शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

बार-बार बांध निर्माण का विरोध क्‍यों करती हैं मेघा पाटकर

 
         मध्‍यप्रदेश जब-जब विकास की राह पर एक कदम आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तो उसकी राह में बाधा बनकर स्‍वयंसेवी संगठन मैदान में उतर आते हैं। कोई भी बांध का निर्माण शुरू हुआ तो उसका विरोध भी शुरू हो जाता है। विरोध करने वाले चेहरे भी अब सरकार से लेकर मीडिया भी पहचानने लगी है। नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोबर बांध के निर्माण का सबसे ज्‍यादा विरोध सुश्री मेघा पाटकर ने किया। उन्‍होंने अपनी छवि ही नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री के रूप में की है। वह करीब डेढ़ दशक से अधिक समय से भोपाल से लेकर दिल्‍ली तक खूब हल्‍ला मचाती रही हैं। इसके बाद भी मुआवजा और पुनर्वास का मामला आज भी थमा नहीं है फिर भले ही उन्‍होंने अपने आपको नर्मदा बचाओ आंदोलन से दूर कर लिया है। अब इस आंदोलन का नेतृत्‍व किन्‍ही ओर लोगों के हाथों में है। नर्मदा बचाओ आंदोलन से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी छवि बना चुकी मेघा पाटकर आजकल अन्‍ना आंदोलन में खूब सक्रिय रही। वहां भी उनके मतभेद रहे, तो मुंबई में झुग्‍गीवासियों का आंदोलन शुरू कर दिया, वहां से फ्री हुई तो अब फिर मध्‍यप्रदेश की ओर रूख किया है। इस बार उनके निशाने पर महाकौशल अंचल के छिंदवाड़ा जिले में पेंच परियोजना है। इस बांध के निर्माण को लेकर उन्‍होंने हल्‍ला बोला और प्रशासन ने उन्‍हें गिरफ्तार भी किया पर समाजसेवी अन्‍ना हजारे ने उनके समर्थन में बयान दिया, जिसके चलते सरकार ने आनन-फानन में उन्‍हें रिहा भी कर दिया। सामाजिक कार्यकर्ता मेघा पाटकर को दो दिन ही जेल में बिताने पड़े। अब वे कह रही हैं कि बांध में फर्जीवाड़ा हो रहा है इसके खिलाफ वह चुप्‍प नहीं रहेगी और लगातार आंदोलन करती रहेगी। इस पेंच परियोजना का विरोध पूर्व विधायक डॉ0सुनीलम ने शुरू किया था वह इन दिनों जेल में हैं, तो उनके आंदोलन का नेतृत्‍व बैतूल जिले के अधिवक्‍ता आराधना भार्गव कर रही हैं, उन्‍हें भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, वे भी 8 नवंबर को रिहा हो गई हैं। अब मेघा पाटकर और आराधना भार्गव ने मिलकर आंदोलन तेज करने का संकल्‍प लिया है। अब आंदोलन कितना जोर पकड़ेगा यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन यह तय हो गया कि मेघा पाटकर को मध्‍यप्रदेश की सरजमी रास आ गई है। जहां वे विकास को लेकर कोई भी बांध का निर्माण होगा, तो उसका विरोध करने के लिए सबसे पहले मौजूद रहती हैं। वर्तमान सरकार के आंख की किरकिरी बनी हुई हैं। भाजपा सरकार उन्‍हें पसंद नहीं करती है और न ही कभी संवाद का कोई रास्‍ता खोलती है। यह सच है कि मेघा पाटकर को विकास की राह रोकने का विरोधी कहा जाता है, लेकिन वह किसानों को न्‍याय दिलाने की बात तो करती हैं, लेकिन वे आंदोलन को बीच में ही छोड़ देती हैं। यह स्थिति नर्मदा बचाओ आंदोलन में भी बनी थी। जहां वे अब बहुत कम जाती हैं। 
पेंच परियोजना और विरोध : 
      छिंदवाड़ा जिले में पेंच बांध निर्माण पर खूब राजनीति हो रही है। इस बांध की लागत भी 91 करोड़ से 1800 करोड़ जा पहुंची है। पेंच नदी पर बन रहे 6 किमी इस बांध को लेकर कई स्‍तरों पर विरोध हो रहा है। 1980 में इस बांध की शुरूआत हुई तब लागत महज 91 करोड़ थी, जो कि 32 साल बाद 2012 में बढ़कर 1800 करोड़ हो गई है। इस बांध के निर्माण में करीब 32 गांवों के किसान विस्‍थापित किये जा रहे हैं। इन किसानों की जमीन अधिग्रहण की जा रही है, लेकिन किसानों को कहां स्‍थाई रूप से बसाया जायेगा, इसके लिए अभी कोई स्‍पष्‍ट योजना नहीं है। किसान भी धीरे-धीरे विरोध कर रहे हैं और उन्‍हें लगता है कि अगर विरोध तेज किया, तो मुआवजा के साथ-साथ जमीन के बदले जमीन भी मिलेगी। सुप्रीमकोर्ट भी कह चुका है कि जहां पर भी बांधों का निर्माण हो वहां पर हर हाल में बेघर किये जा रहे किसानों को जमीन के बदले जमीन मिले। 
                           ''जय हो मध्‍यप्रदेश की''

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