भले ही मध्यप्रदेश की सरकार बार-बार दावा करें कि उन्होंने सड़कों की शक्ल बदल दी है, लेकिन बारिश ने तो फिर एक बार सड़कों की कलई खोल कर रख दी है। जहां-तहां सड़कों पर गहरे गड्डे हो गये हैं, गड्डों के जख्म से वाहन चालक हरपल आहत हो रहे हैं। न तो उन्हें इससे कोई राहत मिल रही है और न ही कोई इसका विकल्प है, बल्कि गड्डों के बीच अपनी गाड़ी निकालने में ही भलाई है। मप्र में सड़कों को लेकर सरकार खूब सपने दिखाती है। जिस पर लोक निर्माण विभाग भी हर दिन नये-नये प्लान बनाते हैं। इस प्लान के लिए राशि की मंजूरी के लिए मंत्रालय में फाइलें घूमती रहती हैं। सड़कों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। पिछले वर्ष बारिश के बाद व्यापक स्तर पर सड़कों की मरम्मत का अभियान चलाया गया था। यह अभियान मई माह तक चला था, पर जून में इस बार जोरदार बारिश हुई जिसके फलस्वरूप जो अभियान चला वह सब पानी में बह गया। इस बात की भनक लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों को भी थी, पर सरकार का दबाव ऐसा था कि इंजीनियरों को सड़कों की मरम्मत के लिए मैदान में उतरना ही पड़ा। अब फिर सड़कों की हालत एक बार जस की तस हो गई है। ऐसी स्थिति में विभाग इस बात को लेकर परेशान है कि फिर से बजट राशि का कटोरा लेकर सरकार के पास जाना पड़ेगा और मरम्मत के लिए पैसा मांगना पड़ेगा। जिसके बाद सरकार की डांट विभाग को मिलना तय है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने एक बार फिर से लोनिवि के अफसरों को सड़कों की मरम्मत के लिए खूब डांटा फटकारा है और उन्हें सड़कों की मरम्मत करने के निर्देश दिये हैं। दुखद स्थिति यह है कि जो भी काम होना है, वे बारिश के बाद होंगे और बारिश अभी अगस्त महीने तक और होनी है। ऐसी स्थिति में विभाग के इंजीनियर सड़कों की मरम्मत भी नहीं कर सकते हैं।
सितंबर महीने में आचार संहिता लग जायेगी और सड़कों का हाल दिन प्रतिदिन बेहाल होगा और विभाग के इंजीनियर अपने-अपने हाथ खड़े कर देंगे। ऐसी स्थिति में सिर्फ सरकार डांट फटकार ही पायेगी। आम आदमी को फिर से टूटी फूटी सड़कों पर ही चुनाव अभियान के दौरान सफर करने को मजबूर होना पड़ेगा।
''मप्र की जय हो''
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