मनरेगा यानि भ्रष्टाचार का एक नया दरवाजा। मध्यप्रदेश में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। इस योजना के तहत जो विकास कार्य हुए है उसमें भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतें भोपाल से लेकर दिल्ली तक पहुंची हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय तक 200 शिकायतें पहुंच चुकी हैं। इस मामले में एक हजार से अधिक इंजीनियर और अधिकारी भ्रष्टाचार के दल-दल में फंसे हुए हैं। दो आईएएस अफसरों को निलंबित किया जा चुका है, इसके बाद भी मनरेगा में भ्रष्टाचार थम नहीं रहा है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश द्वारा बार-बार नाराजगी जाहिर करने के बाद भ्रष्टाचार की गंगा तो थम नहीं पाई है, लेकिन उन भ्रष्ट अफसरों को जरूर चिन्हित कर लिया गया है, जो कि योजना के जरिये अपनी बल्ले-बल्ले कर रहे थे। ऐसे अफसरों को घर बैठाने की तैयारी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अरूणा शर्मा ने कर ली है।
मध्यप्रदेश में मनरेगा योजना शुरू होने के साथ ही भ्रष्टाचार की नदियां बहने लगी थी। शुरूआती दौर में जॉब कार्ड बनाने को लेकर गड़बडि़या हुई, फिर निर्माण कार्य, खरीदी और फर्जी जॉब कार्ड पर रोजगार के मामले सामने आने लगे। यहां तक कि दरी-चटाई और, गेंती-फावड़ा खरीदी में भी अफसरों ने भ्रष्टाचार किया। अभी तक करीब 500 से ज्यादा सरपंच और सचिवों को हटाया जा चुका है। 5 दर्जन जनपद सीईओ पर कार्यवाही हो चुकी है। निश्चित रूप से इस योजना से विकास काम भी हुए है, लेकिन इसका दुखद पहलू यह है कि आज भी मध्यप्रदेश से लोगों का पलायन अनबरत जारी है। बुंदेलखंड और महाकौशल के लोग रोजगार की तलाश में आज भी दर-दर भटक रहे हैं तब फिर मनरेगा योजना को कैसे कामयाब माना जाये, क्योंकि इस योजना का मूल पाठ रोजगार देना है जिसमें योजना कामयाब नहीं हुई है, फिर तो भ्रष्टाचार की गंगा बहनी ही है।
''जय हो मप्र की''
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