मध्यप्रदेश के लोकायुक्त पीपी नावलेकर अपनी नियुक्ति के बाद से कभी भी सरकार पर बरसे नहीं और न ही शिकायतों पर गंभीरता दिखाई। यहां तक कि विपक्ष लोकायुक्त की एकतरफा कार्यवाही पर सवाल उठाता रहा, लेकिन लोकायुक्त नावलेकर बार-बार यही कहते रहे हैं कि वे नियमानुसार कार्यवाही कर रहे हैं। लोकायुक्त की भूमिका को लेकर कई बार टकराहट की स्थिति बनी है। विपक्ष तो लोकायुक्त पर विश्वास ही नहीं करता है, जो स्वयंसेवी संगठन हैं, वे भी लोकायुक्त पर सवाल खड़े करते रहे हैं। यही वजह है कि विपक्ष ने भाजपा सरकार के मंत्रियों के खिलाफ जो भी शिकायतें दी, वे दो कदम आगे भी नहीं बढ़ पाई। अब अचानक लोकायुक्त पीपी नावलेकर को भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्सा आ गया है। पहली बार उन्होंने अपनी नाराजगी सरकार के खिलाफ जारी की है। लोकायुक्त के गुस्से से सरकार भी परेशान हो गई थी। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने दौरे कार्यक्रम के बीच समय निकालकर आला अधिकारियों से लोकायुक्त की नाराजगी का कारण पूछा था। तब उन्हें यह बताया गया कि लोकायुक्त ने कुछ प्रस्ताव भेजे थे, जो कि सामान्य प्रशासन विभाग और वित्त विभाग की फाइलों में उलझे हुए हैं। मुख्यमंत्री ने लोकायुक्त के प्रस्तावों को नये सिरे से विचार करने के निर्देश दे दिये हैं, लेकिन दिलचस्प यह है कि लोकायुक्त नावलेकर अपने प्रस्तावों को मंजूरी नहीं मिलने से नाराज नहीं हैं। इसके पीछे कोई और बड़ी वजह है। अमूमन लोकायुक्त नावलेकर राज्य सरकार के खिलाफ तीखी टिप्पणियां नहीं करते हैं पर पहली बार 12 अगस्त को नावलेकर ने इंदौर में पत्रकारों के सामने न सिर्फ अपनी लाचारी जाहिर की बल्कि लोकायुक्त की सक्रियता से कार्यवाही न करने पर अफसोस जाहिर किया। उन्होंने तो यह तक कह दिया कि मंत्रियों के खिलाफ सरकार दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराती है, तब तो लोकायुक्त के हाथ बंधे होना स्वाभाविक है। उन्होंने माना कि मंत्रियों के खिलाफ चार्जशीट इसलिए दाखिल नहीं हो पा रही है कि संबंधित विभागों के दस्तावेज नहीं मिल रहे हैं। मेरे भी हाथ बंधे हैं। मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही में सरकार की मंजूरी आवश्यक है। इन मामलों में सरकार को स्वीकृति देना या न देना यह उसका मामला है। हम यानि लोकायुक्त तो सिर्फ चिट्ठियां लिख सकते हैं। नावलेकर ने पहली बार यह भी कहा कि मैं किसी दबाव में काम नहीं कर रहा हूं और न ही दबाव में आऊंगा। लोकायुक्त की नियुक्ति तो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अनुशंसा पर 6 सालों के लिए होती है, मेरा कार्यकाल तय है। जब सरकार मेरी नियुक्ति नहीं करती है, तो मैं दबाव में क्यों रहूंगा। ऐसे तीखे बाणों से भाजपा सरकार का घायल होना स्वाभाविक है। सरकार ने भी आनन-फानन में लोकायुक्त की नाराजगी जाननी चाही है अब उस पर कितना पर्दा डला है यह तो वक्त ही बतायेगा।
10 मंत्रियों के खिलाफ जांच :
अक्सर लोकायुक्त की कार्यवाही पर यह सवाल तेजी से उठता रहा है कि वे अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ तो कार्यवाही कर देते हैं, लेकिन मंत्रियों और आईएएस अफसरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं हो पाती है। इस पर लोकायुक्त नावलेकर फरमाते हैं कि फिलहाल तो मप्र में 10 मंत्रियों के खिलाफ जांच चल रही है। इन मंत्रियों के संबंधित विभागों से दस्तावेज नहीं मिल पा रहे हैं जिसके फलस्वरूप जांच में देरी हो रही है। उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया के तहत दस्तावेज हासिल करने के लिए चिट्ठियां ही लिखी जा सकती हैं, जो कि लगातार लोकायुक्त कार्यालय लिख रहा है। अब मीडिया को इस बात का दबाव बनाना चाहिए कि मंत्रियों के कागज सरकार उपलब्ध कराये। दिलचस्प यह है कि लोकायुक्त नावलेकर की नियुक्ति को लगभग चार साल हो गये हैं और वे कभी भी भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्से में नहीं दिखे हैं। कई बार विपक्ष ने उन पर तीखे बार किये, इसके बाद भी नावलेकर शांत रहे हैं। इन चार सालों में उनके कार्यकाल में 129 छापे पड़े जिसमें 260 करोड़ की सम्पत्ति उजागर हुई। इसमें रिश्वत के 590 मामले पकड़े गये और 58 लाख की रिश्वत की राशि जप्त की गई। कुल मिलाकर लोकायुक्त महोदय एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार विवाद कितना रंग लायेगा, यह तो सरकार की हलचल से ही पता लग रहा है, लेकिन चुनावी मौसम में अगर लोकायुक्त महोदय बार-बार अपनी नाराजगी दिखायेंगे, तो सरकार के लिए यह खतरे की घंटी होगी।
''मप्र की जय हो''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
EXCILENT BLOG