बुधवार, 23 जनवरी 2013

बार-बार दलित परिवारों का बहिष्‍कार

         मध्‍यप्रदेश को नंबर वन बनान का सपना रोज बुना जा रहा है। हम एक कदम आगे भी बढ़ रहे हैं। शहरों और गांवों में विकास की ललक झलकने लगी है। शिक्षा का सहारा लेकर नई ऊंचाईयों छूने की तमन्‍ना भी है। इसके बाद भी दलितों के साथ द्वियम दर्जे का व्‍यवहार अभी भी अपनाया जा रहा है। कही दलित परिवारों को पूरा गांव बहिष्‍कार कर रहा है, तो किसी इलाके में दलित युवक की शादी होने पर घोड़ी पर चढ़ने से रोका जाता है। मंदिरों में रोज सुबह-शाम भगवान की पूजा पाठ करने वाले पंडित दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं, तो कहीं सरकारी योजना मध्‍यान्‍ह् भोजन के दौरान द‍बंग वर्ग के बच्‍चों के साथ मिलकर खाना नहीं खा रहे हैं। यह सब भेदभाव आज भी मध्‍यप्रदेश की सरजमी पर चल रहा है। न तो सामाजिक संगठन इस दिशा में पहल करते हैं और न ही कोई हल्‍ला मचाता है। कोई भी घटना होने पर मीडिया की सुर्खिया जरूर ऐसे बहिष्‍कार की घटनाएं बटोर लेती है पर उसके बाद की भूमिका न तो मीडिया अदा करता है और न ही समाज के वे पहरी सामने आते हैं, जिन्‍हें खुलकर ऐसे तथ्‍यों के खिलाफ लड़ना चाहिए, जो आज भी पुरातन पंथी विचारों में डूबकर दलित परिवार को समाज से दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं। दलितों के साथ भेदभाव, दूरियां रखने, साथ में खड़ा नहीं करने और उनके साथ पानी तक नहीं पीने तक की घटनाएं जब तब सामने आती ही रहती हैं। इन घटनाओं के लिए राज्‍य सरकार तो जिम्‍मेदार है ही, लेकिन समाज को भी कम जिम्‍मेदार नहीं माना जा सकता है। मध्‍यप्रदेश में आज भी करीब दो दर्जन से अधिक ऐसे जिले हैं जहां पर भेदभाव बरकरार है। उनमें बेतूल, राजगढ़, होशंगाबाद, सीहोर, रायसेन, हरदा, छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया, गुना, सागर, शिवपुरी आदि शामिल हैं। हाल ही में फिर बैतूल जिले में एक दलित परिवार का हुक्‍का पानी एक महीने से बंद हैं। यह परिवार बैतूल जिले के मथानी गांव में समाज से बहिष्‍कृत है और परिवार की हालत अब यह हो गई है कि परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है, क्‍योंकि ग्राम मथानी निवासी अशोक वाइकर कपड़े सीकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था, लेकिन समाज के बहिष्‍कार के कारण उसका व्‍यवसाय तो चौपट हो ही गया है साथ ही उसकी दुकान पर यदि कोई पहुंच जाता है, तो उसका जुर्माना लिया जाता है। यह युवक अपने छोटे-मोटे धंधे के साथ एक भजन मंडली भी चलाता है, लेकिन पवार समाज के लोगों को इसकी मंडली रास नहीं आई है और इसी के चलते उसका बहिष्‍कार किया गया है। दलित युवक अशोक वाइकर को लगातार अपमानित करने के साथ-साथ गांव में किसी से भी संबंध नहीं रखने का एलान किया गया है। जब इस परिवार ने गांव की एक चक्‍की से आटा पिसवा लिया, तो चक्‍की संचालक पर 51 रूपये का अर्थदंड लगाया गया और भविष्‍य में चेतावनी दी कि अगर उसका गेहूं पीसा तो कार्यवाही होगी। इसके साथ ही एक मित्र उसकी दुकान पर आकर बैठ गया, तो उस पर 251 रूपये का दंड लगाया गया। दबंगों की इस प्रताड़ना के खिलाफ  परिवार ने मोर्चा खोल लिया है और उसके ससुर राजेश उनारे ने बैतूल के पुलिस अधीक्षक को इस संबंध में शिकायत भी कर दी है। जनसुनवाई में यह मामला पहुंच गया है, लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। दुखद पहलू यह है कि जिला प्रशासन को कम से कम ऐसे भेदभाव के मामलों पर तत्‍काल एक्‍शन लेना चाहिए, जो कि अभी तक लिया नहीं गया है। अगर ऐसा हो जाये, तो उन दलित परिवारों को जीने की राह तो मिलेगी, जो कि अपनी मेहनत के बल पर जीविकोपार्जन के जरिये जीने को तैयार है। क्‍या यह माना जाये कि दबंग वर्ग अपनी दबंगई के सामने किसी को जीने का अधिकार भी नहीं देगा, तो फिर प्रशासन को सामने आकर ऐसे दबंगई लोगों पर कार्यवाही करनी होगी। 
                                          ''मप्र की जय हो''

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