मध्यप्रदेश की तस्वीर और तकदीर बदलने की चाहत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दिल और दिमाग में है। इसके लिए वह हर पल कोई न कोई उपक्रम कर रहे हैं। निश्चित रूप से धीरे-धीरे जिस बीमारू राज्य की संज्ञा से प्रदेश को नबाजा जाता था, उससे मुक्ति तो मिली है। विकास का पहिया आगे बढ़ता ही जा रहा है। विरोधियों के मन में कई सवाल खड़े होते हैं पर मुख्यमंत्री चौहान इन सवालों को दरकिनार करके अपनी अलग राह बनाने पर जुटे हैं। उन्होंने सामाजिक संरचना के बीच में सरकार को प्रवेश करा दिया है, जो काम सामाजिक संगठन और कई अन्य-अन्य वर्ग करते थे उसके लिए सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया है फिर भले ही यह कार्य कन्यादान योजना हो अथवा लाडली लक्ष्मी या फिर तीर्थदर्शन योजना के जरिये हर वर्ग को प्रभवित करने के लिए सरकार भरसक कोशिश कर रही है। कन्यादान योजना की घर-घर में चर्चा होती है, क्योंकि इस योजना के तहत उन गरीब लड़कियों के विवाह हो रहे हैं जिनके मां-बाप विवाह करने में असमर्थ हैं। यही हाल घर में पैदा होते ही लाडली के साथ जो भेदभाव होता है उसे दूर करने के लिए मुख्यमंत्री ने लाडली लक्ष्मी जैसी योजना को आगे बढ़ाया। इन दिनों बुजुर्गों के बीच तीर्थदर्शन योजना की खूब चर्चा है। उन बुजुर्गों के लिए सरकार के मुखिया देवता बन गये हैं, जो बुजुर्ग कभी कल्पना नहीं करते थे कि वे अपने मन पसंद तीर्थ स्थल की यात्रा कर सकेंगे। इस चाहत को मुख्यमंत्री ने साकार किया। तीर्थ यात्रियों को एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ा और उन्होंने तीर्थ यात्रा करके पुण्य अलग कमा लिया। इससे सरकार की योजना का प्रचार-प्रसार हुआ है, लेकिन बुजुर्ग जिस तरह से हर घर में प्रचार अभियान चलाये हुए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 29 नवंबर, 2005 को पहली बार राज्य की कमान संभाली थी और फिर पीछे पलटकर नहीं देखा। दूसरी बार फिर वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री बने। गुरूवार को राजधानी के समाचार पत्रों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सात साल पूरे होने पर उनकी प्रशंसा के गीत गाये गये हैं। एक समाचार पत्र में लिखा है कि ''कुम्हार की भांति मध्यप्रदेश को किसान पुत्र गढ़ रहा है'', तो दूसरे अखबार ने लिखा है कि मुख्यमंत्री का सपना है कि ''हम जहां थे, वहां से काफी आगे आये है पर हमें और आगे जाना है'' जब मुख्यमंत्री ने दूसरी बार राज्य की कमान संभाली थी तब उन्हें सीईओ के रूप में अखबारों ने प्रचारित किया था। यह सच है कि मुख्यमंत्री चौहान ने अपनी कार्यशैली और प्रदेश की विकास योजनाओं के लिए जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया है उसमें वे कई बड़ी विज्ञापन कंपनियों को पीछे छोड़कर प्रदेश के विकास को जबर्दस्त ढंग से उल्लेखित करने की कला में माहिर हैं। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि शिवराज
सिंह चौहान खुद अपने आपके लिए चुनौती तो नहीं बन गये हैं। चाहे विपक्ष हो या सत्तापक्ष प्रदेश के राजनैतिक फलक पर कोई भी नेता उनके आसपास ठहरता नजर नहीं आ रहा है। सात वर्षों के कालखंड में अपनी सहज बुद्वि मिलनसार, लोगों का दिल जीतना, स्पष्ट दिशा और दृष्टि, विकास के प्रति सतत आग्रह तथा अविचल कर्मठता ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। निश्चित रूप से राजनीतिक कला कुशलता में उनका कोई शान ही नहीं है। वह जिस तरह से प्रदेश को विकास के नये आयामों की तरफ ले जा रहे हैं उससे उनकी छवि में सुधार तो हुआ ही है साथ ही साथ प्रदेश भी विकास की तरफ अग्रसर हुआ है, जो कि लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
गीत और गान ने एकजुटता का भाव जगाया :
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सात वर्ष के सफर में विकास के जो भी उल्लेखनीय काम किये हैं उनका तो गुणगान हो ही रहा है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने मध्यप्रदेश गान तैयार करवाकर किया है। यह गान जब गाया जाता है, तब मध्यप्रदेश की एकजुटता के भाव का अहसास होता है। उनके इस कालखंड में सबसे ज्यादा प्रदेश को स्वर्णिम राज्य बनाने के साथ-साथ आओ बनाए मध्यप्रदेश को भी ध्वनि मिली है। विकास के इस अभियान में मुख्यमंत्री की भागीदारी सबके सामने हैं पर मध्यप्रदेश को लेकर उनका जो सपना है वह निश्चित रूप से एक बेहद ही उजला पक्ष है जिसको लेकर हर व्यक्ति उनसे जुड़ने के लिए बेताब है। मध्यप्रदेश की बार-बार बात करना अपने आपमें चौहान का जोरदार पहलू है इस पर लोग जुड़ भी रहे हैं, कारवा बढ़ भी रहा है। इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं मध्यप्रदेश एक कदम आगे हैं।
''जय हो मप्र की''
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