''आओ साथ-साथ प्रार्थना करें: भूरिया और प्रभात इंदौर के खजराना मंदिर में'' |
देखिए मध्यप्रदेश की राजनीति कैसे-कैसे करवट लेती है। राजनेता जब आमने-सामने होते हैं तो मोहब्बत से गले लगते हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ होते हैं। पर्दे के पीछे मदद करने में कोई किसी से पीछे नहीं है। यही वजह है कि राज्य में मिली-जुली राजनीति चल रही है। ऐसा कहना भी उचित नहीं है कि क्या राजनेता हमेशा राजनीति करते रहे और वे जब विरोधी के सामने आये तो गले भी न मिले यह कैसे संभव हो सकता है। यह सच है कि मप्र में कांग्रेस और भाजपा दो दलों की ताकत राज्य में चहुंओर है। इन्हीं दलों के नेता अपने-अपने तीरों से एक-दूसरे पर निशाना साधते रहते हैं। विशेषकर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने तो 2010 के बाद राज्य की राजनीति में अपने बयानों से ऐसा तूफान खड़ा किया है, जो कि थमने का नाम नहीं ले रहा है। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेताओं पर तीखे बार किये हैं जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह शामिल हैं। इन नेताओं पर झा ने हर तरह के हमले किये। यहां तक कि तनातनी के चलते झा और अजय के बीच तो मामला कोर्ट में पहुंचा गया है। ऐसी स्थिति में अगर झा और भूरिया गले मिले, तो क्या राजनीति मानी जाये, जी नहीं इसे राजनीति नहीं मानना चाहिए पर यह तो एक सवाल तो उठता ही है कि आखिरकार झा और भूरिया बार-बार निकट क्यों आ रहे हैं। 02 नवंबर को इंदौर के प्रसिद्व गणेश मंदिर खजराना में भूरिया और प्रभात साथ-साथ पहुंच गये। भूरिया और झा ने एक साथ माला भी चढ़ाई और अलग-अलग प्रार्थनाएं भी की। इसके बाद दोनों गले भी मिले। अब राजनेता इसे कह रहे हैं कि यह एक संयोग था, क्योंकि भूरिया अपने बेटे की शादी का कार्ड भगवान को सप्रेम भेंट करने गये थे, जबकि झा सिर्फ दर्शन करने गये थे। एक महीने पहले भी झा और भूरिया भोपाल के एयरपोर्ट पर आधा घंटे तक गपशप करते रहे। बाद में दिल्ली तक विमान में अगल-बगल की सीट में बैठकर पूरे मार्ग में चर्चा ही करते रहे। तब विमान में बैठे संवारियों के लिए यह चौकाने वाला दृश्य था, क्योंकि भूरिया और झा के बीच जबर्दस्त राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है। भूरिया झा को राज्य का बाहरी नेता बताकर हमला कर रहे हैं और झा भूरिया को नकली आदिवासी नेता कहते हैं। अपने-अपने बजूद की लड़ाई लड़ रहे इन नेताओं की निकटता देखकर कई प्रकार के सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। यूं भी इन दिनों कांग्रेस के नेताओं पर यह आरोप लगता ही रहता है कि वे भाजपा से मिल गये हैं। ऐसा कई बार विधानसभा के फ्लोर पर भी नजर आता है और राजनीतिक जंग के मैदान में भी उसके आंशिक असर परिलक्षित होते हैं।
ऐसा नहीं है कि मप्र में राजनीति में पहली बार कांग्रेस और भाजपा पर मिली भगत के आरोप लग रहे हो। 80 के दशक में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और नेता प्रतिपक्ष रहे सुंदरलाल पटवा की दोस्ती की गूंज दिल्ली तक होती रही है। वही 93 से 2002 तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की दोस्ती नेता प्रतिपक्ष रहे विक्रम वर्मा से बेहतर रही है। इसके अलावा कैबिनेट मंत्री बाबूलाल गौर और अर्जुन सिंह के बीच भी गहरी निकटता थी। दोनों नेता जब मौका मिलता तो गपशप करते थे। वही दूसरी ओर दिग्विजय सिंह तो अपने भोपाल प्रवास के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के निवास पर जाकर मेल-मुलाकात करते ही हैं। राजनीति में किसी से कोई दुश्मनी नहीं होती है। राजनेता अपने-अपने तरीकों से राजनीति करता है। कभी दोस्ती भी होती है और कभी जंग के मैदान में जब लड़ाई होती है तो विरोधियों को मात देने की ललक भी बनी रहती हैं, लेकिन मप्र में धीरे-धीरे राजनीति कम हो रही है, बल्कि राजनैतिक दलों में दोस्ती ज्यादा हो रही है जिसके चलते विवाद गहरा रहे हैं और राजनीतिक नेताओं की भूमिका पर भी सवाल खड़े होना शुरू हो गये हैं। वैसे भी मप्र की राजनीति में वह धार अब गायब से होती जा रही है, जो अपने आप में कभी बरकरार थी।
और मुख्यमंत्री का सम्मान करते संघ प्रमुख भागवत :
सम्माननीय शिव राज सिंह जी चौहान .आपको बधाई , भगवन श्री रामराजा सरकार ओरछा का बरदान है आप अभी प्रदेश का राज्य करेगें .
जवाब देंहटाएंआप ने अपने प्रदेश में वो काम कर दिए है जिससे जनता में विश्वास है। आपके पास मेरे कुछ सुझाव गये थे जो स्वीकार हो चुके है। आज कुछ सुझाव और भेज रहा हूँ कृपा कर मेरे सुझाव भी स्वीकार करने का आदेश देगे ऍसी आशा है।
1-समूचे प्रदेश के किसानो का राजस्व रिकार्ड आज तक सही कम्प्यूटर में नहीं हो प् रहा है। राजस्व अधिकारी जानकारी आप तक देते है। इसलिए प्रेत्येक काश्तकार के जा कर खसरा बी -1 पूर्ब साल की तरह दिलाने की कार्यबाही 26-1-2013 तक की जाबे
2-प्रत्येक गाँव के हल्का पटवारी का ग्राम में ही मुख्यालय नहीं है। जो आवश्यक है गाँव गाँव में पटवारी निवास करें तथा उसकी जाँच की जुम्मेदारी जुम्मेदारी राजस्व अधिकारी व जनपद अधिकारी को सौपी जाये . पटवारी के पास पुलिस विभाग की तरह मोबाईल नम्बर हो की पटवारी भले ही बदले लेकिन गाँव के पटवारी जो भी आबे वहीँ नम्बर सिम उसके पास हो। जिससे किसान को बार बार नम्बर याद करने की आवश्यकता न होगी
3-तहसील कार्यालय में तहसील क्षेत्र के सभी पटवारियों की नाम नम्बर सहित जानकारी सुचना पटल पर बाहर हो।
4-पंजीयन विभाग में पंजीयन होने वाली प्रत्येक रजिस्ट्री बैनामा की जानकारी दस्ताबेज पंजीयन के दूसरे दिन तहसीलदार के पास पहुचने की जुम्मेदारी सब रजिस्टार की करदी जाबे , इस कारण स्टाम्प की चोरी रुकेगी व नामान्तरण तुरन्त राजस्व रिकार्ड में दर्ज हो सकेगे
5-नगर पालिका नगर पंचायत क्षेत्र सीमा क्षेत्र में अबैध कालोनियों को रोकने केलिए पटवारी व नगरपालिका अधिकारी की जुम्मेदारी की जाबे।
6-प्रत्येक पुलिस थाना में शिकायत आवेदन के आवक जाबक रजिस्टर बंद हो गये है उन्हें तत्काल चालू कराए जाबे , धारा 155 पुलिस अहस्क्षेप रिपोर्ट की प्रत्येक माह बरिष्ठ अधिकारी को समीक्षा ली जाबे . जिससे पुलिस गम्भीर अपराध को भी धारा 155 में नालिश की सलाह देकर अपना उल्लू सीधा कर लेती है वह बंद होगा -
आपका -संतोष गंगेले ब्यूरो चीफ छतरपुर .एम् पी मिरर भोपाल 09893196874