गुरुवार, 27 जून 2013

भींख मांगने पर विवश दलित महिला सरपंच

       बार-बार दलित वर्ग को मुख्‍यधारा में लाने के बड़े-बड़े सपने राज्‍य सरकार दिखाती है। इसके बाद भी दलित वर्ग जस का तस है। कहीं-कहीं दलितों के जीवन में बेहतर बंयार आई है, लेकिन इसका प्रतिशत बेहद कम है। इससे विपरीत स्थितियां यह है कि आज भी राज्‍य में दलितों का उत्‍पीड़न अनवरत जारी है। न तो उनकी सुनवाई थानों में होती है और न ही जिला प्रशासन गौर करता है। जब ज्‍यादा शोरगुल मचता है, तब प्रशासन का ध्‍यान आकर्षित होता है। राज्‍य सरकार ने पंचायत चुनाव में दलित वर्ग को आरक्षण तो दे दिया और उस वर्ग की महिला सरपंच भी चुन ली गई, लेकिन अधिकार के नाम पर सिर्फ झुन-झुन पकड़ाया गया। इसका दुखद परिणाम यह हुआ कि कई महिला सरपंच तो अपने घरों में कैद होकर रह गई और जो सचिव ने कह दिया उसी पर अगूंठा लगाया जा रहा है1 ऐसी भी महिला सरपंच है, जो कि सरपंच बनने के बाद उन्‍हें नहीं मालूम है कि उनके क्‍या अधिकार है और उन्‍हें क्‍यों चुना गया है। मालवांचल के दमोह जिले में एक दलित महिला सरपंच भीख मांगकर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रही है। यह महिला सरपंच दमोह जिले के हटा जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत बछामा की दलित महिला सरपंच रजनी बंसल है। इस गांव की आबादी 1500 है और यह दमोह जिले से 75 किमी दूर स्थित गांव है। इस गांव के लोग रोटी-रोटी के लिए वन संपदा और काश्‍तकारी पर निर्भर है। महिला सरपंच अपने छोटे बच्‍चों के पेट भरने के लिए सुबह से भींख मांगने के लिए गांव में निकल जाती है और भींख मांगकर ही अपने परिवार का गुजर बसर कर रही है। वह अशिक्षित है, तो उन्‍हें मालूम भी नहीं है कि आखिरकार उन्‍हें सरपंच क्‍यों बनाया गया है और उनके क्‍या अधिकार हैं। अब तो सरपंच के पति संतोष से भी गांव वाले मजदूरी नहीं कराते हैं। इस विषम परिस्थिति में दलित महिला सरपंच के सामने गांव भर में भीख मांगने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं है। यही वजह है कि दलित महिला सरपंच दिन में भींख मांगकर अपना गुजर बसर कर रही है, क्‍योंकि उसे रोजगार भी नहीं मिल रहा है। इस दलित महिला सरपंच का घर भी टूटा-फूटा है, बिस्‍तर के नाम पर कुल तीन कंबल है, वे भी दूसरों ने दया दिखाकर दिये हैं। रहने के लिए छोटा-मोटा घर है, जो झोपड़ीनुमा हैं। दलित महिला सरपंच रजनी बंसल कहती हैं कि सरकारी फरमान के चलते राष्‍ट्रीय पर्व के दौरान तिरंगा झंडा तो उन्‍हीं ने फहराया था, लेकिन जो लोग कार्यक्रम में मौजूद थे उनके साथ कुर्सी पर नहीं बैठाया। दुखद पहलू यह है कि हटा जनपद पंचायत के सीईओ आनंद शुक्‍ला को यह मालूम है कि दलित महिला सरपंच भींख मांगकर गुजारा कर रही है और उन्‍होंने उसे स्‍कूल में खाने बनाने की जिम्‍मेदारी दी थी, लेकिन इस काम से भी गांव वालों ने दूर ही रखा। इसके चलते महिला सरपंच भीख मांगकर अपने परिवार का जैसे-तैसे पेट भरने को विवश है। 
आखिर वंचित के साथ कब तक अन्‍याय : 
       यह समझ से परे है कि मप्र में वंचित और उपेक्षित दलित वर्ग के साथ उत्‍पीड़न की प्रक्रिया लगातार जारी है। किसी न किसी माध्‍यम से दलित वर्ग के साथ अन्‍याय हो रहा है। न तो दलितों को अभी भी मंदिर में प्रवेश आसानी से मिल रहा है और न ही दलित वर्ग के नौजवान शादी के दौरान घोड़ी पर संवारी करके अपने मुहल्‍ले में शान से बारात भी नहीं निकाल पा रहे हैं। महिला सशक्तिकरण के नाम पर दलित महिलाओं को सरपंच बनाने की जिम्‍मेदारी तो दे दी गई, लेकिन चुनावी प्रक्रिया पूरी होने के बाद दलित वर्ग को ऐसे दरकिनार किया जाता है, जैसे दूध से मक्‍खी निकाल दी गई हो। मप्र में यह प्रसंग दलित महिला सरपंच का इकलौता नहीं है, बल्कि राज्‍य के हिस्‍से में कई दलित महिला सरपंच मजबूरी में मजदूरी करके अपना गुजर-बसर कर रही हैं और जब पंचायत का सचिव चाहता है, तब वहां हस्‍ताक्षर कर देती हैं। इसका दुखद पहलू यह है कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास के अधिकारी ग्रामीण क्षेत्र के दौरे पर होते हैं, तो वे यह पता करने की कोशिश ही नहीं करते हैं कि आखिरकार महिला प्रतिनिधि कैसे काम कर रही हैं। वे तो निर्माण कार्य का आंकलन करते हैं और कहीं नदी किनारे पिकनिक मनाते हैं और वापस भोपाल आकर अपनी रिपोर्ट सौंप देते हैं। इसी के चलते लगातार दलित वर्ग की महिलाएं उत्‍पीड़न की शिकार हो रही हैं, जिसे कोई रोक नहीं पा रहा है। न तो राजनीतिक संगठन और न ही स्‍वयंसेवी संगठन इस पर गौर कर रहे हैं। 
                                   ''मप्र की जय हो''

गुरुवार, 13 जून 2013

पटरी पर लाई जा रही स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं

         मध्‍यप्रदेश की स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं आईसीयू में पहुंच गई हैं, न तो अस्‍पतालों में समय पर चिकित्‍सक मिलते हैं और न ही मरीजों को इलाज मिल पा रहा है। दवाईयों के लिए मरीजों को दर-दर भटकना पड़ रहा है, तब जाकर राहत मिलती है यानि राज्‍य की स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यवस्‍था एकदम चरमरा गई है। इस व्‍यवस्‍था में सुधार करने के लिए विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्‍ण ने अब एक वीड़ा उठाया है। उन्‍होंने अपने डेढ़-दो साल के कार्यकाल में सबसे पहले तो मंत्रालय में बैठक अस्‍पतालों का आकलन किया और फिर उनकी मॉनिटरिंग शुरू की। इसके बाद उन्‍होंने अब जमीनी तस्‍वीर से रूबरू होने का अभियान छेड़ दिया है। पिछले महीने वे ग्‍वालियर चंबल अंचल में थे, जहां उन्‍होंने सरकार अस्‍पतालों का आकस्मिक निरीक्षक किया, तो ढेरो अव्‍यवस्‍थाएं मिली। जिसके चलते उन्‍होंने करीब एक दर्जन से अधिक चिकित्‍सकों को निलंबित कर दिया था। ढेरो कर्मचारियों पर कार्यवाही की गाज गिरी है। अब उनकी निगाह भोपाल के अस्‍पतालों पर पड़ी है। वे 12 जून को सबसे पहले जेपी अस्‍पताल में पहुंचे और वहां के हालात देखकर गुस्‍से से आग-बबूला हो गये। विभाग के प्रमुख सचिव कृष्‍ण ने जमकर चिकित्‍सकों को खरी-खोटी सुनाई, वे न सिर्फ 1250 अस्‍पताल पहुंचे, बल्कि उन्‍होंने काटजू अस्‍पताल और कोलार अस्‍पताला का भी आकस्मिक निरीक्षण किया। वे उस समय आश्‍चर्यचकित हो गये, जब उन्‍हें पता चला कि अस्‍पताल में बिजली गुल होने पर टार्च की रोशन में ऑपरेशन किये जाते हैं। इस पर उन्‍होंने अस्‍पताल प्रबंधन को जमकर फटकार लगाई। उन्‍होंने कहा कि अगर अस्‍पताल में टार्च की रोशन में ऑपरेशन होते हैं तो इससे विभाग की छवि धूमिल होती है। जब वे ऑपरेशन थियेटर में पहुंचे तो छत से पानी टपक रहा था। इस पर भी वे खफा हुए। कुर्सियों पर से डॉक्‍टर नदारद थे। उन्‍होंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि प्रदेश में स्‍वास्‍थ्‍य का बजट 5 हजार करोड़ है। इसमें से ढाई हजार करोड़ रूपये डॉक्‍टरों और कर्मचारियों के वेतन पर खर्च हो जाता है। इसके बाद भी डॉक्‍टर शासन के आदेशों की बार-बार अवहेलना कर रहे हैं अब यह बर्दाश्‍त नहीं किया जायेगा। डॉक्‍टरों को ईमानदारी से काम करना चाहिए, अन्‍यथा उन्‍हें नौकरी छोड़ देना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पांच हजार करोड़ खर्च कर हम माताओं और बच्‍चों को मरता नहीं देख सकते। जब वे कोलार अस्‍पताल पहुंचे, तो उसकी स्थिति देखकर उन्‍होंने कहा कि यहां तो एक मिनिट रूकना भी शर्मनाक है। इससे घटिया अस्‍पताल कोई नहीं हो सकता है। 30 जुलाई तक इस अस्‍पताल की शक्‍ल बदली जाये। जब वे मिसरौद पहुंचे तो वहां अस्‍पताल में मात्र छह मरीज भर्ती थे और डॉक्‍टर नदारद थे। इस पर उन्‍होंने मेडीकल ऑफीसर और 18 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। इसके साथ ही एनआरएचएम मिशन के डॉक्‍टर एम गीता भी काटजू अस्‍पताल पहुंची और वहां की व्‍यवस्‍थाएं देखकर खूब नाराज हुई। उन्‍हें तब आश्‍चर्य हुआ, जब छोटे से कुकर में दाल पक रही थी। लेबर रूम में टूटी-फूटी टेबिले रखी थी। उन्‍होंने जब अस्‍पताल का किचिन देखा तो हैरान हो गई और उन्‍होंने खाना पकाने वाली एजेंसी का ठेका निरस्‍त कर दिया।
           निश्‍चित रूप से विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्‍ण बधाई के हकदार हैं कि वे कम से कम सरकारी अस्‍पतालों की वास्‍तविकता से रूबरू हो रहे हैं, क्‍योंकि गरीबों के लिए अब यही मात्र सहारा रह गया है और उन्‍हें वहां भी सुविधाएं नहीं मिल रही है, क्‍योंकि गरीब आदमी को महंगे-महंगे नर्सिंगहोम में इलाज कराने की स्थिति नहीं है, वे तो आज भी सरकारी अस्‍पतालों पर निर्भर हैं और वहां भी सुविधाएं खत्‍म सी हो गई हैं। कम से कम प्रवीर कृष्‍ण गरीबों के हित में एक बड़ी मुहिम छेड़े हुए हैं यह विभाग के लिए एक शुभ संकेत है। 
                                          ''मप्र की जय हो''

मंगलवार, 11 जून 2013

प्रदेश की संपदा पर किसका कब्‍जा

        बार बार प्रदेश की प्राकतिक संपदा पर माफिया की नजर पडने की आशंका एवं कुशंका प्रकट की जा रही है इसके बाद भी न तो सरकार जागी और न ही नौकरशाही पर फर्क पडा है जिसका परिणाम यह रहा है कि जंगल, खनिज सहित आदि संपदा के दोहन पर ऐसी निगाहें गढ गई है कि अब तो माफिया को कोई रोकने जाता है तो फिर उन पर हमले होने लगते है, जंगल और खनिज विभाग के अधिकारियों पर बार बार हमलों की घटनाएं हो रही है इन्‍हें रोकने पर कभी आधिकारिक स्‍तर पर विचार तक नहीं हुआ है और न ही इस बात पर चिंतन मनन किया गया है कि आखिरकार इस संपदा को कैसे बचाया जाए, मप्र में प्राकतिक संपदा का अपार भंडार है पर उसका प्रदेश हित में उपयोग कम ही हो रहा है बल्कि माफिया ज्‍यादा उपयोग कर रहा है, खनिज विभाग को लेकर कैग जो रिपोर्ट जारी की है वह चौकाने वाली है, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खनिज महकमे की लापरवाही के चलते शासन को ढाई हजार करोड का नुकसान खजाने को हुआ है, विभाग को कुल नुकसान 2627 करोड हुआ है जबकि विभाग ने वसूली 277 की है यानि विभाग को नुकसान 2350 करोड का हुआ है, ऐसा नहीं है कि विभाग को खनिज से चपत पहली बार लग रही है इससे पहले के वर्षो में भी यह चपत लगती रही है, इसके साथ ही जंगल की अवैध कटाई का दौर भी थमा नहीं है इस पर तो माफिया की ऐसी निगाह पडी है कि वह पलटकर देखना ही नहीं चाहता है, माफिया के पैर जगल और खनिज पर तेजी से फैल रहे है इन्‍हें रोकने पर कोई विचार किसी भी स्‍तर पर नहीं हो रहा है, शायद यह स्थितियां बनती और बिगडती रहे और हमारी संपदा दूसरों के हाथों में लुटती रहे ।
                                               जय हो मप्र की

रविवार, 9 जून 2013

आदिवासी युवतियों का गर्भ परीक्षण से फिर कन्‍यादान योजना कटघरे में

                एक बार फिर से कन्‍यादान योजना को लेकर बवाल खडा हो गया है, इस योजना के अंतर्गत आदिवासी इलाके में आदिवासी युवतियों का गर्भपरीक्षण करा लिया है जिससे सत्‍तापक्ष् और विपक्ष बेहद खफा है, यहां पर कौमार्य परीक्षण किया गया है वहां आदिवासियों के देवताओं का वास है इस प्रसंग से एक बार फिर से योजनाओं पर अफशरशाही हावी होने का खुलासा हो गया है, आखिर उन अफसरों की हिम्‍मत कैसे हो गई कि वे आदिवासियों युवतियों का कन्‍यादान योजना के तहत होने वाले विवाह कार्यक्रम से पहले कौमार्य परीक्षण कराएं, आखिरकार इसके पीछे की मंशा क्‍या थी, यह समझ से परे है, हो सकता है कि अधिकारियों को लगा हो कि आदिवासी युवती और युवक गांव में साथ साथ  रहते, काम करते है तो कहीं कोई युवती गर्भवती तो नहीं है इसके चलते परीक्षण का निर्णय ले लिया गया हो पर फिर भी उस अधिकारी की हिम्‍मत कैसे हो गई, यह सब आदिवासियों के जीवन से खिलवाड करने के लिए क्‍यों होता है, यह सवाल तेजी से उठ रहा है, सरकार ने सारे मामले को गंभीरता से लिया है, जांच के आदेश हो गए है, कलेक्‍टर ने भी जांच कराने का फरमान दिया है।
         आदिवासी युवतियों का गर्भपरीक्षण - यह शर्मनाक घटना मप्र के आदिवासी बाहुल्‍य गांव बैतूल जिले के चिचौली विकासखंड के हरदू गांव में जून के प्रथम सप्‍ताह में हुई है, जहां पर मुख्‍यमंत्री कन्‍यादान योजना के तहत सामूहिेक विवाह में 400 से ज्‍यादा आदिवासी युवतियों का गर्भपरीक्षण कराने का मामला सामने आया है जांच की प्रक्रिया शुरू - बैतूल जिले में कलेक्‍टर राजेंश प्रसाद मिश्रा है जो कि प्रमोटी है उन पर वल्‍लभ भवन में सत्‍कार घोटाले का आरोप लग चुका है कलेक्‍टर महोदय ने प्रशिक्षुक आईएएस अधिकारी को जांच का जिम्‍मा दिया है, उधर सामाजिक न्‍याय मंत्री गोपाल भार्गव ने विभाग की अपर मुख्‍य सचिव अरूणा शर्मा को पूरे मामले की जांच के आदेश दिए है, यूं तो भार्गव इस घटना से बेहद दुखी और आहत है, यह बात वे अधिकारियों के समक्ष बयां भी कर चुके है, घोडा डोंगरी की विधायक गीता उईके भी गुस्‍से में है वे इस मामले की शिकायत सीएम चौहान से कर चुकी है, उनका कहना है कि वे अधिकारी सामने आने चाहिए जिनके आदेश पर यह शर्मनाक घटना हुई और उन पर कार्रवाई भी की जानी चाहिए। विवादों में योजना कन्‍यादान योजना - मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का डीम प्रोजक्‍ट मुख्‍यमंत्री कन्‍यादान योजना किसी न किसी वजह से विवादों के घेरे में आ रही है हाल ही में एक जिले में नकली मंगलसूत्र ही बांट दिए गए, वहीं योजना के तहत जो बर्तन दिए जाते है उनमें क्‍वालिटी घटिया होने की शिकायतें मिल रही है, इसके बाद भी विभाग की नींद नहीं खुली है अब विभाग ने नए सिरे से कन्‍यादान योजना पर गौर किया है, वैसे तो इस योजना को लेकर जब सीएम गंभीर है तो अधिकारियों को तो और जागरूक होकर योजना को आकार देना चाहिए पर ऐसा हो नहीं हो रहा है हर तरफ लूट का पैमाने चल रहा है, ऐसी स्थिति में अधिकारियों ने आदिवासियों युवतियों का कौमार्य परीक्षण ही करा दिया जिसकी जितनी निंदा की जाए वे कम होगी क्‍योंकि यह राज्‍य के लिए शर्मनाक है।
                                                               मप्र की जय हो

शुक्रवार, 7 जून 2013

मध्‍यप्रदेश में विधानसभा उम्‍मीदवारों के चयन को लेकर रस्‍सा-कस्‍सी

                    फिलहाल तो चुनावी मुद्दों पर राजनैतिक दलों में एक-दूसरे पर जमकर बयानबाजी हो रही है। इसके अलावा राजनैतिक दल भीतर ही भीतर अपने उम्‍मीदवारों के चयन की प्रक्रिया भी पर्दे के पीछे चलाये हुए हैं। भाजपा और कांग्रेस के प्रयास हैं कि जल्‍द से जल्‍द उम्‍मीदवारों का चयन हो जाये, ताकि उम्‍मीदवारों को क्षेत्र मे जाने का भरपूर मौका मिल सके। भाजपा ने तो कई स्‍तरों पर सर्वे कराये हैं उसके आधार पर वर्तमान विधायकों के टिकट काटने पर मंथन भी हो रहा है। करीब 70 से 90 सीटें बदलने पर विचार चल रहा है। भाजपा इस पहलू पर भी गौर कर ही है कि जो सीटे बदली जायेगी उसमें बगावत किस स्‍तर तक हो सकता है और चुनाव में क्‍या नुकसान हो सकता है। इसके साथ ही पिछले महीने मुख्‍यमंत्री ने विधायकों के साथ वन टू वन चर्चा की थी जिसमें उन्‍होंने कमजोर विधायकों को दो माह का और समय दिया था कि वे अपने क्षेत्र में सुधार कर लें, ताकि स्थितियां बदली जा सकें। सूत्रों का कहना है कि विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में बदलाव की कोशिश की है, लेकिन जितने परिणाम मिलने चाहिए, उस हिसाब से नहीं मिल पाये हैं, ऐसी स्थिति में भाजपा में विधायकों के टिकट बदलाने के आसार प्रबल हो गये हैं। दस साल से विपक्ष की भूमिका अदा कर रही कांग्रेस ने भी चुनाव अभियान शुरू होने से पहले ही टिकट वितरण करने का इरादा कर लिया है। कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी कह चुके हैं कि जुलाई माह में 100 टिकट वितरित कर दिये जायेंगे। इस बात की पुष्टि एक जून को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी हो गई है। केंद्रीय मंत्री कमलनाथ भी कह चुके हैं कि जुलाई माह तक 100 टिकट बांट दिये जायेंगे। इन टिकटों पर राहुल गांधी ने विशेष काम किया है। उन्‍होंने कई स्‍तरों पर सर्वे कराये हैं और इसमें वर्तमान विधायक भी शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस 66 में से लगभग 55 विधायकों को फिर से मौका देना चा‍हती है, जो विधायक विधानसभा में निष्क्रिय रहे हैं अथवा क्षेत्र में भी अपनी उम्र के कारण सक्रिय नहीं हो पाये हैं उन्‍हें घर बैठाने की योजना है। दूसरी ओर राहुल गांधी की मंशा है कि आदिवासी बाहुल्‍य इलाकों के उम्‍मीदवारों की सूची भी जुलाई अंत या अगस्‍त के प्रथम सप्‍ताह तक घोषित कर दी जाये। कांग्रेस में टिकटों की कवायद पर्दे के पीछे जमकर चल रही है। न सिर्फ वे सर्वे को आधार मान रहे हैं, बल्कि आउटसोर्सिग संभावनाओं पर भी नामों को तलाशा जा रहा है। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस जुलाई माह में 100 टिकटों की घोषणा कर देगी। राजनीतिक दलों में टिकटों को लेकर फिलहाल पब्लिकली तो रस्‍सा-कस्‍सी नहीं दिख रही है, लेकिन पर्दे के पीछे जबर्दस्‍त मुहिम चल रही है, जिसके परिणाम जल्‍द ही सामने आयेंगे। 
                                    ''मप्र की जय हो''

बुधवार, 5 जून 2013

उमा भारती की राजनीति - कोई न जाने

       साध्‍वी से राजनीति में प्रवेश करने वालीउमा भारती के नाम कई रिकार्ड दर्ज हो चुके है, मध्‍य प्रदेश की पहली महिला मुख्‍यमंत्री बनने का रिकार्ड बनाने वाली उमा भारती की राजनीति को कोई नहीं जान पाया है, वे कब क्‍या बोले और किसके साथ कैसा सलूक कर दें कोई विश्‍वास नहीं करता है, अभी एक सप्‍ताह पहले तो वे भाजपा की ग्‍वालियर में हुई कार्यसमिति एवं भाजपा पालक  संयोजक महासमागम में नहीं बुलाए जाने पर खफा थी, अचानक धार्मिक यात्रा पर निकल गई थी पर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके जिले में मुख्‍यमंत्री अन्‍नापूर्ण योजना और अटल ज्‍योति अभियान में शिरकत करके उमा भारती की नाराजगी दूर कर दी , यहां तक कि उमा भारती ने भी चौहान के काम काज जमकर प्रशंसा करते हुए यह वादा भी कर दिया कि वे विधानसभा चुनाव में जो पार्टी कहेगी उसका पालन करेंगी इस पर चौहान ने उमा भारती की तारीफ करने को कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया है उन्‍होंने तो यह तक कह दिया कि वे उमा भारती के हर वादे को पूरा कर रहे है,उमा ने तिरंगे की शान के लिए मुख्‍यमंत्री पद छोड दिया था यानि उमा महान राजनेता है इस बयान बाजी के दूसरे रोज ही उमा ने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी कि ग्‍वालियर में उन्‍हें नहीं बुलाकर उनकी उपेक्षा की गई,  वे बुंदेलखंड तक अपने आप को सीमित रखेगी, यह भी कह दिया कि जब ग्‍वालियर बुलाया ही नहीं है तब क्‍यों जाती,उमा को इस बात का अफसोस है कि उन्‍हें ग्‍वालियर नहीं बुलाया गया है, इससे पहले भी भाजपा संगठन ने चुनाव अभियान के लिए जो भी समितियां बनाई है उसमें उमा भारती को कहीं भी प्रवेश नहीं मिल पाया है,  न ही उनके समर्थकों को स्‍थान मिला है, यूं तो भाजपा की राजनीति इन दिनों मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के आसपास ही घूम रही है यह दो हस्तियां तय कर रही है कि किसको चुनाव अभियान में साथ रखना है अथवा नहीं, अनिल माधव दवे को लेकर यही स्थिति बनी कि उनको साथ रख लिया जाए और चुनाव प्रबंधन का काम सौप दिया जाए पर दवे का स्‍वास्‍थ्‍य साथ नहीं दे  रहा है ऐसी स्थिति में कितना प्रबंधन कर पाएंगे यह तो वक्‍त ही बताएगा, यह सच है कि मप्र की भाजपा राजनीति में नित प्रति भले ही बदलाव नहीं हो रहे हो लेकिन जो निर्णय लिए जा रहे है उसके दूरगामी असर जरूर पार्टी पर पडेंगे इस दिशा मे कोई विचार नहीं कर रहा है जबकि मिशन 2013के लिए सबकों साथ लेकर चलने का तकाजा है यह बात सीएम चौहान महसूस भी करते है और इस अभियान को आगे बढाते है पर कई बार उनके हाथों से भी बात निकल जाती है तब स्थितियां विपरीत होने लगती है।
                                            '' मप्र की जय हो ''

गुजरात से एक कदम आगे बढ़े मध्‍यप्रदेश

            विकास में कौन-सा राज्‍य अव्‍वल है और कौन पीछे हैं ऐसी रैटिंग का कार्य विभिन्‍न एजेंसियां समय-समय पर करती रहती हैं। यह सच है कि मध्‍यप्रदेश अपनी स्‍थापनाकाल से लगातार विकसित राज्‍य की श्रेणी में नहीं आ पाया, लेकिन सन 2000 के बाद से प्रदेश विकास की राह पर तेजी से दौड़ा है। इसके बाद तो 2005-06 में राज्‍य ने विकास के नये सौपान गढ़े हैं। यह सिलसिला अब तेजी से बढ़ चुका है। यह शुभ संकेत है कि राज्‍य का मुखिया ही अब अन्‍य प्रदेशों से विकास में प्रदेश को ऊंचाई पर ले जाने के सपने देख रहा है। निश्चित रूप से मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्‍यप्रदेश के विकास को लेकर नित-प्रति विकास के सपने गढ़े हैं और वे यह कहने में संकोच नहीं करते हें कि मध्‍यप्रदेश को विकसित करना ही उनका जुनून है और इसके विकास के लिए वे हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। इस जुनून का ही परिणाम है कि आज मध्‍यप्रदेश बिजली के क्षेत्र में धीरे-धीरे आत्‍मनिर्भर हुआ है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्‍वयं माना है कि बिजली के मामले में हम गुजरात से ज्‍यादा बिजली हम आम आदमी को दे रहे हैं। सतना में 4 जून को अटल ज्‍योति अभियान का शुभारंभ करते हुए श्री चौहान ने कहा कि गुजरात के किसानों को आठ घंटे बिजली मिल रही है और हम यहां दस घंटे बिजली दे रहे हैं। आने वाले समय में मध्‍यप्रदेश गुजरात से कहीं आगे निकल जायेगा। इस बयान से साफ जाहिर है कि अभी भी शिवराज के मन में यह कसक है कि मध्‍यप्रदेश को तो हर क्षेत्र में आगे आना ही है। हाल ही में भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी ने ग्‍वालियर में भाजपा के महासभागम में शिवराज को मोदी से श्रेष्‍ठ बताया था, जिसके बाद पार्टी में बड़ी अंतरकलह मची थी। आडवाणी का यह कहना कि गुजरात तो स्‍वस्‍थ था और चमत्‍कार तो मध्‍यप्रदेश में हुआ है। उन्‍होंने कहा कि गुजरात और मध्‍यप्रदेश में एक बड़ा अंतर यह रहा है कि गुजरात पहले से स्‍वस्‍थ था और मोदी ने उसे स्‍वस्‍थ से उत्‍कृष्‍ट बना दिया, लेकिन मध्‍यप्रदेश बेहद बीमारू और पिछड़ा राज्‍य था और शिवराज ने इसे स्‍वस्‍थ बनाया। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। उन्‍होने कहा कि आने वाले समय में भारत के नंबर एक विकसित राज्‍यों में मध्‍यप्रदेश होगा। यह उनका सपना है। निश्चित रूप से मप्र विकास के पहिए में तेजी से आगे बढ़ा है। आडवाणी के बाद अब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्‍वराज ने भी मुख्‍यमंत्री चौहान को सर्वगुण सम्‍पन्‍न नेता बताया है। उनमें अहंकार नाम की कोई चीज नहीं है। मुख्‍यमंत्री चौहान की इस प्रशंसा के चलते भाजपा में जबर्दस्‍त विवाद खड़ा हो गया है। गुजरात के मुख्‍यमंत्री बेहद खफा हो गये हैं और उन्‍होंने मप्र के मुख्‍यमंत्री के तारीफ पर राजनाथ सिंह को शिकायत तक कर दी है। इसके बाद तो बयान पर सफाई का दौर शुरू हुआ। सबसे पहले 4 जून को मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मोदी नंबर वन, रमन सिंह नंबर-टू और मैं तो तीसरे नंबर पर हूं। उन्‍होंने कहा कि मोदी मुझसे वरिष्‍ठ हैं बड़े भाई हैं, रमन सिंह भी मुझसे वरिष्‍ठ हैं। नंबर एक या नंबर दो तो छोडि़ए मैं तो तीसरे नंबर पर आता हूं। इस बयान के बाद भाजपा में जो तूफान आया है वह थमा नहीं है, क्‍योंकि आडवाणी के बयान के बाद अब सुषमा स्‍वराज ने भी जो तारीफ की है वह अपने आप में उल्‍लेखनीय है, वहीं दूसरी ओर मुख्‍यमंत्री ने भी दूसरे दिन ही साफ कर दिया है कि मध्‍यप्रदेश बिजली के मामले में गुजरात से आगे हैं। इससे साफ जाहिर है कि विवाद आगे तू पकड़ने वाला है। कुल मिलाकर मप्र के विकास पर बहस होना चाहिए, लेकिन विवाद से बचने की कोशिश करना चाहिए, अन्‍यथा विवाद भविष्‍य में संकट में ही डालते हैं। 
                                    ''मप्र की जय हो''