सरकार के कामकाज की धुरी इस कदर पटरी से उतर चुकी है कि पूरी मशीनरी में भी अगर बदलाव कर दिया जाये, तो भी स्थिति जस की तस रहेगी। इसकी वजह है पूरी व्यवस्था में कहीं न कहीं संड़ाध होना है। यही वजह है कि दुर्घटनाएं हो जाती है और फिर जांच का सिलसिला शुरू होता है, रिपोर्ट आती है, उसका रोना रोते हैं, लेकिन उन कारणों तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके कारण दुर्घटनाएं होती है और न ही उन्हें रोकने के उपाय होते हैं। बार-बार मध्यप्रदेश में तो यही दोहराया जा रहा है। पिछले पांच सालों में मेलों में भगदड़ हो रही है, लोग घायल एवं मर रहे है तथा सरकार मूकदर्शक बनी बैठी है। दो-चार दिन हल्ला होता है और फिर वही स्थिति बन जाती है। प्राकृतिक आपदाएं रोकने के लिए कड़े प्रावधान है, मगर जब संकट सिर पर होता है, तब वे एजेंसियां जागती है। यही हाल मप्र की राजधानी भोपाल में 18-19 नवंबर की रात्रि में भोपाल में एक पानी की टंकी ढह गई जिसमें सात लोगों की मौत एवं 33 लोग घायल हो गये हैं।
जब यह टंकी अचानक भरभराकर गिरी तो लोगों को पानी और गिट्टी, पत्थर का सामना करना पड़ा। रात में सो रहे लोग अचंभित थे कि यह क्या हो गया, हर तरफ भगदड़ चीख और मदद की गुहार गूंजने लगी। घटना के दूसरे दिन 19 नवंबर को आंसू, आक्रोश और आश्वासन का दौर चला, राजनेताओं पर लोगों ने गुस्सा जाहिर किया। सरकार की अलग-अलग एजेंसियों ने तीन जांच कमेटियां बना दी, जो कि अब अपने-अपने अंदाज से जांच करेगी। इस पूरे घटनाक्रम का दुखद पहलू यह है कि राजनेता विशेषकर सत्तारूढ़ दल के नेता घटना होने के आठ घंटे बाद मौके पर पहुंचे तो फिर लोगों का गुस्सा जमकर फूटा। इस क्षेत्र के माननीय विधायक ध्रुवनारायण सिंह तो घटना के बाद दंभ से कह रहे हैं कि उन्हें तो सूचना प्रशासन ने सात बजे दी। क्या वे प्रशासन के दम पर राजनीति कर रहे हैं। यह सवाल जहन में उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार विधायक महोदय इतनी देरी से क्यों आये। अब इस बात की भी तफतीश हो रही है जिस पानी की टंकी की उम्र 30 साल पूरी होनी थी, वह पांच साल पहले ही भरभराकर गिर पड़ी। राजधानी में पानी की टंकी के आसपास अवैध कब्जे आम बात है। इस दिशा में नगर निगम तथा प्रशासन न तो सजग है और न ही चिंतित है। इस वजह से ही लोगों ने पानी की टंकी के आसपास की जमीन पर कब्जा कर लिया है। जिसके चलते अगर ऐसी घटनाएं हो जाये, तो क्या किया जा सकता है। इसी प्रकार राजधानी में मुख्य रेल्वे स्टेशन एवं उप स्टेशन हबीबगंज के आसपास की पटरियों के इर्द-गिर्द कई झुग्गियां बनी हुई है, क्या इन पर कोई गौर करेगा। भोपाल में कई ऐसे गंभीर पहलू है जिन पर राजनेताओं को नये सिरे से मंथन एवं चिंतन करना चाहिए, अन्यथा शहर मुसीबतों के जाल में फंसता ही जायेगा और हम एक समस्या के बाद दूसरी समस्या का निदान खोजने में ही लगे रहेंगे। समस्याएं बढ़ती ही जायेगी।
''जय हो मध्यप्रदेश की''
बड़ा ताज्जुब होता है इस देश में लोगों की जानें जाती हैं और सरकार मौत की जांच के लिए कमेटी बनाती फिरती है। मौत की वजह नहीं देखी जाती। पानी टंकी फूटी क्यों,कितने साल हो गये बने,क्या वह अपनी अवधि पूरी कर ली या फिर निर्माण में भ्रष्टाचार हुआ है? किस ठेकेदार ने बनवाया उस पर कार्रवाई करने की बजाय सरकार जांच की रिपोर्ट का इंतजार करती है। तब तक दोशी अपने बचाव की व्यवस्था कर लेते हैं। मरने वालों के परिजनों को सरकार मुआवजा बंाट देती है ताकि उनके परिजन हल्ला न मचायें। काफी दिनों बाद आंख के आसूं भी बहना बंद हो जाते है। और लोग भूल जाते हैं कि सरकार की लापरवाही से उनके परिवार का कोई मर भी गया है। और सरकार फिर चल पड़ती है, किसी और मौत का मुआवजा बांटने।
जवाब देंहटाएं