जब पूरे देश के साथ-साथ मध्यप्रदेश में भी महिलाओं को ताकतवर बनाने की पहल हो रही है उस दौर में राज्य के आदिवासी अंचलों में महिलाओं की आबरू का सौदा खुलेआम पुरूष पंचायतों में किया जा रहा है। न तो पुलिस कोई कार्यवाही कर रही है और न ही अभी तक सरकार की नींद खुली है। यह सच है कि दिल्ली गैंगरेप हादसे के बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं के हित में एक दर्जन से अधिक घोषणाएं की है उनमें से आधी घोषणाएं जमीन पर उतर चुकी हैं, लेकिन उसका दूसरा भयानक पहलू सामने आया है वह चौकाता है। आज भी आदिवासी अंचलों में जिन महिलाओं की आबरू लुट जाती है, तब कोर्ट के फैसले प्रभावित करने के लिए खुलेआम पुरूष पंचायत होती है और उसमें महिलाओं की आबरू का सौदा हो रहा है। यह सिलसिला वर्षों से आदिवासी अंचलो में चल रहा है। इसके अलावा इन आदिवासी अंचलों की दुखद तस्वीर यह भी है कि इन इलाकों की युवतियों को बहला-फुसलाकर शहरों और महानगरों में बेचा जा रहा है। मानव तस्करी के गिरोह आदिवासी अंचलों में तेजी से अपना वर्चस्व जमा रहे हैं, जो कि दलालों के जरिये भोली-भाली आदिवासी युवतियों को बेचने के कारोबार में शामिल हैं। ऐसे गिरोह बार-बार पुलिस पकड़ चुकी है, फिर भी वे किसी न किसी माध्यम से सक्रिय बने हुए हैं। अब आदिवासी अंचलों का एक भयानक रूप सामने आया है जिसमें मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ, अलीराजपुर, शहडोल, उमरिया आदि इलाकों में पुरूष पंचायतों में अपहरण, बलात्कार या छेड़खानी के मामलों पर सौदा पुरूष पंचायत में होता है। यह पंचायतें तब होती है जब कोई महिला किसी पुरूष के खिलाफ थाने में पहुंच जाती है। आदिवासी इलाकों की महिलाएं पुरूषों की इच्छाओं से जीवन जीने को विवश हो गई हैं। जनजातीय समाज में पुरूष बाहुल्य पंचायतें महिला शोषण की प्रतीक बनकर उभरी हैं। यह पंचायतें महिलाओं की अस्मत का सौदा करने के एवज में न सिर्फ कोर्ट के फैसलों को प्रभावित कर रही है, बल्कि पंच अपने लिय दारू, मुर्गों, बकरों का इंतजाम करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। आदिवासी इलाकों में महिलाओं के साथ छेड़खानी, बलात्कार या अपहरण जैसी घटनाओं में महिला संबंधी अपराध सामने आते हैं,तो पुरूष पंचायतें बैठ जाती हैं और फिर महिलाओं के भविष्य की कीमत तय की जाती है। भोपाल से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में यह सनसनी खेज रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए दावा किया है कि अगर अपहरण के साथ बलात्कार भी शामिल होता है, तो फिर महिला की कीमत डेढ़ लाख पार कर जाती है। यदि सिर्फ बलात्कार हुआ है, तो एक से दो लाख के बीच मामला निपटाया जाता है। छेड़खानी वाले मामले में 30 से 60 हजार के बीच कीमत तय होती है। यहां तक कि न्यायालय तक के फैसले इन पुरूष पंचायतों पर निर्भर करते हैं।
मध्यप्रदेश में महिलाओं को पंचायत एवं नगरीय निकाय में 33 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है। राजनीति में तेजी से महिलाएं अपना वर्चस्व स्थापित कर रही हैं। इसके बाद भी अगर आदिवासी अंचलों में महिलाओं की आबरू का सौदा करने के मामले आ रहे हैं, तो फिर महिलाएं क्यों चुप बैठी हैं यह समझ से परे हैं। यूं भी राजनीतिक दलों से जुड़ी महिला विंग अब थोड़े बहुत धरना प्रदर्शन और राज्यपाल को ज्ञापन देने तक सिमट गई हैं। दुखद पहलू यह है कि हरियाणा की खाफ पंचायतों की तर्ज पर मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचलों में जो पुरूष पंचायतें हो रही है उसमें पीडि़त महिला को इतना मजबूर किया जाता है कि उसकी आबरू का सौदा होने के बाद महिला को न्यायालय में अपना बयान बदलना ही पड़ता है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिसमें मजबूर महिला ने न्यायालय में अपना मामला बदला है और 95 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि आदिवासी अंचलों में तैनात पुलिस को ऐसी पंचायतों की सूचना नहीं है। पुलिस की जानकारी में हैं और वे लगातार जागरूकता अभियान चलाये हुए हैं, लेकिन फिर भी पुरूष पंचायतों का वर्चस्व बना हुआ है और वह लगातार महिलाओं की सौदेबाजी कर रहे हैं।
''मप्र की जय हो''
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