|
आरटीओ कार्यालय की कतार में खड़े आम आदमी |
सपनों का जाल बिछाकर कलाबाजी करना आजकल राजनीति का शगल बन गया है। राजनेता जब पॉवर में होता है, तो जमीनी हकीकत से अलग हटकर अपने हिसाब से व्यवस्थाएं बनाने की कल्पनाएं करता है, लेकिन जब वही सपने जमीन पर उतारने की बात अधिकारियों से की जाती है, तो फिर पग-पग पर मुसीबतें खड़ी होना शुरू हो जाती है। ऐसा ही आजकल मप्र की सरजमी पर हो रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 17 अगस्त, 2012 को परिवहन विभाग की समीक्षा बैठक में अधिकारियों के समक्ष सुझाव दिया कि आरटीओ कार्यालयों से दलालों को बाहर किया जाये। निश्चित रूप से सीएम का यह सुझाव सराहनीय है और जनता के हित में है, क्योंकि जनता के बीच रहने वाले सीएम को बार-बार आरटीओ कार्यालय के बाहर दलालों की दादागिरी की सूचनाएं मिलती होगी। इसी कड़ी में उन्होंने दलालों को बाहर खदड़ने का फरमान दे दिया पर हकीकत इससे अलग है। इस राज्य का दुर्भाग्य है कि परिवहन विभाग में लाइसेंस बनाना, लाइसेंस फीस जमा करना ऑनलाइन कर दिया है, लेकिन यही से भ्रष्टाचार की गंगा बहना भी शुरू हुई और दलाल हुए ताकतवर, क्योंकि दलालों ने परिवहन विभाग के अधिकारियों से मिलकर जब तब ऑनलाइन सर्वर को खराब बता देना या डाउनलोड न होना आम बात हो गई है। अब अगर परिवहन विभाग के अफसर ठान लेते कि दलालों को बाहर का रास्ता दिखाना है, तो फिर सर्वर भी ठीक काम करता और आम आदमी को घर बैठे सुविधाएं मिल जाती। परिवहन विभाग के अफसरों का अपना स्वार्थ है उन्हें घर बैठे मक्खन-मलाई मिल रही है और बदनामी भी नहीं हो रही है तब दलालों को क्यों बाहर किया जाये। सीएम के फरमान से परिवहन विभाग के आला अफसर हैरान नहीं है, बल्कि वे तो दलालों को बाहर खदड़ने की योजना में जुट गये हैं। विभाग के सचिव मनीष श्रीवास्तव ने आरटीओ कार्यालय दलाल मुक्त करने के लिए योजना बनाने पर काम शुरू कर दिया है और उनके साथ कदम ताल करने के लिए परिवहन आयुक्त संजय चौधरी मैदान में उतर आये हैं। वे बार-बार कह रहे हैं कि परिवहन विभाग में जो दलाल काम कर रहे हैं उन्हें लाइसेंस दिया जायेगा ताकि वे आम आदमी के साथ कोई खिलवाड़ न कर सकें। दलालों को लाइसेंस देने से यह फायदा होगा कि आम आदमी जितना पैसा दे रहा है उतना उसे लाभ मिलेगा और वह फर्जी कागज तैयार नहीं कर पायेगा। आरटीओ कार्यालय में भीड़ भी कम होगी।
|
ड्राइविंग लाइसेंस से पहले टेस्ट ड्राईव करती युवती |
परिवहन विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से दलाली का धंधा चरम पर है। दलालों की सक्रियता सुबह से शाम तक कार्यालय के आसपास बनी रहती है। इसी वर्ष बैतूल कलेक्टर ने भी दलालों को कार्यालय से खदेड़ दिया था, लेकिन बाद में उन्हें फिर से बैठाना पड़ा। प्रदेश के हर महानगर में 400 से 500 दलाल परिवहन कार्यालय के आसपास मौजूद रहते हैं। यह दलाल लाइसेंस बनाने की फीस के रूप में 500 रूपये 1000 रूपये कम से कम लेते हैं और इसके बाद उनकी फीस कब बढ़ जाये इसकी कोई सीमा नहीं है। अब आरटीओ कार्यालय में असामाजिक तत्वों ने प्रवेश कर लिया है। भोपाल आरटीओ कार्यालय में कई ऐसी घटनाएं हो चुकी है। परिवहन विभाग को दलालों से मुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री का नजरिया निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन फिर वे इस दिशा में अगर सार्थक कदम उठा लिए गये, तो फिर परिवहन विभाग की फिजा ही बदल जायेगी।
|
जय हो क्षिप्रा मैया की |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
EXCILENT BLOG