खुशहाल जिंदगी अपनी आंखों के सामने बदहाल होते देख किसानों और उनके परिवारजनों ने अंतत: जल सत्याग्रह का निर्णय लिया। जिसके फलस्वरूप 15 दिनों से महिला और पुरूष जल सत्याग्रह कर रहे हैं और मप्र की सरकार ने इनकी कोई परवाह नहीं की। जब इस आंदोलन की गूंज दिल्ली तक पहुंची तब जाकर सरकार की नींद खुली और आनन-फानन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी कैबिनेट के दो मंत्रियों कैलाश विजयवर्गीय और विजयशाह को आंदोलनकारियों से चर्चा के लिए भेजा। यह आंदोलन कारी सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के अनुसार जमीन के बदले जमीन चाहते हैं जिसके लिए सरकार तैयार नहीं है। गले-गले तक पानी में बैठे किसान और महिलाओं की सांसे अब टूटकर बिखरने लगी हैं। महिलाओं के पैरों में छाले पड़ गये हैं और वह खड़ी नहीं हो पा रही हैं। इसके बाद भी संवेदनहीन नौकरशाही की नींद नहीं खुली है। यह आंदोलन नर्मदा बचाओ से जुड़े कार्यकर्ता कर रहे हैं।
इसलिए हो रहा है जल सत्याग्रह :
नर्मदा नदी के किनारे रहने वाले लोगों को बिना बसाये ही नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध में 189 मीटर से बढ़ाकर 193 मीटर तक पानी भरने का विरोध किया जा रहा है। इसका असर 28 गांवों पर पड़ा है। ओंकारेश्वर बांध में पानी 190.5 मीटर तक पहुंच चुका है। इसका प्रभाव गोगल, कमनखेड़ा जैसे 28 दूसरे गांवों में भी साफतौर पर दिखाई दे रहा है। बढ़ता पानी फसलों को बर्बाद कर रहा है। गांववासियों का कहना है कि उन्हें पुनर्वास के लिए जमीन के बदले जमीन दी जाये, तभी वह आंदोलन खत्म करेंगे। वही राज्य सरकार ने इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर जलाशय में जल भराव के बारे में कहा है कि दोनों परियोजनाओं से संबंधित पुनर्वास का कार्य पुनर्वास नीति के तहत किया जा चुका है। सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट तौर पर वर्ष 2011 में एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा था कि जमीन के बदले जमीन ही दी जाना चाहिए। इसके बाद भी आंदोलनकारियों का कहना है कि पुनर्वास का काम कछुआ गति से चल रहा है। पुनर्वास नीति के तहत जलाशय भरने के छह माह पूर्व प्रभावितों के पुनर्वास का काम पूरा हो जाना चाहिए, जो अब तक नहीं हुआ है। बगैर पुनर्वास किये ग्रामीणों को बेघर किया जा रहा है। सरकार का यह भी तर्क है कि ग्रामीणों को मुआवजा राशि दे दी गई है, मगर वह फिर भी प्रभावित क्षेत्र से हट नहीं रहे हैं, तब क्या किया जाये, लेकिन ग्रामीणजनों का तर्क है कि उन्हें जमीन के बदले जमीन ही चाहिए। हरदा के कलेक्टर सुदामा खाड़े भी स्वीकार करते हैं कि 29 गांव इस बांध के कारण प्रभावित हुए हैं।
भोपाल और दिल्ली में गूंज :
जल सत्याग्रह को लेकर 07 सितंबर को नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस सांसद अरूण यादव की अगुवाई में नई दिल्ली में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री वीरप्पा मोइली से मिलकर विस्थापितों की पीड़ा बताई जिस पर केंद्रीय मंत्री ने राज्य सरकार से तत्काल बात की और सरकार ने दो मंत्रियों को आंदोलन खत्म करने के लिए तैनात कर दिया। आठ सितंबर को बांध से प्रभावित महिला और पुरूषों ने भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर जंगी प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने उनके साथ बदसलूकी की। आलम यह था कि सुबह सात बजे से मुख्यमंत्री निवास को चारों तरफ से पुलिस ने घेर रखा था, जबकि आंदोलनकारी सीएम हाउस से 10 किमी दूर एक पार्क में डेरा डाले हुए थे। इन आंदोलनकारियों से संवाद करने के लिए मंत्रियों ने पहल भी की है, लेकिन वार्ता के नतीजे अभी भी सार्थक नहीं हो रहे हैं, लेकिन जल सत्याग्रह को खत्म करने के लिए सरकार जुट गई है। मप्र में जल सत्याग्रह का सिलसिला नर्मदा बचाओ आंदोलन ने ही शुरू किया है और इसको चरम तक ले जाने की कला में आंदोलनकारी अच्छे से बाकिफ हैं।
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