शनिवार, 19 जनवरी 2013

प्रेमी ने धकेला वैश्‍यावृत्ति में तब उसका गर्भ क्‍यों पाले महिला कैदी

           प्रेम क पवित्र रिश्‍ता जब तार-तार हो जाये, तब फिर रिश्‍तों की पवित्रता भी क्‍यों रखी जाये। इसी राह पर इंदौर जेल में विचाराधीन महिला कैदी 35 वर्षीय हल्‍लो बी भी चल पड़ी है। उसने जिस प्रेम की डोर थाम कर अपने जीवन में नये सपने और इरादे गढ़े थे, उन्‍हें प्रेमी ने अपने स्‍वार्थों की खातिर ऐसी राह पर ले गये, जहां वह वैश्‍यावृत्ति के दलदल में जा फंसी। यह घटना दिल दहला देने वाली है, क्‍योंकि 35 वर्षीय हल्‍लो ब ने अपने शोहर और बच्‍चों को इंदौर में छोड़कर अपने प्रेमी के साथ इंदौर में ही पत्‍नी की तरह रहने लगी थी, पर उसे क्‍या पता था कि जिस प्रेमी की खातिर वह अपना घर, द्वार, रिश्‍ते-नाते, बच्‍चों और पति का प्‍यार एवं आंगन लांघकर बाहर निकली थी वह दुनिया उसके लिए खतरनाक साबित हुई। इस प्रेमी ने उसे थोड़े दिन तो अपने प्रेम के मायाजाल में फंसाये रखा, फिर वैश्‍यावृत्ति में उतार दिया, लेकिन हल्‍लो बी को यह मंजूर नहीं था और नवंबर, 2012 में उसने अपने प्रेमी पति को जिंदा जलाकर मार डाला । इसी संगीन आरोप में वह सजा भोग रही है। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। इन दिनों वह जेल में बिना किसी अफसोस के अपना जीवन गुजर-बसर कर रही है। इस महिला कैदी की वकील शन्‍नो शगुफ्ता खान पैरवी कर रही है और न्‍याय दिलाने की कोशिश में जुटी है। इन्‍हीं वकील साहिबा की पहल पर मप्र की इतिहास में पहली बार उच्‍च न्‍यायालय इंदौर ने महिला कैदी को 12 हफ्ते का गर्भपात कराने की इजाजत दे दी है। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक निर्णय है। महिला कैदी हल्‍लो बी का कहना है कि उसके पेट में जो गर्भ ठहरा हुआ है वह उसे बेहद परेशान करता है। इस बच्‍चे को वह जमीन पर बिल्‍कुल नहीं लाना चाहती है। महिला को यह नहीं मालूम है कि जिसका गर्भ पेट में पल रहा है उसका पिता कौन है। महिला ने यह तक कहा कि यह बच्‍चा उसकी मर्जी के खिलाफ गर्भ में आया है इसलिए वह बच्‍चे को जन्‍म नहीं देना चाहती है। उसका कहना है कि बहशी पति ने उससे गलत काम करवाया जिसके कारण वह बच्‍चे को जन्‍म देना नहीं चाहती है। जिसके फलस्‍वरूप इंदौर उच्‍च न्‍यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए गर्भपात कराने के आदेश जारी कर दिये हैं। कोर्ट ने यह तक कहा है कि महिला का गर्भपात एमवाय करवाकर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाये। मेडीकल रिपोर्ट के अनुसार महिला का गर्भपात कराने में किसी भी प्रकार की कोई दिक्‍कत नहीं है। कोर्ट ने मेडीकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेंगनेसी एक्‍ट के प्रावधानों के तहत दो डाक्‍टरों की समिति बनाकर महिला कैदी के गर्भपात की जांच कराई थी। जिसमें डॉक्‍टरों ने कहा था कि गर्भपात कराने में कोई परेशानी नहीं है। निश्चित रूप से पूरे देश के साथ मध्‍यप्रदेश में भी गर्भपात के खिलाफ सख्‍त कानून है। गर्भपात के खिलाफ कार्यवाहियां भी मप्र में की जा रही हैइंदौर उच्‍च न्‍यायालय के समक्ष 16 जनवरी, 2013 एक ऐसा मामला आया जिसमें कोर्ट ने नियम, कानूनों को शिथिल करते हुए महिला के दिल और दिमाग की बातों को सुना। यह फैसला दूरगामी परिणाम देगा। समाज में एक नई बहस शुरू होगी और समाजशास्त्रियों के लिए विचार के विविध पहलू सामने आये हैं। 
                                             ''मप्र की जय हो''

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