रही है, लेकिन फिर भी राज्‍य में खुशियां और उत्‍सव के मौके लोग तलाशते रहते। यही वजह है कि हमारी सामाजिक परिकल्‍पनाएं और त्‍यौहार हमें बार-बार लोगों के निकट ले जाते हैं और उसमें डूबकर हम एक नई दुनिया बसाने का सपना भी देखते हैं। गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को है। प्रदेशभर जगह-जगह विंघ्‍न विनाशक गणेशजी विराजेगे। राज्‍य के हर हिस्‍से और कौने में गणेश उत्‍सव की झाकियां सज-धज रही है और लोग खुशिया मानने की तैयारी में जुटी हुई है। इससे पहले भगवान कृष्‍ण का जन्‍म भी उसी तनमतया और धूम से मनाया जा चुका है, जिसकी झलक गणेश उत्‍सव में भी खूब नजर आयेगी। चेहरों में खुशी और मन में उत्‍सव का नजारा हर तरफ नजर आ रहा है।

सोमवार, 17 सितंबर 2012

आरटीओ कार्यालयों से दलालों की मुक्ति होगी मप्र में

आरटीओ कार्यालय की कतार में खड़े आम आदमी
           सपनों का जाल बिछाकर कलाबाजी करना आजकल राजनीति का शगल बन गया है। राजनेता जब पॉवर में होता है, तो जमीनी हकीकत से अलग हटकर अपने हिसाब से व्‍यवस्‍थाएं बनाने की कल्‍पनाएं करता है, ल‍ेकिन जब वही सपने जमीन पर उतारने की बात अधिकारियों से की जाती है, तो फिर पग-पग पर मुसीबतें खड़ी होना शुरू हो जाती है। ऐसा ही आजकल मप्र की सरजमी पर हो रहा है। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 17 अगस्‍त, 2012 को परिवहन विभाग की समीक्षा बैठक में अधिकारियों के समक्ष सुझाव दिया कि आरटीओ कार्यालयों से दलालों को बाहर किया जाये। निश्चित रूप से सीएम का यह सुझाव सराहनीय है और जनता के हित में है, क्‍योंकि जनता के बीच रहने वाले सीएम को बार-बार आरटीओ कार्यालय के बाहर दलालों की दादागिरी की सूचनाएं मिलती होगी। इसी कड़ी में उन्‍होंने दलालों को बाहर खदड़ने का फरमान दे दिया पर हकीकत इससे अलग है। इस राज्‍य का दुर्भाग्‍य है कि परिवहन विभाग में लाइसेंस बनाना, लाइसेंस फीस जमा करना ऑनलाइन कर दिया है, लेकिन यही से भ्रष्‍टाचार की गंगा बहना भी शुरू हुई और दलाल हुए ताकतवर, क्‍योंकि दलालों ने परिवहन विभाग के अधिकारियों से मिलकर जब तब ऑनलाइन सर्वर को खराब बता देना या डाउनलोड न होना आम बात हो गई है। अब अगर परिवहन विभाग के अफसर ठान लेते कि दलालों को बाहर का रास्‍ता दिखाना है, तो फिर सर्वर भी ठीक काम करता और आम आदमी को घर बैठे सुविधाएं मिल जाती। परिवहन विभाग के अफसरों का अपना स्‍वार्थ है उन्‍हें घर बैठे मक्‍खन-मलाई मिल रही है और बदनामी भी नहीं हो रही है तब दलालों को क्‍यों बाहर किया जाये। सीएम के फरमान से परिवहन विभाग के आला अफसर हैरान नहीं है, बल्कि वे तो दलालों को बाहर खदड़ने की योजना में जुट गये हैं। विभाग के सचिव मनीष श्रीवास्‍तव ने आरटीओ कार्यालय दलाल मुक्‍त करने के लिए योजना बनाने पर काम शुरू कर दिया है और उनके साथ कदम ताल करने के लिए परिवहन आयुक्‍त संजय चौधरी मैदान में उतर आये हैं। वे बार-बार कह रहे हैं कि परिवहन विभाग में जो दलाल काम कर रहे हैं उन्‍हें लाइसेंस दिया जायेगा ताकि वे आम आदमी के साथ कोई खिलवाड़ न कर सकें। दलालों को लाइसेंस देने से यह फायदा होगा कि आम आदमी जितना पैसा दे रहा है उतना उसे लाभ मिलेगा और वह फर्जी कागज तैयार नहीं कर पायेगा। आरटीओ कार्यालय में भीड़ भी कम होगी। 
ड्राइविंग लाइसेंस से पहले टेस्‍ट ड्राईव करती युवती
     परिवहन विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से दलाली का धंधा चरम पर है। दलालों की सक्रियता सुबह से शाम तक कार्यालय के आसपास बनी रहती है। इसी वर्ष बैतूल कलेक्‍टर ने भी दलालों को कार्यालय से खदेड़ दिया था, लेकिन बाद में उन्‍हें फिर से बैठाना पड़ा। प्रदेश के हर महानगर में 400 से 500 दलाल परिवहन कार्यालय के आसपास मौजूद रहते हैं। यह दलाल लाइसेंस बनाने की फीस के रूप में 500 रूपये 1000 रूपये कम से कम लेते हैं और इसके बाद उनकी फीस कब बढ़ जाये इसकी कोई सीमा नहीं है। अब आरटीओ कार्यालय में असामाजिक तत्‍वों ने प्रवेश कर लिया है। भोपाल आरटीओ कार्यालय में कई ऐसी घटनाएं हो चुकी है। परिवहन विभाग को दलालों से मुक्‍त करने के लिए मुख्‍यमंत्री का नजरिया निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन फिर वे इस दिशा में अगर सार्थक कदम उठा लिए गये, तो फिर परिवहन विभाग की फिजा ही बदल जायेगी। 
जय हो क्षिप्रा मैया की

सोमवार, 10 सितंबर 2012

अपने-अपने दांव-पेंच में मशगूल होने लगे राजनैतिक दल

 
          फिलहाल तो विधानसभा चुनाव में एक साल का समय बाकी है, लेकिन राजनैतिक दलों ने अपने-अपने दांव-पेंच चलने शुरू कर दिये हैं। इसके चलते कांग्रेस तीन दिन की मंथन बैठक कर चुकी है जिसमें भविष्‍य की योजनाएं और रणनीति को अंजाम दिया गया। अब भाजपा की भी 11 सितंबर से खंडवा में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक हो रही है जिसमें चुनावी एजेंडे पर मोहर लगाई जायेगी साथ ही यह तय किया जायेगा कि किस तरह से चुनाव में तीसरी बार हैट्रिक बनाई जाये। 
        चुनावी समर इस बार मध्‍यप्रदेश में दिलचस्‍प होने वाला है। भाजपा तीसरी बार भगवा रंग फहराने की हरसंभव कोशिश करेगी। इसके लिए भाजपा संगठन ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है, तो सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भी योजनाओं के जरिए लोगों को आकर्षित करने के भरसक प्रयास कर रहे हैं। उन्‍होंने हाल ही में तीर्थ-दर्शन योजना शुरू की है जिसका एक पड़ाव पूरा हो गया है निश्चित रूप से यह योजना उन बुजुर्गों के लिए एक स्‍वप्‍न ही साबित हो रही है, जो कि कभी तीर्थ यात्रा करने का सोच भी नहीं सकते थे, उन्‍हें सरकार अपने खर्चें से यात्रा करा रही है। अब कांग्रेस को भी इस योजना ने परेशान कर दिया है और वह भी अपने कार्यकर्ताओं से कह रही है कि यात्रा का लाभ लो। इसके साथ ही भाजपा सरकार के खिलाफ विरोधियों ने लामबंद होना शुरू कर दिया है। भाजपा नेता पर्दे के पीछे सरकार के खिलाफ सक्रिय हो गये हैं। मुख्‍यमंत्री की छवि पर दाग लगाने के षड़यंत्र किये जा रहे हैं। कांग्रेस भी चुप बैठने के मूड में नहीं है। वह भी किसी न किसी बहाने हल्‍ला मचाना चा‍हती है। कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव अस्तित्‍व का सवाल है, क्‍योंकि अगर दूसरी बार कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुई तो उसकी भूमिका भी राज्‍य में शून्‍य हो जायेगी, इससे चिंतित होकर कांग्रेस के नेता नये सिरे से रोडमैप बना रहे हैं। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और प्रदेशाध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी अपने-अपने हिसाब से सक्रियता बढ़ाई है। वही केंद्रीय राज्‍यमंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को भी मैदान में उतारने के लिए विचार हो रहा है। अब देखना यह है कि कांग्रेस और भाजपा किस तरह से अपने दांव-पेंच चलती है और सरकार लाने के लिए सक्रियता दिखाती है। 

रविवार, 9 सितंबर 2012

जमीन के लिए जल में जंग


           ओंकारेश्‍वर और इ‍ंदिरा सागर बांध से प्रभावित परिवारजन जमीन और पुनर्वास के लिए जल में जंग कर रहे हैं। उनका सत्‍याग्रह 15 दिन पूरा कर चुका है और आज वे सोलहवें दिन में प्रवेश कर गये हैं। अभी तक सरकार की तरफ से कोई सार्थक पहल नहीं हुई है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रतिनिधि के रूप में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विजयशाह ने आंदोलनकारियों के बीच जाकर चर्चाएं की हैं। इसके साथ ही भोपाल में भी आंदोलनकारियों के नेता आलोक अग्रवाल के साथ 08 सितंबर को विस्‍तार से चर्चा हो चुकी है। मंत्रियों ने आश्‍वस्‍त किया है कि 48 घंटे के भीतर समस्‍या का हल कर दिया जायेगा, लेकिन 24 घंटे गुजर चुके हैं, लेकिन अभी तक समस्‍या का निदान नहीं हुआ है। इसके साथ ही विवाद गहराता जा रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता अब आक्रमक भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। उनकी नेता चितरूपा पालित ने 08 सितंबर को आंदोलन स्‍थल पर तीखे स्‍वर में कह दिया कि गुजरात की मोदी सरकार ने जिस तरह से नरसंहार कराया था, उसी तरह प्रदेश में शिवराज सिंह आदिवासियों और किसानों को मार रहे हैं। यह सुनते ही उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भड़क गये और उन्‍होंने बीच में ही टोकते हुए कहा कि अगर बांध की समस्‍याओं पर बात करना है, तो कीजिए अन्‍यथा यह सब नहीं सुनूगां। इससे बहस लंबी खिच गई। 
   विजयवर्गीय ने यह तक कह दिया कि आंदोलनकारी मुझे गाली बक ले, लेकिन गुजरात से मप्र की तुलना क्‍यों की जा रही है। यह सच है कि नर्मदा बचाओ आंदोलनकारी पिछले दो दशक निमाड़ अंचल में आंदोलन की कमान संभाले हुए हैं। पहले इसकी बागडोर मेघा पाटकर के हाथ में थी, उन्‍होंने सरकार की नाक में दम कर रखा था, तब भी मप्र का एक बड़ा तबका इन आंदोलनकारियों के खिलाफ था, लेकिन फिर भी बांध का निर्माण हो गया। अब पानी की सीमा को लेकर टकराव शुरू हुआ है, लेकिन आंदोलन की तस्‍वीर में यह बदलाव हुआ है कि अब मेघा पाटकर के स्‍थान पर चितरूपा पालित और आलोक अग्रवाल सामने आ गये हैं। यह दोनों नेता पूरे आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं। इनके स‍ाथ निमाड़ अंचल के लोगों का समर्थन भी है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि बांध से प्रभावित लोगों को जमीन और पुनर्वास में भेदभाव हुआ है। पुनर्वास में करोड़ों का घोटाला हो चुका है जिसकी जांच एक आयोग कर रहा है। अब बांध से प्रभावित लोग जमीन के बदले जमीन चाहते हैं। सुप्रीमकोर्ट भी आंदोलनकारियों के साथ है उसका भी मानना है कि प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन दी जाये पर मप्र में जमीन का भारी अकाल है, ऐसी स्थिति में जमीन के बदले जमीन देने की स्थिति में राज्‍य सरकार नहीं है। एक बार फिर से जल में ही सत्‍याग्रह कर रहे लोग जमीन की जंग लड़ रहे हैं। निश्चित रूप से इनकी जंग को  सलाम है, क्‍योंकि वे अपने अधिका‍रों के लिए पानी में रहकर पिछले 16 दिनों से जंग का आगाज किये हुए हैं।

शनिवार, 8 सितंबर 2012

जल सत्‍याग्रह : जिंदगी संकट में, दिल्‍ली गूंज के बाद जागी मप्र सरकार

           खुशहाल जिंदगी अपनी आंखों के सामने बदहाल होते देख किसानों और उनके परिवारजनों ने अंतत: जल सत्‍याग्रह का निर्णय लिया। जिसके फलस्‍वरूप 15 दिनों से महिला और पुरूष जल सत्‍याग्रह कर रहे हैं और मप्र की सरकार ने इनकी कोई परवाह नहीं की। जब इस आंदोलन की गूंज दिल्‍ली तक पहुंची तब जाकर सरकार की नींद खुली और आनन-फानन में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी कैबिनेट के दो मंत्रियों कैलाश विजयवर्गीय और विजयशाह को आंदोलनकारियों से चर्चा के लिए भेजा। यह आंदोलन कारी सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के अनुसार जमीन के बदले जमीन चाहते हैं जिसके लिए सरकार तैयार नहीं है। गले-गले तक पानी में बैठे किसान और महिलाओं की सांसे अब टूटकर बिखरने लगी हैं। महिलाओं के पैरों में छाले पड़ गये हैं और वह खड़ी नहीं हो पा रही हैं। इसके बाद भी संवेदनहीन नौकरशाही की नींद नहीं खुली है। यह आंदोलन नर्मदा बचाओ से जुड़े कार्यकर्ता कर रहे हैं। 
इसलिए हो रहा है जल सत्‍याग्रह : 
      नर्मदा नदी के किनारे रहने वाले लोगों को बिना बसाये ही नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्‍वर बांध में 189 मीटर से बढ़ाकर 193 मीटर तक पानी भरने का विरोध किया जा रहा है। इसका असर 28 गांवों पर पड़ा है। ओंकारेश्‍वर बांध में पानी 190.5 मीटर तक पहुंच चुका है। इसका प्रभाव गोगल, कमनखेड़ा जैसे 28 दूसरे गांवों में भी साफतौर पर दिखाई दे रहा है। बढ़ता पानी फसलों को बर्बाद कर रहा है। गांववासियों का कहना है कि उन्‍हें पुनर्वास के लिए जमीन के बदले जमीन दी जाये, तभी वह आंदोलन खत्‍म करेंगे। वही राज्‍य सरकार ने इंदिरा सागर और ओंकारेश्‍वर जलाशय में जल भराव के बारे में कहा है कि दोनों परियोजनाओं से संबंधित पुनर्वास का कार्य पुनर्वास नीति के तहत किया जा चुका है। सुप्रीमकोर्ट ने स्‍पष्‍ट तौर पर वर्ष 2011 में एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा था कि जमीन के बदले जमीन ही दी जाना चाहिए। इसके बाद भी आंदोलनकारियों का कहना है कि  पुनर्वास का काम कछुआ गति से चल रहा है। पुनर्वास नीति के तहत जलाशय भरने के छह माह पूर्व प्रभावितों के पुनर्वास का काम पूरा हो जाना चाहिए, जो अब तक नहीं हुआ है। बगैर पुनर्वास किये ग्रामीणों को बेघर किया जा रहा है। सरकार का यह भी तर्क है कि ग्रामीणों को मुआवजा राशि दे दी गई है, मगर वह फिर भी प्रभावित क्षेत्र से हट नहीं रहे हैं, तब क्‍या किया जाये, लेकिन ग्रामीणजनों का तर्क है कि उन्‍हें जमीन के बदले जमीन ही चाहिए। हरदा के कलेक्‍टर सुदामा खाड़े भी स्‍वीकार करते हैं कि 29 गांव इस बांध के कारण प्रभावित हुए हैं। 
भोपाल और दिल्‍ली में गूंज : 
     जल सत्‍याग्रह को लेकर 07 सितंबर को नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस सांसद अरूण यादव की अगुवाई में नई दिल्‍ली में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री वीरप्‍पा मोइली से मिलकर विस्‍थापितों की पीड़ा बताई जिस पर केंद्रीय मंत्री ने राज्‍य सरकार से तत्‍काल बात की और सरकार ने दो मंत्रियों को आंदोलन खत्‍म करने के लिए तैनात कर दिया। आठ सितंबर को बांध से प्रभावित महिला और पुरूषों ने भोपाल में मुख्‍यमंत्री निवास पर जंगी प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने उनके साथ बदसलूकी की। आलम यह था कि सुबह सात बजे से मुख्‍यमंत्री निवास को चारों तरफ से पुलिस ने घेर रखा था, जबकि आंदोलनकारी सीएम हाउस से 10 किमी दूर एक पार्क में डेरा डाले हुए थे। इन आंदोलनकारियों से संवाद करने के लिए मंत्रियों ने पहल भी की है, लेकिन वार्ता के नतीजे अभी भी सार्थक नहीं हो रहे हैं, लेकिन जल सत्‍याग्रह को खत्‍म करने के लिए सरकार जुट गई है। मप्र में जल सत्‍याग्रह का सिलसिला नर्मदा बचाओ आंदोलन ने ही शुरू किया है और इसको चरम तक ले जाने की कला में आंदोलनकारी अच्‍छे से बाकिफ हैं।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

श्रीलंका के राष्‍ट्रपति राजपक्षे और महानायक अमिताभ बच्‍चन चर्चा के घेरे में बने हैं मप्र में


          इन दिनों मप्र में दो बड़ी हस्तियों की बेहद चर्चा हो रही है। फिल्‍मी दुनिया के महानायक अमिताभ बच्‍चन की जमीनी खरीदी को लेकर विवादों में हैं, तो श्रीलंका के राष्‍ट्रपति महिन्‍द्रा राजपक्षे की मप्र यात्रा कठघरे में फंस गयी है। श्री राजपक्षे को मप्र सरकार ने सांची में बौद्व विश्‍वविद्यालय की भूमिपूजन कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए बुलाया है। यह कार्यक्रम 21 सितंबर, 2012 को होगा। इस पर डीएमके पार्टी के सचिव वायको ने तीखी नाराजगी जाहिर करते हुए यह तक कह दिया है कि अगर श्रीलंका के राष्‍ट्रपति को सांची में बुलाया गया, तो वह विरोध प्रदर्शन करेंगे। उनकी नजर में राजपक्षे खून के प्‍यासे हैं। उनका कहना है कि इन्‍होंने वर्ष 2009 में एलटीटीई से युद्व के नाम पर मई, 2009 में निर्दोष तमिल बच्‍चो, महिलाओं और बुजुर्गों सहित 1 लाख 36 हजार तमिल लोगों को मरवा दिया था। वे तो यह तक कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बैठक में यह कह दिया था कि श्रीलंका सरकार के राष्‍ट्रपति को कभी कोई मदद नहीं की जायेगी। अब मप्र की सरकार ऐसे खून के प्‍यासे व्‍यक्ति को भूमिपूजन के लिए आमंत्रित कर रही है, जो कि उचित नहीं है। उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री से आग्रह किया है कि श्रीलंका के राष्‍ट्रपति को कार्यक्रम में आयोजित नहीं किया जाये। यह मेल मुख्‍यमंत्री सचिवालय पहुंच गया है। इसको लेकर बेहद हड़कंप भोपाल में मचा हुआ है।
      महानायक अमिताभ बच्‍चन भी एक जमीन खरीदी को लेकर भारी विवादों में आ गये हैं। यह जमीन उनकी पत्‍नी के नाम खरीदी गई थी, जो कि कैचमेंट एरिया की जमीन बताई जा रही है। पांच एकड़ की जमीन की रजिस्‍ट्री की जांच जिला पंजीयक ने शुरू कर दी है। जांच में यह खुलासा होगा कि कैचमेंट एरिया और ग्रीन बेल्‍ट जमीन की रजिस्‍ट्री किस आधार पर की गई है। दिलचस्‍प यह है कि जिस किसान से जमीन खरीदी गई थी, जब अमिताभ बच्‍चन ने उसे नोटिस थमाया कि उसने ग्रीनवेल्‍ट एरिया बताये बिना जमीन क्‍यों बेची, तो किसान ने अमिताभ बच्‍चन को जवाब दिया है कि यह तो जमीन खरीदने से पहले क्रेता को खुद देखना चाहिए कि वह कौन से जमीन खरीद रहा है। महानायक की जमीन का विवाद भी दिनोंदिन गहरा रहा है।

बुधवार, 5 सितंबर 2012

टूट कर बिखर रही है गुरू शिष्‍य परंपरा



पूर्व राष्‍ट्रपति और शिक्षक सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन अक्‍सर कहा करते थे, ज्ञान हमेशा शक्ति देता है। उनकी याद में हर साल शिक्षक दिवस 05 सितंबर को मनाया जा रहा है, लेकिन अब समाज में धीरे-धीरे गुरू-शिष्‍य परंपरा टूटकर बिखर गई है। बाजारवाद में शिक्षा को कलुषित कर दिया है। शिक्षा भी व्‍यवसाय बन गई है। दौलत के बिना आज बड़े-बड़े शिक्षण संस्‍थानों हर किसी को प्रवेश नहीं मिल रहा है। इसके बाद भी जिसके पास ज्ञान है वह तो दुनिया भर में अपना डंका बजवा रहा है। 
ज्ञान की राह पर चलकर मप्र के कई नौजवान विदेशों में अपना नाम तो कमा ही रहे हैं साथ ही साथ राज्‍य का नाम भी रोशन कर रहे हैं। भले ही राज्‍य को पिछड़े राज्‍य की संज्ञा से नबाजा है, लेकिन शिक्षा का दीप यहां तेजी से चल रहा है। इसके लिए राज्‍य सरकार के साथ-साथ समाज में भी चेतना के बीज अं‍कुरित हो गये हैं, लेकिन समाज ने शिक्षा को व्‍यवसायिक रूप देने में कोई कौर कसर नहीं छोड़ी है। 
हर तरफ शिक्षा का व्‍यवसाय फलफूल रहा है। केजी-1 से लेकर कॉलेज और विश्‍वविद्यालयों की शिक्षा में पैसा पानी की तरह बह रहा है। इसके चलते पूरी शिक्षा व्‍यवस्‍था पर व्‍यवसाय ने अपना कब्‍जा कर लिया है। पर फिर भी जो ज्ञान के दीप लेकर निकल पड़े हैं, वह तो ज्ञानवान पीढी तैयार कर ही रहे हैं। बाजारवाद में मप्र की शिक्षा को तो कलुषित किया ही है, लेकिन गुरू-शिष्‍य परंपरा में भी दाग ही दाग चस्‍पा कर दिये हैं। अब गुरू का स्‍थान प्रोफेसनल टीचरों ने ले लिया है। 
       वह उन्‍हीं छात्रों को ज्ञान देते हैं, जो कि उनकी जेब गर्म करते हैं। यह प्रोफेसनल गुरू अपने छात्रों को विद्यार्थी नहीं, बल्कि क्‍लांइट के रूप मे सांझा किये हुए हैं। प्रोफेसनल शिक्षकों ने अपना रहन-सहन पूरी तरह से बदल दिया है वह अब अट्रेक्टिव पर्सनैलिटी बनने के लिए वह महंगे-महंगे कपड़े पहन रहे हैं। भोपाल के स्‍कूल और कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं प्रोफेसनल शिक्षकों में प्रो0प्रीति मिश्रा, ज्‍योति पाल, डॉ0लता मुंशी, संकल्‍प सामल, डॉ0 शोभना वाजपेयी मारू सहित आदि शामिल हैं, जिन्‍होंने अपने पहनावे को पूरी तरह से बदल दिया है और वे गुरू-शिष्‍य परंपरा से एक कदम आगे बढ़कर जीवन जी रहे हैं और अपने छात्रों को भी प्रोफेसनल बनने की राह पर चलने पर बल दे रहे हैं।

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

विकास का पैमाना और सरकार की पहल बनी विवाद की जड़

         विकास पर इन दिनों खूब बहस हो रही है, अर्थशास्‍त्री,समाजशास्‍त्री और स्‍वयंसेवी संगठनों के अपने अपने पैमाने विकास को लेकर है पर जो विकास जमीन पर उतर रहा है उस पर हर किसी को आपत्त्तियां हो रही है हमारे अभिन्‍न साथी और सम्‍मानीय  राजेंद्र कोठारी भी दिन भर राज्‍य के विकास पर काफी हाउस में बहस करतें थकते नहीं है,तो राजनीतिक दलों का विकास को लेकर एजेंडा अलग ही है, उस पर तो अमल होता है, आम आदमी भी बहस में शामिल होता है, यह सच है कि विकास को जो पैमाना तय किया गया है उस राज्‍य की सरकार कहीं खरी नहीं उतर रही है पर जहां मानव का विकास हो रहा है उसमें विकास समर्थक खुश नहीं होंगे बल्कि  उनकी नजर में समाज का विकास होना सार्थक है, सेवानिवत्‍त आईएएस अफसर और लंबे समय से आदिवासियों के बीच सक्रिय ब्रहदेव शर्मा तो कहते है कि विकास का अर्थ ही राज्‍य सरकार समझ नहीं रही है इस वजह से समस्‍याएं पैदा हो रही है,राज्‍य सरकार का जोर समाज को जोडना तो है पर विकास का पैमाना उनक हटकर है, मप्र सरकार बेटी बचाओ अभियान, लाडली लक्ष्‍मी योजना, कन्‍यादान और अब तीर्थदर्शन योजना को विकास का पैमाना मानेगी तो कैसे सहमत हुआ है,यहां पर विकास को लेकर विवाद हो सकता है,शर्मा कहते है कि स्‍कूलों में भोजन कराना, पैसा बांटना, सडकों का निर्माण को विकास नहीं माना जा सकता है विकास को लेकर बहस हमेशा होती रहेगी, इस पर विवाद भी कायम रहेगे, लोगों का हल्‍ला मचाना जारी रहेगा और सरकार अपने हिसाब से काम करती रहेगी अब यह समाज को देखना है कि किस विकास को स्‍वीकार किया जाए और किसे अस्‍वीकार कर दिया जाए, आज कल विरोध के तेवर भी अपने आप कम हो रहे है लोग विरोध् करने से घबराने लगे है फिर बहस कैसे आगे बढ पाएगी इसके बाद ही समाज में एक तबका जिंदा है जो कि बहस को जिंदा बनाए रखे हुए है, विकास में पूरी तरह से पिछडे आदिवासियों के विकास को लेकर और विवाद हो रहा है स्‍वयंसेवी संगठनों का मानना है जहां नक्‍सलवाद हावी है वहा तो विकास हो ही नहीं रहा है, आदिवासियों की जमीन छीनने से भी विकास नहीं होगा बल्कि आदिवासियों को बेदखल करके कारखाने बन जाएगे पर उससे किसका भला होगा, इसलिए विकास पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।

तीर्थ यात्रियों की आंखों में झलके प्‍यार के आंसू और चेहरे पर चमका जोश


         वाकई में मध्‍यप्रदेश की शिवराज सरकार ने तीर्थ दर्शन यात्रा जो शुरू की है, उससे राज्‍य के कई बुजुर्गों के सपने यात्रा करने के पूरे कर दिये हैं, जो जोश और उमंग बुजुर्ग चेहरों पर 03 सितंबर, 2012 को भोपाल के हबीबगंज स्‍टेशन पर नजर आई है वह अपने आपमें स्‍मरणीय है। यात्रा पर जा रहे बुजुर्गों के चेहरों की रौनक यह बता रही थी कि उनका अंतिम सपना सरकार की बैशाखियों के सहारे पूरा हो रहा है। 
आज भी आप भारतीय जन सामान्‍य का एक ही सपना होता है कि जीवन के किसी भी पड़ाव में तीर्थ यात्रा कर भगवान का प्रसाद ग्रहण किया जाये। इस सपने को मप्र के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरा करने का वीणा उठाया है। उन्‍होंने तीथ दर्शन योजना शुरू की है। इस योजना के तहत पहले चरण में यात्रियों का जत्‍था रामेश्‍वर रवाना हो गया है। यात्रा को रवाना करने के दौरान भाजपा नेता लालकृष्‍ण आडवाणी, मुख्‍यमंत्री चौहान, भाजपा प्रदेशाध्‍यक्ष प्रभात झा और धर्मश्‍व मंत्री लक्ष्‍मीकांत शर्मा मौजूद थे। यात्रा रवाना होने से पहले स्‍टेशन के इर्द-गिर्द जो जनसमूह उमड़ा था वह यह दर्शा रहा था कि उनके परिवार का एक सदस्‍य तीर्थ यात्रा पर जा रहा है जिसको विदा करने कोई न कोई उनसे जुड़ा व्‍यक्ति मौजूद था। 
वहां हर चेहरे पर खुशी और उमंग साफ झलक रही थी। मप्र के इतिहास में पहली बार ऐसी तीथ दर्शन यात्रा शुरू हुई है, जो कि निश्चित रूप से भाजपा सरकार के लिए मील का पत्‍थर साबित होगी। इस यात्रा में 1200 लोग रवाना हुए हैं, जिसमें 984 बुजुर्ग, 16 अटेंडेंट और करीब 150 सरकारी कर्मचारी शामिल है। इन तीथ यात्रियों के साथ मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सपत्‍नी रामेश्‍वर दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। इसके बाद 13 सितंबर को अजमेर सरीफ की यात्रा रवाना होगी। मुख्‍यमंत्री ने एलान किया है कि अगले वर्ष मार्च 2013 तक 60 हजार बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा कराई जायेगी। बुजुर्गों के लिए वरिष्‍ठजन आयोग भी गठित किया जायेगा। इस यात्रा की भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने भी कार्यक्रम के दौरान खूब प्रशंसा की। उन्‍होंने कहा कि जब भी शासन करने का मौका मिले, तो राम राज्‍य की तरह आदर्श प्रस्‍तुत करना चाहिए। खुद ईमानदार रहे, शासन को ईमानदार बनाये और हमेशा यह विचार करते रहे कि जनता के कल्‍याण के लिए क्‍या नये प्रयास किये जा सकते हैं। मप्र सरकार की लाडली लक्ष्‍मी योजना और तीर्थ दर्शन योजना इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। इससे साफ जाहिर है कि इस यात्रा में कई परिवारों की मुराद पूरी की है। वह इस कदर खुश है कि यह मानकर चल रहे हैं कि सरकार ने उनकी मनंत पूरी कर दी है। अन्‍यथा आर्थिक तंगी के चलते वह यात्रा करने के लिए सक्षम नहीं थे। वही दूसरी ओर धर्मस्‍व और संस्‍कृति मंत्री लक्ष्‍मीकांत शर्मा को विश्‍व है कि यह यात्रा राज्‍य के लिए मील का पत्‍थर साबित होगी। निश्चित रूप से यात्रा ने कई बुजुर्गों के सपनों को साकार करने की पहल की है। 
बहादुर नारी शक्ति का सम्‍मान :  
       पिछले दिनों दो युवतियों ने जिस तरह से बदमाशों से सामना किया और उन्‍हें भागने को विवश कर दिया उससे मप्र की पुलिस बेहद गद-गद है। अब पुलिस ऐसी अदम्‍य साहस और बहादुरी के लिए श्रीमती सीमा सिंह और कु0 तनवी शर्मा को सम्‍मानित करने जा रही है। इन दोनों को 25-25 हजार रूपये नगद इनाम दिया जायेगा। तनवी शर्मा ने स्‍टेशन पर अपनी मां का पर्स छीन रहे बदमाश का पीछा किया और उसे लोगों के सहयोग से पकड़ ही लिया, जबकि श्रीमती सीमा सिंह ने आधी रात को अपने घर में घुस आये बदमाशों को न सिर्फ खदेड़ दिया, बल्कि उन्‍हें भगाने में भी कामयाबी मिली। निश्चित रूप से यह बहादुरी के लिए नारी शक्ति को बार-बार सलाम। 
प्रज्ञा भारती क्‍या करें : 
     संघ प्रचारक सुनील जोशी हत्‍याकांड मामले में जेल और अदालत के बीच बार-बार घूम रही प्रज्ञा भारती को विश्‍वास है कि उन्‍हें जमानत मिल जायेगी, लेकिन उनकी सुनवाई टल रही है। प्रज्ञा भारती संघ परिवार की सक्रिय सदस्‍य रही हैं, लेकिन वह कई मामलों में ऐसी उलझी हुई कि उन्‍हें जेल से राहत नहीं मिल पा रही है। 

लव मैरिज से होने वाली शादियां तेजी से बिखर रही है


           शादी का बंधन अटूट होता है। यह ऐसी कड़ी है, जो कि एक बार बध जाये तो फिर टूटती नहीं है, लेकिन महानगरों और शहरों की बदलती जिंदगी ने शादी के बंधनों को भी जल्‍द-जल्‍द तोड़ने का सिलसिल शुरू हो गया है। इसके पीछे संयुक्‍त परिवारों का विभाजन भी एक बड़ी वजह है। आज की नौजवान पीढ़ी अपनी अलग जिंदगी जी रहा है जिसके चलते उस पर न तो मां-बाप का और न ही भाई-बहिन का कोई दबाव है और फिर शुरू होता है पति-पत्‍नी में मतभेद का सिलसिला। मप्र में अरेंज मैरिज की अपेक्षा लव मैरिज ज्‍यादा हो रही हैं। लव मैरिज के मामले तेजी से टूट रहे हैं, अब तो यह स्थिति हो गई है कि शादी के दो या छह माह बाद तलाक की नौबत आ जाती है।
  शहरों और महानगरों में यह जानकारियां मिल रही है कि लव मैरिज जल्‍द टूटकर बिखर रही हैं। सात फेरों का बंधन टूटने की एक वजह लड़की का मायका पक्ष भी है, जो कि अनावश्‍यक हस्‍तक्षेप कर रहा है। मप्र की राजधानी भोपाल में नव-दंपत्तियों के विवाद परामर्श केंद्रों में तेजी से पहुंचने लगे हैं। शादी के बंधन का आनंद दो या छह माह बाद टूटकर बिखरने लगा है, जो कि चिंता का विषय है। भोपाल में ही जुलाई 2012 तक 322 दंपत्ति तलाक की अर्जी लगा चुके हैं जिसमें से 184 मामले जिला अदालत में चल रहे हैं। इन मामलों में सबसे ज्‍यादा प्रकरण दहेज प्रताड़ना, शादी पूर्व प्रसंग, पूर्व प्रेम प्रसंग, पति-पत्‍नी के बीच उम्र का अंतर, संयुक्‍त परिवार में न रहने की जिद, विचारों और व्‍यवहार में आमूल-चूल बदलाव भी शादी टूटने का एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। भोपाल शहर में जिस तेजी से शादियां टूट रही है वह एक चिंता का विषय है। यह सि‍लसिला अन्‍य शहर इंदौर, जबलपुर, ग्‍वालियर और रीवा में भी तेजी से फैलता जा रहा है। पिछले वर्षों में शादी टूटने की ढेरो शिकायतें परामर्श केंद्रों में पहुंच रही हैं। वर्ष 2009 में 248, वर्ष 2010 में 262, 2011 में 270 एवं 2012 में 322 मामले पहुंच हैं। इसमें सबसे ज्‍यादा मामले लव मैरिज के हैं। इससे साफ जाहिर है कि लव मैरिज लोगों को रास नहीं आ रही है। समाजशास्‍त्री के अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन फिर भी समाज में जिस तरह से शादी के नाते-रिश्‍ते टूटकर बिखर रहे हैं वह निश्चित रूप से एक चिंतनीय विषय है।

सोमवार, 3 सितंबर 2012

दिग्विजय के बोल से मप्र कांग्रेस की राजनीति में गरमाहट


        हमेशा अपने बयानों के जरिए चर्चा में रहने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपनी मप्र यात्रा के दौरान कांग्रेस राजनीति में एक बयान से भूचाल ला दिया है। उन्‍होंने 02 सितंबर को इंदौर में यह कहकर कांग्रेस में खलबली मचा दी है कि अगर आलाकमान केंद्रीय राज्‍यमंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को मुख्‍यमंत्री पद के उम्‍मीद्वार के रूप में उतारता है तो वह उन्‍हें समर्थन करेंगे। प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह के इस बयान में कांग्रेस की अंदरूनी सियासत को गर्म कर डाला है। अभी तक आलम यह था कि सिंधिया और दिग्विजय के बीच हमेशा बयानों के जरिए एक-दूसरे पर तीर चलाये जाते थे। दिग्विजय द्वारा सिंधिया को समर्थन देना कांग्रेस के दिग्‍गज राजनेताओं की नींद उड़ गई है। यहां दिलचस्‍प यह है कि वर्ष 2006 से लेकर 2012 के बीच ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच राजनीतिक तनातनी खूब चली है। बयानों के जरिए एक-दूसरे के खिलाफ तीर छोड़े गये हैं। यहां तक कि ग्‍वालियर-चंबल संभाग में दिग्विजय सिंह ने अपने समर्थकों के जरिए सिंधिया शिविर को कमजोर करने की कोशिश भी की है। इस सब के बाद भी सिंधिया के पक्ष में अचानक दिग्विजय सिंह का उतरना राजनेताओं को रास नहीं आ रहा है। सूत्रों का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2011 में कांग्रेस संगठन और विधायक दल पर अपने खास समर्थकों को पदों पर बैठाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया उनकी पसंद है। यहां यह भी चौंकाने वाली बात हैं कि सिंधिया लगातार पिछले दो माह से अपनी प्रदेश यात्रा के दौरान यह राग आलाप रहे हैं कि वह मुख्‍यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, बल्कि इस पद के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया उपयुक्‍त उम्‍मीदवार हैं। सिंधिया ने भूरिया के पक्ष में दो-तीन बार बयान दिये हैं। इसके चलते दिग्विजय खेमा भी विभाजित हो गया था। 
          भले ही कांग्रेस संगठन में अभी जान पैदा करने में भूरिया नाकाम रहे हों, लेकिन मुख्‍यमंत्री पद की लड़ाई पार्टी में शुरू हो गई है। बड़े नेता राज्‍य की तरफ ध्‍यान नहीं दे रहे हैं, लेकिन कुछ नेता मुख्‍यमंत्री पद को लेकर जबर्दस्‍त लॉविंग कर रहे हैं। इससे कांग्रेस की राजनीति में गरमाहट तो हैं, लेकिन उसके क्‍या परिणाम होंगे यह तो भविष्‍य ही बतायेगा।