अफसोस होता है कि रैगिंग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट से लेकर राज्य सरकार तक बार-बार समय-समय पर निर्देश देते हैं, फिर भी रैगिंग मध्यप्रदेश में रूक नहीं पा रही है, न सिर्फ रैगिंग पर रोक लग रही है, बल्कि रैगिंग से परेशान होकर छात्रा खुदखुशी कर लें, तो साबित होता है कि सारे दिशा निर्देश फाइलों की शोभा बनकर रह गये हैं। विशेषकर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में फार्मेंसी सेकेण्ड इयर की छात्रा अनीता शर्मा ने 07 अगस्त को परेशान होकर खुदकुशी कर ली। मरने से पहले अपने सुसाइड नोट में अनीता शर्मा ने लिखा है कि चार सीनियर छात्राएं उसे गंदे-गंदे काम करने के लिए प्रेरित करती थी, अगर मना किया जाता था, तो तेजाब फेंकने और दुष्कर्म की धमकी भी मिलने लगी थी। दुखद पहलू यह है कि इस छात्रा ने आरकेडीएफ कॉलेज के प्रचार को शिकायत की थी मगर प्राचार्य ने उस शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया, बल्कि रैगिंग से प्रताडि़त छात्रा पर कहर और बरपाया जाने लगा। इससे साबित होता है कि कॉलेज प्रबंधन भी शोभा की वस्तु बनकर रह गये हैं। अगर उन्हें शिकायतें मिलती है, तो क्या वे उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। अगर अनीता शर्मा के मामले में प्रबंधन थोड़ा सा भी सक्रिय हो जाता, तो एक छात्रा रैगिंग की वजह से मौत को गले नहीं लगाती। मध्यप्रदेश में रैगिंग एक गंभीर समस्या दिनों-दिन बनती जा रही है, इस समस्या को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर सख्त निर्देश भी दिये हैं। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन भी है कि हर कॉलेज में एंट्री रैगिंग कमेटी बनाई जाये। विश्वविद्यालय स्तर पर निगरानी हो, यूजीसी की हेल्पलाइन भी काम कर रही है। इसके बाद भी रैगिंग पर रोक नहीं लग पाई है। अकेले भोपाल में ही पिछले सात महीनों में रैगिंग की 19 घटनाएं सामने आ चुकी है और अगर दो साल की घटनाओं पर गौर किया जाये, तो 33 शिकायतें रैगिंग की मिली हैं। इसमें इंजीनियरिंग कॉलेज भी शामिल हैं। अक्सर कॉलेजों में सीनियर छात्र जूनियर छात्रों को तरह-तरह से रैगिंग के नाम पर प्रताडि़त किया जाता है। यहां तक कि शारीरिक प्रताड़ना भी की जाती है।
रैगिंग का क्रूर रूप थम नहीं रहा :
राज्य में रैगिंग का क्रूर रूप थम नहीं रहा है। हर एक महीने में कोई न कोई घटना रैगिंग की सामने आ रही है। इसे रोकने के लिए किसी भी स्तर पर कोई सार्थक पहल नहीं हो रही है। यहां तक कि छात्र-छात्राएं प्रताडि़त होते रहते हैं और कॉलेज प्रबंधन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। रैगिंग के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर मप्र चौथे पायदान पर आ गया है। इस मामले में मध्यप्रदेश ने महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार को भी पीछे छोड़ दिया है। नेशनल एंट्री रैगिंग हेल्पलाइन ने जून 2009 से लेकर अगस्त 2013 तक के जो आंकड़े जारी किये हैं उसमें मध्यप्रदेश से रैगिंग की 168 की शिकायतें सामने आई हैं। वर्ष 2013 में ही 26 शिकायतें दर्ज की गई। इसे राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि रैगिंग की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश में अब तक रैगिंग निषेध कानून नहीं बनाया गया है, जबकि पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों में यह कानून बन चुका है। समय-समय पर शिक्षा विदों ने राज्य सरकार को रैगिंग रोकने के लिए कानून बनाने के लिए पहल भी की। इसके बाद भी सरकार की तरफ से कोई कदम नहीं उठाये गये। अब शायद एक छात्रा अनीता शर्मा के आत्महत्या के बाद सरकार की नींद खुले और कानून बनाने में ध्यान दिया जाये।
''मप्र की जय हो''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
EXCILENT BLOG