मध्यप्रदेश की सरजमी नौकरशाहों के लिए न सिर्फ लुभावनी है, बल्कि न तो कहीं उन्हें विरोध का सामना करना पड्ता है और न ही कोई उनके भ्रष्टाचार पर शोरगुल करता है। यहां तक कि पूरी सेवा के बाद भी भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसियां अनुमति का इंतजार करती ही रहती हैं और नौकरशाह सेवानिवृत्त हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि नौकरशाह भी साफ सुथरे हैं, बल्कि पिछले दो दशक की यात्रा में तो ऐसे अफसरों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो कि केंद्र और राज्य की योजनाओं को बंटाढार करने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आयकर छापों में भी इन अफसरों के यहां करोड़ों की सम्पत्ति हाथ लग रही है फिर भी इन अफसरों का मप्र से क्यों मोह भंग हो रहा है यह समझ से परे है। बार-बार मीडिया में यह खबरें उछाली जाती हैं कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी मप्र में काम नहीं करना चाहते हैं और वह केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक हैं। इसके पीछे का तर्क यह बताया जाता है कि उन्हें काम करने के अवसर कम मिलते हैं और राजनैतिक हस्ताक्षेप ज्यादा होते हैं। यह तस्वीर भी विद्रूप ढंग से पेश की जा रही है। अधिकांश अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियो के सामने राजनेता दंडवत से नजर आते हैं, क्योंकि मप्र के राजनेता जब राज्य के विकास के लिए दिल्ली और भोपाल में लड़ते नजर नहीं आते हैं, तो वह अखिल भारतीय सेवा के खिलाफ कहां से मोर्चा खोलते होंगे। यह आसानी से समझा जा सकता है। इक्का-दुक्का मामलों में आईएएस अधिकारियों के खिलाफ उनके विभाग के मंत्रियों ने ही मोर्चें खोले हैं। मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा और फिर मामला शांत हो गया। इससे यह आंकलन नहीं किया जा सकता है कि नौकरशाहों की प्रदेश में नहीं चल रही है।
इन्हें रास नहीं आ रहा है मप्र -
अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का मप्र में खासा वर्चस्व है। इस सेवा के अधिकारियों में आईएएस, आईपीएस और आईएफएस शामिल हैं। इनमें सबसे ज्यादा विवादों के घेरे में आईएएस अफसर आते हैं। वर्ष 2004 से 2012 के बीच करीब 44 आईएएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जा चुके हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या तेज-तर्राट और ईमानदार अफसरों की है। इनका पलायन निश्चित रूप से गंभीर विषय है पर जो अफसर मलाईदार पदों पर रहकर अपने प्रमोशन चैनल के तहत केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर गये हैं उन्हें ईमानदारी के तमंगे से नहीं नवाजा जा सकता है। हाल ही में एक दर्जन से अधिक अफसरों ने पुन: प्रतिनियुक्ति पर जाने की इच्छा जाहिर की है इनमें अजयनाथ, दिलीप सामंतरे, डॉ0 संजय गोयल, शैलेंद्र सिंह, ई-रमेश, ज्ञानेश्वर बी0पाटिल, मधुमति तेवतिया, आयरन सिंथिया शामिल हैं। इन अफसरों में शैलेंद्र सिंह और अजय नाथ निश्चित रूप से अपनी कार्यशैली से पहचाने जाते हैं, इन्होंने जहां-जहां भी काम किया, वहां अपना डंका बजाया और राजनेता की सिफारिशों को भी मानने से इंकार कर दिया। इससे हटकर आईपीएस अफसरों का मप्र से जाना भी चौंकाने वाली सूचनाएं हैं। अभी तक कुछ महीनों में ही आधा दर्जन से अधिक अफसर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गये हैं और इतनी ही संख्या में केंद्र में जाने के लिए कतार में शामिल हैं। आईपीएस अफसरों की संख्या में लगातार कमी हो रही है जिसके चलते प्रदेश के 50 जिलों में से 21 जिलों की कमान प्रमोटी अफसरों के हाथों में हैं। वैसे तो केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए पांच साल सेवा देने का नियम है, लेकिन अधिकारी इससे ज्यादा समय तक कार्य करते रहते हैं, क्योंकि वहां की कार्यशैली और मप्र की कार्यशैली में जमीन आसमान का फर्क रहता है और दूसरा कारण पारिवारिक जिम्मेदारियां होती है जिस पर अफसर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। इन अधिकारियों के बच्चे दिल्ली में उच्च अध्ययन में रहते हैं, ऐसी स्थिति में अधिकारियों की मंशा उनके पास रहने की होती है, लेकिन बहाना मप्र से मोहभंग का बताया जाता है, जो कि राज्य की छवि धूमिल करने का एक गंदा प्रयास है। इस पर राजनेताओं को गंभीरता से विचार विमर्श करना चाहिए कि आखिरकार अधिकारी दिल्ली की तरफ बार-बार क्यों भागते हैं। यही हाल आईएफएस सेवाओं का है। इस सेवा के भी अफसर दिल्ली जाने के लिए बेताब रहते हैं। कुल मिलाकर मप्र के राजनेता अपने दुनिया में खाये रहते हैं अगर वह नौकरशाहों से जवाब तलब करने लगे और योजनाओं की जमीनी हकीकत जानने लगे तो फिर अधिकारी अपने आप उनके पीछे घूमते हुए नजर आयेंगे।
जय हो मप्र की
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