सपने देखना बुरा नहीं है। सपनों को साकार करना सबसे जटिल काम है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश को स्वर्णिम राज्य बनाने का सपना देखा है। इस दिशा में उन्होंने आंशिक पहल भी की हैं। जिस तरह से कदम-कदम पर राज्य में समस्याओं और चुनौतियों का अंबार है, उससे लगता नहीं है कि मध्यप्रदेश भविष्य में भी स्वर्णिम राज्य बन पायेगा। पहली बात तो यह है कि स्वर्णिम राज्य की परिकल्पना ही गुजरात से ली गई है। गुजरात के मुख्यमंत्री ने पांच वर्ष पहले राज्य को स्वर्णिम राज्य बनाने का एलान किया था। इस घोषणा को जस का तस मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपना लिया है। गुजरात और मध्यप्रदेश में विकास के मामले में जमीन आसमान का अंतर है। न तो हम सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं मध्यप्रदेश की स्थापना के 56 साल बाद भी नागरिकों को मुहैया करा पा रहे हैं। आज भी राज्य के कई हिस्सों में सड़के हैं नहीं, बिजली उनके लिए एक सपना है, पानी तो एक दिवा स्वप्न बनकर रह गया है। शहरों में पानी को लेकर मारा-मारी आम बात है। पिछले पांच सालों में करीब आधा दर्जन से अधिक पानी को लेकर हत्याएं हो चुकी है। इस पर कोई गंभीर नहीं है। कुपोषण का जाल फैलता ही जा रहा है। आज श्योपुर, खंडवा, अलीराजपुर, शहडोल, विदिशा, रायसेन आदि जिलों में कुपोषण कलंक बना हुआ है। भूख से मौत की खबरें मीडिया में आती ही रहती हैं। महिलाओं पर अत्याचार में प्रदेश नंबर वन है। गरीबी का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है, बेरोजगारी थमने का नाम नहीं ले रही है। रोजगार के नाम पर चुनिंदा कारखाने आ रहे हैं, लेकिन बड़े कारखाने अभी भी प्रदेश की सरजमी पर उतर नहीं पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कैसे मध्यप्रदेश स्वर्णिम राज्य बनेगा, यह समझ से परे है।
यह सच है कि प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने स्वर्णिम राज्य का सपना देखा है, लेकिन उसे साकार करने में उनके मंत्री सहयोग नहीं कर रहे हैं पर वे सवाल जरूर उठा रहे हैं। नवंबर, 2012 माह में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने एक कार्यशाला में कहा कि जब तक हर घर में पानी नहीं पहुंचेगा, तब तक प्रदेश स्वर्णिम राज्य कैसे बन पायेगा। इसी प्रकार 10 नवंबर, 2012 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने प्रदेश सरकार की योजनाओं पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि पुरस्कार और सर्टीफिकेट से विकास का आकंलन नहीं हो सकता है। जब तक जनता के मुंह से बस-रेल आदि में यात्रा करते समय, चौराहो-गलियों एवं पान की दुकानों एवं होटलों में बैठकर यह शब्द न निकले की अच्छा मध्यप्रदेश बन रहा है, तभी स्वर्णिम मध्यप्रदेश का असली सर्टीफिकेट होगा। सोनी ने सलाह दी कि प्रशासन को और अधिक सक्षम बनाने, कृषि के साथ वैकल्पिक व्यवस्था बनाने, जैविक खेती की तरफ लौटने के लिए नीतियों में आधारभूत परिवर्तन की जरूरत है। तभी मध्यप्रदेश देश का एक बेहतर प्रदेश बन सकेगा। जब आदिवासी पुलिस को देखकर दौड़ न लगाये, तब समझना जन के अंदर तंत्र पर विश्वास हो गया है। नर्मदा के पानी के अधिक उपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि नर्मदा का पानी इतना ज्यादा उपयोग न कर ले कि भविष्य में नर्मदा का अस्तित्व ही खत्म न हो जाये। नर्मदा हमारी जीवनदायिनी है। नर्मदा नदी अखंड कैसे रहे इस पर भी विचार करना चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद का दर्शन संतो के प्रवचनों और नेताओं के भाषणों से नहीं, बल्कि आम आदमी में दिखाई दे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी स्वीकार किया कि मध्यप्रदेश स्वर्णिम तभी बनेगा, जब एक भी व्यक्ति भूखा न सोये, गरीबों का जीवन स्तर सुधारे बिना इसकी परिकल्पना निरथक है। इससे पहले भी मध्यप्रदेश में विपक्ष तो मुख्यमंत्री के स्वर्णिम राज्य की परिकल्पना का मजाक उड़ाती रही है। यह सच है कि यहां के राजनेताओं और आमजन में विकास की ललक नहीं है जिसका लाभ अक्सर नौकरशाही उठा रही है। परिणाम स्वरूप प्रदेश धीरे-धीरे अपनी राह से चल रहा है जिसमें किसी का कोई योगदान नहीं है। जब जैसा मौसम आया तब वैसी ढपली लोग बजा रहे हैं, तो फिर कहां से स्वर्णिम राज्य बनेगा, यह एक विचारणीय प्रश्न है।
''जय हो मप्र की''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
EXCILENT BLOG