हमेशा अपने बयानों के जरिए चर्चा में रहने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपनी मप्र यात्रा के दौरान कांग्रेस राजनीति में एक बयान से भूचाल ला दिया है। उन्होंने 02 सितंबर को इंदौर में यह कहकर कांग्रेस में खलबली मचा दी है कि अगर आलाकमान केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद के उम्मीद्वार के रूप में उतारता है तो वह उन्हें समर्थन करेंगे। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के इस बयान में कांग्रेस की अंदरूनी सियासत को गर्म कर डाला है। अभी तक आलम यह था कि सिंधिया और दिग्विजय के बीच हमेशा बयानों के जरिए एक-दूसरे पर तीर चलाये जाते थे। दिग्विजय द्वारा सिंधिया को समर्थन देना कांग्रेस के दिग्गज राजनेताओं की नींद उड़ गई है। यहां दिलचस्प यह है कि वर्ष 2006 से लेकर 2012 के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच राजनीतिक तनातनी खूब चली है। बयानों के जरिए एक-दूसरे के खिलाफ तीर छोड़े गये हैं। यहां तक कि ग्वालियर-चंबल संभाग में दिग्विजय सिंह ने अपने समर्थकों के जरिए सिंधिया शिविर को कमजोर करने की कोशिश भी की है। इस सब के बाद भी सिंधिया के पक्ष में अचानक दिग्विजय सिंह का उतरना राजनेताओं को रास नहीं आ रहा है। सूत्रों का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2011 में कांग्रेस संगठन और विधायक दल पर अपने खास समर्थकों को पदों पर बैठाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया उनकी पसंद है। यहां यह भी चौंकाने वाली बात हैं कि सिंधिया लगातार पिछले दो माह से अपनी प्रदेश यात्रा के दौरान यह राग आलाप रहे हैं कि वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, बल्कि इस पद के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया उपयुक्त उम्मीदवार हैं। सिंधिया ने भूरिया के पक्ष में दो-तीन बार बयान दिये हैं। इसके चलते दिग्विजय खेमा भी विभाजित हो गया था।
भले ही कांग्रेस संगठन में अभी जान पैदा करने में भूरिया नाकाम रहे हों, लेकिन मुख्यमंत्री पद की लड़ाई पार्टी में शुरू हो गई है। बड़े नेता राज्य की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं, लेकिन कुछ नेता मुख्यमंत्री पद को लेकर जबर्दस्त लॉविंग कर रहे हैं। इससे कांग्रेस की राजनीति में गरमाहट तो हैं, लेकिन उसके क्या परिणाम होंगे यह तो भविष्य ही बतायेगा।
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