किसानों की जिंदगी में अंधेरे की आहट लगातार दस्तक दे रही है। उनका सहारा उनकी ताकत है। जैसे-तैसे खेती करके परिवार का पालन-पोषण कर रहे किसानों के सामने अब खेती का संकट तो मंडरा ही रहा है साथ ही साथ उनकी जमीन भी उनसे छीनी जा रही है। इसके चलते किसान गुस्से में है। किसानों ने अब तय कर लिया है कि वे जमीन अपनी किसी भी हाल में नहीं देंगे। यह निर्णय कटनी जिले के किसानों ने लिया है। जहां पर एक बिजली कंपनी अपना कारखाना स्थापित करने जा रही है। दिलचस्प यह है कि इस कंपनी को अब तक कोल आवंटन नहीं हुआ है और न ही पानी की कोई व्यवस्था है, लेकिन किसानों की जमीन पर कब्जा करने का सिलसिला शुरू हो गया है। दुखद पहलू तो यह है कि किसानों को जो मुआवजा मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है जिस पर किसान बेहद गुस्से मे हैं। किसानों ने अपने खेतों पर चिता बना ली है,वे कह रहे हैं कि अगर उनकी जमीन पर जबरन कब्जा किया गया, तो चिता में आग लगाकर जिंदा जल जायेंगे। इन किसानों की पीड़ा को समझने के लिए राजनैतिक दल अपने-अपने दांव चल रहे हैं, लेकिन अब किसानों ने ही स्वयं मोर्चा खोल लिया है। किसानों की पीड़ा पर मरहम लगाने की बजाय कृषि मंत्री डॉ0 रामकृष्ण कुसमरिया ने बयान दिया है कि जो किसान भूमि अधिग्रहण के खिलाफ दो साल से चिताये सजाकर विरोध कर रहे हैं, वे किसानों के दलाल हैं। उन्होंने कलेक्टर तक को कह दिया है कि यहां असामाजिक तत्व हैं, उन्हें बाहर करिये। इसके बाद भी कटनी जिले में आंदोलन थम नहीं रहा है किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन का असर यह हो रहा है कि अब शहडोल में रिलायंस सीबीएम प्रोजेक्ट का भी विरोध शुरू हो गया है। यहां प्रभावित किसानों ने अपनी निजी भूमि से रिलायंस की गाडि़यों को रोकना शुरू कर दिया है। प्रदेश के कई हिस्सों में भूमि अधिग्रहण को लेकर धीरे-धीरे विरोध के स्वर गूंज रहे हैं। नाराजगी लगातार लोगों की बढ़ती जा रही है। कई स्वयंसेवी संगठन भी विरोध के लिए मैदान में उतर आये हैं। किसानों की एकता निश्चित रूप से सराहनीय है। यह सच भी है कि जो किसान लंबे समय से अपनी खेती के जरिये परिवार का भरण पोषण कर रहा है वह एकदम किसी कंपनी के हवाले जमीन कैसे कर सकता है। उसका अपना परिवार है, जमीन के प्रति उसका लगाव एवं मोहब्बत है। इस भावना को सरकार को भी समझना चाहिए।
''मध्यप्रदेश की जय''
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