समय को मापने और उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने में प्राचीन काल से ही लगातार प्रयास हो रहे हैं। इस दिशा में आज भी कालगणना का आकलन का वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण हो रहा है। यूं तो प्राचीन काल में कालगणना को लेकर बड़ी दंत कथाएं हैं। कालगणना को लेकर हर युग में प्रयोग होते रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो ग्रह नक्षत्रों की स्थितियों और राशियों की जानकारी लेने के लिए प्राचीन काल से कालगणना का केंद्र मप्र के धार्मिक स्थल उज्जैन में है। ये केंद्र उज्जैन में प्राचीन समय से है और आज भी इसका महत्व बरकरार है। वैज्ञानिक भी इसका पर अध्ययन करने के लिए समय-समय पर पहुंचते हैं। उज्जैन की प्राचीन काल गणना केंद्र का निर्माण वर्ष 1719 में जयपुर के सवाई राजा जयसिंह ने वैश्यशाला का निर्माण कराया था। वैश्यशाला में स्थित प्राचीन यंत्र समय का ज्ञान कराते हैं, बल्कि ग्रह नक्षत्रों की स्थितियां और राशि की जानकारी भी देते हैं। यहां पर अलग-अलग प्रकार के यंत्र मौजूद हैं।
सम्राट यंत्र - ये यंत्र स्थानीय समय का ज्ञान कराता है। यंत्र पर पूर्व-पश्चिम की ओर विषुवत व्रत धरातल में समय बताने के लिए एक चौथाई गोल भाग बना हुआ है। इस भाग में घंटे, मिनट और मिनट का तीसरा भाग खुदे हुए हैं। जब आकाश में सूर्य चमकता है और यंत्र की दीवार में समय बताने वाले किसी निशान पर दिखाई देती है।
नाड़ी वलय यंत्र - विषुवत व्रत के धरातल में स्थित इस यंत्र के उत्तर और दक्षिण में दो भाग हैं। सूर्य के उत्तरायन और दक्षिणायन होने पर क्रमश: दोनों गोल भाग चमकते हैं। इन दोनों भागों के बीच में पृथ्वी की धुरी के समानांतर लगी कीलों की छाया से समय का ज्ञान होता है।
शंकु यंत्र - चबुतरेनुमा यंत्र के मध्य में एक शंकु लगा है जिसकी छाया से सात रेखाएं खींची गई हैं। ये रेखाएं 12 राशियों को प्रदर्शित करती हैं। ये रेखाएं 22 दिसंबर को वर्ष का सबसे छोटा दिन, 21 मार्च, 23 दिसंबर को दिन रात बराबर और 22 जून वर्ष का सबसे बड़ा दिन बताती हैं।
कालगणना को लेकर अलग-अलग प्रयोग -
प्राचीन काल से समय की गणना को लेकर अलग-अलग प्रयोग होते रहे हैं। आज भी अपने-अपने ढंग से इस पर कार्य किया जा रहा है। काल गणना का केंद्र उज्जैन रहा है। लिंग पुराण, अग्नि पुराण, मत्स्य पुराण के मूल ग्रंथ के अनुसार सृष्टि के आरंभ में प्रथम सूर्योदय की पहली 12 किरणे, 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में विद्यवान हैं। इनमें से मध्य बिंदु का ज्योर्तिलिंग महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है जिसका संबंध सूर्य के द्वारा पृथ्वी के उत्पत्तिकाल में काल गणना जैसा शब्द सृष्टि को आगे बढ़ाने में सहायक हुआ है। इस दृष्टिकोट से संपूर्ण पृथ्वी और आकाशगंगा के मध्य बिंदु की स्थिति पृथ्वी पर जीरो रेखांश की है। यह सभी बिन्दु उज्जायिनी काल गणना का मुख्य केंद्र बनाते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित आनंद शंकर व्यास के अनुसार ग्रह नक्षत्रों तथा तारों आदि के दर्शन से उनकी गति, स्थिति, युति तथा उदय अस्त से हमें हमारा पंचांग स्पष्ट आकाश में दिखाई देता है। अमावस्या, पूर्णम को हम स्पष्ट समझ सकते हैं। पूर्ण चंद्र चित्रा नक्षत्र के निकट हो, तो पूर्णिमा, विशाखा के निकट हो तो वैशाख पूर्णिमा, ज्येष्ठा के निकट हो तो जेष्ठ की पूर्णिमा इत्यादि होती है। आकाश को पढ़ते हुए जब हम पूर्ण चंद्रमा को उत्तरा फल्गुनी पूर्णिमा है और यहां से नवीन वर्ष आरंभ होने को 15 दिन शेष रह जाते हैं। मध्यप्रदेश में आज भी अंग्रेजी कलैण्डर के आधार पर तिथिया और पर्व तय होते हैं। इस व्यवस्था को बदलने के लिए भाजपा के विधायक गिरजाशंकर शर्मा ने पिछले चार सालों से राज्य सरकार को पत्र लिखकर कलैण्डर और डायरी कालगणना के अनुसार तैयार करने का आग्रह किया है, लेकिन वे उसमें कामयाब नहीं हो पाये हैं, क्योंकि सरकारी मशीनरी ने उन्हें साफतौर पर कह दिया है कि जो कालगणना और समय तय करने का काम वर्षों से चला आ रहा है वही चलेगा। इसके बाद भी प्राचीन काल की गणना पर आज भी मध्यप्रदेश में गहन अध्ययन और शोध लगातार जारी है।
''मध्यप्रदेश की जय हो''