रविवार, 23 सितंबर 2012

सीटियों की गूंज और महिलाओं की थैलियों से चला शौचविहीन अभियान


 
         एक तरफ कल-कल करती नर्मदा नदी का किनारा और विंध्‍यांचल पर्वत के बीचों-बीच बसे गांवों में सुबह और शाम को निकलते समय यदि आपको सीटे बचाते हुए बच्‍चे मिल जाये या हाथों में राख या मिट्टी लिये हुए महिलाएं मिल जाये, तो चौकिये नहीं। यह गांव-गांव में खुले में शौच से मुक्ति का अभियान चले बच्‍चों और महिलाओं की टोलियां है ताकि सदियों से व्‍याप्‍त गंदगी को हमेशा के लिए दफन किया जा सके। दिलचस्‍प यह है कि यहां पर सुबह 5 से 6 और शाम को 6 से 7 के बीच जब महिलाएं शौच करती है, तो उन्‍हें पुरूष टोका-टाकी करते हैं और वही जब पुरूष लोटा लेकर निकलते हैं, तो महिलाओं के दल खड़े हो जाते हैं, तब लज्जित होकर महिला एवं पुरूष वहां से आगे बढ़ जाते हैं जिसका परिणाम यह हुआ कि गांव-गांव में शौचालय बनने लगे। 
        यह करिश्‍मा मप्र की राजधानी भोपाल से 70 किमी दूर मुख्‍यमंत्री‍ शिवराज सिंह चौहान के बुधनी विधानसभा क्षेत्र में जन समुदाय कर रहा है। इस अनोखे अभियान की अलख जगाने का जिम्‍मा जनपद पंचायत बुधनी के कार्यपालन अधिकारी अजीत तिवारी ने उठाया है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इस अभियान से इस कदर प्रभावित हुआ है कि उन्‍होंने मर्यादा अभियान के प्रचार प्रसार की गाइड लाइन को बुधनी को मॉडल के रूप में फोकस किया है। यह गाइड लाइन सिंतबर 2012 में जारी हुई है। यहां यह बता दें कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 में स्‍वच्‍छता अभियान शुरू किया था, तभी से तिवारी गांव-गांव में स्‍वच्‍छता की अलख जगाने की मुहिम में जुट गये थे। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक कार्यक्रम में स्‍वच्‍छता अभियान से प्रभावित होकर वर्ष 2011 में मर्यादा अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत मार्च, 2013 तक प्रदेश के 5800 गांव में खुले में शौच से मुक्‍त करने का लक्ष्‍य है, जबकि इसी साल बुधनी जनपद पंचायत के 138 ग्राम खुले में गंदगी से निजात पाने का मुक्ति महोत्‍सव मनाते नजर आयेंगे। बुधनी जनपद पंचायत में आज भी सुबह-सुबह बच्‍चों की टोलियां हाथों में सीटियां लेकर सड़क मार्ग पर निकल पड़ती है, जहां किसी को शौच करते हुए देखा वहां जोर-जोर से सीटियां बजाना शुरू कर देते हैं। बच्‍चों के पीछे-पीछे पुरूष्‍ा और महिलाओं का दल होता है, जो कि सीटियों के बाज के साथ ही पुरूषों के सामने महिलाएं एवं महिलाओं के सामने पुरूष खड़े हो जाते हैं। तब कुछ पलों के लिए आंखे अपने आप शौच करने वालों की झुक जाती हैं। कक्षा-9 से 11वीं में पढ़ रहे ग्राम पंचायत पीली करार के बच्‍चों की टोलियों में नरेश मीणा, चंदेश मीणा, मोहन, आका‍श आदि शामिल हैं। इस गांव में एक साल के भीतर 140 शौचालय बन गये हैं, जबकि इससे पहले 50 बामुश्किल शौचालय थे। गांव के बुजुर्ग मोतीलाल बताते हैं कि वाकई में विश्‍वास नहीं होता है कि सड़कों के किनारे कभी शौच भी बंद हो सकता था। अब 99 प्रतिशत लोग अपने घरों में शौच का प्रयोग कर रहे हैं। इसी इलाकें से लगे आदिवासी बाहुल्‍य गांव पांढुडो की महिलाएं भी सुबह और शाम नारे लगाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं। यह महिलाएं हाथों में पॉलीथिन में राख लिये निकलती है और जहां उन्‍हें गंदगी दिखती है वहां डाल देती हैं इसके चलते गांव में 35 शौचालय बन गये हैं। गांव में रहने वाली ओझा जाति की महिलाएं पिछले 13 म‍हीनों से सुबह-शाम लोगों को जागरूक कर रही हैं। इस गांव की बुजुर्ग महिला धनिया बाई कहती हैं कि जब हम पुरूषों के पीछे-पीछे जाते हैं तो वे अपने आप शौच के लिए रूक जाते हैं। 
जनसमुदाय को सौंपी मशाल : 
        इस अनौखे अभियान के सूत्रधार और बुधनी जनपद पंचायत के सीईओ अजीत तिवारी बताते हैं कि उन्‍होंने वर्ष 2009 में अमेरिका के एक भारतीय डॉक्‍टर से प्रेरणा लेकर गांव-गांव में साफ-सफाई अभियान शुरू किया था, क्‍योंकि यह बताया गया कि गांव में बीमारी की वजह गंदगी है तभी से यह अभियान को गति दी, लेकिन वर्ष 2011 में जब राज्‍य सरकार ने मर्यादा अभियान शुरू किया तो फिर इसके तहत गांव-गांव में जनसमुदाय को आगे करके सफाई की मशाल उनके हाथों में सौंप दी। पहले चरण में गांव-गांव में शर्म यात्राएं निकाली गई। समुदाय के लोग गांव के बाहरी रास्‍तों पर फैली गंदगी तक पहुंचते थे, जहां मास्‍टर ट्रेनर्स द्वारा गांव वालों को बताया जाता था कि प्रतिदिन खुले में की जा रही गंदगी किस तरह गांव में बीमारी फैला रही है। बहु-बेटियां तब शर्म और लज्‍जा का अनुभव करती थी। यही वह क्षण था जब जनसमुदाय इस कुप्रथा के खिलाफ उठ खड़े होने का संकल्‍प लेता था। गांव-गांव में शर्म यात्रा निकालने के बाद गांव के लोग स्‍वयं निगरानी समिति बनाते थे और खुले में की गई गंदगी पर मिट्टी और राख डालकर उसे साफ करते थे। यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में बुधनी जनपद में 8 हजार शौचालय बन गये है। अगले मार्च तक 138 गांवों को शौच मुक्‍त करने का लक्ष्‍य है। इस अभियान से 10 हजार परिवारों के जीवन में बदलाव आया है, जो कि अपने आप में सामाजिक बदलाव का एक बड़ा पड़ाव है।

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