बुधवार, 30 जनवरी 2013

ग्रह नक्षत्रों की स्थितियां और राशि की जानकारी करने वाला काल गणना का केंद्र है मप्र में

        समय को मापने और उसके बारे में जानकारी प्राप्‍त करने में प्राचीन काल से ही लगातार प्रयास हो रहे हैं। इस दिशा में आज भी कालगणना का आकलन का वैज्ञानिक ढंग से विश्‍लेषण हो रहा है। यूं तो प्राचीन काल में कालगणना को लेकर बड़ी दंत कथाएं हैं। कालगणना को लेकर हर युग में प्रयोग होते रहे हैं। मध्‍यप्रदेश में तो ग्रह नक्षत्रों की स्थितियों और राशियों की जानकारी लेने के लिए प्राचीन काल से कालगणना का केंद्र मप्र के धार्मिक स्‍थल उज्‍जैन में है। ये केंद्र उज्‍जैन में प्राचीन समय से है और आज भी इसका महत्‍व बरकरार है। वैज्ञानिक भी इसका पर अध्‍ययन करने के लिए समय-समय पर पहुंचते हैं। उज्‍जैन की प्राचीन काल गणना केंद्र का निर्माण वर्ष 1719 में जयपुर के सवाई राजा जयसिंह ने वैश्‍यशाला का निर्माण कराया था। वैश्‍यशाला में स्थित प्राचीन यंत्र समय का ज्ञान कराते हैं, बल्कि ग्रह नक्षत्रों की स्थितियां और राशि की जानकारी भी देते हैं। यहां पर अलग-अलग प्रकार के यंत्र मौजूद हैं। 
सम्राट यंत्र - ये यंत्र स्‍थानीय समय का ज्ञान कराता है। यंत्र पर पूर्व-पश्चिम की ओर विषुवत व्रत धरातल में समय बताने के लिए एक चौथाई गोल भाग बना हुआ है। इस भाग में घंटे, मिनट और मिनट का तीसरा भाग खुदे हुए हैं। जब आकाश में सूर्य चमकता है और यंत्र की दीवार में समय बताने वाले किसी निशान पर दिखाई देती है। 
नाड़ी वलय यंत्र - विषुवत व्रत के धरातल में स्थित इस यंत्र के उत्‍तर और दक्षिण में दो भाग हैं। सूर्य के उत्‍तरायन और दक्षिणायन होने पर क्रमश: दोनों गोल भाग चमकते हैं। इन दोनों भागों के बीच में पृथ्‍वी की धुरी के समानांतर लगी कीलों की छाया से समय का ज्ञान होता है। 
शंकु यंत्र - चबुतरेनुमा यंत्र के मध्‍य में एक शंकु लगा है जिसकी छाया से सात रेखाएं खींची  गई हैं। ये रेखाएं 12 राशियों को प्रदर्शित करती हैं। ये रेखाएं 22 दिसंबर को वर्ष का सबसे छोटा दिन, 21 मार्च, 23 दिसंबर को दिन रात बराबर और 22 जून वर्ष का सबसे बड़ा दिन बताती हैं। 
कालगणना को लेकर अलग-अलग प्रयोग -
          प्राचीन काल से समय की गणना को लेकर अलग-अलग प्रयोग होते रहे हैं। आज भी अपने-अपने ढंग से इस पर कार्य किया जा रहा है। काल गणना का केंद्र उज्‍जैन रहा है। लिंग पुराण, अग्नि पुराण, मत्‍स्‍य पुराण के मूल ग्रंथ के अनुसार सृष्टिे आरंभ में प्रथम सूर्योदय की पहली 12 किरणे, 12 ज्‍योतिर्लिंगों के रूप में विद्यवान हैं। इनमें से मध्‍य बिंदु का ज्‍योर्तिलिंग महाकाल ज्‍योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है जिसका संबंध सूर्य के द्वारा पृथ्‍वी के उत्‍पत्तिकाल में काल गणना जैसा शब्‍द सृष्टि को आगे बढ़ाने में सहायक हुआ है। इस दृष्टिकोट से संपूर्ण पृथ्‍वी और आकाशगंगा के मध्‍य बिंदु की स्थिति पृथ्‍वी पर जीरो रेखांश की है। यह सभी बिन्‍दु उज्‍जायिनी काल गणना का मुख्‍य केंद्र बनाते हैं। ज्‍योतिषाचार्य पंडित आनंद शंकर व्‍यास के अनुसार ग्रह नक्षत्रों तथा तारों आदि के दर्शन से उनकी गति, स्थिति, युति तथा उदय अस्‍त से हमें हमारा पंचांग स्‍पष्‍ट आकाश में दिखाई देता है। अमावस्‍या, पूर्णम को हम स्‍पष्‍ट समझ सकते हैं। पूर्ण चंद्र चित्रा नक्षत्र के निकट हो, तो पूर्णिमा, विशाखा के निकट हो तो वैशाख पूर्णिमा, ज्‍येष्‍ठा के निकट हो तो जेष्‍ठ की पूर्णिमा इत्‍यादि होती है। आकाश को पढ़ते हुए जब हम पूर्ण चंद्रमा को उत्‍तरा फल्‍गुनी पूर्णिमा है और यहां से नवीन वर्ष आरंभ होने को 15 दिन शेष रह जाते हैं। मध्‍यप्रदेश में आज भी अंग्रेजी कलैण्‍डर के  आधार पर तिथिया और पर्व तय होते हैं। इस व्‍यवस्‍था को बदलने के लिए भाजपा के विधायक गिरजाशंकर शर्मा ने पिछले चार सालों से राज्‍य सरकार को पत्र लिखकर कलैण्‍डर और डायरी कालगणना के अनुसार तैयार करने का आग्रह किया है, लेकिन वे उसमें कामयाब नहीं हो पाये हैं, क्‍योंकि सरकारी मशीनरी ने उन्‍हें साफतौर पर कह दिया है कि जो कालगणना और समय तय करने का काम वर्षों से चला आ रहा है वही चलेगा। इसके बाद भी प्राचीन काल की गणना पर आज भी मध्‍यप्रदेश में गहन अध्‍ययन और शोध लगातार जारी है। 
                                   ''मध्‍यप्रदेश की जय हो''

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

मनरेगा घोटाला उजागर करने पर नक्‍सली बता रहे हैं कलेक्‍टर माधुरी को

        प्रशासनिक व्‍यवस्‍था किस कदर अपने भ्रष्‍टाचार पर पर्दा डालने के लिए मनगढंत आरोप लगाकर सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रताडि़त करते हैं। इसका ताजा उदाहरण बड़वानी जिले में आदिवासियों के बीच वर्षों से सक्रिय माधुरी बहन है, वे लगातार आदिवासियों के हकों की बात उठा रही हैं। मनरेगा में 350 करोड़ का घोटाला बड़वानी जिले में उजागर हुआ है। इस घोटाले की जांच अधिकारी व्‍यापक स्‍तर पर कर रहे हैं। इससे वि‍चलित होकर कलेक्‍टर श्रीमन शुक्‍ला ने अपने बचाव के लिए राज्‍य सरकार को पत्र लिखकर माधुरी बहन को नक्‍सली होने का आरोप लगाकर जांच के आदेश का आग्रह किया है। यह पत्र मुख्‍य सचिव तक पहुंच गया है जहां से गृह विभाग में पड़ताल की जा रही है, जबकि दूसरा पहलू यह है कि बड़वानी जिले के एसपी ने साफतौर पर कह दिया है कि माधुरी बहन का नक्‍सली संगठन से कोई लेना-देना नहीं है। यहां तक कि इंदौर आईजी अनुराधा शंकर ने भी कहा है कि बड़वानी क्षेत्र में कोई नक्‍सली गतिविधि नहीं चल रही है। बड़वानी जिला प्रदेश का वह इलाका है जिसमें मनरेगा के भ्रष्‍टाचार की सबसे ज्‍यादा शिकायतें हुई हैं। इन शिकायतों के चलते पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की अपर मुख्‍य सचिव अरूण शर्मा ने जांच के आदेश दिये हैं। इसी कड़ी में अधिकारियों का दल 350 करोड़ के भ्रष्‍टाचार की जांच कर रहा है। भ्रष्‍टाचार की राशि को लेकर भी विवाद है। माधुरी बहन का संगठन जागृत आदिवासी दलित संगठन का कहना है कि शुरूआती दौर में मनरेगा में डेढ़ सौ करोड़ का भ्रष्‍टाचार सामने आया था, जो कि अब बढ़कर 350 करोड़ तक पहुंच गया है। इस भ्रष्‍टाचार की जांच से जिले की मशीनरी बुरी तरह से विचलित हो गई है। पूरे जिले में 80 इंजीनियरों की टीम जांच कर रही है और जिले के तीन ब्‍लॉक कटघरें में फंसे हुए हैं। इसी के चलते कलेक्‍टर ने एक पत्र के जरिये माधुरी बहन के संगठन को प्रतिबंधित करने का अनुरोध शासन से किया है। माधुरी बहन 1991 से आदिवासियों के बीच अलख जगाने का कार्य कर रही हैं। कलेक्‍टर ने अपने पत्र में लिखा है कि संगठन आदिवासियों को नक्‍सली बांटने के पर्चे बांट रहा है। इन पर्चों में चुनाव का बहिष्‍कार करो, गृह युद्व की तैयारी करो, नक्‍सलीवादी प्रहार करो, लिखा हुआ है। दूसरी ओर माधुरी बहन का साफतौर पर कहना है कि उन्‍होंने मनरेगा का भ्रष्‍टाचार उजागर किया है, तो कलेक्‍टर बदनाम करने के लिए नक्‍सली होने का आरोप लगा रहे हैं। भ्रष्‍टाचार उजागर करने का बदला जिला कलेक्‍टर उनके संगठन को नक्‍सली बताकर ले रहे हैं। माधुरी बहन ने कलेक्‍टर को खुली चुनौती दी है कि यदि सबूत है तो उन्‍हें सार्वजनिक करें। उनके आरोपों से जिला प्रशासन बौखलाया हुआ है। इससे पहले भी माधुरी बहन को जिला प्रशासन जिला बदल का हथकंडा अपना चुका है। अब उन्‍हें नक्‍सली बताया जा रहा है। मप्र में आदिवासी अंचलों में अलग-अलग संगठन सक्रिय है, जो कि सरकारी योजनाओं में हो रहे भ्रष्‍टाचार को रोकने की पहल करते हैं जिसके फलस्‍वरूप अधिकारी/कर्मचारी उन संगठनों पर विभिन्‍न आरोप लगाकर अपना बचाव करते हैं। यही स्थिति माधुरी बहन के साथ हो रही है पर माधुरी बहन आसानी से किसी के सामने हथियार डालने को तैयार नहीं है, क्‍योंकि वे भोलेभाले आदिवासियों के पक्ष में जोरदार लड़ाई लड़ रही है। 
                                            ''मप्र की जय हो''

सोमवार, 28 जनवरी 2013

बार-बार मप्र से क्‍यों लड़किया बेचने के मामले सामने आ रहे

        यह समझ से परे है कि मप्र में बार-बार लड़कियां बेचे जाने के मामले सामने आ रहे हैं भले ही पुलिस ऐसे गिरोह को दबोच रही है, लेकिन फिर भी यह चौंकाने वाले मामले सामने आने पर स्‍वाभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि जिस राज्‍य में लड़कियों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, वहां पर लड़कियों को बेचने के मामले सामने आना न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि कहीं न कहीं यह भी साबित होता है कि कोई बड़ा गिरोह प्रदेश में सक्रिय हैं, जो कि भोली-भाली युवतियों को फांसकर अपने चंगुल में फंसाने के लिए सक्रिय है। मप्र के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि पूरे देश में मामा की बन चुकी है और उन्‍होंने दिल्‍ली गैंगरेप के बाद लड़कियों की सुरक्षा को लेकर कई नये नियम कानून लागू किये हैं, पुलिस को सजग किया है, उनका बेटी बचाओ अभियान तो वर्षो से चल रहा है। इसके बाद भी 27 जनवरी, 2013 को मुंबई की कॉर्ल को बेचने का मामला सामने आया है। भला हो पुलिस का कि वह समय पर पहुंच गई और उसने पूरे गिरोह को धर-दबोचा। यह गिरोह लड़की बेचने का काम करता था। नाबालिग लड़की का ढाई लाख रूपये में बेचने का सौदा हुआ था, लेकिन पुलिस ने सारे मामले का भंड्डा-फोडकर एक सराहनीय काम किया है। इसके साथ ही पुलिस ने इस मामले में जिस्‍म फरोशी में लिप्‍त लोगों के खिलाफ प्रिवेंसन ऑफ चिल्‍ड्रन ऑफ सेक्‍सुअल अफेंस की धारा-5 और 6 के तहत मामला दर्ज किया है। प्रदेश में पहली बार इस कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है, जबकि देश में यह दूसरा मामला है। इसके पूर्व दिल्‍ली में भी इसी कानून के तहत एक मामला दर्ज किया जा चुका है। भोपाल साउथ के एसपी अंशुमान सिंह का कहना है कि इस रैकेट को पकड़ने से साफ जाहिर हो गया है कि वे एक नाबालिग को बेचने की योजना बना रहे थे और अपने कारोबार में कामयाब नहीं हो पाये। दूसरी ओर पुलिस ने भोपाल में इंटरनेट से चल रहे सेक्‍स रैकेट का भी पर्दाफाश किया है। यह रैकेट इंटरनेट के जरिये चलाया जा रहा था। मप्र में आदिवासी बाहुल्‍य जिलों की युवतियों को बेचने के मामले समय-समय पर सामने आते रहे हैं। इसके अलावा शहरों और महानगरों में भी ऐसी घटनाएं उजागर होने से साफ जाहिर है कि युवतियों को बेचने का कोई गिरोह मप्र में कहीं न कहीं से संचालित हो रहा है जिस पर पुलिस को अभी से नजर गड़ानी होगी तभी कामयाबी मिल पायेगी और प्रदेश की लड़कियां सुरक्षित रहकर नये आसमान पर अपना आशियाना बनायेगी।
                                       ''मप्र की जय हो''

रविवार, 27 जनवरी 2013

मध्‍यप्रदेश गीत और गान ने जगाया एकजुटता का भाव

            पहली बार मध्‍यप्रदेश में अपना स्‍वयं का गीत बना है जिसके गान पर एकजुटता का भाव जगाता है। प्रदेश के 56 साल के सफर के बाद भी आज तक राज्‍य का कोई गीत नहीं था और न ही इस दिशा में कोई पहल हुई। इस राज्‍य की पहचान मिली-जुली संस्‍कृति रही है। 01 नवंबर, 1956 को जब राज्‍य का गठन हुआ था, तब महाराष्‍ट्र, विदर्भ, नागपुर सहित आदि राज्‍यों से मिलकर मध्‍यप्रदेश का गठन हुआ था। इसके चलते मध्‍यप्रदेश में विभिन्‍न राज्‍यों के लोग आकर बस गये थे। धीरे-धीरे यह काफिला बढ़ता ही गया। मप्र में गठन के बाद दो बड़े उद्योग धंधे केंद्र सरकार ने स्‍थापित किये, जिसमें भोपाल में भेल कारखाना तथा भिलाई में इस्‍पात कारखाना स्‍थापित किया गया। इसके चलते दक्षिण भारत के लोगों ने मप्र में प्रवेश किया, जो कि अब काफी तादाद में निवास करते हैं और वे राज्‍य की संस्‍कृति में रच बस गये हैं। इसके बाद भी वर्ष 2000 में राज्‍य का विभाजन हुआ और छत्‍तीसगढ़ एक नया राज्‍य मप्र से अलग होकर बन गया। 56 साल के सफर में मप्र में कभी भी अपने गान और गीत पर जोर नहीं दिया और न ही इस दिशा में किसी भी राजनेता ने पहल की और न ही कोई कमी महसूस की गई। वर्ष 2010-11 के बीच राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मप्र को लेकर कई सपने गढ़े हैं, वे मप्र को स्‍वर्णिम राज्‍य बनाने का सपना देखे हुए हैं, तो आओ मप्र बनाओ अभियान भी चलाए हुए हैं। इन अभियानों को गति देने के लिए उन्‍होंने मप्र गीत तैयार कराया जिसके सृजनकार वरिष्‍ठ पत्रकार महेश श्रीवास्‍तव हैं। इस गीत का गायन प्रत्‍येक सरकारी कार्यक्रमों में हो रहा है। पंचायत से लेकर मंत्रालय के प्रत्‍येक सरकारी दफ्तर में सरकारी गान चस्‍पा है, जो  कि बार-बार हर मप्र वासी में एकजुटता के भाव का अहसास कराता है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी सपना है कि मप्र की एक अलग पहचान बने इस दिशा में नये इरादों के साथ राज्‍य को ताकत दी जा रही है। निश्चित रूप से मप्र का गीत हम सब लोगों के लिए एक गौरव का अहसास कराता है। 
                                            ''मप्र की जय हो''

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

आडवाणी क्‍यों फिदा है शिवराज पर

       भाजपा के बुजुर्ग नेता लालकृष्‍ण आडवाणी की प्रशंसा के भी कई मायने होते हैं। वे अगर अपने किसी प्रिय शिष्‍य को पसंद करते हैं, तो उसकी सार्वजनिक रूप से पीठ भी थप-थपाते हैं। कभी राजनीति में उनके प्रियतम शिष्‍य नरेंद्र मोदी हुआ करते थे, लेकिन मोदी ने बीच-बीच में जब आंखे दिखाई तो आडवाणी ने भी उनसे दूरियां बना ली। ऐसा भी नहीं है कि आडवाणी के शिष्‍य उंगलियों पर गिने जाये। उनके शिष्‍यों की लंबी कतार है, लेकिन इन दिनों वे सबसे ज्‍यादा मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कामों पर फिदा है। यही बात है कि वे लगातार बार-बार शिवराज सिंह चौहान की प्रशंसा के पुल बांध रहे हैं। भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह की ताजपोशी के दौरान 23 जनवरी, 2013 को एक बार फिर आडवाणी ने मप्र सरकार के कामकाज की जमकर तारीफ की और मुख्‍यमंत्री चौहान को बधाई भी दी। उन्‍होंने कहा कि इसी महीने जब राष्‍ट्रपति भवन में मप्र के मुख्‍यमंत्री को कृषि विकास दर में देश भर में अव्‍वल आने पर सम्‍मानित किया जा रहा था, तब उनका सिर और ऊंचा हो गया। क्‍योंकि मप्र के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि विकास दर में वह काम करके दिखा दिया, जो कि सामान्‍यत: हर राज्‍य नहीं कर पा रह हैं। आज कृषि के क्षेत्र में मध्‍यप्रदेश नंबर वन पर आ गया है। भाजपा अध्‍यक्ष बने राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में तो कोई तारीफ नहीं की, लेकिन उन्‍हें किसान नेता कहा जाता है। इसलिए वे भी आडवाणी की बात पर मंद-मंद मस्‍कराते देखे गये। ऐसा नहीं है कि आडवाणी ने पहली बार शिवराज की तारीफ की है। इसके पहले जब तीर्थदर्शन योजना का शुभारंभ करने भोपाल आये थे, तब भी उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग पर इस योजना की खूब प्रशंसा की थी जिसकी मीडिया में खबरे भी बनी थी। चौहान को आडवाणी पिछले दो दशक से पसंद कर रहे हैं। दिल्‍ली दरवार में जब-जब चौहान को आडवाणी ने जो भी काम दिया, तब-तब चौहान उस पर खरे उतरे। यही वजह हैकि कोई एक दशक पहले अविभाजित मध्‍यप्रदेश में जब भाजपा में जबर्दस्‍त आंतरिक संघर्ष चल रहा था, तो आडवाणी ने मध्‍यप्रदेश के चुनिंदा नेताओं को अपने बंगले बुलाया और उन्‍हें एक कमरे में प्रवेश कराकर यह निर्देश दिये कि आज और अभी यह तय कर लें कि मध्‍यप्रदेश का अगला अध्‍यक्ष कौन होगा। आडवाणी के इस निवास पर हुई बैठक में भाजपा नेता कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, लक्ष्‍मी नारायण पांडेय सहित आदि शामिल थे। इन नेताओं ने 5 मिनिट के भीतर अगले अध्‍यक्ष के रूप में लक्ष्‍मीनारायण पांडेय का नाम तय करके बताया। इस पर आडवाणी ने सब नेताओं की प्रशंसा की, लेकिन इसके साथ उन्‍होंने कहा कि प्रदेश महामंत्री का दायित्‍व शिवराज सिंह चौहान संभालेंगे। इस पर सारे नेता सहम‍त हो गये। मप्र के इतिहास में संभवत: यह पहला मौका था, जब राष्‍ट्रीय स्‍तर से सीधे महामंत्री पद किसी की नियुक्ति हुई हो, तो वह शिवराज सिंह चौहान ही थे। इससे साफ जाहिर है कि आडवाणी दो दशक पहले से चौहान को पसंद करते थे। मुख्‍यमंत्री बनने के बाद तो चौहान के कामकाज से वे लगातार प्रभावित हो रहे हैं और उन्‍होंने हरसंभव प्रदेश को मदद भी की है। चौहान की तारीफ यह साबित करती है कि लालकृष्‍ण आडवाणी की नजर में चौहान किस तरह छाये हुए हैं और भविष्‍य में भी चौहान के कामकाज की प्रशंसा वे करते रहेंगे।निश्चित रूप से मुख्‍यमंत्री चौहान की प्रशंसा कई मायने में उल्लेखनीय है। आडवाणी द्वारा उन्‍हें पसंद करना अपने आप में यह साबित करता है कि चौहान किस तरह से अपने मार्ग पर चल रहे हैं। 
                       ''मप्र की जय हो'' 

बुधवार, 23 जनवरी 2013

बार-बार दलित परिवारों का बहिष्‍कार

         मध्‍यप्रदेश को नंबर वन बनान का सपना रोज बुना जा रहा है। हम एक कदम आगे भी बढ़ रहे हैं। शहरों और गांवों में विकास की ललक झलकने लगी है। शिक्षा का सहारा लेकर नई ऊंचाईयों छूने की तमन्‍ना भी है। इसके बाद भी दलितों के साथ द्वियम दर्जे का व्‍यवहार अभी भी अपनाया जा रहा है। कही दलित परिवारों को पूरा गांव बहिष्‍कार कर रहा है, तो किसी इलाके में दलित युवक की शादी होने पर घोड़ी पर चढ़ने से रोका जाता है। मंदिरों में रोज सुबह-शाम भगवान की पूजा पाठ करने वाले पंडित दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं, तो कहीं सरकारी योजना मध्‍यान्‍ह् भोजन के दौरान द‍बंग वर्ग के बच्‍चों के साथ मिलकर खाना नहीं खा रहे हैं। यह सब भेदभाव आज भी मध्‍यप्रदेश की सरजमी पर चल रहा है। न तो सामाजिक संगठन इस दिशा में पहल करते हैं और न ही कोई हल्‍ला मचाता है। कोई भी घटना होने पर मीडिया की सुर्खिया जरूर ऐसे बहिष्‍कार की घटनाएं बटोर लेती है पर उसके बाद की भूमिका न तो मीडिया अदा करता है और न ही समाज के वे पहरी सामने आते हैं, जिन्‍हें खुलकर ऐसे तथ्‍यों के खिलाफ लड़ना चाहिए, जो आज भी पुरातन पंथी विचारों में डूबकर दलित परिवार को समाज से दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं। दलितों के साथ भेदभाव, दूरियां रखने, साथ में खड़ा नहीं करने और उनके साथ पानी तक नहीं पीने तक की घटनाएं जब तब सामने आती ही रहती हैं। इन घटनाओं के लिए राज्‍य सरकार तो जिम्‍मेदार है ही, लेकिन समाज को भी कम जिम्‍मेदार नहीं माना जा सकता है। मध्‍यप्रदेश में आज भी करीब दो दर्जन से अधिक ऐसे जिले हैं जहां पर भेदभाव बरकरार है। उनमें बेतूल, राजगढ़, होशंगाबाद, सीहोर, रायसेन, हरदा, छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया, गुना, सागर, शिवपुरी आदि शामिल हैं। हाल ही में फिर बैतूल जिले में एक दलित परिवार का हुक्‍का पानी एक महीने से बंद हैं। यह परिवार बैतूल जिले के मथानी गांव में समाज से बहिष्‍कृत है और परिवार की हालत अब यह हो गई है कि परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है, क्‍योंकि ग्राम मथानी निवासी अशोक वाइकर कपड़े सीकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था, लेकिन समाज के बहिष्‍कार के कारण उसका व्‍यवसाय तो चौपट हो ही गया है साथ ही उसकी दुकान पर यदि कोई पहुंच जाता है, तो उसका जुर्माना लिया जाता है। यह युवक अपने छोटे-मोटे धंधे के साथ एक भजन मंडली भी चलाता है, लेकिन पवार समाज के लोगों को इसकी मंडली रास नहीं आई है और इसी के चलते उसका बहिष्‍कार किया गया है। दलित युवक अशोक वाइकर को लगातार अपमानित करने के साथ-साथ गांव में किसी से भी संबंध नहीं रखने का एलान किया गया है। जब इस परिवार ने गांव की एक चक्‍की से आटा पिसवा लिया, तो चक्‍की संचालक पर 51 रूपये का अर्थदंड लगाया गया और भविष्‍य में चेतावनी दी कि अगर उसका गेहूं पीसा तो कार्यवाही होगी। इसके साथ ही एक मित्र उसकी दुकान पर आकर बैठ गया, तो उस पर 251 रूपये का दंड लगाया गया। दबंगों की इस प्रताड़ना के खिलाफ  परिवार ने मोर्चा खोल लिया है और उसके ससुर राजेश उनारे ने बैतूल के पुलिस अधीक्षक को इस संबंध में शिकायत भी कर दी है। जनसुनवाई में यह मामला पहुंच गया है, लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। दुखद पहलू यह है कि जिला प्रशासन को कम से कम ऐसे भेदभाव के मामलों पर तत्‍काल एक्‍शन लेना चाहिए, जो कि अभी तक लिया नहीं गया है। अगर ऐसा हो जाये, तो उन दलित परिवारों को जीने की राह तो मिलेगी, जो कि अपनी मेहनत के बल पर जीविकोपार्जन के जरिये जीने को तैयार है। क्‍या यह माना जाये कि दबंग वर्ग अपनी दबंगई के सामने किसी को जीने का अधिकार भी नहीं देगा, तो फिर प्रशासन को सामने आकर ऐसे दबंगई लोगों पर कार्यवाही करनी होगी। 
                                          ''मप्र की जय हो''

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

मध्‍यप्रदेश में उत्‍सव और समारोह की अपनी दुनिया

         मध्‍यप्रदेश में उत्‍सव और समारोह की अपनी गरिमा है। यहां हर वर्ग अपने अंदाज में त्‍यौंहार मनाता है। खुशियों की बयार हर तरफ बहती है। इन खुशियों को बांटने में कहीं कोई पीछे नहीं रहता है। उम्र का कोई बंधन नहीं सब मिलकर अपने-अपने अंदाज में खुशिया मानते हैं। यही तो मप्र की खूबी है कि यहां पर कोई धर्म, सांप्रदाय की बात नहीं करता है, बल्कि हर वर्ग अपने-अपने अंदाज में जीने की कला सीख चुका है। यहां पेश है चुनिंदा समारोह की तस्‍वीरें। 

        जोश और उत्‍साह : समाज में जहां कही भी खुशियों का मौका मिलता है तो पीछे नहीं रहती है युवतियां
 
पर्व मनाने का अपना-अपना अंदाज 

महिलाओं का रेप पर वॉक, उम्र का कोई बंधन नहीं

आओ थोड़ा नाच लें, जीवन में उत्‍साह लाने का अलग ही आनंद
 
दीक्षांत समारोह : जब डिग्री मिल ही गई है तो आओ मस्‍ती कर लें
अपने उत्‍सव अपने आनंद में - असमिया महिलाएं भोगली बिहु फेस्‍टीवल में
फिल्‍म अभिनेत्रा सन्‍नी देओल : भोपाल में शूटिंग के दौरान
 

महिलाओं की आबरू खुलेआम बिक रही हैं पुरूष पंचायतों में

         जब पूरे देश के साथ-साथ मध्‍यप्रदेश में भी महिलाओं को ताकतवर बनाने की पहल हो रही है उस दौर में राज्‍य के आदिवासी अंचलों में महिलाओं की आबरू का सौदा खुलेआम पुरूष पंचायतों में किया जा रहा है। न तो पुलिस कोई कार्यवाही कर रही है और न ही अभी तक सरकार की नींद खुली है। यह सच है कि दिल्‍ली गैंगरेप हादसे के बाद मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं के हित में एक दर्जन से अधिक घोषणाएं की है उनमें से आधी घोषणाएं जमीन पर उतर चुकी हैं, लेकिन उसका दूसरा भयानक पहलू सामने आया है वह चौकाता है। आज भी आदिवासी अंचलों में जिन महिलाओं की आबरू लुट जाती है, तब कोर्ट के फैसले प्रभावित करने के लिए खुलेआम पुरूष पंचायत होती है और उसमें महिलाओं की आबरू का सौदा हो रहा है। यह सिलसिला वर्षों से आदिवासी अंचलो में चल रहा है। इसके अलावा इन आदिवासी अंचलों की दुखद तस्‍वीर यह भी है कि इन इलाकों की युवतियों को बहला-फुसलाकर शहरों और महानगरों में बेचा जा रहा है। मानव तस्‍करी के गिरोह आदिवासी अंचलों में तेजी से अपना वर्चस्‍व जमा रहे हैं, जो कि दलालों के जरिये भोली-भाली आदिवासी युवतियों को बेचने के कारोबार में शामिल हैं। ऐसे गिरोह बार-बार पुलिस पकड़ चुकी है, फिर भी वे किसी न किसी माध्‍यम से सक्रिय बने हुए हैं। अब आदिवासी अंचलों का एक भयानक रूप सामने आया है जिसमें मध्‍यप्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ, अलीराजपुर, शहडोल, उमरिया आदि इलाकों में पुरूष पंचायतों में अपहरण, बलात्‍कार या छेड़खानी के मामलों पर सौदा पुरूष पंचायत में होता है। यह पंचायतें तब होती है जब कोई महिला किसी पुरूष के खिलाफ थाने में पहुंच जाती है। आदिवासी इलाकों की महिलाएं पुरूषों की इच्‍छाओं से जीवन जीने को विवश हो गई हैं। जनजातीय समाज में पुरूष बाहुल्‍य पंचायतें महिला शोषण की प्रतीक बनकर उभरी हैं। यह पंचायतें महिलाओं की अस्‍मत का सौदा करने के एवज में न सिर्फ कोर्ट के फैसलों को प्रभावित कर रही है, बल्कि पंच अपने लिय दारू, मुर्गों, बकरों का इंतजाम करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। आदिवासी इलाकों में महिलाओं के साथ छेड़खानी, बलात्‍कार या अपहरण जैसी घटनाओं में महिला संबंधी अपराध सामने आते हैं,तो पुरूष पंचायतें बैठ जाती हैं और फिर महिलाओं के भविष्‍य की कीमत तय की जाती है। भोपाल से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में यह सनसनी खेज रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए दावा किया है कि अगर अपहरण के साथ बलात्‍कार भी शामिल होता है, तो फिर महिला की कीमत डेढ़ लाख पार कर जाती है। यदि सिर्फ बलात्‍कार हुआ है, तो एक से दो लाख के बीच मामला निपटाया जाता है। छेड़खानी वाले मामले में 30 से 60 हजार के बीच कीमत तय होती है। यहां तक कि न्‍यायालय तक के फैसले इन पुरूष पंचायतों पर निर्भर करते हैं। 
      मध्‍यप्रदेश में महिलाओं को पंचायत एवं नगरीय निकाय में 33 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है। राजनीति में तेजी से महिलाएं अपना वर्चस्‍व स्‍थापित कर रही हैं। इसके बाद भी अगर आदिवासी अंचलों में महिलाओं की आबरू का सौदा करने के मामले आ रहे हैं, तो फिर महिलाएं क्‍यों चुप बैठी हैं यह समझ से परे हैं। यूं भी राजनीतिक दलों से जुड़ी महिला विंग अब थोड़े बहुत धरना प्रदर्शन और राज्‍यपाल को ज्ञापन देने तक सिमट गई हैं। दुखद पहलू यह है कि हरियाणा की खाफ पंचायतों की तर्ज पर मध्‍यप्रदेश के आदिवासी अंचलों में जो पुरूष पंचायतें हो रही है उसमें पीडि़त महिला को इतना मजबूर किया जाता है कि उसकी आबरू का सौदा होने के बाद महिला को न्‍यायालय में अपना बयान बदलना ही पड़ता है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिसमें मजबूर महिला ने न्‍यायालय में अपना मामला बदला है और 95 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि आदिवासी अंचलों में तैनात पुलिस को ऐसी पंचायतों की सूचना नहीं है। पुलिस की जानकारी में हैं और वे लगातार जागरूकता अभियान चलाये हुए हैं, लेकिन फिर भी पुरूष पंचायतों का वर्चस्‍व बना हुआ है और वह लगातार महिलाओं की सौदेबाजी कर रहे हैं। 
                                   ''मप्र की जय हो''

सोमवार, 21 जनवरी 2013

संघ की शाखाएं कम क्‍यों हो गई हैं

        मध्‍यप्रदेश में पिछले नौ सालों में राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ की गतिविधियों का लगातार विस्‍तार हुआ है। ऐसा कोई महीना नहीं गुजरता है, जब संघ परिवार के कार्यक्रम राज्‍य के किसी न किसी हिस्‍से में न होते हो। आज से दो दशक पहले संघ परिवार का पथ संचलन कार्यक्रम सिर्फ दशहरा पर्व पर होता था, लेकिन अब तो संघ का पथ संचलन कभी भी और कहीं भी हो रहा है। इसके पीछे संघ के वरिष्‍ठ पदाधिकारी यह तर्क देते हैं कि पथ संचलन का कार्यक्रम की कोई गाइड लाइन नहीं है इसलिए यह कार्यक्रम अब लगातार हो रहे हैं। संघ परिवार के कार्यक्रम तो हो ही रहे है पर उसके अनुषांगिक संगठनों के कार्यक्रम भी थम नहीं रहे हैं। यानि संघ परिवार का विस्‍तार होना चाहिए, लेकिन इसके बाद भी संघ परिवार की शाखाएं लगातार कम हो रही है इस पर संघ परिवार चिंतन भी कर रहा है। राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के सहसरकार्यवाह दत्‍तात्रेय होसवाले ने भी 20 जनवरी, 2013 को बै‍रसिया में भी मध्‍य प्रांत की दो दिनों की बैठक के बाद हिन्‍दू सम्‍मेलन में संघ की शाखाएं लगातार कम होने पर चिंता जाहिर की। उन्‍होंने तो यहां तक कहा कि काम बढ़ने से संघ का मूल भाव पूछे छूटता जा रहा है। यदि एक भी शाखा बंद होती है, तो उसके काम का असर पूरे संघ पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में शाखा किसी भी स्थिति में बंद नहीं होना चाहिए। निश्‍चित रूप से मध्‍यप्रदेश में संघ परिवार के कार्यक्रमों की श्रृंखला बढ़ी है फिर शाखाओं का कम होना चिंताजनक पहलू है। 
मध्‍यप्रदेश को प्रयोगशाला बनाया संघ परिवार ने : 
           संघ परिवार की विचारधारा को पुष्पित और पल्वित करने के लिए राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ ने मध्‍यप्रदेश को एक प्रयोगशाला के रूप में उपयोग किया जा रहा है। इस राज्‍य में बीते नौ साल में भाजपा सरकार ने संघ परिवार की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए करीब दो दर्जन से अधिक योजनाएं जमीन पर उतारी है और उनका क्रियान्‍वयन किया है। यहां तक कि योजनाओं का नामकरण भी संघ परिवार की विचारधारा और हिन्‍दुत्‍व पर केंद्रित है। संघ परिवार की गतिविधियों का विस्‍तार चौंकाने वाला है। वही दूसरी ओर संघ परिवार के मुखिया मोहन भागवत लगातार मप्र में ढेरा डाल रहे हैं, उनके कार्यक्रम हो रहे हैं, मालवांचल और महाकौशल में संघ परिवार ने अपना काम ज्‍यादा फोकस किया है। इसी के बहाने हिन्‍दु सम्‍मेलन भी हो रहे हैं। संघ परिवार की बढ़ती सक्रियता से भाजपा की परेशानी होना स्‍वाभाविक है। भाजपा में कई नेता ऐसे भी है जिनकी पृष्‍ठभूमि संघ परिवार से जुड़ी हुई नहीं है, तो उन्‍हें परेशानियां होना स्‍वाभाविक है, लेकिन 90 प्रतिशत नेता संघ परिवार में काम करने के बाद ही भाजपा में बड़े पदों पर हैं। जहां एक ओर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने 20 जनवरी, 2013 को जयपुर में यह कहकर चौंका दिया हैकि भाजपा और संघ परिवार भगवां आतंकवाद बढ़ा रहे हैं। इस पर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो शिंदे को बधाई देते हुए कहा है कि जो बात मैं 11 साल से कह रहा हूं उसकी तस्‍दीक हो गई है। मप्र में भगवा आतंकवाद के आरोप में शामिल कुछ लोगों को समझौता एक्‍सप्रेस, मक्‍का मस्जिद तथा मालेगांव विस्‍फोट में एएनआई ने गिरफ्तार भी किया है। कई मामले चल रहे हैं।
क्‍या-क्‍या बोले होसबोले : 
        संघ परिवार के सहसरकार्यवाह दत्‍तात्रेय होसबोले ने बै‍रसिया में स्‍वीकार किया है कि संघ और उनके अनुषांगिक संगठनों में गतिरोध आ गया है। यह संगठन आपस में सम्‍मान और सदभाव बनाये रखे यही उसकी ताकत हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि संघ में भीड़ बढ़ती जा रही है, लेकिन संगठन का विस्‍तार नहीं हो रहा है। संघ का काम मैकेनिकल नहीं है, बल्कि लोगों के बीच भावनात्‍मक रूप से एक-दूसरे के प्रति सम्‍मान, आत्‍मीयता और सदभाव के साथ काम करनेी आवश्‍यकता है। तभी संघ का विस्‍तार हो सकेगा। संघ का काम केवल शाखा में मौजूद रहना भर नहीं है, बल्कि एक घंटे की शाखा लगने के बाद स्‍वयं सेवकों को लोगों के बीच मौजूद रहना होगा, तभी संघ का विस्‍तार होगा। उन्‍होंने कहा कि काम बढ़ने से संघ का मूलभाव पीछे छूटता जा रहा है। संघ सांप्रदायिक संगठन नहीं है, बल्कि हिन्‍दुओं को संगठित करने वाला संगठन है। आज देश में हिन्‍दुओं की संख्‍या घट रही है। दूसरे धर्म के लोग कमजोर हिन्‍दुओं को धर्म परिवर्तन कराने में जुटे हुए हैं। धर्मान्‍तरण का कूचक्र रचा जा रहा है, गाय को काटकर हिन्‍दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा रही है। उन्‍होंने कहा कि कुंभकरन की नींद से हिन्‍दुओं को जागना चाहिए और हिन्‍दुओं को एक होने की जरूरत है। 
                                   ''जय हो मप्र की''
   

रविवार, 20 जनवरी 2013

मप्र के विवि में समय पर क्‍यों नहीं होती परीक्षाएं

 
         भले ही मप्र के विश्‍वविद्यालयों में सेमेस्‍टर सिस्‍टम लागू है, लेकिन इसने पूरी व्‍यवस्‍था को चौपट कर दिया है। न तो विश्‍वविद्यालयों में समय पर परीक्षाएं होती है और न ही परिणाम समय पर आ रहे हैं। इसके चलते कई विश्‍विद्यालयों में पूरा परीक्षाक्रम बार-बार डिस्‍टर्ब हो रहा है। मप्र में निजी विश्‍वविद्यालय खोलने की होड से मची है, कॉलेज तो खोलने का दौर थम सा नहीं रहा है, राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के विश्‍वविद्यालय सरकार खोली जा रही है, लेकिन इस बात पर गौर ही नहीं किया जा रहा है कि आखिरकार हम राज्‍य की नौजवान पीढ़ी को क्‍या शिक्षा दे रहे हैं और वे अपना भविष्‍य किस प्रकार गढ़ रहे हैं। जब समय पर परीक्षाएं और परिणाम ही नहीं आयेंगे, तो फिर युवा पीढ़ी अपनी प्रतिस्‍पर्धा में कैसे कामयाब हो पायेगा। कई बार सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि उच्‍च शिक्षा के मामले में मप्र लगातार पिछड़ता जा रहा है। निजी विवि और कॉलेज डिग्रियां बांटने के अड्डे बन गये हैं। इनसे डिग्रियां तो मिल रही है, लेकिन मनचाहा रोजगार नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि प्रतिस्‍पर्धा में शामिल होने के लिए नौजवान पीढ़ी को मप्र छोड़कर दिल्‍ली, मुंबई, पुणे, बैंगलोर, हैदराबाद की शरण लेनी पड़ रही है। इसके बाद भी 
उच्‍च शिक्षा विभाग शिक्षा व्‍यवस्‍था को दुरूस्‍त करने पर बार-बार मंथन बैठकें तो करता है, लेकिन उसके परिणाम शून्‍य ही सामने आये हैं। आलम यह है कि किसी भी विवि में समय पर पढ़ाई नहीं हो रही है। विभाग के आयुक्‍त और सचिव लगातार मॉनिटरिंग करते हैं मगर फिर भी परिणाम जब खोजे जाते हैं कि सेमेस्‍टर सिस्‍टम कहीं भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया। कहीं-कहीं तो सेमेस्‍टर सिस्‍टम को ब्रेक भी करना पड़ रहा है। दुखद पहलू यह है कि मप्र के एक दर्जन से अधिक विवि में जो कुलपति नियुक्‍त हैं, वे अपना कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर पाते हैं और बीच में ही उन्‍हें विदाई लेनी पड़ती है। इस वजह से भी शिक्षा व्‍यवस्‍था पर किसी का कोई अंकुश नहीं है। विवि और कॉलेजों की बाढ़ भले ही आ जाये, लेकिन हम अभी भी शिक्षा के स्‍तर में वो ऊंचाईयां नहीं पा सकें हैं, जो कि अन्‍य राज्‍यों को मिल चुकी है। इस दिशा में शिक्षा विदो और सरकार को नये सिरे से सोचना आवश्‍यक है अन्‍यथा परिणाम घातक होंगे।
                                          ''मप्र की जय हो''

शनिवार, 19 जनवरी 2013

MPraag: सडकों को एक एजेंसी के हवाले करने पर फिर पहल

MPraag: सडकों को एक एजेंसी के हवाले करने पर फिर पहल:                              मध्‍य प्रदेश में सडकों की बदहाली पर एक बार फिर हर कहीं शोरगुल हो रहा है, सत्‍तापक्ष् भाजपा की  चिंता यह है कि ...

सडकों को एक एजेंसी के हवाले करने पर फिर पहल

            मध्‍य प्रदेश में सडकों की बदहाली पर एक बार फिर हर कहीं शोरगुल हो रहा है, सत्‍तापक्ष् भाजपा की  चिंता यह है कि विस चुनाव से पहले सडक चकाचक हो जाए, इसके लिए मुख्‍यमंत्री हर स्‍तर पर प्रयास तो कर रहे है पर सडकों का निर्माण एक दिन में नहीं होना वाला है इस वजह से सरकार का परेशान होना स्‍वाभाविक है, इस राज्‍य में सडकों का निर्माण आधा दर्जन से अधिक सरकारी विभाग  करते है जिसके चलते सडक कोई भी एजेंसी बनाए पर अगर वह जल्‍दी बदहाल की अवस्‍था में पहुंची तो जनता, मीडिया, जनप्रतिनिधि एक स्‍वर से लोक निर्माण विभाग को कोसना शुरू कर देते है, कई बार यह बात सामने आई है कि लोनिवि तो चुनिंदा ही सडकों का निर्माण कर रहा है पर बदनामी तो उसकी ही होती है इसके चलते अब राज्‍य के सीएस आर परशुराम ने मुख्‍यमंत्री शिवराजसिह चौहान को एक सलाह दी है कि शहरों की सारी सडकों की जिम्‍मेदारी लोनिवि को दे दी जाए, इसके पीछे का तर्क यह है कि इससे विभाग को सारी सडकों की जानकारी होगी और उनका समय समय पर रख रखाव हो सकेंगा, अभी तो हाल यह है कि शहरों और महानगरों में नगर निगम, विकास प्राधिकरण, हाउसिंग बोर्ड, जलसंसाधन विभाग, भोपाल में राजधानी परियोजना भी सडकों को बनाने में हाथ अजमा रहे है इससे सडकों की गुणवत्‍ता पर तो सवाल उठते ही रहते है इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की सडकों का निर्माण् पंचायत एवं ग्रामीण विकास कर रहा है जिसके तहत प्रधानमंत्री सडक बनाई जा रही है तो मुख्‍यमंत्री सडक के नाम से भी योजनाएं चल रही है, इन सडकों का निर्माण सडक विकास प्राधिकरण कर रहा है, इससे साफ जाहिर रहे है कि राज्‍य में सडकों को निर्माण करने वाली एजेंसियों की संख्‍या काफी है, यह हालत वर्ष 1990 के बाद बनी है इससे पहले सारी सडकों का निर्माण लोनिवि ही करता था, अलग अलग एजेंसी के हिस्‍सों में सडकों का निर्माण जाने से लोनिवि ने तो राहत की सांस ली पर बदनामी  से विभाग बच नहीं पा रहा है, आलम यह है कि विभाग ने स्‍टेट हाइवे का काम सडक विकास निगम को दे रखा है जबकि राष्‍टीय राजमार्ग की चिंता भी विभाग नहीं कर रहा है अब जो एनएच विभाग ने ले लिए है उसके लिए विभाग को मेहनत करनी पडी रही है, सडको को लेकर विभाग में तो खूब चर्चा होती है पर आम आदमी इन सडकों को लेकर हर कहीं चर्चा करता है क्‍योकि सडकों से उसका रोज का ही वास्‍ता पड रहा है इस वजह से सडकों को लेकर नई नई कहानियां भी खुब बाजार में आती है विभाग के इंजीनियरों को भी सडकों के निर्माण व मरम्‍मत में खूब मजा आता है यही वजह है कि लोनिवि के इंजीनियर सडकों के निर्माण में जितनी रूचि लेते है उतनी वे भवन निर्माण मे नहीं लेते है, कुल मिलाकर मुख्‍यसचिव अभी तक तो अपने काम काज से कोई असर प्रशासन पर नही छोड पाए है पर अब सडकों को एक ही एजेंसी को देने की पहल करके वे विभाग को ताकत देने का काम कर रहे  है अब यह कब तक होता है यह तो नौकरशाही पर निर्भर करेंगा पर सीएस ने एक बेहतर सुझाव तो दे दिया है जिसकी प्रशंसा होनी ही चाहिए 1
                                               मप्र  की जय हो

प्रेमी ने धकेला वैश्‍यावृत्ति में तब उसका गर्भ क्‍यों पाले महिला कैदी

           प्रेम क पवित्र रिश्‍ता जब तार-तार हो जाये, तब फिर रिश्‍तों की पवित्रता भी क्‍यों रखी जाये। इसी राह पर इंदौर जेल में विचाराधीन महिला कैदी 35 वर्षीय हल्‍लो बी भी चल पड़ी है। उसने जिस प्रेम की डोर थाम कर अपने जीवन में नये सपने और इरादे गढ़े थे, उन्‍हें प्रेमी ने अपने स्‍वार्थों की खातिर ऐसी राह पर ले गये, जहां वह वैश्‍यावृत्ति के दलदल में जा फंसी। यह घटना दिल दहला देने वाली है, क्‍योंकि 35 वर्षीय हल्‍लो ब ने अपने शोहर और बच्‍चों को इंदौर में छोड़कर अपने प्रेमी के साथ इंदौर में ही पत्‍नी की तरह रहने लगी थी, पर उसे क्‍या पता था कि जिस प्रेमी की खातिर वह अपना घर, द्वार, रिश्‍ते-नाते, बच्‍चों और पति का प्‍यार एवं आंगन लांघकर बाहर निकली थी वह दुनिया उसके लिए खतरनाक साबित हुई। इस प्रेमी ने उसे थोड़े दिन तो अपने प्रेम के मायाजाल में फंसाये रखा, फिर वैश्‍यावृत्ति में उतार दिया, लेकिन हल्‍लो बी को यह मंजूर नहीं था और नवंबर, 2012 में उसने अपने प्रेमी पति को जिंदा जलाकर मार डाला । इसी संगीन आरोप में वह सजा भोग रही है। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। इन दिनों वह जेल में बिना किसी अफसोस के अपना जीवन गुजर-बसर कर रही है। इस महिला कैदी की वकील शन्‍नो शगुफ्ता खान पैरवी कर रही है और न्‍याय दिलाने की कोशिश में जुटी है। इन्‍हीं वकील साहिबा की पहल पर मप्र की इतिहास में पहली बार उच्‍च न्‍यायालय इंदौर ने महिला कैदी को 12 हफ्ते का गर्भपात कराने की इजाजत दे दी है। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक निर्णय है। महिला कैदी हल्‍लो बी का कहना है कि उसके पेट में जो गर्भ ठहरा हुआ है वह उसे बेहद परेशान करता है। इस बच्‍चे को वह जमीन पर बिल्‍कुल नहीं लाना चाहती है। महिला को यह नहीं मालूम है कि जिसका गर्भ पेट में पल रहा है उसका पिता कौन है। महिला ने यह तक कहा कि यह बच्‍चा उसकी मर्जी के खिलाफ गर्भ में आया है इसलिए वह बच्‍चे को जन्‍म नहीं देना चाहती है। उसका कहना है कि बहशी पति ने उससे गलत काम करवाया जिसके कारण वह बच्‍चे को जन्‍म देना नहीं चाहती है। जिसके फलस्‍वरूप इंदौर उच्‍च न्‍यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए गर्भपात कराने के आदेश जारी कर दिये हैं। कोर्ट ने यह तक कहा है कि महिला का गर्भपात एमवाय करवाकर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाये। मेडीकल रिपोर्ट के अनुसार महिला का गर्भपात कराने में किसी भी प्रकार की कोई दिक्‍कत नहीं है। कोर्ट ने मेडीकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेंगनेसी एक्‍ट के प्रावधानों के तहत दो डाक्‍टरों की समिति बनाकर महिला कैदी के गर्भपात की जांच कराई थी। जिसमें डॉक्‍टरों ने कहा था कि गर्भपात कराने में कोई परेशानी नहीं है। निश्चित रूप से पूरे देश के साथ मध्‍यप्रदेश में भी गर्भपात के खिलाफ सख्‍त कानून है। गर्भपात के खिलाफ कार्यवाहियां भी मप्र में की जा रही हैइंदौर उच्‍च न्‍यायालय के समक्ष 16 जनवरी, 2013 एक ऐसा मामला आया जिसमें कोर्ट ने नियम, कानूनों को शिथिल करते हुए महिला के दिल और दिमाग की बातों को सुना। यह फैसला दूरगामी परिणाम देगा। समाज में एक नई बहस शुरू होगी और समाजशास्त्रियों के लिए विचार के विविध पहलू सामने आये हैं। 
                                             ''मप्र की जय हो''

शनिवार, 12 जनवरी 2013

किशोरियों को बेचने का गिरोह फलफूल रहा है मध्‍यप्रदेश में

            जहां एक ओर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बेटी बचाओ अभियान के लिए जी-तोड़ न सिर्फ मेहनत कर रहे हैं, बल्कि हर तरह के रास्‍ते खोल रहे हैं, ताकि बेटियों को बचाया जा सके। दूसरी ओर राज्‍य में ऐसा गिरोह भी फलफूल रहा है, जो कि किशोरियों को बेचने में लगा है। राज्‍य के हर हिस्‍से में किशोरियों के बेचने की घटनाएं सामने आ रही हैं। पुलिस ऐसे गिरोह का पर्दाफाश भी कर रही है। आदिवासी और दलित वर्ग की युवतियों को बेचने का गिरोह उन इलाकों में सक्रिय है, जहां पर इस वर्ग का बाहुल्‍य है और उन सीधी-साधी किशोरियों को रोजगार के नाम पर महानगरों में लेकर जाकर बेचा जा रहा है। ऐसे गिरोह भी लोगों के नजर में आ गये हैं और पुलिस उन्‍हें पकड़ भी रही है, फिर भी वे किसी और माध्‍यम से अपना धंधा कर रहे हैं। दिलचस्‍प यह है कि किशोरियों के बेचने वाले गिरोह हर छह महीने में पकड़े जाते हैं और इस बात की पुलिस तफतीश नहीं करती है कि आखिरकार यह गिरोह पनप क्‍यों जाते हैं। कुछ लोगों का संदेह है कि पुलिस की मिलीभगत से ऐसे गिरोह पनपते हैं। मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी किशोरियों के बेचने का मामला सामने आते रहे हैं। अब 11 जनवरी, 2013 को राजधानी की पुलिस ने एक नाबालिग बच्‍ची को दो बार बेचने पर एक गिरोह को धर-दबोचा है। यह गिरोह मैरिज ब्‍यूरो के नाम पर किशोरियों को बहला-फुसलता था। राजधानी के छोला मंदिर इलाके में रहने वाले एक मजदूर की नाबालिग पुत्री आठवीं की छात्रा थी और वह 20 नवंबर, 2011 से संदिग्‍ध परिस्थितियों में लापता हो गई थी, जिसकी पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज थी। इस नाबालिग किशोरी को इलाके का रहने वाला ओमकार बेरागी घुमाने-फिराने और शादी का सपना दिखाकर उसे घर से भगा ले गया था। आरोपी ने भोपाल स्‍टेशन पर पार्वती बाई नामक महिला को इस नाबालि किशोरी को पांच हजार रूपये में बेच दिया था। 
पार्वती बाई नाबालिग बच्‍ची को हरदा दे गई, जहां पर वह बच्‍ची से भीख मंगवाती थी। इंसानियत तब तार-तार हो गई, जब इस महिला ने नाबालिग बच्‍ची के हाथ और पैरों में लोहे के सरिया दाग दिये थे। जब हरदा में इस घटना की भनक लगी, तो लोगों ने पार्वती बाई का घर जला दिया, लेकिन पार्वती बाई इस बच्‍ची को लेकर इंदौर पहुंच गई, जहां पर उसने नाबालिग किशोरी को दस हजार रूपये में बेच दिया। जिन लोगों ने नाबालिग को खरीदा था वह उसकी शादी कराकर पैसा ऐंठनी की नियत से भोपाल में घूम रहे थे, तभी वह पुलिस की नजर में चढ़ गये और उन्‍हें धर पकड़ा गया। इससे पहले नाबालिग किशोरी ने अपनी मां को मोबाइल भी किया था। पुलिस ने जिस गिरोह को पकड़ा है वह गिरोह अब तक आधा दर्जन से अधिक लड़कियों को बेच चुका है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में लड़कियों को बेचने वाला गिरोह पहली बार पकड़ में नहीं आया है, बल्कि समय-समय पर ऐसे गिरोह पकड़ जा रहे हैं, लेकिन यह समझ से परे है कि आखिरकार विभिन्‍न इलाकों में ऐसे गिरोह पनप कैसे जाते हैं। उन पर पुलिस नजर क्‍यों नहीं रखती हैं। आदिवासी युवतियों को बेचने के मामले खूब सामने आ रहे हैं और खूब हल्‍ला भी मच रहा है, लेकिन फिर भी किसी भी स्‍तर पर कोई नीतिगत निर्णय नहीं हो पा रहा है। 
                                        ''मध्‍यप्रदेश की जय हो''

           

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

भोपाल को चमकाने पर अब जोर दे रहे हैं सीएम

        चुनावी साल में मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल को चमकाने के लिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौान जोर देने लगे हैंपिछले साल भी भोपाल के विकास पर बैठक के साथ-साथ शहर का मुआयना करके विकास के कामों को करीब से देख चुके हैं मुख्‍यमंत्री।10 जनवरी, 2013 को मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रालय में राजधानी के विकास को लेकर करीब 4 से 5 घंटे तक जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के साथ मंथन किया। इस चिंतन-मंथन में कोई नई योजना तो बाहर नहीं आई, बल्कि अफसरों को तीन माह का अल्‍टीमेटम मिल गया है कि वे सड़कों को सुधार लें, अगर कहीं भी कोई भी गड़बडि़या दिखी, तो फिर खैर नहीं। यहां तक कि मुख्‍यमंत्री ने कहा कि तीन महीने बाद वे स्‍वयं सड़कों पर उतरकर वास्‍तविकता को देखेंगे। 
         मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के विकास को लेकर स्‍थानीय शासन मंत्री बाबूलाल गौर जिस तरह की पहल करते हैं, उसमें वे इस बार कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। विभिन्‍न-विभिन्‍न एजेंसियों के असहयोग के चलते विकास के उस पायदान पर नहीं पहुंच पाये, जो गौर का सपना था। सच कहा जाये, तो बीते चार सालों में भोपाल को कोई खास सौगात गौर नहीं दे पाये हैं, जो बीआरटीएस योजना के तहत चमचमाती सड़कें शहर में नजर आ रही है, उनमें ढेरो खामियां हैं। पिछले दो-तीन साल के दौरान इन सड़कों पर दुर्घटनाओं का ग्राफ ऐसा बढ़ा है कि ये सड़के अब मौत का मार्ग तक कहीं जाने लगी हैं। इन सड़कों की गुणवत्‍ता पर भी ढेरो सवाल उठ रहे हैं। बाते सड़कों तक सीमित नहीं हैं। राजधानी के विकास को लेकर जो गंभीरता सरकार को दिखानी चाहिए, उसमें अभी भी हम बहुत पीछे हैं। भोपाल की प्राकृतिक सौंदर्यता का कोई जवाब नहीं है। इस शहर के आसपास ऐतिहासिक इमारतें और ऐतिहासिक स्‍थल भी मौजूद हैं, जहां पर पर्यटकों को लुभाने के लिए भरसक कोशिश की जा सकती है। मसलन भोपाल के आसपास ही सांची, भीमबैठिका, भोजपुर जैसे स्‍थल मौजूद हैं, लेकिन सरकार फिर भी भोपाल के विकास में जो तेजी आनी चाहिए, वह कहीं नजर नहीं आ रही है। भोपाल में ही बड़ी झील का अपना महत्‍व है। इस झील को लगातार अतिक्रमणकारी खत्‍म कर रहे हैं, लेकिन सरकार की नींद नहीं खुल रही है। न तो सौंदर्यकरण की कोई योजना सामने आ रही है और न ही बड़े तालाब के पैकेज पर कोई ध्‍यान दिया जा रहा है। हालात यह हो गये हैं कि खूबसूरत शहर दिनों-दिन दम तोड़ रहे हैं। स्‍थानीय शासन मंत्री बाबूलाल गौर ने अपनी दिलचस्‍पी लेकर भोपाल को खूबसूरत तो बनाया है, लेकिन कई बार वे भी महसूस करते हैं कि उनके हाथ बंधे हुए हैं। अन्‍यथा वे भोपाल को विकास के मामले में ऊंचाईयों पर ले जाने की क्षमता रखते हैं। इसके बाद भी किसी भी स्‍तर पर विकास की गति धीमी ही चल रही है। यही वजह है कि भोपाल जिस रफ्तार से दौड़ना चाहिए, उसमें लगातार पिछड़ता जा रहा है। इसके लिए राजधानी के जनप्रतिनिधि बेहद जिम्‍मेदार है। 
                                         ''मप्र की जय हो'' 

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

प्रदेश के वीर जवान को बार-बार नमन

           पाकिस्‍तान के मंसूबों को सीमाओं पर ललकार कर चौंकसी करने वाले मध्‍यप्रदेश के वीर जवान सुधाकर सिंह के साहस, हिम्‍मत और देश सेवा को बार-बार नमन। इस जवान ने वह काम कर दिखाया है, जो कि हर मध्‍यप्रदेशवासी के लिए गौरव का विषय है। निश्चित रूप से हमें दुख भी है और अफसोस भी है कि हम अपने जवा साथी को खो चुके हैं, लेकिन फिर भी भारत-पाकिस्‍तान सीमा पर पाकिस्‍तानी सैनिकों की बर्बरता का शिकार मध्‍यप्रदेश का एक वीर जवान भी हुआ है, जो कि सीधी जिले के डढि़या गांव का निवासी है। इस घटना ने न सिर्फ पूरे मध्‍यप्रदेश को रूलाया और दुखी किया है, बल्कि विंध्‍य क्षेत्र में तो मातम छा गया है। उनके घर पर गमगीन माहौल है। 28 वर्षीय सुधाकर सिंह 5 सितंबर, 2012 को पिता बने थे और अभी महज 4 माह का उनका पुत्र है, पत्‍नी दुर्गा अपने पिता मानवेंद्र सिंह के पास रहकर बी0कॉम0 फायनल ईअर की पढ़ाई कर रही थी। पत्‍नी का रो-रो कर बुरा हाल है, लेकिन वह गर्व से कह रही है कि वह
अपने बेटे को भी सेना में भेजू्गी। निश्चित रूप से दिल दहला देने वाली घटना है, लेकिन सुधाकर सिंह का जांबाजी से लड़ना हम सबके लिए गौरव है। उसने वादा  किया था कि जनवरी में गांव आयेगा और उसके लिए रिजर्वेशन भी करवा लिया था, लेकिन नियति की कहानी देखिए कि अब उसका पार्थिव शरीर गांव पहुंच गया है। सुधाकर के पिता सच्चिदानंद सिंह दुखी स्‍वर में कहते हैं कि बचपन से ही उसकी सेना में जाने की इच्‍छा थी वह कहा करता था कि एक दिन मरना ही है, तो देश के लिए मरेंगे, यह जज्‍वां और प्रेम देश के लिए उल्‍लेखनीय है। निश्चित रूप से सुधाकर सिंह की शहादत हमें सम्‍बल देती रहेगी। मध्‍यप्रदेश की जन्‍मभूमि पर पैदा एक वीर नायकइस तरह से अबसान हो जाने से दुख सबको है, लेकिन गौरव भी है कि हमारा नायक दुश्‍मनों से टकराते हुए शहीद हुआ है, फिर भले ही दुश्‍मनों ने ऐसा घिनौना काम किया है जिसे कभी मांफ नहीं किया जा सकता है। मध्‍यप्रदेश में पाकिस्‍तान के खिलाफ स्‍थान-स्‍थान पर विरोध तीखा हो रहा है। लोग सड़कों पर उतरकर पाकिस्‍तान के पुतले जला रहे हैं। वीर जवान सुधाकर को बार-बार नमन। 
          

                                       ''मध्‍यप्रदेश की जय हो''

बुधवार, 9 जनवरी 2013

बाप कलेक्‍टर, तो फिर बेटों ने फरियादी पर ही मुकदमा कराया

        ''सैया भय कोतवाल तो डर काहे का'' यह कहावत खूब चर्चित है। इसका सहारा लेकर लोग अधिकारो क दुरूपयोग की बातें करते हैं। आधुनिक युग में यह कहावत सच साबित हो रही है। अब देखिए ना दतिया के कलेक्‍टर जीपी कबीरपंथी के दो साहबजादो ने राजधानी में अपने दोस्‍तों पर जानलेवा फायरिंग का कारनामा किया। भोपाल के पुलिस, कलेक्‍टर के बच्‍चे होने के कारण मामले को दबाती रही, लेकिन जब ज्‍यादा हल्‍ला मचा, तो फिर भोपाल की टी0टी0नगर पुलिस को मामला दर्ज करना पड़ा, लेकिन हद तो तब हो गई, जब कलेक्‍टर के साहबजादों ने अपने पिता के जिले दतिया जाकर कलेक्‍टरी का रूतबा दिखाकर फरियादी के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज करा दिया। कितना आश्‍चर्य का विषय है कि हवाई फायरिंग भोपाल में हुई और विरोधियों पर मुकदमा दतिया जिले में  दर्ज किया गया। इसको लेकर प्रशासन के कामकाज की पोल खुल गई है। अब डीजीपी नंदन दुबे ने सारे मामले की रिपोर्ट भोपाल बुलाई है।