शनिवार, 24 अगस्त 2013

बेरोजगारी का नासूर फैलता जायेगा मध्‍यप्रदेश में

        अगर प्रदेश की भाजपा सरकार ने  सरकारी कर्मचारियों की आयु सीमा 60 से 65 वर्ष करने का निर्णय ले लिया, तो फिर समझ लीजिए मप्र में बेरोजगारी का नासूर फैलता ही जायेगा, इसे रोकने के लिए फिर कोई हथियार काम नहीं आयेगा। वर्तमान में भी हजारों बेरोजगार रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। यूं भी प्रदेश में रोजगार की संभावनाएं नगण्‍य हैं। न तो सरकार रोजगार के क्षेत्र में कोई कारगर उपाय कर रही है और न ही उस तेजी से प्रदेश में प्राइवेट कंपनियां आ रही हैं ताकि राज्‍य में रोजगार का विस्‍तार हो सके। यही वजह है कि प्रदेश का पढ़ा लिखा नौजवान पलायन करने को विवश है। आज अधिकतर इंजीनियर प्रदेश में डिग्री तो लेता है, लेकिन नौकरी करने के लिए उसे कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्‍ट्र की शरण लेनी पड़ रही है। इन राज्‍यों में बैंगलोर, हैदराबाद और पुणे में आईटी कंपनियां काफी तादाद में हैं। ऐसी स्थिति में बेरोजगार नौजवान को मजबूरी में प्रदेश से पलायन कर दूसरे राज्‍य में सेवा देनी पड़ रही है। इस दिशा में न तो राजनीतिक दल विचार करने को तैयार हैं और न ही वर्तमान सरकार विचार कर रही है। दुखद पहलू यह है कि इंजीनियर के साथ-साथ डॉक्‍टरी पेशे के नौजवान भी पलायन कर रहे हैं। इसके साथ ही उन बेरोजगारों पर तो कोई विचार ही नहीं कर रहा है, जो कि आर्टस से बीए, एमए या, कॉमर्स से बीकॉम, एमकॉम की डिग्रियां लेकर रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इन्‍हें छोटी-छोटी कं‍पनियों में नौकरियां करने के लिए विवश होना पड़ रहा है और जो इससे भी कम पढ़े लिखे हैं उन्‍हें तो और भी जटिल राहों पर चलना पड़ रहा है, न तो उनके सामने भविष्‍य सुरक्षित है और न ही वर्तमान सुखद है। अब मप्र की भाजपा सरकार चुनावी मौसम में सरकारी कर्मचारियों की सेवा निवृत्ति आयु 60 से 62 वर्ष करने पर विचार कर ही है। मप्र के छोटे भाई छत्‍तीसगढ़ में तो तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 हो चुकी है। वही मप्र में भी वर्तमान में कर्मचारियों की सेवा निवृत्ति आयु 60 वर्ष है, जबकि डॉक्‍टरों की सेवा निवृत्ति आयु 65 एवं शिक्षकों की आयु 62 वर्ष तथा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष है। अब लिपिक वर्गीय कर्मियों की सेवा आयु बढ़ाने के लिए सरकार व्‍यापक स्‍तर पर विचार कर रही है। इस निर्णय का सबसे बुरा असर बेरोजगारों के जीवन पर पड़ना है। हर साल और लोग बेरोजगार होंगे। उन्‍हें रोजगार के कोई साधन नहीं मिलेंगे, आखिर सरकार चुनावी वर्ष में कर्मचारियों को लुभाने के लिए एक ऐसा निर्णय क्‍यों ले रही है, जिससे बेरोजगारों के भविष्‍य से खिलवाड़ हो, इस पर कई स्‍तरों पर विरोध हुआ है अब सरकार इस विरोध को समझ ले, तब तो बेरोजगारों के हित में होगा, अन्‍यथा फिर बेरोजगारों को अपना जीवन और संघर्षमय बनाने के लिए तैयार रहना चाहिए। 
ये आयेगी चुनौतियां : 
  • युवाओं से रोजगार छीनने की तैयारी चल रही है प्रदेश में 
  • उम्र बढ़ाने के साथ ही प्रदेश में 30 हजार बेरोजगारों को रोजगार से व‍ंचित होना पड़ेगा। 
  • रोजगार की संभावनाएं, प्रयास, प्रदेश में चल रहे हैं नगण्‍य। 
  • बेरोजगारों के साथ एक बार फिर धोखा कर रही है सरकार। 
  •  हर साल 30 हजार कर्मचारी रिटायर्ड होते हैं, जबकि भर्ती की प्रक्रिया बंद सी है। 
  • 25 सालों में सीधी भर्ती के पद भरे नहीं गए। 
  • तोहफा देने से पदोन्‍नति और भर्ती दो साल के लिए रूक जाती है। 
  • सरकारी नौकरियों में युवाओं के अवसर सीमित हैं। रोजगार के अवसर कम होंगे। 

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

क्‍या मप्र का कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा सरकार से डरा-सहमा है

        कांग्रेस कार्यकर्ताओं के आंदोलन प्रदर्शन में सक्रिय भागीदारी नहीं होने से अब कांग्रेस के नेता भी विचलित होने लगे हैं। उन्‍हें यह भय सताने लगा है कि कही मप्र की भाजपा सरकार की वजह से तो कांग्रेस कार्यकर्ता डरा और सहमा तो नहीं है। इस संकेत को दिग्विजय सिंह ने भी समझ लिया है, तभी उन्‍होंने 22 अगस्‍त को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर अंतत: कह ही दिया कि कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा सरकार से डरा हुआ है। इससे पहले प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया भी फूल छाप कांग्रेसियों पर तीखे बाण चला चुके हैं। मप्र की कांग्रेस राजनीति में लंबे समय से सरकार से नेताओं की निकटता के आरोप-प्रत्‍यारोप लगते रहे हैं। यहां तक कि ऐसे परचे भी मार्केट में आ चुके हैं जिसमें प्रदेश कांग्रेस का खर्चा एक बिल्‍डर द्वारा उठाने का उल्‍लेख था। ये बिल्‍डर मुख्‍यमंत्री का चहेता है। इस परचे को कांग्रेसियों ने ज्‍यादा गंभीरता से नहीं लिया पर यह कहा जाता है कि कहीं न कहीं धुंआ था, तभी वह उठा है। अब दिग्विजय सिंह अगर ये कह रहे हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार से डर गया है, क्‍योंकि उसके अपने स्‍वार्थ हैं, लेकिन दिग्विजय सिंह की यह टिप्‍पणी उन हजारों लाखों कार्यकर्ताओं के लिए उत्‍साह वर्धक है, जो कि किसी विवाद में न रहकर जमीनी कार्यकर्ता की भूमिका अदा कर रहा है। न उनके ठेके हैं न ही तबादले का खेल है। ऐसे कार्यकर्ताओं के लिए दिग्विजय सिंह फिर नायक बनकर उभरे हैं। ये समझ से परे हैं कि अगर कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार से डरा हुआ है, तो फिर दिग्विजय सिंह को विधानसभा चुनाव के ढाई महीने पहले इसकी क्‍यों याद आई। अब तो इस संबंध में कोई रास्‍ता भी नहीं खोजा जा सकता। 
किसी को ठेका, तो किसी को तबादलों की चिंता : 
        कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का कहना है कि कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा सरकार से डरा हुआ है। किसी का ठेका है, किसी का धंधा है, तो किसी को भाई-भतीजे के तबादले की चिंता है। भाजपा के मंत्री और विधायक और नेताओं ने जनता को रौंदा है जनता बहुत दुखी है। जनता अब आक्रोशित है, लेकिन कांग्रेसी डरते हैं। ऐसे तो चुनाव नहीं जीत पायेंगे। इस बयान से कांग्रेस शिविर में हलचल मच गई है। इससे पहले भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की बैठक में कई बार भूरिया कह चुके हैं कि उन्‍हें फूल छाप कांग्रेसियों से बेहद नफरत है। इस पर भाजपा के प्रवक्‍ता विजेंद्र सिंह सिंसौदिया ने तो फूल छाप कांग्रेसियों की सूची ही बनवा ली थी, जिसमें करीब 20-25 ठेकेदार हैं, जो कि किसी न किसी माध्‍यम से सरकार का लाभ उठा रहे है। भूरिया ने सिसोदिया के बयान पर ज्‍यादा जोर नहीं दिया अन्‍यथा विवाद और गहराता। दिग्विजय सिंह के बयान से जमीनी कार्यकर्ताओं को एक आशा की किरण तो नजर आई है, लेकिन फिर भी अगर बड़े नेता अगर भाजपा के शिविर में निकटता बढ़ाते हैं तो कार्यकर्ताओं को निश्चित रूप से पीड़ा होती है। इस बारे में नेता कभी कोई टिप्‍पणी नहीं करते। अभी भी प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में ऐसे पदाधिकारी हैं, जो कि सरकार के किसी न किसी माध्‍यम से निकटता रखते हैं। ऐसे लोगों को चिंन्हित करने की आवश्‍यकता पर अब तो चुनाव का समय है, पार्टी चुनाव लड़े या दलालों की तलाश करें, यह समझ से परे हैं।  
                                  ''मप्र की जय हो''

सोमवार, 19 अगस्त 2013

भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस भी विजन डाक्‍यूमेंट लायेगी

            ऐसा लगता है कि कांग्रेस को सिर्फ भाजपा की नकल करने में मजा आता है। वह अपना खुद का नया अंदाज पेश करने में अभी भी कामयाब नहीं है। बार-बार जो भाजपा करती है, वही कांग्रेस भी करने का उपक्रम करने लगती है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक महीने पहले एलान कर चुके हैं कि चुनाव के दौरान भाजपा विजन डाक्‍यूमेंट लायेगी। इसकी तैयारी भी भाजपा ने कर दी है। अब भाजपा की राह पर चलकर कांग्रेस महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी मोहनप्रकाश ने भी 18 अगस्‍त को भोपाल में एलान किया है कि घोषणा पत्र जारी करने के पूर्व कांग्रेस भी एक वि‍जन डाक्‍यूमेंट की तैयारी करेगी जिसमें कांग्रेस की उच्‍च प्राथमिकता वाली घोषणाएं शामिल रहेगी। इन घोषणाओं का उल्‍लेख कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस के महासम्‍मेलनों में कर रहे हैं। मोहन प्रकाश का मानना है कि विजन डॉक्‍यूमेंट में किसानों के 51 हजार रूपये तक के पुराने कृषि ऋण, बिजली बिलों की मांफी, बिजली में झूठे मुकदमों की वापसी, शिक्षा कर्मियों को समान कार्य-समान वेतन की नीति, शासकीय कर्मचारियों को केंद्र के समान महंगाई भत्‍ते सहित आदि विषय शामिल रहेंगे। मोहनप्रकाश यह बताने में कामयाब नहीं हुए कि आखिरकार प्रदेश को वह कैसा आकार देंगे तथा भविष्‍य में प्रदेश विकास की किन ऊंचाईयों को छुयेगा। निश्चित रूप से विजन डॉक्‍यूमेंट एक अच्‍छा संकेत हैं कि कांग्रेस भी अपना भविष्‍य का प्‍लान जनता के सामने प्रस्‍तुत कर रही है, लेकिन यह भाजपा की नकल है। भाजपा पिछले दो चुनावों से लगातार अपना विजन डॉक्‍यूमेंट पेश करती रही है, फिर भले ही विजन डॉक्‍यूमेंट के आधार पर नीतियां न बनती हों, लेकिन जनता को लुभाने के लिए एक उपक्रम तो है ही। 
भाजपा तैयार करा रही है विजन डॉक्‍यूमेंट :  
           मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा है कि वह चुनाव घोषणा पत्र तो जारी करेंगे ही इसके साथ ही विजन डॉक्‍यूमेंट में भी जारी किया जायेगा। इस विजन डॉक्‍यूमेंट की व्‍यापक स्‍तर पर तैयारी चल रही है। भाजपा ने 2003 में प्रदेश के विकास का दृष्टिपत्र जारी किया था। ये दृष्टिपत्र गौरव प्रतिष्‍ठान की तरफ से जारी किया गया था। इसके अध्‍यक्ष शचींद्र द्विवेदी थे। इस दृष्टिपत्र में कांग्रेस सरकार के 10 साल की खामियां गिनाई गई थी और आने वाले दस साल में क्‍या चुनौतियां आने वाली हैं इसके भी संकेत दिये गये थे। इस दृष्टिपत्र को लेकर न तो मुख्‍यमंत्री उमा भारती और न मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर न ही मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गंभीरता दिखाई, बल्कि दृष्टिपत्र और घोषणा पत्र के आधार पर सरकार की योजनाएं आकार लेती गई। अब मुख्‍यमंत्री की मंशा के अनुरूप विजन डॉक्‍यूमेंट तैयार हो रहा है जिसमें 2018 तक की कार्ययोजना को रेखांकित किया गया है।

रविवार, 18 अगस्त 2013

कांग्रेस मध्‍यप्रदेश में भाजपा पर कमर के नीचे बार कर रही

      यूं तो भाजपा के लिए मुख्‍य चुनौती मप्र में कांग्रेस ही है। कांग्रेस के हमलों से मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वि‍चलित हुए हैं। न सिर्फ उनके तेवर बदले हैं, बल्कि वे अब आक्रामक भाषा बोल भी रहे हैं। उसके पीछे वे अपना स्‍पष्‍टीकरण देने से भी नहीं चूकते। उनका कहना है कि कांग्रेस ने सारे नियम-कायदे तोड़ दिये हैं। चुनाव जीतने क लिए वे आपेक्ष लगाने पर कांग्रेसी उतर आये हैं। यही वजह है कि चौहान को नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करना पड़ा। चौहान की नजर में कांग्रेस झूठी और बेईमान है, जो कि अब कमर के नीचे बार कर रही है। यहां तक कि व्‍यक्तिगत आरोप प्रत्‍यारोप भी लगाये जा रहे हैं। अक्‍सर जनआर्शीवाद यात्रा के दौरान चौहान के निशाने पर कांग्रेसी हैं। वे कहते हैं कि हमारा काम अच्‍छा है इसलिए प्रदेश में कांग्रेस परेशान है। कांग्रेस के नेता नींद में भी शिवराज इस्‍तीफा दो चिल्‍लाते रहते हैं। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता भी प्रदेश में बेअसर हो साबित हो रहे है, लिहाजा वे व्‍यक्तिगत आरोपों पर उतर आये हैं। कांग्रेस ने 55 साल राज किया पर प्रदेश के विकास में कुछ नहीं किया। चौहान बार-बार कांग्रेसियों को यह भी चेतावनी देते हैं कि 55 साल और 10 साल के विकास पर खुली बहस करा ली जाये। 
कांग्रेस और मुख्‍यमंत्री की नाराजगी : 
        अमूमन छह महीने पहले तक मुख्‍यमंत्री का कांग्रेस के प्रति बहुत ज्‍यादा आक्रोश नहीं था, वे अपनी सभाओं में सरकार की उपलब्धियां गिनाते थे और कभी-कभार केंद्र पर हमले करते थे, लेकिन मप्र के कांग्रेस नेताओं पर उनके प्रहार कह होते थे। अचानक कांग्रेस ने चौहान पर चारों तरफ से बार करना शुरू कर दिया। यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने तो नैतिकता की सारी सीमाएं लांघ कर सीएम की पत्‍नी साधना सिंह को भी कठघरे में ले लिया और उन्‍हें नोट गिनने की मशीन तक बता दिया। इससे विचलित होकर चौहान ने भोपाल अदालत में मानहानि का मुकदमा दायर किया है। यह मामला अदालत में शुरू हो गया है। इसके बाद दिग्विजय सिंह ने भी शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार को घेरने के लिए कोई न कोई मौके की तलाश की जाने लगी। यहीं से चौहान और कांग्रेस के बीच दूरिया बढ़ी। जुलाई महीने में अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर मुख्‍यमंत्री ने चर्चा नहीं कराकर विपक्ष को और गुस्‍से में ला दिया। इसके बाद तो नेता प्रतिपक्ष भी खुलकर मुख्‍यमंत्री पर बार कर हैं और वे भी व्‍यक्तिगत हमले ज्‍यादा हो रहे हैं। यही वजह है कि सीएम चौहान ने भी अब कांग्रेस की कलई खोलने के लिए कमर कस ली है। 
दिग्विजय और अजय सिंह निशाने पर : 

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अभी तक तो अपनी रैलियों में सिर्फ कांग्रेस महा‍सचिव दिग्विजय सिंह और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को निशाने पर ले रहे हैं। दिग्विजय सिंह को तो वे सभाओं में मजाक का पात्र बनाने से भी नहीं छोड़ रहे हैं। अक्‍सर वे जनआर्शीवाद यात्रा के दौरान एक सवाल जनता से जरूरी पूछते हैं कि बताये कि दिग्विजय सिंह के राज में कितने घंटे बिजली मिलती थी, तो लोग हाथ खड़े करके अंधेरे में डूबे रहे प्रदेश की ओर इशारा करते हैं। तब चौहान फिर कहते हैं कि भाजपा राज में बिजली तो मिल रही है। इसके साथ ही वह यह भी जोड़ते हैं कि बच्‍चों को मोमबत्‍ती और लालटिन की रोशनी में पढ़ना पड़ता था। दिग्विजय सिंह ने प्रदेश को बर्बाद कर दिया। इन आरोपों पर दिग्विजय सिंह भी चुप नहीं हैं, वे भी सीएम पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। उनके निशाने पर भी हमेशा चौहान रहते हैं। अभी हाल ही में बालाघाट दौरे पर आये दिग्विजय सिंह ने फिर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा का नक्‍सलियों से चुनावी गठजोड़ हो गया है। 
            मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निशाने पर कांग्रेस के दूसरे नेता  अजय सिंह हैं। चौहान ने अजय सिंह के विधानसभा क्षेत्र चुरहट में जाकर सिंह पर खूब हमले किये। उन्‍हें घमंडी तक कहा गया। इसके साथ ही चुरहट लाठीकांड और जमीन प्रेम से भी उन्‍हें नवाजा। इसके साथ ही चौहान ने चुरहट की जनता से यह अपील भी की कि वे 14 साल से भाजपा को नहीं जिता रही है अब वनवास का समय खत्‍म हो गया है। ऐसी स्थिति में फिर से भाजपा को चुरहट से जनता को गले लगाना चाहिए। इसके बाद भी चौहान थमे नहीं। उन्‍होंने अजय सिंह पर कभी भी किसी भी कार्यक्रम में खरी-खरी सुनने में पीछे नहीं रहते। मुख्‍यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के बीच यह टकराव लगातार गहराता जा रहा है। दूरिया बेहद बढ़ गई हैं। अब तो नेता प्रतिपक्ष इस कोशिश में रहते हैं कि जहां मुख्‍यमंत्री पहुंच रहे हैं वहां वे नहीं जाये। कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों से भी अजय सिंह ने कन्‍नी काटी है। ये दूरिया बता रही है कि दोनों नेताओं के बीच किस कदर मतभेद गहरा गये हैं और अब चुनाव तक तो एक दूसरे पर तलवारे ताने नेता नजर आ रहे हैं। 
             कुल मिलाकर मप्र की राजनीति में धीरे-धीरे बेहद बदलाव आ रहा है। मुख्‍यमंत्री कांग्रेस को बुरा-बुरा कहने में चूक नहीं रहे हैं। वे पन्‍ना में कहते है कि कांग्रेस सरकारों ने लोकधन को लूटने का साधन बना लिया था। आजादी के बाद 50 वर्षो में कांग्रेस ने जितने विकास कार्य नहीं किये उससे 5 गुना विकास कार्य दस वर्षो में मप्र में हुए हैं। जहां देश की कृषि विकास दर 3 प्रतिशत है वही मप्र अकेला ऐसा राज्‍य है जिसमें पिछले साल 18.91 प्रतिशत दर हासिल की और इस साल 13.11 प्रतिशत कृषि विकास दर हासिल की है। इन्‍हीं विकास कार्यों को लेकर कांग्रेस घबरा रही है और भाजपा नेताओं की छवि खराब करने की नाकाम कोशिश कर रही है। कांग्रेस भी शिवराज सिंह के आरोपों पर चुप नहीं है वह भी लगातार सीएम के आरोपों का जवाब देने में अग्रसर है। 
                                     ''म0प्र0 की जय हो''




शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

क्‍यों खफा हो गये हैं भाजपा सरकार से लोकायुक्‍त

         मध्‍यप्रदेश के लोकायुक्‍त पीपी नावलेकर अपनी नियुक्ति के बाद से कभी भी सरकार पर बरसे नहीं और न ही शिकायतों पर गंभीरता दिखाई। यहां तक कि विपक्ष लोकायुक्‍त की एकतरफा कार्यवाही पर सवाल उठाता रहा, लेकिन लोकायुक्‍त नावलेकर बार-बार यही कहते रहे हैं कि वे नियमानुसार कार्यवाही कर रहे हैं। लोकायुक्‍त की भूमिका को लेकर कई बार टकराहट की स्थिति बनी है। विपक्ष तो लोकायुक्‍त पर विश्‍वास ही नहीं करता है, जो स्‍वयंसेवी संगठन हैं, वे भी लोकायुक्‍त पर सवाल खड़े करते रहे हैं। यही वजह है कि विपक्ष ने भाजपा सरकार के मंत्रियों के खिलाफ जो भी शिकायतें दी, वे दो कदम आगे भी नहीं बढ़ पाई। अब अचानक लोकायुक्‍त पीपी नावलेकर को भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्‍सा आ गया है। पहली बार उन्‍होंने अपनी नाराजगी सरकार के खिलाफ जारी की है। लोकायुक्‍त के गुस्‍से से सरकार भी परेशान हो गई थी। स्‍वयं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने दौरे कार्यक्रम के बीच समय निकालकर आला अधिकारियों से लोकायुक्‍त की नाराजगी का कारण पूछा था। तब उन्‍हें यह बताया गया कि लोकायुक्‍त ने कुछ प्रस्‍ताव भेजे थे, जो कि सामान्‍य प्रशासन विभाग और वित्‍त विभाग की फाइलों में उलझे हुए हैं। मुख्‍यमंत्री ने लोकायुक्‍त के प्रस्‍तावों को नये सिरे से विचार करने के निर्देश दे दिये हैं, लेकिन दिलचस्‍प यह है कि लोकायुक्‍त नावलेकर अपने प्रस्‍तावों को मंजूरी नहीं मिलने से नाराज नहीं हैं। इसके पीछे कोई और बड़ी वजह है। अमूमन लोकायुक्‍त नावलेकर राज्‍य सरकार के खिलाफ तीखी टिप्‍पणियां नहीं करते हैं पर पहली बार 12 अगस्‍त को नावलेकर ने इंदौर में पत्रकारों के सामने न सिर्फ अपनी लाचारी जाहिर की बल्कि लोकायुक्‍त की सक्रियता से कार्यवाही न करने पर अफसोस जाहिर किया। उन्‍होंने तो यह तक कह दिया कि मंत्रियों के खिलाफ सरकार दस्‍तावेज उपलब्‍ध नहीं कराती है, तब तो लोकायुक्‍त के हाथ बंधे होना स्‍वाभाविक है। उन्‍होंने माना कि मंत्रियों के खिलाफ चार्जशीट इसलिए दाखिल नहीं हो पा रही है कि संबंधित विभागों के दस्‍तावेज नहीं मिल रहे हैं। मेरे भी हाथ बंधे हैं। मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही में सरकार की मंजूरी आवश्‍यक है। इन मामलों में सरकार को स्‍वीकृति देना या न देना यह उसका मामला है। हम यानि लोकायुक्‍त तो सिर्फ चिट्ठियां लिख सकते हैं। नावलेकर ने पहली बार यह भी कहा कि मैं किसी दबाव में काम नहीं कर रहा हूं और न ही दबाव में आऊंगा। लोकायुक्‍त की नियुक्ति तो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अनुशंसा पर 6 सालों के लिए होती है, मेरा कार्यकाल तय है। जब सरकार मेरी नियुक्ति नहीं करती है, तो मैं दबाव में क्‍यों रहूंगा। ऐसे तीखे बाणों से भाजपा सरकार का घायल होना स्‍वाभाविक है। सरकार ने भी आनन-फानन में लोकायुक्‍त की नाराजगी जाननी चाही है अब उस पर कितना पर्दा डला है यह तो वक्‍त ही बतायेगा। 
10 मंत्रियों के खिलाफ जांच : 
     अक्‍सर लोकायुक्‍त की कार्यवाही पर यह सवाल तेजी से उठता रहा है कि वे अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ तो कार्यवाही कर देते हैं, लेकिन मंत्रियों और आईएएस अ‍फसरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं हो पाती है। इस पर लोकायुक्‍त नावलेकर फरमाते हैं कि फिलहाल तो मप्र में 10 मंत्रियों के खिलाफ जांच चल रही है। इन मंत्रियों के संबंधित विभागों से दस्‍तावेज नहीं मिल पा रहे हैं जिसके फलस्‍वरूप जांच में देरी हो रही है। उन्‍होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया के तहत दस्‍तावेज हासिल करने के लिए चिट्ठियां ही लिखी जा सकती हैं, जो कि लगातार लोकायुक्‍त कार्यालय लिख रहा है। अब मीडिया को इस बात का दबाव बनाना चाहिए कि मंत्रियों के कागज सरकार उपलब्‍ध कराये। दिलचस्‍प यह है कि लोकायुक्‍त नावलेकर की नियुक्ति को लगभग चार साल हो गये हैं और वे कभी भी भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्‍से में नहीं दिखे हैं। कई बार विपक्ष ने उन पर तीखे बार किये, इसके बाद भी नावलेकर शांत रहे हैं। इन चार सालों में उनके कार्यकाल में 129 छापे पड़े जिसमें 260 करोड़ की सम्‍पत्ति उजागर हुई। इसमें रिश्‍वत के 590 मामले पकड़े गये और 58 लाख की रिश्‍वत की राशि जप्‍त की गई। कुल मिलाकर लोकायुक्‍त महोदय एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार विवाद कितना रंग लायेगा, यह तो सरकार की हलचल से ही पता लग रहा है, लेकिन चुनावी मौसम में अगर लोकायुक्‍त महोदय बार-बार अपनी नाराजगी दिखायेंगे, तो सरकार के लिए यह खतरे की घंटी होगी। 
                                        ''मप्र की जय हो''

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

मध्‍यप्रदेश कांग्रेस में मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ तेज हुई

        एक कहावत है ''एक अनार, सौ बीमार''  यानि अभी मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने की संभावनाएं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही ,लेकिन मुख्‍यमंत्री पद को लेकर नेताओं में घमासान मचा हुआ है। इस पद की दौड़ में हर महीने कोई न कोई नाम उभरकर सामने आ रहा है। फिलहाल तो भाजपा चुनाव अभियान और प्रबंधन में कांग्रेस से कई कदम आगे हैं। इसके बाद भी कांग्रेस नेताओं में मुख्‍यमंत्री पद को लेकर खासी दौड़ मची हुई है। सबसे ज्‍यादा इस पद को लेकर नाम की चर्चा केंद्रीय ऊर्जा राज्‍यमंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की हो रही है। सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का मुखिया बनाने की चर्चाएं पिछले एक पखवाड़े से कांग्रेस शिविर में गर्म हैं। अभी तक इसका एलान नहीं हुआ है। इसके साथ ही मुख्‍यमंत्री पद को लेकर सिंधिया का नाम खूब कांग्रेसी उछाल रहे हैं। सबसे पहले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया भी मुख्‍यमंत्री बन सकते हैं। इसके बाद अन्‍य नाम भी चर्चाओं में आये, लेकिन हाल ही में गुना प्रवास पर आये केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस की राजनीति में यह कहकर भूचाल ला दिया कि अगर मप्र में कांग्रेस की सरकार बनी, तो सिंधिया मुख्‍यमंत्री होंगे, पर आधे घंटे बाद ही कमलनाथ ने पत्रकारों के बीच गुना में ही सफाई दे दी कि सिंधिया को मुख्‍यमंत्री बनाने का एलान उनकी निजी राय है। इस घटनाक्रम पर अभी मरहम लगा भी नहीं था कि अचानक दिल्‍ली में कांग्रेस सांसद सत्‍यव्रत चतुर्वेदी ने फिर से दोहरा दिया कि अगर सिंधिया को मुख्‍यमंत्री पद का उम्‍मीदवार बनाया जाये ताकि कांग्रेस की सरकार बन सके। उन्‍होंने कहा कि हमें खुशी होगी, यदि सिंधिया जैसे युवा और निष्‍कलंक नेता के हाथ में सरकार की कमान होगी। इस बार कोई विवाद नहीं है, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के नाम पर सहमति बन चुकी है। सरकार कांग्रेस पार्टी की ही बनेगी और सिंधिया ही मुख्‍यमंत्री पद के उम्‍मीदवार होंगे। इससे पहले मप्र विधानसभा के पूर्व अध्‍यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने भी श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात करके सिंधिया को मुख्‍यमंत्री पद का उम्‍मीदवार बनाने का आग्रह कर चुके हैं। निश्चित रूप से सिंधिया कार्यकर्ताओं की एक पसंद हैं। पिछले एक महीने के भीतर कांग्रेस की दो बड़ी सभाएं हुई जिसमें सिंधिया के भाषण पर खूब  तालियां पिटी और कार्यकर्ताओं ने उनके भाषण को पसंद भी किया। पहली सभा मुख्‍यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुधनी के नसरूल्‍लागंज में हुई, जहां पर सिंधिया ने खुलकर भाजपा सरकार के खिलाफ तीखी भाषा का उपयोग किया, तो दूसरी बार कांग्रेस के सागर में हुए महासम्‍मेलन में फिर सिंधिया ने अपने भाषण की खूब वाह-बाही लूटी। यहां भी सिंधिया सरकार के खिलाफ अपने तीखी तेवर के साथ मैदान में थे। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मंशा है कि सिंधिया को मैदान में मोर्चा संभालने की जिम्‍मेदारी दी जाये। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि सिंधिया के चेहरे में चमक है और आम आदमी का विश्‍वास हासिल करने की कला है। वे सरकार के खिलाफ भी तीखे आरोप लगा रहे हैं। इसके साथ ही यह कहानी भी खूब गड़ी जा रही है कि सिंधिया का नाम उछालने के पीछे कांग्रेस नेताओं की कोई राजनीति तो नहीं है। इसके पीछे किसी न किसी बड़े नेता का हाथ भी बताया जा रहा है। फिलहाल तो सिंधिया मप्र की कांग्रेस राजनीति में छाये हुए हैं। 
...और भी नेता मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ में : 
        ऐसा नहीं है कि सिंधिया अकेले ही मप्र में मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ में हैं, बल्कि कांग्रेस के अन्‍य नेता भी सीएम पद की कतार में हैं। 2008 की तरह 2013 में भी केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने फिर से इच्‍छा जाहिर की है कि अगर कांग्रेस की सरकार बने, तो वे मुख्‍यमंत्री बनने को तैयार हैं। उन्‍होंने एक टीबी चैनल को दिये साक्षात्‍कार में स्‍वीकार किया है कि वे मुख्‍यमंत्री पद स्‍वीकार कर सकते हैं, पर जब ज्‍यादा हल्‍ला मचा तो उन्‍होंने सफाई दी कि पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्‍या वे मप्र के मुख्‍यमंत्री बनने के इच्‍छुक हैं, तो उन्‍होंने कह दिया कि हां, मुख्‍यमंत्री बनने को तैयार हूं। इस पर कमलनाथ कहते हैं कि उन्‍होंने पत्रकार के सवाल के जवाब में उत्‍तर दिया है। ऐसा नहीं है कि कमलनाथ ने पहली बार अपनी इच्‍छा जाहिर की है। इससे पहले भी 2008 में भी उन्‍होंने छिंदवाड़ा में आयोजित एक बड़ी कांग्रेस की रैली में भी पूर्व अध्‍यक्ष सुभाष यादव ने कमलनाथ को मुख्‍यमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया था, जिस पर दिग्विजय सिंह ने भी मोहर लगाई थी, तब भी खूब हल्‍ला मचा था। इसके बाद मामला रफा दफा हो गया। कांग्रेस में मुख्‍यमंत्री पद के तीसरे उम्‍मीदवार प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष और आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया हैं। कोई छह महीने पहले केंद्रीय राज्‍यमंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने भूरिया को भविष्‍य का मुख्‍यमंत्री बताया था,
लेकिन थोड़े दिनों बाद भूरिया और सिंधिया में अनबन हो गई जिसके चलते अब सिंधिया स्‍वयं मैदान में उतर आये हैं। भूरिया पत्रकारों से चर्चा के दौरान कई बार कह चुके हैं कि वे भी मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ में है, लेकिन इसको सार्वजनिक रूप से कहने में उन्‍हें थोड़ी परेशानी होती है, क्‍योंकि वे कांग्रेस की राजनीति से भली भांति बाकिफ हैं। कांग्रेस में जिसके नाम को लेकर खूब हल्‍ला मचता है वह सेहरा बांधने में कामयाब नहीं हो पाता। यही वजह है कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपने आपको मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ से दूर रखे हुए हैं और सिर्फ आरोप-प्रत्‍यारोप की राजनीति में व्‍यस्‍त हैं। पर इच्‍छा तो उनकी भी मुख्‍यमंत्री बनने की है। कुल मिलाकर मप्र की कांग्रेस राजनीति में भले ही सत्‍ता लाने के लिए कांग्रेसी उतना संघर्ष नहीं कर रहे हैं जितना की मुख्‍यमंत्री पद के लिए मशक्‍कत की जा रही है। इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेसी अभी भी जमीनी हकीकत से बाकिफ नहीं हैं और वे अपने अपने ढंग से सपनों की दुनिया में जीने को विवश हैं। 
                                        '' मप्र की जय हो''

रविवार, 11 अगस्त 2013

थम नहीं रही है मध्‍यप्रदेश में टोपी पर सियासत

          मध्‍यप्रदेश में राजनीति की दशा और दिशा तेजी से बदल रही है। राजनेताओं ने भी अब जो बुनियादी मुद्दे हैं उनको छोड़कर ऐसे मुद्दों पर हल्‍ला मचाना शुरू कर दिया है, जिनसे समाज में तनाव का वातावरण बन और वोटो का खजाना भी खुले। इसके चलते मध्‍यप्रदेश का विकास एक बार फिर राजनेताओं के भाषण से गायब होने लगा है। मुख्‍यमंत्री जरूर विकास और मप्र को स्‍वर्णिम राज्‍य बनाने का सपना दिखाते है, लेकिन उन्‍हें भी राजनीति के घेरे में घेरने का मौका दूसरे लोग नहीं छोड़ रहे हैं। अब देखिए न 9 अगस्‍त को ईद के मौके पर टोपी पहनने को लेकर खासा विवाद गहरा गया। इन दिनों राज्‍य की राजनीति में टोपी पर ही सियासत हो रही है। इस बहाने नरेंद्र मोदी पर भी हमला हो रहा है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल में ईदगाह पर नवाजियों को ईद की मुबारकवाद देने पहुंचे थे, संयोग से वहां फिल्‍म अभिनेता रजा मुराद भी मौजूद थे। इस नजाकत के मौके पर रजा मुराद ने मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में ही गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी का उल्‍लेख किये बिना ही इशारों ही इशारों में ऐसे व्‍यंग्‍य बाण छोड़े कि टोपी पर खासी सियासत हो गई। रजा मुराद ने यह तक कह दिया कि जिम्‍मेदार पद पर बैठे व्‍यक्ति को टोपी पहनने से इंकार नहीं करना चाहिए। टोपी पहनने से धर्म भ्रष्‍ट नहीं होता है। धर्म पर आंच नहीं आती है। कुछ मुख्‍यमंत्रियों को शिवराज सिंह से सीख लेनी चाहिए। उन्‍होंने यह तक कह दिया कि शिवराज सिंह चौहान तो टोपी पहनते हैं, टोपी पहनना बुरी बात नहीं है, पर पहनाना बुरी बात है। इस बयानबाजी ने भाजपा और संघ परिवार में भूचाल ला दिया। यहां तक कि भाजपा के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता मीनाक्षी लेखी को यह तक कहना पड़ा कि रजा मुराद ने नमुराद जैसी बातें कहीं हैं। इसके साथ ही पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती ने भी रजा मुराद पर तीखे आक्षेप लगाये। यहां तक कि उमा भारती ने रजा मुराद को सी-ग्रेड एक्‍टर तक की संज्ञा देते हुए कहा कि मुसलमान दीपावली की बधाई देते समय केसरिया पहनने और हिन्‍दू ईद की बधाई देते समय टोपी पहनने इसकी जरूरत नहीं है। हमें एक करने के लिए तिरंगा ही काफी है। मध्‍यप्रदेश में टोपी  पर खूब सियासत हो रही है। भाजपा और संघ परिवार तो रजा मुराद के बयान से खफा है ही, क्‍योंकि मुख्‍यमंत्री की मौजूदगी में मोदी पर हमले किये गये और मुख्‍यमंत्री शांत रहे। चुनावी वर्ष में ऐसे ही विषयों पर राजनीति होनी है और जमकर राजनेता एक दूसरे पर ही कीचड़ उछालते नजर आयेंगे। 
टोपी बनाम सियासत : 
         टोपी पहनने को लेकर सबसे पहले विवाद मोदी ने शुरू किया था। 18 सितंबर, 2011 को सदभावना उपवास के दौरान एक ईमाम ने मोदी को टोपी पहनानी चाही, तो मोदी ने उनका हाथ पकड़ लिया और टोपी पहनने से इंकार कर दिया। तब से ही टोपी को लेकर खासा विवाद गहराता रहता है। दूसरी ओर मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मोदी के प्रतिद्वंदी माने जाते हैं और वे स्‍वयं भी पार्टी में प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। मोदी और शिवराज की राजनीति में जमीन आसमान का अंतर है। शिवराज मुसलमानों के कार्यक्रमों में टोपी पहनने से कभी मना नहीं करते हैं और उनकी कोशिश है कि मुसलमान भाजपा से जुड़े इसके लिए वे लगातार प्रयास भी कर रहे हैं। ईद के मौके पर मुस्लिम भाईयों के घर-घर जाकर ईद की बधाईयां देते हैं और उनके कार्यक्रमों में खुलकर शिरकत करते हैं। मध्‍यप्रदेश में मुस्लिम वोट का प्रतिशत बहुत सीमित है, बमुश्किल 10 से 15 सीटे मुस्लिम बाहुल्‍य इलाके की हैं। इसके बाद भी चौहान ने मुस्लिम वर्ग को प्रभावित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। ईद के मौके पर टोपी को लेकर हुई सियासत को लेकर शिवराज सिंह चौहान भी दुखी हुए हैं और वे लगातार कह रहे हैं कि ईद पर्व पर कोई राजनीति नहीं होना चाहिए। दिलचस्‍प यह है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टोपी पर हुई राजनीति के बाद नरेंद्र मोदी की तुलना सरदार पटेल से की है और उन्‍हें लौह पुरूष तक की संज्ञा दे दी है। 
टोपी की राजनीति पर कांग्रेस हुई आक्रमक : 
            ईद के मौके पर मुख्‍यमंत्री की टोपी को लेकर शुरू हुई राजनीति में भले ही भाजपा चुप हो गई हो और कोई टीका-टिप्‍पणी नहीं कर रही है पर कांग्रेस ने इस पूरे मामले में तीखी बयानबाजी की है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने तो कहां है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सत्‍ता के लिए टोपी तिलक की राजनीति कर रहे हैं। भाजपा अब सत्‍ता के लिए हर हथकंडा अपना रही है। मुख्‍यमंत्री ने अपने निवास पर रोजा अफ्तार में केसरिया रंग की टोपी बनवाई और पहनी। फिर ईद के दिन ईदगाह पहुंचे तो पहले टोपी ही नहीं पहनी जब किसी ने कान में कहा तो टोपी पहन ली। बाद में बगल में खड़े रजा मुराद से अपनी तारीफ और मोदी की आलोचना करा दी। उन्‍होंने कहा कि सांप्रदायिक चेहरे पर सेक्‍युलर मुखौटा लगाने का चाहे जितना ढोंग और पाखंड करें जनता अब गुमराह नहीं होगी। इसके साथ ही फिल्‍म अभिनेता रजा मुराद ने साफ कर दिया है कि वह अपनी बात पर अडिग है और उन्‍होंने किसी का नाम नहीं लिया है। उन्‍होंने कहा कि राष्‍ट्रवादी होने के नाते टोपी पहनने, जनेऊ पहनने और चंदन लगाने से किसी मजहब पर आंच नहीं आती। किसी की खुशियों में शामिल होने से धर्म भ्रष्‍ट नहीं होता। जबरन मेरे बयान को नरेंद्र मोदी से जोड़ा जा रहा है। वही इस पूरी राजनीति में पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान भी कूद आये हैं। उन्‍होंने कहा कि रजा मुराद के बयान को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।
टोपी पर विवाद क्‍यों : 
         टोपी पर विवाद की शुरूआत 18 सितंबर, 2011 से शुरू हुई। गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदभावना उपवास के दौरान एक इमाम से टोपी पहनने से इंकार कर दिया था। इसके बाद देशभर में खूब विवाद हुआ था। अब 2013 में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के टोपी पहनने को लेकर इस विवाद को नया रंग दिया गया है।
नेताओं ने क्‍या कहा  : 
  •  शिवराज सिंह चौहान मुसलमानों के बच्‍चों को ईद की मुबारक बाद देने आये हैं, कुत्‍तों के बच्‍चों को नहीं। टोपी पहनने से कोई धर्म भ्रष्‍ट नहीं होता। - रजा मुराद, फिल्‍म अभिनेता। 
  •  मैं अब मप्र के लिए चिंतित हूं। वोट जुगाड़ने की स्‍तरहीन राजनीति प्रदेश की तासीर को बिगाड़ेगी। ईद पर रजा मुराद जैसे कलाकार को घटिया स्‍तर की सियासत नहीं करना चाहिए। -उमा भारती, पूर्व मुख्‍यमंत्री। 
  •  ईद एकता और भाईचारे का पर्व है। मंच से मुराद को इस तरह की टीका टिप्‍पणी नहीं करनी चाहिए थी। नरेंद्र मोदी तो सरदार पटेल क तरह हैं। - शिवराज सिंह चौहान, मुख्‍यमंत्री मप्र। 
  • टोपी को इस्‍लाम में पाक माना गया है। इसका सियासी मतलब के लिए इस्‍तेमाल करना और बार-बार मजाक उड़ाना सही नहीं है। किसी भी मजहब के व्‍यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए। - मौलाना खालिद रशीद फिरंगी, सुन्‍नी धर्मगुरू, लखनऊ। 
  • सत्‍ता की खातिर अब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान टोपी, तिलक की राजनीति पर उतर आये हैं। इससे जनता प्रभावित नहीं होगी। - अजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष। 


शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

रैंगिंग से तंग आकर खुदकुशी करने वाली अनीता के मामले में नये-नये रहस्‍य उजागर

     रैगिंग से तंग आकर आरकेडीएफ कॉलेज की छात्रा अनीता शर्मा की खुदकुशी के मामले में नये-नये राज खुल रहे हैं। पूरा कॉलेज प्रबंधन सवालों के घेरे में खड़ा हो गया है। कॉलेज प्रबंधन ने प्रोफेसर और छात्राओं को निलंबित कर दिया है। यूं तो पुलिस ने अनीता शर्मा के सुसाइड नोट में जिन छात्राओं और प्रोफेसर का नाम था, उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया है। इन पांचों को गिरफ्तार कर 8 अगस्‍त को अदालत में पेश कर 22 अगस्‍त तक न्‍यायिक अभिरक्षा में जेल में भेज दिया है। 
भले ही दोषी छात्राएं और प्रोफेसर जेल के सीखचों के पीछे हैं, लेकिन अनीता शर्मा के सुसाइट नोट कई प्रकार के सवालों को खड़ा कर रहे हैं। पुलिस इस पत्र के आधार पर छानबीन कर रही है जिसके चलते एक छात्रा को रैगिंग के कारण खुदकुशी करनी पड़ी। पुलिस ने भी आनन-फानन में कार्यवाही की है। इसकी वजह है अनीता के पिता कमलेश शर्मा, जिन्‍हों गृहमंत्री उमाशंकर गुप्‍ता को साफ तौर पर कह दिया था कि अगर उनकी बेटी के मौत के जिम्‍मेदार लोगों को सजा नहीं मिली, तो वह पूरे परिवार के साथ आत्‍महत्‍या कर लेंगे। इसके बाद ही गृहमंत्री ने अधिकारियों को बुलाकर तत्‍काल छात्राओं और प्रोफेसरों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिये हैं।
 
यही वजह है कि घटना के 12 घंटे के भीतर ही अनीता को परेशान करने वाले एक प्रोफेसर और 4 छात्राओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। अब पुलिस सुसाइट नोट के आधार पर गहरी छानबीन करने जा रही है। इस हादसे ने सरकार की नींद भी उड़ा दी है। मुख्‍यमंत्री ने आला अधिकारियों को सख्‍त निर्देश रैगिंग रोकने के दिये हैं, तो मुख्‍य सचिव ने उच्‍च स्‍तरीय बैठक बुलाकर ऐसे मामलों में कॉलेज प्रबंधन पर भी कठोर कार्यवाही करने के निर्देश दिये हैं। उन्‍होंने तो यहां तक कहा है कि नियम कानून से घटनाएं नहीं रोकी जा सकती है, इसके लिए भय का माहौल बनाया जाये। जिस कॉलेज में यह घटना हुई है उसको लेकर कई बार सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी हर बार कॉलेज का मामला दबा दिया गया है। फिलहाल तो इस बार मानव अधिकार आयोग, महिला आयोग ने भी अपनी सक्रियता दिखा दी है और दोनों आयोग पूरे घटनाक्रम की तफतीश करने के लिए मैदान में उतर आये हैं। निश्चित रूप से रैगिंग ने एक छात्रा की जीवन लीला समाप्‍त कर दी है, तो उसकी गहराई से तफतीश तो होना ही चाहिए, तभी इस बीमारी को रोका जा सकता है। अन्‍यथा थोड़े दिनों बाद फिर से किसी और कॉलेज में कोई अन्‍य छात्र-छात्रा रैगिंग की शिकार होगी। सरकार को अब इस मामले में नये सिरे से विचार करना चाहिए, अन्‍यथा रैगिंग एक गंभीर रोग बनकर रह जायेगा।
                                              ''मप्र की जय हो''

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

रैंगिंग में मध्‍यप्रदेश चौथे पायदान पर

          अफसोस होता है कि रैगिंग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट से लेकर राज्‍य सरकार तक बार-बार समय-समय पर निर्देश देते हैं, फिर भी रैगिंग मध्‍यप्रदेश में रूक नहीं पा रही है, न सिर्फ रैगिंग पर रोक लग रही है, बल्कि रैगिंग से परेशान होकर छात्रा खुदखुशी कर लें, तो साबित होता है कि सारे दिशा निर्देश फाइलों की शोभा बनकर रह गये हैं। विशेषकर मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में फार्मेंसी सेकेण्‍ड इयर की छात्रा अनीता शर्मा ने 07 अगस्‍त को परेशान होकर खुदकुशी कर ली। मरने से पहले अपने सुसाइड नोट में अनीता शर्मा ने लिखा है कि चार सीनियर छात्राएं उसे गंदे-गंदे काम करने के लिए प्रेरित करती थी, अगर मना किया जाता था, तो तेजाब फेंकने और दुष्‍कर्म की धमकी भी मिलने लगी थी। दुखद पहलू यह है कि इस छात्रा ने आरकेडीएफ कॉलेज के प्रचार को शिकायत की थी मगर प्राचार्य ने उस शिकायत पर कोई ध्‍यान नहीं दिया, बल्कि रैगिंग से प्रताडि़त छात्रा पर कहर और बरपाया जाने लगा। इससे साबित होता है कि कॉलेज प्रबंधन भी शोभा की वस्‍तु बनकर रह गये हैं। अगर उन्‍हें शिकायतें मिलती है, तो क्‍या वे उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। अगर अनीता शर्मा के मामले में प्रबंधन थोड़ा सा भी सक्रिय हो जाता, तो एक छात्रा रैगिंग की वजह से मौत को गले नहीं लगाती। मध्‍यप्रदेश में रैगिंग एक गंभीर समस्‍या दिनों-दिन बनती जा रही है, इस समस्‍या को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर सख्‍त निर्देश भी दिये हैं। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन भी है कि हर कॉलेज में एंट्री रैगिंग कमेटी बनाई जाये। विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर निगरानी हो, यूजीसी की हेल्‍पलाइन भी काम कर रही है। इसके बाद भी रैगिंग पर रोक नहीं लग पाई है। अकेले भोपाल में ही पिछले सात महीनों में रैगिंग की 19 घटनाएं सामने आ चुकी है और अगर दो साल की घटनाओं पर गौर किया जाये, तो 33 शिकायतें रैगिंग की मिली हैं। इसमें इंजीनियरिंग कॉलेज भी शामिल हैं। अक्‍सर कॉलेजों में सीनियर छात्र जूनियर छात्रों को तरह-तरह से रैगिंग के नाम पर प्रताडि़त किया जाता है। यहां तक कि शारीरिक प्रताड़ना भी की जाती है। 
रैगिंग का क्रूर रूप थम नहीं रहा :
         राज्‍य में रैगिंग का क्रूर रूप थम नहीं रहा है। हर एक महीने में कोई न कोई घटना रैगिंग की सामने आ रही है। इसे रोकने के लिए किसी भी स्‍तर पर कोई सार्थक पहल नहीं हो रही है। यहां तक कि छात्र-छात्राएं प्रताडि़त होते रहते हैं और कॉलेज प्रबंधन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। रैगिंग के मामले में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मप्र चौथे पायदान पर आ गया है। इस मामले में मध्‍यप्रदेश ने महाराष्‍ट्र, तमिलनाडु और बिहार को भी पीछे छोड़ दिया है। नेशनल एंट्री रैगिंग हेल्‍पलाइन ने जून 2009 से लेकर अगस्‍त 2013 तक के जो आंकड़े जारी किये हैं उसमें मध्‍यप्रदेश से रैगिंग की 168 की शिकायतें सामने आई हैं। वर्ष 2013 में ही 26 शिकायतें दर्ज की गई। इसे राज्‍य का दुर्भाग्‍य ही कहा जायेगा कि रैगिंग की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश में अब तक रैगिंग निषेध कानून नहीं बनाया गया है, जबकि पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, उत्‍तरप्रदेश, महाराष्‍ट्र, तमिलनाडु, केरल आदि राज्‍यों में यह कानून बन चुका है। समय-समय पर शिक्षा विदों ने राज्‍य सरकार को रैगिंग रोकने के लिए कानून बनाने के लिए पहल भी की। इसके बाद भी सरकार की तरफ से कोई कदम नहीं उठाये गये। अब शायद एक छात्रा अनीता शर्मा के आत्‍महत्‍या के बाद सरकार की नींद खुले और कानून बनाने में ध्‍यान दिया जाये। 
                                         ''मप्र की जय हो'' 

फिर मध्‍यप्रदेश की सड़कों पर गड्डों का जख्‍म



            भले ही मध्‍यप्रदेश की सरकार बार-बार दावा करें कि उन्‍होंने सड़कों की शक्‍ल बदल दी है, लेकिन बारिश ने तो फिर एक बार सड़कों की कलई खोल कर रख दी है। जहां-तहां सड़कों पर गहरे गड्डे हो गये हैं, गड्डों के जख्‍म से वाहन चालक हरपल आहत हो रहे हैं। न तो उन्‍हें इससे कोई राहत मिल रही है और न ही कोई इसका विकल्‍प है, बल्कि गड्डों के बीच अपनी गाड़ी निकालने में ही भलाई है। मप्र में सड़कों को लेकर सरकार खूब सपने दिखाती है। जिस पर लोक निर्माण विभाग भी हर दिन नये-नये प्‍लान बनाते हैं। इस प्‍लान के लिए राशि की मंजूरी के लिए मंत्रालय में फाइलें घूमती रहती हैं। सड़कों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। पिछले वर्ष बारिश के बाद व्‍यापक स्‍तर पर सड़कों की मरम्‍मत का अभियान चलाया गया था। यह अभियान मई माह तक चला था, पर जून में इस बार जोरदार बारिश हुई जिसके फलस्‍वरूप जो अभियान चला वह सब पानी में बह गया। इस बात की भनक लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों को भी थी, पर सरकार का दबाव ऐसा था कि इंजीनियरों को सड़कों की मरम्‍मत के लिए मैदान में उतरना ही पड़ा। अब फिर सड़कों की हालत एक बार जस की तस हो गई है। ऐसी स्थिति में विभाग इस बात को लेकर परेशान है कि फिर से बजट राशि का कटोरा लेकर सरकार के पास जाना पड़ेगा और मरम्‍मत के लिए पैसा मांगना पड़ेगा। जिसके बाद सरकार की डांट विभाग को मिलना तय है। हाल ही में मुख्‍यमंत्री ने एक बार फिर से लोनिवि के अफसरों को सड़कों की मरम्‍मत के लिए खूब डांटा फटकारा है और उन्‍हें सड़कों की मरम्‍मत करने के निर्देश दिये हैं। दुखद स्थिति यह है कि जो भी काम होना है, वे बारिश के बाद होंगे और बारिश अभी अगस्‍त महीने तक और होनी है। ऐसी स्थिति में विभाग के इंजीनियर सड़कों की मरम्‍मत भी नहीं कर सकते हैं।
सितंबर महीने में आचार संहिता लग जायेगी और सड़कों का हाल दिन प्रतिदिन बेहाल होगा और विभाग के इंजीनियर अपने-अपने हाथ खड़े कर देंगे। ऐसी स्थिति में सिर्फ सरकार डांट फटकार ही पायेगी। आम आदमी को फिर से टूटी फूटी सड़कों पर ही चुनाव अभियान के दौरान सफर करने को मजबूर होना पड़ेगा। 
                                ''मप्र की जय हो'' 

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

राहुल गांधी की डांट-फटकार का असर दिखेगा कांग्रेसियों पर

         मध्‍यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति गुटों में विभाजित है। अलग-अलग गुट अपने-अपने अभियानों में लगे हुए हैं। इस बात का अहसास कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी को हो गया है। तभी वे बार-बार कांग्रेस नेताओं को दिल्‍ली बुलाकर डांट-फटकार रहे हैं और उन्‍हें समझाईश दे रहे हैं कि मप्र में एक बार  फिर से कांग्रेस का परचम लहरायेगा। ऐसा लगता है कि इसका असर थोड़ा-बहुत तो हो रहा है, लेकिन बहुत ज्‍यादा दिखता नजर नहीं आ रहा है। अगर यह मान भी लिया जाये कि सारे नेता गुटविहीन हो जाये, लेकिन जमीनी हकीकत तो कांग्रेसियों की अभी भी बेहद कमजोर है। न तो बूथमैनेजमेंट में गंभीरता दिखाई जा रही है और न ही सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोई मुहिम चल रही है, बल्कि सारे नेता अपने-अपने हिसाब से क्षेत्रों में डटे हुए हैं। विधानसभा चुनाव में अब मात्र तीन माह का समय बाकी है। इन महीनों में भी दो महीने तो टिकट वितरण में बीत जाने हैं। टिकटों को लेकर जो मारा-मारी कांग्रेस में होती है, वह सामान्‍य: अन्‍य दलों में कम ही होती है। अब कांग्रेसी यह कहने लगे हैं कि अगर टिकट वितरण में ठीक ढंग से नेताओं के हिसाब से टिकट बांट दिये गये, तो फिर कांग्रेस की सरकार बन सकती है। ये भी नेताओं के सोच का बड़ा निराला रूप है कि टिकट वितरण से चुनाव जीता जा सकता है, जो नेता पिछले पांच साल अपने क्षेत्रों में सिर्फ हवा-हवाई करता रहा हो, वह सिर्फ चुनाव में टिकट लेकर कैसे पार्टी के पक्ष में माहौल बना देगा। ठीक है थोड़ा बहुत पार्टी के झंडे-बैनर का असर पड़ता है, लेकिन बहुत कुछ चुनाव प्रबंधन पर भी देखा जाता है। इस दिशा में कांग्रेसी अभी तक ज्‍यादा सक्रिय नहीं हैं। वे धरना प्रदर्शन तो कर रहे हैं, लेकिन प्रबंधन की तरफ अभी उन्‍होंने जोर नहीं दिया है। कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि कांग्रेस तो बहती नदी की तरह पार्टी है जिसमें जो आ गया वह कदमताल करने लगता है, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। प्रदेश का चुनावी परिदृश्‍य बदला हुआ है। भाजपा से पार्टी को चुनाव लड़ना है, भाजपा ने हर स्‍तर पर अपनी घेराबंदी कर ली है। यही वजह है कि कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी बार-बार नेताओं को अपनी क्‍लास में सीख दे रहे हैं कि वे अभी भी संभल जाये, अन्‍यथा भविष्‍य में परिणाम बेहतर नहीं होंगे। राहुल गांधी की क्‍लास का असर तो हुआ है, उसका चुनाव पर क्‍या प्रभाव पड़ता है, यह तो भविष्‍य ही बतायेगा, लेकिन फिलहाल तो कांग्रेसी धीरे-धीरे एक होने लगे हैं। मगर यह एकता कांग्रेसियों में कितने दिन रह पाती है यह भी एक बड़ा सवाल है। टिकट वितरण में अगर कांग्रेसियों में पक्षपात हुआ, तो फिर गुटबाजी उभरकर आ जायेगी। इसलिए राहुल गांधी को लगातार मॉनिटरिंग करनी होगी, तभी मप्र में कांग्रेस का भला होगा अन्‍यथा मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब सभाओं में ही कहने लगे हैं कि आगामी चुनाव परिणामों के बाद मप्र की कांग्रेस बिहार और यूपी की तरह हो जायेगी, जहां कांग्रेस को तलाशने में दूरवीन लेकर ढूंढना पड़ेगा। इसी डर और भय को राहुल गांधी समझ गये हैं, तभी तो वे कांग्रेसियों की बार-बार क्‍लास लेकर उन्‍हें मैदान में उतारने के लिए विवश कर रहे हैं। 
                                           ''मप्र की जय हो''