किसानों की जिंदगी में पीड़ाएं असहनीय हैं। कभी उन्हें प्रकृति की मार का सामना करना पड़ता है, तो कभी दलालों से दो-दो हाथ करने को विवश होना पड़ रहा है। कहीं न कहीं किसान ही लुट रहा है, उसकी जमीन पर उद्योगपतियों की नजर है, तो बीच में दलाल की भूमिका में अधिकारी आ गये हैं। अगर किसान जमीन देने में आनाकानी कर रहा है, तो डंडे का जोर दिखाया जा रहा है यानि किसान अपने खेत से लेकर घर तक कहीं भी असुरक्षित नहीं है। अगर किसी साल लहराती फसले हो जाये, तो किसान को बाजार में उचित दाम नहीं मिलता है। फसल के लिए समय पर बीज नहीं मिलता है, खाद के लिए लंबी-लंबी लाइनों में महीनों किसान को खड़े रहना पड़ता है, तब जाकर किसान को खाद मिलती है। फिर बिजली और सिंचाई की जद्दोजहद तो अलग झेलनी ही पड़ती है। यह हाल मध्यप्रदेश के किसान का हो गया है। एक बार फिर राज्य का किसान चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा भी मौत के बाद शुरू हुई है। इससे पहले भी अगले साल जब किसानों का समूह रायसेन जिले में अपनी फसल बेचने के लिए मंडी पहुंचा था, तब उसे लाठियां और गोलियों का सामना करना पड़ा था जिसमें एक किसान की मौत भी हो गई थी। यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि किसानों की बदहाली सामने आ गई थी। अब किसानों की जमीनों को अधिग्रहण को लेकर एक किसान की पत्नी ने कटनी जिले में तेल डालकर अपने शरीर में आग लगा ली, बाद में उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद एक किसान ने और आत्महत्या की कोशिश की है।
अब सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं जिस महिला ने आत्महत्या की है वह पारिवारिक मामला था। तब दूसरे किसान ने क्यों जहर खाने की कोशिश की, इस बारे में सरकार क्यों मौन है। सबके अपने-अपने तर्क हैं। निश्चित रूप से इन दिनों प्रदेशभर में किसानों की जमीने अधिग्रहण करने का दौर चल रहा है। राज्य के कई जिलों में किसानों की जमीनों पर अधिग्रहण करके उद्योग स्थापित करने के सपने दिखाये जा रहे हैं। यह सिलसिला डिंडोरी, अनूपपुर, सिंगरौली, छिंदवाड़ा, खंडवा एवं हरदा में चल रहा है। विकास का कोई विरोधी नहीं है। निश्चित रूप से उद्योगों का जाल फैलाया जाना चाहिए, लेकिन किसानों की सिचिंत जमीन छीनकर उद्योगों की स्थापना जायज नहीं है। सु्प्रीमकोर्ट भी बार-बार कह चुका है कि अगर किसी किसान की जमीन सरकार लेती है, तो उसे जमीन के बदले जमीन देनी चाहिए पर ऐसा हो नहीं रहा है। इसके चलते जगह-जगह विवाद गहराते जा रहे हैं। दूसरी ओर बरेली गोली कांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। 9 नवंबर, 2012 को मानव अधिकार आयोग ने बरेली गोलीकांड के बारे में कहा है कि किसानों पर पुलिस ने एके-47 से 18 राउंड और 9-एमएम पिस्तौल से 5 राउंड चलाये थे जिसमें किसान हरीसिंह की मौत हो गई थी। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी इस रिपोर्ट के आधार पर फिर सरकार पर हमला बोला है और कहा है कि किसानों पर जिस तरह से गोली चलाई गई है वह अपने आप में निंदनीय है, जबकि किसान नेता शिवकुमार शर्मा का कहना है कि हम तो शुरू से कह रहे हैं कि षड़यंत्र के तहत किसानों पर फायरिंग की गई है। किसानों की मौत और उनकी जिंदगी को लेकर राज्य में एक बार फिर तीखी बहस सड़कों तक आ गई है। राजनीतिक दल अपने-अपने नजरिये से इस मुद्दे को भुनाने में लगे हुए हैं। अब कौन कितना भुनायेगा यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन किसान का अपना दर्द बढ़ता ही जा रहा है जिस पर मरहम लगाने के लिए कोई तैयार नहीं है। किसान की जिंदगी हर दिन जटिल होती जा रही है।
''जय हो मप्र की''
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