शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

जादू-टोना के संदेह में बुजुर्गों को नंगा करके गांव में घुमाया

          भले ही मध्‍यप्रदेश विकास के पथ पर तेजी से दौड़ रहा है पर आज भी सामाजिक कुरीतियां उसका पीछा नहीं छोड़ रही हैं। जादू-टोना के नाम पर आदिवासियों को नंगा करके गांव में घुमाया जाता है और प्रशासन चुप्‍पी साधे रहता है। जादू-टोना के संदेह पर लोगों को प्रताडि़त करना, उन्‍हें मारना-पीटना और गांव से बाहर खदेड़ देने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह प्रसंग सबसे ज्‍यादा आदिवासी बाहुल्‍य जिलों में हो रहे हैं। कहीं-कहीं तो आदिवासी महिलाओं को जादू-टोने के संदेह में मार तक डाला गया है। ऐसी घटनाएं आदिवासी बाहुल्‍य जिला मंडला, डिंडोरी, शहडोल, झाबुआ, अलीराजपुर, बैतूल आदि जिलों में अखबारों की सुर्खिया बनी रहती हैं। ऐसा नहीं है कि इन जिलों के अलावा अन्‍य जिलों में भी जादू-टोने नहीं हो रहे हैं। अंधविश्‍वास का कुचक्र इस कदर फैला हुआ है कि प्रदेश के जो प्रमुख शहर भोपाल, इंदौर, ग्‍वालियर, जबलपुर में भी जादू-टोने का कारोबार खुलकर चल रहा है। इन महानगरों की शक्‍ल ले रहे शहरों में कई स्‍थानों पर जादू-टोने के स्‍थान पर दरवार चल रहे हैं जहां पर बीमारियां भगाने के मंत्र दिये जाते हैं, तो कहीं जल्‍दी नौकरी मिलने का सपना दिखाया जाता है, तो कहीं-कहीं लड़की की शादी जल्‍दी होने, बच्‍चा पैदा होने, अफसर का प्रताडि़त करना और दुश्‍मन को जड़मूल से समाप्‍त करने सहित आदि बिन्‍दुओं पर जादू-टोने हो रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब आदिवासी बाहुल्‍य जिला बैतूल में 27 से 28 नवंबर के बीच जिला मुख्‍यालय से 10 किमी दूर आरूल गांव में तीन भाई अशोक, राजू, गुड्डू और पिता ओझा उईके ने गांव के 65 वर्षीय आदिवासी चुन्‍नी और 60 वर्षीय कोकीलाल को गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक बेरहमी से पीटते हुए घुमाया। इन दबंगों को रोकने का साहस कोई नहीं कर सका। जब दो बुजुर्ग आदिवासियों को गांव में चक्‍की के पाट गले में टांगकर बगैर कपड़े में घुमाया गया। इन निर्वस्‍त्र आदिवासियों को घुमाते समय बार-बार पीटा गया, फिर भी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की है। यह सिलसिला घंटो गांव में चलता रहा। आदिवासी मजबूर और विवश होकर चुपचाप अत्‍याचार सहते रहे। यहां तक कि जब इन आदिवासियों ने पुलिस प्रशासन को शिकायत की, तो उस पर भी कोई कार्यवाही करने की बजाये इन आदिवासियों को ही डांट-फटकार कर भगा दिया गया। इन बुजुर्गों पर जादू-टोना करने का शक था जिसके चलते दबंगों ने उन्‍हें अपने अंदाज में कार्यवाही कर ली। मध्‍यप्रदेश में आदिवासी इलाकों में ऐसी घटनाएं नित-प्रति सामने आ रही हैं। यहां तक कि इसके पीछे कुछ लोगों की सम्‍पत्ति हड़पने का भी मामला सामने आया है, इसके बाद भी राज्‍य सरकार का कोई विभाग जादू-टोने के शक पर गांव-गांव होने वाली कार्यवाहियों पर कोई कदम नहीं उठाता है और अंतत: बेवश, मजबूर, गरीब आदिवासी के प्रताडि़त होने का सिलसिला चल रहा है, जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। 
यादगार पल : 
  • मध्‍यप्रदेश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान बनी नदी जोड़ योजना  को आकार देने के लिए 29 नवंबर, 2012 को उज्‍जैन में नर्मदा-शिप्रा सिंहस्‍थ लिंक परियोजना की बुनियाद रखी गई। यह कार्य लालकृष्‍ण आडवाणी के हाथों से हुआ। इस योजना से मध्‍यप्रदेश में नदी जोड़ योजना एक कदम आगे बढ़ी है। इससे पहले भी पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर ने यूपी के साथ मिलकर केन-बेतबा योजना को भी नदी जोड़ योजना की तरह प्रचारित किया था। यह योजना तो फिलहाल फाइलों में है पर अब मालवांचल में पानी की समस्‍या हल करने के लिए नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना पर 432 करोड़ रूपये खर्च होंगे। यह योजना एक साल में पूरी होनी है इसके तहत शिप्रा से होते हुए नर्मदा का पवित्र जल चंबल में जायेगा। मालवा के डेढ़ सौ गांवों में पानी की समस्‍या का हल होगा। इस योजना से सिर्फ नर्मदा-शिप्रा ही नहीं, बल्कि चंबल, यमुना और गंगा नदी का भी आपस में मिलन होगा।

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

मप्र को बदलने की जिद में शिवराज

                       
           मध्‍यप्रदेश की तस्‍वीर और तकदीर बदलने की चाहत मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दिल और दिमाग में है। इसके लिए वह हर पल कोई न कोई उपक्रम कर रहे हैं। निश्चित रूप से धीरे-धीरे जिस बीमारू राज्‍य की संज्ञा से प्रदेश को नबाजा जाता था, उससे मुक्ति तो मिली है। विकास का पहिया आगे बढ़ता ही जा रहा है। विरोधियों के मन में  कई सवाल खड़े होते हैं पर मुख्‍यमंत्री चौहान इन सवालों को दरकिनार करके अपनी अलग राह बनाने पर जुटे हैं। उन्‍होंने सामाजिक संरचना के बीच में सरकार को प्रवेश करा दिया है, जो काम सामाजिक संगठन और कई अन्‍य-अन्‍य वर्ग करते थे उसके लिए सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया है फिर भले ही यह कार्य कन्‍यादान योजना हो अथवा लाडली लक्ष्‍मी या फिर तीर्थदर्शन योजना के जरिये हर वर्ग को प्रभवित करने के लिए सरकार भरसक कोशिश कर रही है। कन्‍यादान योजना की घर-घर में चर्चा होती है, क्‍योंकि इस योजना के तहत उन गरीब लड़कियों के विवाह हो रहे हैं जिनके मां-बाप विवाह करने में असमर्थ हैं। यही हाल घर में पैदा होते ही लाडली के साथ जो भेदभाव होता है उसे दूर करने के लिए मुख्‍यमंत्री ने लाडली लक्ष्‍मी जैसी योजना को आगे बढ़ाया। इन दिनों बुजुर्गों के बीच तीर्थदर्शन योजना की खूब चर्चा है। उन बुजुर्गों के लिए सरकार के मुखिया देवता बन गये हैं, जो बुजुर्ग कभी कल्‍पना नहीं करते थे कि वे अपने मन पसंद तीर्थ स्‍थल की यात्रा कर सकेंगे। इस चाहत को मुख्‍यमंत्री ने साकार किया। तीर्थ यात्रियों को एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ा और उन्‍होंने तीर्थ यात्रा करके पुण्‍य अलग कमा लिया। इससे सरकार की योजना का प्रचार-प्रसार हुआ है, लेकिन बुजुर्ग जिस तरह से हर घर में प्रचार अभियान चलाये हुए हैं। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 29 नवंबर, 2005 को पहली बार राज्‍य की कमान संभाली थी और फिर पीछे पलटकर नहीं देखा। दूसरी बार फिर वर्ष 2008 में मुख्‍यमंत्री बने। गुरूवार को राजधानी के समाचार पत्रों में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सात साल पूरे होने पर उनकी प्रशंसा के गीत गाये गये हैं। एक समाचार पत्र में लिखा है कि ''कुम्‍हार की भांति मध्‍यप्रदेश को किसान पुत्र गढ़ रहा है'', तो दूसरे अखबार ने लिखा है कि मुख्‍यमंत्री का सपना है कि ''हम जहां थे, वहां से काफी आगे आये है पर हमें और आगे जाना है'' जब मुख्‍यमंत्री ने दूसरी बार राज्‍य की कमान संभाली थी तब उन्‍हें सीईओ के रूप में अखबारों ने प्रचारित किया था। यह सच है कि मुख्‍यमंत्री चौहान ने अपनी कार्यशैली और प्रदेश की विकास योजनाओं के लिए जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया है उसमें वे कई बड़ी विज्ञापन कंपनियों को पीछे छोड़कर प्रदेश के विकास को जबर्दस्‍त ढंग से उल्‍लेखित करने की कला में माहिर हैं। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि शिवराज
सिंह चौहान खुद अपने आपके लिए चुनौती तो नहीं बन गये हैं। चाहे विपक्ष हो या सत्‍तापक्ष प्रदेश के राजनैतिक फलक पर कोई भी नेता उनके आसपास ठहरता नजर नहीं आ रहा है। सात वर्षों के कालखंड में अपनी सहज बुद्वि मिलनसार, लोगों का दिल जीतना, स्‍पष्‍ट दिशा और दृष्टि, विकास के प्रति सतत आग्रह तथा अविचल कर्मठता ने उन्‍हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। निश्चित रूप से राजनीतिक कला कुशलता में उनका कोई शान ही नहीं है। वह जिस तरह से प्रदेश को विकास के नये आयामों की तरफ ले जा रहे हैं उससे उनकी छवि में सुधार तो हुआ ही है साथ ही साथ प्रदेश भी विकास की तरफ अग्रसर हुआ है, जो कि लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
गीत और गान ने एकजुटता का भाव जगाया :          
       मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सात वर्ष के सफर में विकास के जो भी उल्‍लेखनीय काम किये हैं उनका तो गुणगान हो ही रहा है, लेकिन सबसे महत्‍वपूर्ण कार्य उन्‍होंने मध्‍यप्रदेश गान तैयार करवाकर किया है। यह गान जब गाया जाता है, तब मध्‍यप्रदेश की एकजुटता के भाव का अहसास होता है। उनके इस कालखंड में सबसे ज्‍यादा प्रदेश को स्‍वर्णिम राज्‍य बनाने के साथ-साथ आओ बनाए मध्‍यप्रदेश को भी ध्‍वनि मिली है। विकास के इस अभियान में मुख्‍यमंत्री की भागीदारी सबके सामने हैं पर मध्‍यप्रदेश को लेकर उनका जो सपना है वह निश्चित रूप से एक बेहद ही उजला पक्ष है जिसको लेकर हर व्‍यक्ति उनसे जुड़ने के लिए बेताब है। मध्‍यप्रदेश की बार-बार बात करना अपने आपमें चौहान का जोरदार पहलू है इस पर लोग जुड़ भी रहे हैं, कारवा बढ़ भी रहा है। इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं मध्‍यप्रदेश एक कदम आगे हैं। 
                                     ''जय हो मप्र की'' 

सोमवार, 26 नवंबर 2012

किसानों को लेकर फिर मैदान में उतर रही है कांग्रेस

         मध्‍यप्रदेश का अन्‍नदाता हताश और निराश है। अपने-अपने स्‍तर पर किसानों ने सरकार के खिलाफ जंग छेड़ रखी है। किसानों का न कोई नेता है और न ही किसी के नेतृत्‍व में आंदोलन किया जा रहा है। भारतीय किसान संघ के नेता रहे शिव कुमार शर्मा ने किसानों का नेतृत्‍व करके किसान नेता की छवि बनाई, लेकिन उनकी ही सरकार ने पूरी छवि तार-तार कर दी। अब शर्मा अकेले अपने दम पर किसानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। किसानों की समस्‍याएं नित-प्रति बढ़ती ही जा रही है। न तो समय पर किसानों को बीज मिल रहा है और न ही खाद मिल रही है। इसके लिए किसानों को लंबी-लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है इसके बाद खाद नसीब हो जाये, तो इसके लिए वे बड़ी कामयाबी मानते हैं। कई स्‍थानों पर खाद-बीज को लेकर किसानों ने पुलिस के डंडे भी खाये हैं। बिजली और सिंचाई हेतु पानी भी किसानों के लिए एक सिरदर्द बना हुआ है। ऐसी स्थिति में राज्‍य का किसान बेहाल और बदहाल हो गया है। प्रकृति की मार से हर साल सामना कर रहा है। ऐसा कोई वर्ष नहीं गुजरता जब बिन मौसम बारिश होने लगती है, तो कभी गर्मी ज्‍यादा पड़ती है, तो कभी शर्दी का असर दिखने लगता है। इसका प्रभाव खेती पर दिखता है। निश्चित रूप से मध्‍यप्रदेश का मौसम पल-पल बदल रहा है। इस दिशा में कोई भी सोचने को तैयार नहीं है। कृषि विभाग गहरी नींद में है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जरूर किसानों की चिंता है और वे समय-समय पर किसानों के हितों को लेकर निर्णय भी कर रहे हैं और उनकी समीक्षा भी कर रहे हैं। इसके बावजूद मध्‍यप्रदेश का किसान कदम-कदम पर लुट रहा है। अब किसानों के बीच कांग्रेस ने भी जाने का एलान कर दिया है। किसानों के बीच एक नई समस्‍या भूमि अधिग्रहण खड़ी हो गई है। इसके चलते राज्‍य में कटनी, डिंडोरी, शहडोल, छिंदवाड़ा में किसानों की भूमि को लेकर खूब हल्‍ला मच रहा है। किसान भी आरपार की लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतर आये हैं। दिलचस्‍प यह है कि जिन दलों की ताकत उंगलियों पर गिनी जा सकती है, वे दल किसानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। माकपा के राज्‍य सचिव बदल सरोज, जनता दल यू के अध्‍यक्ष गोविंद यादव, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष रघु ठाकुर अलग-अलग स्‍तर पर किसानों की भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्‍व कर रहे हैं। छिंदवाड़ा में पूर्व विधायक डॉ0 सुनीलम के समर्थक आंदोलन छेड़े हुए है। जहां मेघा पाटकर भी गिरफ्तारी दे चुकी हैं। अब भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कांग्रेस ने भी मोर्चा खोल लिया है। कांग्रेस विधायक दल के नेता दो दिसंबर को कटनी जिले के बहरी से एक बड़ा आंदोलन शुरू कर रहे हैं। इस आंदोलन में कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद, दिग्विजय सिंह, भूरिया, अजय सिंह सहित आदि शिरकत करेंगे। पार्टी ने पदाधिकारियों और विधायकों को आंदोलन में हिस्‍सा लेने के लिए निर्देश दे दिये हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा भी चुप बैठने वाली नहीं है। वह भी किसानों को लेकर समय-समय पर आंदोलन का रास्‍ता अख्यितार किए हुए हैं। मुख्‍यमंत्री स्‍वयं किसानों की मांगों को लेकर आंदोलन का नेतृत्‍व करते रहे हैं। मगर उनका हमला केंद्र सरकार पर होता है। अक्‍सर चौहान कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार समय पर खाद नहीं देती है जिसके चलते समस्‍याएं खड़ी होती है। कुल मिलाकर एक बार फिर से किसान मप्र में केंद्र बिन्‍दु बन गया है। किसानों पर जबर्दस्‍त बयानबाजी हो रही है। इन सब से हटकर अन्‍नदाता अपनी समस्‍याओं से बाहर निकलने के रास्‍ते स्‍वयं बुन रहा है। उसे समझ में नहीं आ रहा है वह किसकी तरफ जाये। 
                                          जय हो मप्र की

रविवार, 25 नवंबर 2012

कलह घर बनकर रह गयी कांग्रेस पार्टी मप्र में

          भले ही कांग्रेस पार्टी के नेता मप्र में भाजपा की खामियां गिनाने की खूबियों से वाकिफ हो गए हो पर कांग्रेस पार्टी खुद कलह घर बनकर रह गई है, ऐसा कोई महीना नहीं गुजरता है जब कांग्रेस नेता आपस में एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी न करते हो, कोई एक विवाद शांत हो पाता है कि दूसरा विवाद सामने आ जाता है, कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और महासचिव बीके हरिप्रसाद ने लंबे प्रयास के बाद समन्‍वय समिति की बैठक दिल्‍ली में करने में कामयाब तो हो गए है पर उसमें भी टकराव सामने आ गया,यह समझ से से परे है कि जब कांग्रेस अध्‍यक्ष् सोनिया गांधी से मुलाकात की बारी आई तो उन्‍हें हर वर्ग के नेताओं को ले जाना चाहिए पर हरिप्रसाद ने अपने आका के कहने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेरखान सोनिया गांधी की मुलाकात से दूर रखा, बस फिर क्‍या था उनकी नाराजगी जगजाहिर हो गई वे तो चिल्‍ला चिल्‍ला कह रहे है कि कांग्रेस हालत मप्र में यूपी और बिहार की तरह हो जाएगी, यानि आगामी चुनाव के लिए घर कांगेस नेताओं ने असंतुष्‍ट नेता को तैयार कर लिया है, वैसे भी भाजपा के लाख प्रयास है कि मुस्लिम वोट उनकी तरफ आ जाए वे तो चाहेंगे कि असलम शेर खान की नाराजगी बढती ही जाए,यूं भी मुस्लिम नेता कांग्रेस से नाराज होते ही जा रहे है यह समझ से परे है कि कांग्रेस अपने वोट बैंक के प्रति इतनी लापरवाह क्‍यो है, जो वोट बैंक उसका है अगर उस पर भाजपा की नजर पड रही है तो भविष्‍य के संकेत शुभ नहीं है।
विवाद का केंद्र का कांग्रेस
      मप्र में कांग्रेस पार्टी अपना घर जब जब दुरूस्‍त करने की कोशिश करती है तो कोई न कोई विवाद सामने आ ही जाता है, एक साल से तो यही हो रहा है, युवक कांग्रेस की रैली तो कामयाब हुई पर दूसरे दिन ही विधानसभा से निलंबित विधायकों ने माफी नामा पत्र लिख दिया है जिससे कांग्रेस की खूब किरकिरी हुई बाद में कांग्रेस के दोनों विधायक बहाल भी हो गए, इसके बाद कांग्रेस ने मुख्‍यमंत्री निवास घेराव कार्यक्रम सफल तो कर लिया लेकिन दूसरे दिन ही सिधिया समर्थक विधायकों ने भूरिया को हटाने की मुहिम छेड दी इसको हवा पानी देने का काम पूर्व मंत्री महेश जोशी ने किया, तब से विवाद कांग्रेस पीछा ही नहीं छोड रहे है किसी न किसी वजह से हल्‍ला मचता ही रहता है विधानसभा चुनाव में मात्र एक साल का समय बाकी है पर कांग्रेस को चुनाव की उतनी चिंता नहीं सता रही है जितनी होनी चाहिए, कांग्रेस तो अपने विवादों की वजह से परेशान है आम आदमी की नजर में भी कांग्रेस नहीं चढ पा रही है इस सवाल पर नेताओं को विचार करना चाहिए
जय हो मप्र की 

विकास बनाम छलावा

पिछडे राज्‍य की संज्ञा से धीरे धीरे बाहर आने के लिए बैचेन मध्‍य प्रदेश में विकास की आशा की उम्‍मीद तो जागी है, पर कभी कभी लगता है कि कहीं विकास के नाम पर छलावा तो नहीं हो रहा है, बार बार राज्‍य के सीएम चौहान कह रहे है कि विकास दर में इजाफा हो गया है अभी भी प्रतिव्‍यक्ति आय में  मध्‍य प्रदेश छग से  पीछे है, इस मामले में पंजाब, महाराष्‍ट, गुजरात, हरियाणा दिल्‍ली से भी पीछे है इसके बाद राजनीति में बडी बडी डींगे हांकने वाले राजनेताओं के मुंह तो कभी भी प्रतिव्‍यक्ति आय बढाने पर विचार तक नहीं खुलते है, यह सच है कि मप्र में लोगो की आय में इजाफा हुआ, खर्च करने की क्षमता में बढोत्‍तरी हुई  इस बात को उघोग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कह चुके है,इसके साथ ही विकास का चरण भी धीरे धीरे चल रहा है पर आर्थिक्‍ विशेषज्ञ राजेंद्र कोठारी कहते है कि  विकास दर का बढना राज्‍य के साथ छलावा है हम उस दिशा में विचार ही नहीं कर रहे है कि प्रतिव्‍यक्त्‍िा आय में इजाफा हो, ऐसी नीतियां भी नहीं बन रही है, प्रदेश की उम्र में इजाफा हो रहा है पर वैसा विकास नहीं हुआ है जैसा हो जाना चाहिए आज भी प्रदेश के कई हिस्‍सों से पलायन हो रहा है, किसान आत्‍महत्‍या कर रहा है, बेटियों की तस्‍करी हो रही है, कुपोषण का कलंक बना हुआ है ऐसे अनगिनत सवाल आज भी मौजूं हूं, इस सब के बाद भी स्‍वर्धिम राज्‍य बनाने का सपना तो बुना गया पर यह सच है कि उस पहल नहीं हो रही है किसी भी क्षेत्र में भविष्‍य की योजनाएं नहीं बनाई जा रही है जो वर्तमान समस्‍याएं सामने आ रही है उनका ही निराकरण किया जा रहा है, विकास का चक्र चलाने में राजनेताओं की तो रूचि है ही नहीं पर नौकरशाही का भी यही हाल है तब विकास का पहिया तेज कहां से चल पाएगा पर फिर भी विकास के पहलुओं पर विचार के स्‍तर पर एक कदम तो आगे बढे है  यही शुभ संकेत है।                                                             

                                                                  जय हो मप्र की 

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

भ्रष्‍ट अफसरों की फौच चल नहीं पायेगी मनरेगा में

         मनरेगा यानि भ्रष्‍टाचार का एक नया दरवाजा। मध्‍यप्रदेश में महात्‍मा गांधी रोजगार गारंटी योजना भ्रष्‍टाचार की भेंट चढ़ गई है। इस योजना के तहत जो विकास कार्य हुए है उसमें भ्रष्‍टाचार की लगातार शिकायतें भोपाल से लेकर दिल्‍ली तक पहुंची हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय तक 200 शिकायतें पहुंच चुकी हैं। इस मामले में एक हजार से अधिक इंजीनियर और अधिकारी भ्रष्‍टाचार के दल-दल में फंसे हुए हैं। दो आईएएस अफसरों को निलंबित किया जा चुका है, इसके बाद भी मनरेगा में भ्रष्‍टाचार थम नहीं रहा है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश द्वारा बार-बार नाराजगी जाहिर करने के बाद भ्रष्‍टाचार की गंगा तो थम नहीं पाई है, लेकिन उन भ्रष्‍ट अफसरों को जरूर चिन्हित कर लिया गया है, जो कि योजना के जरिये अपनी बल्‍ले-बल्‍ले कर रहे थे। ऐसे अफसरों को घर बैठाने की तैयारी विभाग के अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव अरूणा शर्मा ने कर ली है। 
            मध्‍यप्रदेश में मनरेगा योजना शुरू होने के साथ ही भ्रष्‍टाचार की नदियां बहने लगी थी। शुरूआती दौर में जॉब कार्ड बनाने को लेकर गड़बडि़या हुई, फिर निर्माण कार्य, खरीदी और फर्जी जॉब कार्ड पर रोजगार के मामले सामने आने लगे। यहां तक कि दरी-चटाई और, गेंती-फावड़ा खरीदी में भी अफसरों ने भ्रष्‍टाचार किया। अभी तक करीब 500 से ज्‍यादा सरपंच और सचिवों को हटाया जा चुका है। 5 दर्जन जनपद सीईओ पर कार्यवाही हो चुकी है। निश्चित रूप से इस योजना से विकास काम भी हुए है, लेकिन इसका दुखद पहलू यह है कि आज भी मध्‍यप्रदेश से लोगों का पलायन अनबरत जारी है। बुंदेलखंड और महाकौशल के लोग रोजगार की तलाश में आज भी दर-दर भटक रहे हैं तब फिर मनरेगा योजना को कैसे कामयाब माना जाये, क्‍योंकि इस योजना का मूल पाठ रोजगार देना है जिसमें योजना कामयाब नहीं हुई है, फिर तो भ्रष्‍टाचार की गंगा बहनी ही है। 
                                        ''जय हो मप्र की''

बुधवार, 21 नवंबर 2012

जी का जंजाल बनी मप्र की सड़कें

        इन दिनों मध्‍यप्रदेश की सड़कों को लेकर बड़ी हाय-तौबा मची हुई है। जगह-जगह सड़कों के गहरे गड्डों ने आम आदमी को परेशान करके रख दिया है। सड़कों की मरम्‍मत नहीं हो रही है। लोक निर्माण विभाग बार-बार सरकार को आश्‍वस्‍त कर रहा है कि निर्धारित समय पर सड़कों की मरम्‍मत का काम हो जायेगा। इसके बाद भी शिवराज सरकार के मंत्री कैबिनेट की बैठकों में चिंता जाहिर कर रहे हैं कि सड़कों की हालत खस्‍ता है। आम आदमी शिकायतों पर शिकायत कर रहा है। दुख पहलू यह है कि सड़कों की मरम्‍मत के नाम पर गड्डों में मिट्टी डाली जा रही है और ऊपर से डामरीकरण किया जा रहा है। यह सड़के चार-छह महीने तो ठीक रहेगी बाद में फिर गड्डों में तब्‍दील हो जायेगी। एक महीने पहले मंत्रिपरिषद की बैठक में सड़कों को लेकर करीब 2 से 3 घंटे तक बैठक हो चुकी है, विभाग अपना पक्ष रख चुका है इसके बाद भी 20 नवंबर की कैबिनेट बैठक में फिर से मंत्रियों ने सड़कों को लेकर अपना रोना रोया। मंत्रियों ने यहां तक कहा कि अगर सड़कों की यही हालत रही तो हमारी तो लुटिया डूब जायेगी। सड़कों की चिंता को लेकर मंत्री समय-समय चिंता जाहिर करते रहे हैं। निश्चित रूप से सड़के विकास की वाहनी है, लेकिन इनका निर्माण जिस गति से होना चाहिए, वैसा हो नहीं पा रहा है। ऐसी स्थिति में सड़कों के निर्माण की गुणवत्‍ता पर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं जिसके फलस्‍वरूप हर बारिश में सड़के पानी में बह रही है। यही वजह है कि हरसाल सड़कों पर मंत्री और विधायक दुखी होते हैं, लेकिन सड़के जस की तस बनी हुई हैं। 
                                     जय हो मध्‍यप्रदेश की

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

सात मौतें : कौन जिम्‍मेदार अब बना बहस का विषय

          सरकार के कामकाज की धुरी इस कदर पटरी से उतर चुकी है कि पूरी मशीनरी में भी अगर बदलाव कर दिया जाये, तो भी स्थिति जस की तस रहेगी। इसकी वजह है पूरी व्‍यवस्‍था में कहीं न कहीं संड़ाध होना है। यही वजह है कि दुर्घटनाएं हो जाती है और फिर जांच का सिलसिला शुरू होता है, रिपोर्ट आती है, उसका रोना रोते हैं, लेकिन उन कारणों तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके कारण दुर्घटनाएं होती है और न ही उन्‍हें रोकने के उपाय होते हैं। बार-बार मध्‍यप्रदेश में तो यही दोहराया जा रहा है। पिछले पांच सालों में मेलों में भगदड़ हो रही है, लोग घायल एवं मर रहे है तथा सरकार मूकदर्शक बनी बैठी है। दो-चार दिन हल्‍ला होता है और फिर वही स्थिति बन जाती है। प्राकृतिक आपदाएं रोकने के लिए कड़े प्रावधान है, मगर जब संकट सिर पर होता है, तब वे एजेंसियां जागती है। यही हाल मप्र की राजधानी भोपाल में 18-19 नवंबर की रात्रि में भोपाल में एक पानी की टंकी ढह गई जिसमें सात लोगों की मौत एवं 33 लोग घायल हो गये हैं।
जब यह टंकी अचानक भरभराकर गिरी तो लोगों को पानी और गिट्टी, पत्‍थर का सामना करना पड़ा। रात में सो रहे लोग अचंभित थे कि यह क्‍या हो गया, हर तरफ भगदड़ चीख और मदद की गुहार गूंजने लगी। घटना के दूसरे दिन 19 नवंबर को आंसू, आक्रोश और आश्‍वासन का दौर चला, राजनेताओं पर लोगों ने गुस्‍सा जाहिर किया। सरकार की अलग-अलग एजेंसियों ने तीन जांच कमेटियां बना दी, जो कि अब अपने-अपने अंदाज से जांच करेगी। इस पूरे घटनाक्रम का दुखद पहलू यह है कि राजनेता विशेषकर सत्‍तारूढ़ दल के नेता घटना होने के आठ घंटे बाद मौके पर पहुंचे तो फिर लोगों का गुस्‍सा जमकर फूटा। इस क्षेत्र के माननीय विधायक ध्रुवनारायण सिंह तो घटना के बाद दंभ से कह रहे हैं कि उन्‍हें तो सूचना प्रशासन ने सात बजे दी। क्‍या वे प्रशासन के दम पर राजनीति कर रहे हैं। यह सवाल जहन में उठना स्‍वाभाविक है कि आखिरकार विधायक महोदय इतनी देरी से क्‍यों आये। अब इस बात की भी तफतीश हो रही है जिस पानी की टंकी की उम्र 30 साल पूरी होनी थी, वह पांच साल पहले ही भरभराकर गिर पड़ी। राजधानी में पानी की टंकी के आसपास अवैध कब्‍जे आम बात है। इस दिशा में नगर निगम तथा प्रशासन न तो सजग है और न ही चिंतित है। इस वजह से ही लोगों ने पानी की टंकी के आसपास की जमीन पर कब्‍जा कर लिया है। जिसके चलते अगर ऐसी घटनाएं हो जाये, तो क्‍या किया जा सकता है। इसी प्रकार राजधानी में मुख्‍य रेल्‍वे स्‍टेशन एवं उप स्‍टेशन हबीबगंज के आसपास की पटरियों के इर्द-गिर्द कई झुग्गियां बनी हुई है, क्‍या इन पर कोई गौर करेगा। भोपाल में कई ऐसे गंभीर पहलू है जिन पर राजनेताओं को नये सिरे से मंथन एवं चिंतन करना चाहिए, अन्‍यथा शहर मुसीबतों के जाल में फंसता ही जायेगा और हम एक समस्‍या के बाद दूसरी समस्‍या का निदान खोजने में ही लगे रहेंगे। समस्‍याएं बढ़ती ही जायेगी। 
                               ''जय हो मध्‍यप्रदेश की''

सोमवार, 19 नवंबर 2012

किसानों का मजाक उड़ा रहे है कृषि मंत्री कुसमरिया

        अपने आपको किसान नेता का दंभ भरने वाले मध्‍यप्रदेश शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ0रामकृष्‍ण कुसमरिया की फितरत हो गई है कि किसानों का मजाक उड़ाओ और बाद में मांफी मांग लो। जब प्रदेश में किसान फसलें बर्बाद होने पर आत्‍महत्‍या कर रहे थे, तब कृषि मंत्री कुसमरिया ने राग अलापा था कि जो जैसा करता है, उसे वैसा ही भोगना पड़ता है। यानि किसानों का पाप निकल रहा है। अब एक साल बाद फिर उन्‍होंने कटनी में भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों का मजाक उड़ाते हुए कहा है  कि जो किसान भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं वह दलाल है। उनकी इस जुबान पर सबसे तीखी नाराजगी संघ परिवार से जुड़े भारतीय किसान संघ के नेताओं ने जाहिर की है। यह सच है कि जब हम किसानों के आंसुओं का नहीं पोछ सकते, तो फिर उनका मजाक क्‍यों उठाया जाये, पर कुसमरिया तो अपने अंदाज में राजनीति कर रहे हैं उन्‍हें किसानों के सुख-दुख से कोई वासता नहीं है। मध्‍यप्रदेश में किसानों की जिंदगी दिनों दिन कष्‍टमय होती जा रही है। कदम-कदम पर उन्‍हें मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इस दिशा में तो मत्री कुसमरिया ने तो कभी ध्‍यान नहीं दिया और न ही उनकी बाधाएं दूर करने की कोशिश की है। मुख्‍यमंत्री चौहान अपने आपको किसान पुत्र कहने पर गौरवांवित महसूस करते हैं और उनकी पहल पर ही किसानों को शून्‍य प्रतिशत पर ब्‍याज और कृषि कैबिनेट बनी हुई है। दूसरी ओर उनके कैबिनेट मंत्री का संवेदनशील बयान यह दर्शा रहा है कि मंत्री महोदय किस कदर संवेदनहीन हो गये हैं और वे लगातार ऐसी टिप्‍पणियां कर रहे हैं जिससे आम आदमी का नाराज होना स्‍वाभाविक है। अभी तक फिलहाल कृषि मंत्री ने अपनी टिप्‍पणी वा‍पस नहीं ली है। जिसका हर तरफ विरोध हो रहा है। 
                          ''जय हो मप्र की''

रविवार, 18 नवंबर 2012

मध्‍यप्रदेश को हिकारत नजरों से क्‍यों देखते हैं शरद यादव

             माना कि शरद यादव को मध्‍यप्रदेश की जनता ने एक बार ही लोकसभा में पहुंचाया है पर इसी कर्म भूमि से उभरकर वे राष्‍ट्रीय राजनीति में चमके हैं। अगर शरद यादव को महाकौशल अंचल की माटी ने आर्शीवाद नहीं दिया होता, तो आज वे दिल्‍ली में दहाड़ नहीं रहे होते। निश्चित रूप से शरद यादव एनडीए के संयोजक होने के सा‍थ-साथ जनता दल यूके के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष भी हैं पर वे मध्‍यप्रदेश को हिकारत नजर से देखते हैं। जब भी वे मध्‍यप्रदेश के दौरे पर आते हैं, तो कोई न कोई ऐसी टिप्‍पणी करते हैं, जो यहां के लोगों को नागवार गुजरती है। पहले उन्‍होंने कहा था कि मध्‍यप्रदेश के लोग मृत है, न तो वे प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हैं और न ही विरोध करते हैं, वे चुपचाप रहते हैं। इस टिप्‍पणी का तीखा विरोध हुआ था। एक साल बाद फिर यादव ने 17 नवंबर को अपने भोपाल प्रवास के दौरान यह कहकर फिर विवाद खड़ा कर दिया है कि मध्‍यप्रदेश की राजनीति शून्‍य हो गई है। यहां न तो कोई हलचल होती है और न ही कोई विरोध होता है यहां तक कि अच्‍छे-बुरे का कोई मतलब नहीं रह गया है। अब किसी भी स्‍तर पर उथल-पुथल सुनाई नहीं देती है। यह बात यादव ने पार्टी के कार्यकर्ता सम्‍मेलन में कहीं, लेकिन जब पत्रकारों से रूबरू हुए, तो राजधानी के संवाददाताओं ने उनसे यह सवाल दागा कि आखिरकार प्रदेश की राजनीति शून्‍य क्‍यों मानते हैं, तो उन्‍होंने कहा कि राज्‍य के विपक्षी दल शांत रहते हैं, न कोई हलचल करते हैं और न ही विवाद। यह सच है कि मध्‍यप्रदेश की राजनीति में वैसा तूफान नहीं आता है, जो कि बिहार और यूपी में सुनाई देता है। यहां की राजनीति शांत स्थिति में रहती है, न विरोध के तेवर तीखे होते हैं और न ही खास हलचल होती है, लेकिन यह मानना भी उचित नहीं है कि राजनीति शून्‍य है। इस प्रदेश में भी कांग्रेस और भाजपा दो बड़े दल है जिनकी गतिविधिया समय-समय पर हलचल मचाती रहती हैं। इसके अलावा तीसरी ताकत से जुड़े दल भी कोई न कोई कार्यक्रम करते रहते हैं। तब यह कैसे माना जाये कि प्रदेश की राजनीति शून्‍य है पर शरद यादव के दिल में कहीं न कहीं यह काटा चुभा हुआ है कि उन्‍हें राज्‍य की जनता ने महत्‍व नहीं दिया। इसीलिए वह मध्‍यप्रदेश छोड़कर राष्‍ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं। यादव ने जबलपुर से ही अपनी राजनीति शुरू की और धीरे-धीरे राष्‍ट्रीय फलक पर छा गये। इसके बाद से वह मध्‍यप्रदेश को भूलते ही चले गये और फिर पलटकर नहीं देखा और अब मप्र के बारे में कुछ भी टिप्‍पणी कर रहे हैं जिससे राज्‍य के वांशिंदों को तकलीफ हो रही है।
                                        ''मध्‍यप्रदेश की जय''

जमीन नहीं छोड़ेंगे भले ही जिंदा चिता पर जल जाये

         किसानों की जिंदगी में अंधेरे की आहट लगातार दस्‍तक दे रही है। उनका सहारा उनकी ताकत है। जैसे-तैसे खेती करके परिवार का पालन-पोषण कर रहे किसानों के सामने अब खेती का संकट तो मंडरा ही रहा है साथ ही साथ उनकी जमीन भी उनसे छीनी जा रही है। इसके चलते किसान गुस्‍से में है। किसानों ने अब तय कर लिया है कि वे जमीन अपनी किसी भी हाल में नहीं देंगे। यह निर्णय कटनी जिले के किसानों ने लिया है। जहां पर एक बिजली कंपनी अपना कारखाना स्‍थापित करने जा रही है। दिलचस्‍प यह है कि इस कंपनी को अब तक कोल आवंटन नहीं हुआ है और न ही पानी की कोई व्‍यवस्‍था है, लेकिन किसानों की जमीन पर कब्‍जा करने का सिलसिला शुरू हो गया है। दुखद पहलू तो यह है कि किसानों को जो मुआवजा मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है जिस पर किसान बेहद गुस्‍से मे हैं। किसानों ने अपने खेतों पर चिता बना ली है,वे कह रहे हैं कि अगर उनकी जमीन पर जबरन कब्‍जा किया गया, तो चिता में आग लगाकर जिंदा जल जायेंगे। इन किसानों की पीड़ा को समझने के लिए राजनैतिक दल अपने-अपने दांव चल रहे हैं, लेकिन अब किसानों ने ही स्‍वयं मोर्चा खोल लिया है। किसानों की पीड़ा पर मरहम लगाने की बजाय कृषि मंत्री डॉ0 रामकृष्‍ण कुसमरिया ने बयान दिया है कि जो किसान भूमि अधिग्रहण के खिलाफ दो साल से चिताये सजाकर विरोध कर रहे हैं, वे किसानों के दलाल हैं। उन्‍होंने कलेक्‍टर तक को कह दिया है कि यहां असामाजिक तत्‍व हैं, उन्‍हें बाहर करिये। इसके बाद भी कटनी जिले में आंदोलन थम नहीं रहा है किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन का असर यह हो रहा है कि अब शहडोल में रिलायंस सीबीएम प्रोजेक्‍ट का भी विरोध शुरू हो गया है। यहां प्रभावित किसानों ने अपनी निजी भूमि से रिलायंस की गाडि़यों को रोकना शुरू कर दिया है। प्रदेश के कई हिस्‍सों में भूमि अधिग्रहण को लेकर धीरे-धीरे विरोध के स्‍वर गूंज रहे हैं। नाराजगी लगातार लोगों की बढ़ती जा रही है। कई स्‍वयंसेवी संगठन भी विरोध के लिए मैदान में उतर आये हैं। किसानों की एकता निश्चित रूप से सराहनीय है। यह सच भी है कि जो किसान लंबे समय से अपनी खेती के जरिये परिवार का भरण पोषण कर रहा है वह एकदम किसी कंपनी के हवाले जमीन कैसे कर सकता है। उसका अपना परिवार है, जमीन के प्रति उसका लगाव एवं मोहब्‍बत है। इस भावना को सरकार को भी समझना चाहिए। 
                                  ''मध्‍यप्रदेश की जय''

शनिवार, 17 नवंबर 2012

किसे बयां करें किसान अपना दर्द

                 किसानों की जिंदगी में पीड़ाएं असहनीय हैं। कभी उन्‍हें प्रकृति की मार का सामना करना पड़ता है, तो कभी दलालों से दो-दो हाथ करने को विवश होना पड़ रहा है। कहीं न कहीं किसान ही लुट रहा है, उसकी जमीन पर उद्योगपतियों की नजर है, तो बीच में दलाल की भूमिका में अधिकारी आ गये हैं। अगर किसान जमीन देने में आनाकानी कर रहा है, तो डंडे का जोर दिखाया जा रहा है यानि किसान अपने खेत से लेकर घर तक कहीं भी असुरक्षित नहीं है। अगर किसी साल लहराती फसले हो जाये, तो किसान को बाजार में उचित दाम नहीं मिलता है। फसल के लिए समय पर बीज नहीं मिलता है, खाद के लिए लंबी-लंबी लाइनों में महीनों किसान को खड़े रहना पड़ता है, तब जाकर किसान को खाद मिलती है। फिर बिजली और सिंचाई की जद्दोजहद तो अलग झेलनी ही पड़ती है। यह हाल मध्‍यप्रदेश के किसान का हो गया है। एक बार फिर राज्‍य का किसान चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा भी मौत के बाद शुरू हुई है। इससे पहले भी अगले साल जब किसानों का समूह रायसेन जिले में अपनी फसल बेचने के लिए मंडी पहुंचा था, तब उसे लाठियां और गोलियों का सामना करना पड़ा था जिसमें एक किसान की मौत भी हो गई थी। यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि किसानों की बदहाली सामने आ गई थी। अब किसानों की जमीनों को अधिग्रहण को लेकर एक किसान की पत्‍नी ने कटनी जिले में तेल डालकर अपने शरीर में आग लगा ली, बाद में उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद एक किसान ने और आत्‍महत्‍या की कोशिश की है। 
अब सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं जिस महिला ने आत्‍महत्‍या की है वह पारिवारिक मामला था। तब दूसरे किसान ने क्‍यों जहर खाने की कोशिश की, इस बारे में सरकार क्‍यों मौन है। सबके अपने-अपने तर्क हैं। निश्चित रूप से इन दिनों प्रदेशभर में किसानों की जमीने अधिग्रहण करने का दौर चल रहा है। राज्‍य के कई जिलों में किसानों की जमीनों पर अधिग्रहण करके उद्योग स्‍थापित करने के सपने दिखाये जा रहे हैं। यह सिलसिला डिंडोरी, अनूपपुर, सिंगरौली, छिंदवाड़ा, खंडवा एवं हरदा में चल रहा है। विकास का कोई विरोधी नहीं है। निश्चित रूप से उद्योगों का जाल फैलाया जाना चाहिए, लेकिन किसानों की सिचिंत जमीन छीनकर उद्योगों की स्‍थापना जायज नहीं है। सु्प्रीमकोर्ट भी बार-बार कह चुका है कि अगर किसी किसान की जमीन सरकार लेती है, तो उसे जमीन के बदले जमीन देनी चाहिए पर ऐसा हो नहीं रहा है। इसके चलते जगह-जगह विवाद गहराते जा रहे हैं। दूसरी ओर बरेली गोली कांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। 9 नवंबर, 2012 को मानव अधिकार आयोग ने बरेली गोलीकांड के बारे में कहा है कि किसानों पर पुलिस ने एके-47 से 18 राउंड और 9-एमएम पिस्‍तौल से 5 राउंड चलाये थे जिसमें किसान हरीसिंह की मौत हो गई थी। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी इस रिपोर्ट के आधार पर फिर सरकार पर हमला बोला है और कहा है कि किसानों पर जिस तरह से गोली चलाई गई है वह अपने आप में निंदनीय है, जबकि किसान नेता शिवकुमार शर्मा का कहना है कि हम तो शुरू से कह रहे हैं कि षड़यंत्र के तहत किसानों पर फायरिंग की गई है। किसानों की मौत और उनकी जिंदगी को लेकर राज्‍य में एक बार फिर तीखी बहस सड़कों तक आ गई है। राजनीतिक दल अपने-अपने नजरिये से इस मुद्दे को भुनाने में लगे हुए हैं। अब कौन कितना भुनायेगा यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन किसान का अपना दर्द बढ़ता ही जा रहा है जिस पर मरहम लगाने के लिए कोई तैयार नहीं है। किसान की जिंदगी हर दिन जटिल होती जा रही है।
                                                ''जय हो मप्र की''

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

किसानों की जमीनों को लेकर फिर टकराव

           किसानों की कीमती जमीनों पर उद्योगपतियों की नजर लग गई है जिसके चलते प्रदेश में कई स्‍थानों पर भूमि अधिग्रहण को लेकर टकराव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। किसान खुलकर सामने आ गये हैं। सरकार बचाव में अपने तर्क दे रही है। इसके बाद भी भूमि अधिग्रहण का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। 14 नवंबर को कटनी में किसान छक्‍का की पत्‍नी सुनिया बाई ने जमीन अधिग्रहण के विरोध में मिट्टी का तेल डालकर आग लगा ली जिसकी अस्‍पताल ले जाते समय मौत हो गई। इस घटना ने एक बार फिर भूमि अधिग्रहण का विवाद गहरा दिया है। मध्‍यप्रदेश में कटनी, सिंगरौली, सीधी, बैतूल, खंडवा आदि जिलों में भूमि अधिग्रहण का विवाद चिंगारी बन रहा है। धीरे-धीरे किसान खुलकर विरोध कर हैं। किसानों का कहना है कि उनकी जमीन औने-पौने दाम पर खरीदी जा रही है और जिला प्रशासन कंपनियों के इशारों पर काम कर रहा है। असल में भूमि अधिग्रहण कानून अंग्रेजों के जमाने का 1894 का लागू है जिसमें समय-समय पर बदलाव की बात होती रही है। केंद्र सरकार इस कानून में तब्‍दीली करने के लिए पिछले दो साल से सतत प्रयास कर रही है, लेकिन अभी तक संसद में कानून पेश नहीं हो पाया है।
भूमि अधिग्रहण मध्‍यप्रदेश के लिए एक नया सिरदर्द बन गया है। राज्‍य सरकार ने कई उद्योग लाने के लिए एमओयू किये हुए हैं और अधिकतर उद्योग जमीन की चाहत रखते हैं। राज्‍य सरकार के पास इतनी जमीन नहीं है कि वह उद्योगपतियों को संतुष्‍ट कर सकें। ऐसी स्थिति में उद्योगपतियों की नजर किसानों की जमीन पर पड़ गई है। हाल ही में नया विवाद कटनी जिले का सामने आया है जिसमें विद्युत कंपनी वेलस्‍पन अपना पॉवर प्‍लांट 1900 मेगावाट क्षमता का स्‍थापित करना चाहती है इसके लिए कंपनी को 1600 एकड़ जमीन की आवश्‍यकता है। कंपनी ने करीब 250 एकड़ जमीन सीधे किसानों से खरीद ली है और शासन ने कंपनी को 450 एकड़ जमीन दे दी है अब कंपनी को 250 एकड़ जमीन और चाहिए, जो कि अधिग्रहण से ही हासिल की जा सकती है। इसके चलते कटनी के जिला मुख्‍यालय से 55 किमी दूर विकासखंड बरही के आसपास के गांव में विवाद गहरा गया है। इसके चलते एक महिला ने आत्‍मदाह कर लिया है जिस पर तीन दिनों तक गांव के लोग लाश को लेकर आंदोलन करते रहे और अंतत: 15 नवंबर को पुलिस के साये में महिला की अंत्‍योष्टि की गई। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी घटना स्‍थल पर पहुंचकर गांव वालों से सीधी बातचीत की है और प्रशासन को खरी-खोटी सुनाई है। निश्चित रूप से मप्र में जमीन को लेकर विवाद दिनोंदिन गहराता जा रहा है, जो कि कंपनी के साथ-साथ अन्‍य जिलों में भी फैलता जायेगा, ऐसी आशंका लगातार प्रकट की जा रही है। मध्‍यप्रदेश का किसान पिछले आठ सालों से किसी न किसी समस्‍या से जूझ रहा है अब उसके सामने जमीन छिनने का एक बड़ा संकट सामने आ गया है। 
                                    ''जय हो मप्र की''


सोमवार, 12 नवंबर 2012

लखपति बनने का सपना फिर चूर-चूर




       हर आदमी लखपति बनने के लिए बेताब है। इसके लिए वह नये-नये सपनों के जाल में भी आसानी से फंस जाता है। बार-बार मध्‍यमवर्गीय समाज में ऐसे लोग प्रवेश कर जाते हैं, जो कि सपनों की दुनिया दिखाकर उनकी जमा पूंजी हड़प लेते हैं और वे हमेशा की तरह तैयार भी हो जाते हैं। यह सिलसिला मध्‍यप्रदेश में वर्षों से चल रहा है। हर साल कोई न कोई कंपनी द्वारा लोगों को ठगने का मामला सामने आता है। थोड़े दिन बड़ा हल्‍ला मचता। मीडिया में खूब सुर्खिया बनती है। पुलिस जांच करती है, 
लेकिन ठग करने वाले को पकड़ नहीं पाती है। इसके बाद लोग भूल जाते हैं, फिर एक नई कंपनी आती है और वह अपना ऐसा मायाजाल फैलाती है कि लोग उसमें धसते ही चले जाते हैं। इस बार तो एन-मार्ट नामक कंपनी ने 20 लाख लोगों को अपना शिकार बनाया है। राज्‍य का ऐसा कोई शहर या कस्‍बा बाकी नहीं था, जो उसके जाल में न फंसा हो। इस कंपनी ने लोगों के पैसे डबल करने का सपना दिखाया। उसने लोगों से साढ़े पांच हजार रूपये लेकर चार साल में उन्‍हें 11 हजार रूपये करने का विश्‍वास दिलाया। इसके साथ ही हर महीने एन-मार्ट शोरूम से सामान खरीदने के लिए 48 कूपन भी सौंपे। कंपनी इतनी चालक थी कि उसने लोगों का विश्‍वास हासिल करने के लिए पहले स्‍थान-स्‍थान पर अपने शोरूम खोले उसमें भव्‍यता का प्रदर्शन किया, इसके बाद धीरे-धीरे अपने जाल में फांस ही लिया। लोगों को कूपन के  जरिये मुफ्त में सामान दिलाने का इरादा तो था ही, साथ ही चार साल तक हर महीने 1500 रूपये की क्रेडिट का लाभ मिलना भी तय था। ऐसे सपनों में कौन नहीं फंसता। इस जाल में प्रदेश के 20 लाख लोग ठगी के शिकार हुए हैं। भोपाल में 4 हजार, ग्‍वालियर 10 हजार से ज्‍यादा सदस्‍य बन गये थे, जबकि होशंगाबाद, सीहोर, राजगढ़, ब्‍यौवरा तथा अशोकनगर में भी लोग ठगी के शिकार हुए हैं। इस कंपनी ने सदस्‍यता के लिए प्रति व्‍यक्ति साढ़े पांच हजार की रकम वसूले थे, लेकिन कंपनी सात महीने में ही फरार हो गई। इस कंपनी ने मध्‍यप्रदेश के साथ-साथ गुजरात, आंध्रप्रदेश, महाराष्‍ट्र, छत्‍तीसगढ़ तथा राजस्‍थान में भी अपना जाल फैलाया था। एन-मार्ट नामक कंपनी ने 1400 करोड़ का चूना लोगों को लगाया है। इस कंपनी ने देशभर में 147 मॉल खोलने का दावा किया था और 20 लाख लोगों के पैसे लगे थे। इस कंपनी के सीएमडी गोपाल शेखावत बार-बार दावा कर रहे हैं कि उन्‍होंने किसी को लूटा नहीं है, लेकिन वह अंडरग्राउण्‍ड जरूर हो गये हैं और उनके सारे मॉल बंद हो चुके हैं और कोई भी मॉल के बारे में यह बताने को तैयार नहीं है कि यह कब तक खुलेंगे। इससे जाहिर है कि लोगों को एक बार फिर ठग लिया गया है और अपने जीवनभर की कमाई बर्बाद होने के बाद व्‍यक्ति लुट-पिटकर अफसोस के अलावा उसके पास कुछ नहीं बचा है। 
बार-बार ठगे जाते हैं लोग : 
        मध्‍यप्रदेश में ऐसी कंपनियां समय-समय पर आती रही है और वह लोगों को ठगती रही है। पिछले पांच सालों में राजधानी में ही करीब आधा दर्जन से अधिक फर्जी कंपनियों ने लोगों को ठगा है। कभी नौकरी के नाम पर, तो कभी ट्रेनिंग के नाम पर लोगों को लूटा गया है। बार-बार पुलिस दावा करती है कि वह फर्जी कंपनियों पर नजर रखेगी, लेकिन पुलिस की नाक के नीचे यह लूट सतत चल रही है। पुलिस के लिए इन कंपनियों की जांच एक रहस्‍य बनकर रह जाती है। थोड़े दिनों तो कंपनी की जांच पुलिस करती है, लेकिन बाद में पुलिस भी उसे भूल जाती है और फिर न तो कंपनी का पता चलता है और न ही कंपनी के मालिकों का, जो लोग अपने जीवनभर की कमाई इन कंपनियों के हवाले कर देते हैं वह सिर्फ आंसू बहाने के अलावा कुछ नहीं कर पाते हैं। 
                                        ''जय हो मप्र की''

रविवार, 11 नवंबर 2012

स्‍वर्णिम राज्‍य कभी बन पायेगा मध्‍यप्रदेश

           सपने देखना बुरा नहीं है। सपनों को साकार करना सबसे जटिल काम है। मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्‍यप्रदेश को स्‍वर्णिम राज्‍य बनाने का सपना देखा है। इस दिशा में उन्‍होंने आंशिक पहल भी की हैं। जिस तरह से कदम-कदम पर राज्‍य में समस्‍याओं और चुनौतियों का अंबार है, उससे लगता नहीं है कि मध्‍यप्रदेश भविष्‍य में भी स्‍वर्णिम राज्‍य बन पायेगा। पहली बात तो यह है कि स्‍वर्णिम राज्‍य की परिकल्‍पना ही गुजरात से ली गई है। गुजरात के मुख्‍यमंत्री ने पांच वर्ष पहले राज्‍य को स्‍वर्णिम राज्‍य बनाने का एलान किया था। इस घोषणा को जस का तस मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री ने अपना लिया है। गुजरात और मध्‍यप्रदेश में विकास के मामले में जमीन आसमान का अंतर है। न तो हम सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं मध्‍यप्रदेश की स्‍थापना के 56 साल बाद भी नागरिकों को मुहैया करा पा रहे हैं। आज भी राज्‍य के कई हिस्‍सों में सड़के हैं नहीं, बिजली उनके लिए एक सपना है, पानी तो एक दिवा स्‍वप्‍न बनकर रह गया है। शहरों में पानी को लेकर मारा-मारी आम बात है। पिछले पांच सालों में करीब आधा दर्जन से अधिक पानी को लेकर हत्‍याएं हो चुकी है। इस पर कोई गंभीर नहीं है। कुपोषण का जाल फैलता ही जा रहा है। आज श्‍योपुर, खंडवा, अलीराजपुर, शहडोल, विदिशा, रायसेन आदि जिलों में कुपोषण कलंक बना हुआ है। भूख से मौत की खबरें मीडिया में आती ही रहती हैं। महिलाओं पर अत्‍याचार में प्रदेश नंबर वन है। गरीबी का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है, बेरोजगारी थमने का नाम नहीं ले रही है। रोजगार के नाम पर चुनिंदा कारखाने आ रहे हैं, लेकिन बड़े कारखाने अभी भी प्रदेश की सरजमी पर उतर नहीं पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कैसे मध्‍यप्रदेश स्‍वर्णिम राज्‍य बनेगा, यह समझ से परे है।
यह सच है कि प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने स्‍वर्णिम राज्‍य का सपना देखा है, लेकिन उसे साकार करने में उनके मंत्री सहयोग नहीं कर रहे हैं पर वे सवाल जरूर उठा रहे हैं। नवंबर, 2012 माह में लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने एक कार्यशाला में कहा कि जब तक हर घर में पानी नहीं पहुंचेगा, तब तक प्रदेश स्‍वर्णिम राज्‍य कैसे बन पायेगा। इसी प्रकार 10 नवंबर, 2012 को राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने प्रदेश सरकार की योजनाओं पर तल्‍ख टिप्‍पणी करते हुए कहा कि पुरस्‍कार और सर्टीफिकेट से विकास का आकंलन नहीं हो सकता है। जब तक जनता के मुंह से बस-रेल आदि में यात्रा करते समय, चौराहो-गलियों एवं पान की दुकानों एवं होटलों में बैठकर यह शब्‍द न निकले की अच्‍छा मध्‍यप्रदेश बन रहा है, तभी स्‍वर्णिम मध्‍यप्रदेश का असली सर्टीफिकेट होगा। सोनी ने सलाह दी कि प्रशासन को और अधिक सक्षम बनाने, कृषि के साथ वैकल्पिक व्‍यवस्‍था बनाने, जैविक खेती की तरफ लौटने के लिए नीतियों में आधारभूत परिवर्तन की जरूरत है। तभी मध्‍यप्रदेश देश का एक बेहतर प्रदेश बन सकेगा। जब आदिवासी पुलिस को देखकर दौड़ न लगाये, तब समझना जन के अंदर तंत्र पर विश्‍वास हो गया है। नर्मदा के पानी के अधिक उपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए उन्‍होंने कहा कि नर्मदा का पानी इतना ज्‍यादा उपयोग न कर ले कि भविष्‍य में नर्मदा का अस्तित्‍व ही खत्‍म न हो जाये। नर्मदा हमारी जीवनदायिनी है। नर्मदा नदी अखंड कैसे रहे इस पर भी विचार करना चाहिए। पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय का एकात्‍म मानववाद का दर्शन संतो के प्रवचनों और नेताओं के भाषणों से नहीं, बल्कि आम आदमी में दिखाई दे। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी स्‍वीकार किया कि मध्‍यप्रदेश स्‍वर्णिम तभी बनेगा, जब एक भी व्‍यक्ति भूखा न सोये, गरीबों का जीवन स्‍तर सुधारे बिना इसकी परिकल्‍पना निरथक है। इससे पहले भी मध्‍यप्रदेश में विपक्ष तो मुख्‍यमंत्री के स्‍वर्णिम राज्‍य की परिकल्‍पना का मजाक उड़ाती रही है। यह सच है कि यहां के राजनेताओं और आमजन में विकास की ललक नहीं है जिसका लाभ अक्‍सर नौकरशाही उठा रही है। परिणाम स्‍वरूप प्रदेश धीरे-धीरे अपनी राह से चल रहा है जिसमें किसी का कोई योगदान नहीं है। जब जैसा मौसम आया तब वैसी ढपली लोग बजा रहे हैं, तो फिर कहां से स्‍वर्णिम राज्‍य बनेगा, यह एक विचारणीय प्रश्‍न है। 
                               ''जय हो मप्र की''

शनिवार, 10 नवंबर 2012

बेटियों के लिए समर्पित शिवराज

            राजनीति की धारा में अपनी अलग पहचान बनाना सबसे जटिल काम है। वर्तमान राजनीति कदम-कदम पर कलुषित हो रही है, ऐसी स्थिति में राजनीति करना भी राजनेताओं के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इस कठिन दौर में भी मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी राजनीति की लाइन बिल्‍कुल अलग-थलग बनाने की कोशिश में है जिसमें वे सामाजिक सरोकारों से न सिर्फ जुड़ रहे हैं, बल्कि समाज में डूब कर अपनी अलग पहचान स्‍थापित कर रहे हैं। इस अभियान में उनकी कड़ी है 'बेटियां'। वे समर्पित भाव से बेटियों के लिए काम कर रहे हैं। न सिर्फ कन्‍यादान के जरिये अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं, बल्कि बेटी बचाओ अभियान चलाकर घर-घर में यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि बेटी तो परिवार की शान है। इसके लिए उन्‍होंने प्रदेश के कई हिस्‍सों में न सिर्फ सम्‍मेलन किये, बल्कि रोड शो के जरिये बेटी बचाओ अभियान का प्रचार अभियान भी चलाया। हो सकता है इसके परिणाम मिलने में देरी लगे, लेकिन फिर भी वे लगातार बेटियों के लिए कोई न कोई योजना के साथ जनता के सामने मौजूद रहते हैं। सबसे उल्‍लेखनीय पहलू यह है कि जब भी उनके सामने कोई बेटी मौजूद रहती है, तो वे उसे सिर झुकाकर चरण स्‍पर्श करना नहीं भूलते । उनका यही स्‍वभाव उन्‍हें घर-घर में अलग पहचान दे रहा है। जब वे बेटियों के चरण स्‍पर्श करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे भगवान के सामने वंदन कर रहे हो। पूरी तरह से वे तन्‍मयता से उसमें डूब जाते हैं। ऐसा नहीं है कि उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री बनने के बाद ही बेटियों के लिए अभियान शुरू किया हो, बल्कि अपनी राजनीति जैसे-जैसे परवान चढ़ना शुरू हुई,तो उन्‍होंने अपने गृह जिले में कन्‍यादान अभियान शुरू कर दिया था। इसके तहत वे बालिकाओं के विवाह करते थे और इसी कड़ी को उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री बनने के साथ ही सरकार का मुख्‍य कार्यक्रम बना दिया। आज इस कार्यक्रम के तहत हजारों लड़कियों के विवाह हो गये हैं। यह सिलसिला आज भी अनबरत जारी है। वही दूसरी ओर लाडली लक्ष्‍मी, बेटी बचाओ अभियान जैसे कार्यक्रम भी तेजी से चल रहे हैं। निश्चित रूप से हर राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए कोई न कोई नया रास्‍ता ढूढ़ता है, लेकिन चौहान ने समाज के भीतर ही अपना मार्ग बनाने की पहल की है, जिसकी सराहना दुनिया के हर हिस्‍से में हो रही है। हाल ही में उन्‍हें विश्‍व बैंक ने महिला सशक्तिकरण पर भाषण देने के लिए अमेरिका बुलाया था। मध्‍यप्रदेश में भी उनके विरोधी दल भी कन्‍यादान, लाडली लक्ष्‍मी योजना तथा बेटी बचाओ अभियान की आलोचना नहीं कर पाते हैं। यह जरूर है कि इस कार्यक्रम पर हमला करने के बहाने वे प्रदेश में असुरक्षित हो रही युवतियां और महिलाओं को केंद्र बिन्‍दु बनाते हैं। इस दिशा में निश्चित रूप से सरकार को नये सिरे से सोचना चाहिए। एक तरफ तो सरकार बेटी बचाओ अभियान में जुटी हुई है, दूसरी तरफ महिलाओं की आबरू संकट में है। इसे बचाने के लिए सरकार क्‍या कर सकती है इस पर विचार किया जाये। फिर भी मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटियों को लेकर बुने गये सपनों में लोग सहभागी धीरे-धीरे हो रहे हैं, जो कि राज्‍य के लिए एक शुभ संकेत है। 
                                      ''जय हो मप्र की''
                   

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

बार-बार बांध निर्माण का विरोध क्‍यों करती हैं मेघा पाटकर

 
         मध्‍यप्रदेश जब-जब विकास की राह पर एक कदम आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तो उसकी राह में बाधा बनकर स्‍वयंसेवी संगठन मैदान में उतर आते हैं। कोई भी बांध का निर्माण शुरू हुआ तो उसका विरोध भी शुरू हो जाता है। विरोध करने वाले चेहरे भी अब सरकार से लेकर मीडिया भी पहचानने लगी है। नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोबर बांध के निर्माण का सबसे ज्‍यादा विरोध सुश्री मेघा पाटकर ने किया। उन्‍होंने अपनी छवि ही नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री के रूप में की है। वह करीब डेढ़ दशक से अधिक समय से भोपाल से लेकर दिल्‍ली तक खूब हल्‍ला मचाती रही हैं। इसके बाद भी मुआवजा और पुनर्वास का मामला आज भी थमा नहीं है फिर भले ही उन्‍होंने अपने आपको नर्मदा बचाओ आंदोलन से दूर कर लिया है। अब इस आंदोलन का नेतृत्‍व किन्‍ही ओर लोगों के हाथों में है। नर्मदा बचाओ आंदोलन से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनी छवि बना चुकी मेघा पाटकर आजकल अन्‍ना आंदोलन में खूब सक्रिय रही। वहां भी उनके मतभेद रहे, तो मुंबई में झुग्‍गीवासियों का आंदोलन शुरू कर दिया, वहां से फ्री हुई तो अब फिर मध्‍यप्रदेश की ओर रूख किया है। इस बार उनके निशाने पर महाकौशल अंचल के छिंदवाड़ा जिले में पेंच परियोजना है। इस बांध के निर्माण को लेकर उन्‍होंने हल्‍ला बोला और प्रशासन ने उन्‍हें गिरफ्तार भी किया पर समाजसेवी अन्‍ना हजारे ने उनके समर्थन में बयान दिया, जिसके चलते सरकार ने आनन-फानन में उन्‍हें रिहा भी कर दिया। सामाजिक कार्यकर्ता मेघा पाटकर को दो दिन ही जेल में बिताने पड़े। अब वे कह रही हैं कि बांध में फर्जीवाड़ा हो रहा है इसके खिलाफ वह चुप्‍प नहीं रहेगी और लगातार आंदोलन करती रहेगी। इस पेंच परियोजना का विरोध पूर्व विधायक डॉ0सुनीलम ने शुरू किया था वह इन दिनों जेल में हैं, तो उनके आंदोलन का नेतृत्‍व बैतूल जिले के अधिवक्‍ता आराधना भार्गव कर रही हैं, उन्‍हें भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, वे भी 8 नवंबर को रिहा हो गई हैं। अब मेघा पाटकर और आराधना भार्गव ने मिलकर आंदोलन तेज करने का संकल्‍प लिया है। अब आंदोलन कितना जोर पकड़ेगा यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन यह तय हो गया कि मेघा पाटकर को मध्‍यप्रदेश की सरजमी रास आ गई है। जहां वे विकास को लेकर कोई भी बांध का निर्माण होगा, तो उसका विरोध करने के लिए सबसे पहले मौजूद रहती हैं। वर्तमान सरकार के आंख की किरकिरी बनी हुई हैं। भाजपा सरकार उन्‍हें पसंद नहीं करती है और न ही कभी संवाद का कोई रास्‍ता खोलती है। यह सच है कि मेघा पाटकर को विकास की राह रोकने का विरोधी कहा जाता है, लेकिन वह किसानों को न्‍याय दिलाने की बात तो करती हैं, लेकिन वे आंदोलन को बीच में ही छोड़ देती हैं। यह स्थिति नर्मदा बचाओ आंदोलन में भी बनी थी। जहां वे अब बहुत कम जाती हैं। 
पेंच परियोजना और विरोध : 
      छिंदवाड़ा जिले में पेंच बांध निर्माण पर खूब राजनीति हो रही है। इस बांध की लागत भी 91 करोड़ से 1800 करोड़ जा पहुंची है। पेंच नदी पर बन रहे 6 किमी इस बांध को लेकर कई स्‍तरों पर विरोध हो रहा है। 1980 में इस बांध की शुरूआत हुई तब लागत महज 91 करोड़ थी, जो कि 32 साल बाद 2012 में बढ़कर 1800 करोड़ हो गई है। इस बांध के निर्माण में करीब 32 गांवों के किसान विस्‍थापित किये जा रहे हैं। इन किसानों की जमीन अधिग्रहण की जा रही है, लेकिन किसानों को कहां स्‍थाई रूप से बसाया जायेगा, इसके लिए अभी कोई स्‍पष्‍ट योजना नहीं है। किसान भी धीरे-धीरे विरोध कर रहे हैं और उन्‍हें लगता है कि अगर विरोध तेज किया, तो मुआवजा के साथ-साथ जमीन के बदले जमीन भी मिलेगी। सुप्रीमकोर्ट भी कह चुका है कि जहां पर भी बांधों का निर्माण हो वहां पर हर हाल में बेघर किये जा रहे किसानों को जमीन के बदले जमीन मिले। 
                           ''जय हो मध्‍यप्रदेश की''

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

रामपथ को भूली सरकार

 
            भगवान राम मध्‍यप्रदेश में जहां-जहां से गुजरे हैं उन स्‍थानों को धार्मिक और पर्यटन स्‍थल के रूप में विकसित करने की योजना को भाजपा सरकार भूल गई है। राज्‍य सरकार द्वारा गठित समिति ने भगवान राम के पथ तो खोज लिये हैं, लेकिन उसके बाद की रिपोर्ट मंत्रालय की फाइलों में कहीं गुम हो गई है। योजना के तहत पर्यटन पुरातत्‍व, लोक निर्माण विभाग योजना आयोग को रामपथ मार्ग विकसित करने का जिम्‍मा सौंपा गया था, लेकिन यह योजना एक कदम आगे भी नहीं बढ़ पाई है। भगवान राम का जप करने वाली प्रदेश सरकार ने ''राम वन गमन पथ मार्ग'' तो खोज लिये हैं, लेकिन उन्‍हें विकसित नहीं किया जा रहा है। दिलचस्‍प बात यह है कि वर्ष 2011 में इस मार्ग की प्रथम और द्वितीय चरण का प्रतिवेदन मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंपा जा चुका है, परंतु एक वर्ष बाद भी प्रतिवेदन के अंतर्गत होने वाले विकास कामों पर न तो कोई योजना बनी और न ही जमीन पर उसका अमल हो पाया। हर विभाग अपने-अपने तर्क दे रहा है, लेकिन कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि आखिरकार इस पथ के विकास का काम कब होगा। 
इसलिए खोजे गये थे मार्ग : 
     मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 01 अक्‍टूबर, 2007 को चि‍त्रकूट में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान एलान किया था कि भगवान राम ने वनवास के दौरान पत्‍नी सीता और भाई लक्ष्‍मण के साथ मध्‍यप्रदेश में जिन-जिन स्‍थानों से गुजरे थे, उन्‍हें राम वन गमन पथ के रूप में विकसित कर संरक्षित किया जायेगा। इन क्षेत्रों का उत्‍थान कर राम स्‍मृति संग्रहालय, रामलीला केंद्र, नये गुरूकुल एवं आश्रमों की स्‍थापना की जायेगी। 
क्‍या है राम वन गमन पथ मार्ग : 
     पौराणिक मान्‍यता है कि भगवान राम वनवास के समय मध्‍यप्रदेश के जंगलों से गुजरे हैं, इन मार्गों को चिन्हित करने के लिए 'राम वन गमन पथ मार्ग' का नाम दिया गया। संस्‍कृति विभाग का मानना है कि भगवान राम चित्रकूट साढ़े ग्‍यारह साल रूके थे। इसके बाद सतना, पन्‍ना, शहडोल, जबलपुर, विदिशा के वन क्षेत्रों से होकर दंडकारण्‍य चले गये थे, वे नचना, भरहुत, उचेहरा, भेड़ाघाट एवं बाधवगढ़ होते हुए छत्‍तीसगढ़ गये थे। 
क्‍या है रिपोर्ट में : 
      संस्‍कृति विभाग ने भगवान राम वन गमन पथ मार्गों के अध्‍ययन एवं शोध के लिए 11 सदस्‍यीय कमेटी गठित की थी। इस समिति के संयोजन का दायित्‍व अवधेश प्रसाद पाण्‍डेय को सौंपा गया था। समिति ने दो चरणों में मार्गों का अध्‍ययन किया। पहला चरण समिति ने 1-9 मार्च, 2009 तक 9 दिवसीय शोधयात्रा चित्रकूट से बाधवगढ़ तक की। इस दौरान समिति को भगवान राम के वन गमन मार्गों के पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं पौराणिक साक्ष्‍य मिले हैं। समिति का दूसरा चरण 7 दिवसीय रहा, जो वर्ष 2010 में पूरा हुआ। इस रिपोर्ट में कहा गया कि भगवान राम वन गमन पथ मार्गों के विषय में रामकथा के प्रमाणित ग्रंथों में आयोध्‍या से चित्रकूट तक के स्‍थलों और मार्गों का उल्‍लेख मिलता है। इन स्‍थानों को पर्यटन और तीर्थ स्‍थल कैसे बनाया जाये, इसका विस्‍तार से उल्‍लेख है। दिलचस्‍प यह है कि भाजपा सरकार के प्रतिनिधि भगवान राम को अपना आराध्‍य देव मानते हैं, लेकिन फिर भी मप्र में उनके मार्गों को विकसित करने का काम अधर में  लटका हुआ है। यहां तक कि यह तय नहीं हो पा रहा है कि आखिरकार इस रिपोर्ट पर काम कौन करेगा। यही वजह है कि रिपोर्ट फाइलों का अंग बनकर रह गई है। 
रिपोर्ट और पक्ष : 
  • राम वन गमन पथ मार्ग की रिपोर्ट मुख्‍यमंत्री को वर्ष 2011 में सौंपी जा चुकी है अब इस पर दीर्घकालिक योजना तैयार कराई जायेगी। विभागों की एक संयुक्‍त बैठक बुलायेंगे, जिसमें अलग-अलग कार्ययोजना विभागों को सौंपी जायेगी, हमारा इरादा है कि राम वन गमन पथ मार्गों को तीर्थ स्‍थल के रूप में विकसित किया जाये, ताकि आम आदमी उन तक पहुंच सके। - लक्ष्‍मीकांत शर्मा, संस्‍कृति मंत्री मध्‍यप्रदेश। 
  • भगवान राम के पथ मार्गों को चिन्हित कर एक प्रमाणित रिपोर्ट हमने संस्‍कृति विभाग को सौंप दी है। मार्गों को चिन्हित करने के साथ-साथ उन स्‍थानों पर किस तरह के निर्माण कार्य एवं विकास योजना तैयार करनी है यह रिपोर्ट भी दी जा चुकी है। करीब 33 करोड़ के प्रोजेक्‍ट दिये गये हैं अब सरकार को उन पर अमल करना है। - अवधेश प्रसाद पांडेय, संयोजक, राम वन गमन पथ विकास मार्ग।

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

उत्‍सव और त्‍यौंहार की बयार फिर बही मध्‍यप्रदेश में


             मध्‍यप्रदेश में उत्‍सव और त्‍यौंहार के अपने अलग-अलग रूप हैं। यह राज्‍य उत्‍सवधर्मी है।किसी न किसी हिस्‍से में कोई न कोई उत्‍सव चलता रहता है। सरकार की ओर से सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों के जरिये उत्‍सव का माहौल बना रहता है। अपने-अपने ढंग से कालाओं का प्रदर्शन लगातार हो रहा है। जब उत्‍सव थम जाते हैं, तो त्‍यौंहारों का दौर शुरू हो जाता है। परंपराओं और मान्‍यताओं पर अटूट विश्‍वास राज्‍य के लोगों में है। यही वजह है कि हर छोटा-बड़ा उत्‍सव धूमधाम से मनाया जाता है। इन दिनों दीप पर्व का उत्‍सव शुरू हो गया है। राज्‍य के हर हिस्‍से में खुशियों के दीप जलाने का सिलसिला शुरू हो गया है। बाजार सजकर तैयार हैं, जनता बाजारों में खरीदारी करने के लिए टूट पड़ रही है। घरों की साज-सज्‍जा हो रही है यानि त्‍यौंहार से पहले ही उसके आगमन की खूब तै‍यारियों में लोग डूबे हैं। हिन्‍दुओं का सबसे बड़ा पर्व दीप पर्व है। इस त्‍यौंहार को राज्‍य में सबसे जोर-शोर से और उत्‍सव से मानने का सिलसिला वर्षों से चल रहा है। इसके अलावा अन्‍य त्‍यौंहारों की लंबी फेहरिस्‍त हैं, लेकिन जितना जोश दीप पर्व में उतना कम ही त्‍यौंहारों में नजर आता है। इस त्‍यौंहारों की खुशियों में गरीब से लेकर अमीर तक डूबा रहता है। यही खासियत है इस विविधता से भरे राज्‍य में।  
कदम-कदम साथ : 
        कदम-कदम पर साथ चलने की कलायें मध्‍यप्रदेश के वाशिंदों से सीखना चाहिए। यहां पर न तो किसी से कोई विवाद होता है और न ही कोई आंखे दिखाता है। कभी-कभार दो वर्गों में विवाद हो जाते हैं, लेकिन बाद में बस एक होकर अपनी-अपनी दुनिया में डूब जाते हैं। इसी सरोकार के चलते राज्‍य की भूमि में ऐसा मिश्रण है कि लोग एक साथ चलते नजर आते हैं। कहीं कोई विरोध, असंतोष, नाराजगी नजर नहीं आती है। इक्‍का-दुक्‍का लोग व्‍यवस्‍था के खिलाफ बोलते नजर आते हैं। यही वजह है कि मध्‍यप्रदेश में विरोधी तेवर अक्‍सर शांत से रहते हैं। न तो बिहार, यूपी की तरह राजनेता एक-दूसरे को ललकारते नजर आते हैं और न ही खामियां निकालते हैं, बल्कि दिखावे के लिए राजनीति चमकाना उनका सगल हो गया है। यही हालत आम आदमी में दिखती है। अमूमन शांतिप्रिय राज्‍य में अपने-अपने ढंग से लोग उत्‍सव मनाकर खुशियों में डूबे रहते हैं, वे न तो उन खुशियों का विस्‍तार करते हैं और न ही उसे व्‍यापक रूप देने में उनका विश्‍वास है। अपने आसपास के लोगों के बीच खुशियों को बांटकर अपनी जिंदगी की गाड़ी बढ़ते रहते हैं।

सोमवार, 5 नवंबर 2012

गर्भपात का रोग और पनपा मध्‍यप्रदेश में इंदौर टॉप पर

         यूं तो सामाजिक कुरीतियां खत्‍म लेने का नाम नहीं ले रही।  धीरे-धीरे हमारी मानसिक अवधारणाओं ने न सिर्फ कुरीतियों को बल दिया है, बल्कि उन्‍हें और बढ़ावा मिला है। शहरी आवो-हवा से सोच और नजरिये में बेहद फर्क आ गया है। अब जिंदगी भी लाभ और हानि पर जीने के लिए लोग विवश हो रहे हैं। एक तरफ मप्र में ''बेटी बचाओ अभियान'' चल रहा है, तो वही लिंगानुपात का प्रतिशत कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट में राज्‍य में 18 से 19 साल की लड़कियां गर्भपात कराने का खुलासा हुआ हैं जिसमें इंदौर टॉप पर है। औद्योगिक महानगर के रूप में पनप रहा इंदौर में गर्भपात का गोरखधंधा लगातार पैर जमा रहा है। यह सच है कि आज भी 60 से 80 प्रतिशत नौजवान पीढ़ी शादी के बाद अपनी पत्‍नी से यही अपेक्षा करता है कि उसे पुत्र मिले। इसके लिए कई टोने-टोटके और पूजा-पाठ होती है। मेडीकल जांचों का भी सहारा लिया जाता है। यह भी सच है कि मध्‍यप्रदेश की सरकार ने गर्भपात कराने पर सख्‍त कानून बना रखा है। नर्सिंगहोमों पर उनकी कड़ी नजर है, लेकिन बंद कमरों में यह बाजार भी खूब गर्म है। समय-समय पर इस धंधे में माहिर चिकित्‍सक पकड़े भी जा रहे हैं। लिंगानुपात आज भी यथावत है, जबकि मप्र के करीब डेढ़ दर्जन से अधिक जिलों में लिंगानुपात की गंभीर समस्‍याएं है जिसमें ग्‍वालियर एवं चंबल संभाग प्रमुख हैं। इसके साथ ही सांख्यिकी विभाग ने हाल ही तैयार की एक रिपोर्ट में कहा है कि भले ही सरकार बेटी बचाओ अभियान, कन्‍यादान, लाडली लक्ष्‍मी और आंगनवाड़ी में युवतियों के जन्‍म दिन पर उत्‍सव मानने पर कितनी ही राशि खर्च करें, लेकिन लिंगानुपात में कोई कमी नहीं आई है। 
गर्भपात में इंदौर टॉप पर :
         शर्मनाक स्थिति है कि एक तरफ इंदौर, मुंबई के बाद व्‍यवसायिक नगरी धीरे-धीरे आकर ले रही है, वहीं दूसरी ओर गर्भपात जैसा गंदा कारोबार पर्दे के पीछे चल रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार 15 से 19 साल की लड़कियों द्वारा गर्भपात कराने के मामले में इंदौर पूरे प्रदेश में टॉप पर है। अब तक कुल 64 लड़किया एक साल में गर्भपात करा चुकी हैं। जिला जनगणना आयुक्‍त कार्यालय के स्‍वास्‍थ्‍य सर्वे में यह शर्मनाक खुलासा हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कुल गर्भपात में से 11.5 प्रतिशत इंदौर जिले में कराये गये हैं। अप्रैल 2011 से मार्च, 2012 के बीच 15 से 19 वर्ष की 53 लड़कियों ने गर्भपात कराया है। अप्रैल 2012 से सितंबर, 2012 के बीच अब तक 11 लड़किया गर्भपात करा चुकी हैं। 
             निश्चित रूप से इस अवैध कारोबार पर सरकार की नजर है, कड़े कानून बने हैं, समय-समय पर डॉक्‍टर पकड़े भी जा रहे हैं। इस दिशा में सामाजिक मान्‍यताओं को खत्‍म करने में समय लगेगा, लेकिन सजगता और जागरूकता के चलते हम कहीं न कहीं परिवर्तन की पहल तो कर ही सकते हैं। 
कामयाबी : 
         पहली क्राइम पोर्टल बनी : आईपीएस अफसर उपेंद्र जैन जहां भी काम करते हैं तो कोई न कोई नहीं राह बना ही लेते हैं। जब वे छतरपुर जिले के एसपी थे, तब उन्‍होंने दबंग राजनेता विक्रम सिंह उर्फ भैया राजा के महल पर छापा मारा था और अवैध सामग्री जप्‍त की थी। इस घटना को आज भी लोग बहुत गर्व से याद करते हैं। वर्ष 2010-11 में जब वे ग्‍वालियर में उप परिवहन आयुक्‍त थे, तो उन्‍होंने विभाग की नीति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लंबे समय तक उन्‍होंने विभाग की कमान अपने हाथ में रखी। नई नीति को बनाने में अग्रणी भूमिका  निभाने वाले जैन को 2011 में ही उज्‍जैन रेंज के पुलिस महानिरीक्षक के पद पर पदस्‍थ किया। यहां भी उन्‍होंने नवंबर, 2012 में प्रदेश की पहली क्राइम पोर्टल बनाने वाली उज्‍जैन रेंज का नाम दर्ज करा लिया। यह पोर्टल प्रदेश में बड़े अपराधियों पर शिकंजा कसने और उनके अपराधों पर नियंत्रण तथा जांच को पुख्‍ता बनाने के लिए है। इस पोर्टल के माध्‍यम से रेंज और पड़ौसी राज्‍य राजस्‍थान की मप्र की सीमा से लगे जिलों के अपराधियों का उनके फोटों, अपराध के तरीके आदि जानकारियां थाना प्रभारी को कम्‍प्‍यूटर पर एक क्लिक करने पर मिल जायेगी। इससे अपराधियों की पहचान करने में भी सहायता मिलेगी। अभी तक अपराध होने पर एलबम बुलाना पड़ता था लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। यह अपने आप में एक बड़ा मिशन का काम पूरा हुआ है।

शनिवार, 3 नवंबर 2012

ना बाबा ना मंदिर में राजनीति नहीं

''आओ साथ-साथ प्रार्थना करें: भूरिया और प्रभात इंदौर के खजराना मंदिर में''
        देखिए मध्‍यप्रदेश की राजनीति कैसे-कैसे करवट लेती है। राजनेता जब आमने-सामने होते हैं तो मोहब्‍बत से गले लगते हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ होते हैं। पर्दे के पीछे मदद करने में कोई किसी से पीछे नहीं है। यही वजह है कि राज्‍य में मिली-जुली राजनीति चल रही है। ऐसा कहना भी उचित नहीं है कि क्‍या राजनेता हमेशा राजनीति करते रहे और वे जब विरोधी के सामने आये तो गले भी न मिले यह कैसे संभव हो सकता है। यह सच है कि मप्र में कांग्रेस और भाजपा दो दलों की ताकत राज्‍य में चहुंओर है। इन्‍हीं दलों के नेता अपने-अपने तीरों से एक-दूसरे पर निशाना साधते रहते हैं। विशेषकर भाजपा के प्रदेशाध्‍यक्ष प्रभात झा ने तो 2010 के बाद राज्‍य की राजनीति में अपने बयानों से ऐसा तूफान खड़ा किया है, जो कि थमने का नाम नहीं ले रहा है। उन्‍होंने कांग्रेस के दिग्‍गज नेताओं पर तीखे बार किये हैं जिसमें पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह, केंद्रीय राज्‍यमंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया, प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह शामिल हैं। इन नेताओं पर झा ने हर तरह के हमले किये। यहां तक कि तनातनी के चलते झा और अजय के बीच तो मामला कोर्ट में पहुंचा गया है। ऐसी स्थिति में अगर झा और भूरिया गले मिले, तो क्‍या राजनीति मानी जाये, जी नहीं इसे राजनीति नहीं मानना चाहिए पर यह तो एक सवाल तो उठता ही है कि आखिरकार झा और भूरिया बार-बार निकट क्‍यों आ रहे हैं। 02 नवंबर को इंदौर के प्रसिद्व गणेश मंदिर खजराना में भूरिया और प्रभात साथ-साथ पहुंच गये। भूरिया और झा ने एक साथ माला भी चढ़ाई और अलग-अलग प्रार्थनाएं भी की। इसके बाद दोनों गले भी मिले। अब राजनेता इसे कह रहे हैं कि यह एक संयोग था, क्‍योंकि भूरिया अपने बेटे की शादी का कार्ड भगवान को सप्रेम भेंट करने गये थे, जबकि झा सिर्फ दर्शन करने गये थे। एक महीने पहले भी झा और भूरिया भोपाल के एयरपोर्ट पर आधा घंटे तक गपशप करते रहे। बाद में दिल्‍ली तक विमान में अगल-बगल की सीट में बैठकर पूरे मार्ग में चर्चा ही करते रहे। तब विमान में बैठे संवारियों के लिए यह चौकाने वाला दृश्‍य था, क्‍योंकि भूरिया और झा के बीच जबर्दस्‍त राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है। भूरिया झा को राज्‍य का बाहरी नेता बताकर हमला कर रहे हैं और झा भूरिया को नकली आदिवासी नेता कहते हैं। अपने-अपने बजूद की लड़ाई लड़ रहे इन नेताओं की निकटता देखकर कई प्रकार के सवाल खड़े होना स्‍वाभाविक है। यूं भी इन दिनों कांग्रेस के नेताओं पर यह आरोप लगता ही रहता है कि वे भाजपा से मिल गये हैं। ऐसा कई बार विधानसभा के फ्लोर पर भी नजर आता है और राजनीतिक जंग के मैदान में भी उसके आंशिक असर परि‍लक्षित होते हैं। 
         ऐसा नहीं है कि मप्र में राजनीति में पहली बार कांग्रेस और भाजपा पर मिली भगत के आरोप लग रहे हो। 80 के दशक में भी तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री अर्जुन सिंह और नेता प्रतिपक्ष रहे सुंदरलाल पटवा की दोस्‍ती की गूंज दिल्‍ली तक होती रही है। वही 93 से 2002 तक मुख्‍यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की दोस्‍ती नेता प्रतिपक्ष रहे विक्रम वर्मा से बेहतर रही है। इसके अलावा कैबिनेट मंत्री बाबूलाल गौर और अर्जुन सिंह के बीच भी गहरी निकटता थी। दोनों नेता जब मौका मिलता तो गपशप करते थे। वही दूसरी ओर दिग्विजय‍ सिंह तो अपने भोपाल प्रवास के दौरान पूर्व मुख्‍यमंत्री सुंदरलाल पटवा के निवास पर जाकर मेल-मुलाकात करते ही हैं। राजनीति में किसी से कोई दुश्‍मनी नहीं होती है। राजनेता अपने-अपने तरीकों से राजनीति करता है। कभी दोस्‍ती भी होती है और कभी जंग के मैदान में जब लड़ाई होती है तो विरोधियों को मात देने की ललक भी बनी रहती हैं, लेकिन मप्र में धीरे-धीरे राजनीति कम हो रही है, बल्कि राजनैतिक दलों में दोस्‍ती ज्‍यादा हो रही है जिसके चलते विवाद गहरा रहे हैं और राजनीतिक नेताओं की भूमिका पर भी सवाल खड़े होना शुरू हो गये हैं। वैसे भी मप्र की राजनीति में वह धार अब गायब से होती जा रही है, जो अपने आप में कभी बरकरार थी। 
और मुख्‍यमंत्री का सम्‍मान करते संघ प्रमुख भागवत :

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

भ्रष्‍टाचारियों की सम्‍पत्ति पर खड़े होंगे अब स्‍कूल और आंगनवाड़ी केंद्र मप्र में

          सरकारी योजनाओं के जरिए भ्रष्‍टाचार की गंगा में डुबकी लगाने वाले उन अफसरों के बुरे दिन आने वाले हैं, जो कि योजनाओं के जरिये लाखों-करोड़ों रूपये डकार जाते हैं। ऐसे भ्रष्‍ट अफसरों की सम्‍पत्ति जप्‍त कर उन पर स्‍कूल, कॉलेज और आंगनवाड़ी केंद्र खोलने का इरादा राज्‍य सरकार ने बना लिया है। मध्‍यप्रदेश में भ्रष्‍टाचार अपनी जड़े तेजी से मजबूत कर रहा है, जिसके चलते हर दिन भ्रष्‍टाचार के मामले उजागर हो रहे हैं। लोकायुक्‍त, आर्थिक अपराध अन्‍वेषण ब्‍यूरो द्वारा लगातार छापे मारे जा रहे हैं जिसमें चपरासी से लेकर आईएएस अधिकारी तक करोड़ों के मालिक निकल रहे हैं। अचानक सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के निवासों से उगलने वाली करोड़ों की सम्‍पत्ति से सरकार और मीडिया की आंखे खुली की खुली रह गई है। वे समझ नहीं पा रहे है कि आखिरकार इतना भ्रष्‍टाचार कैसे फैल गया। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भ्रष्‍टाचार रोकने के एि विशेष न्‍यायालय वर्ष 2011 में स्‍थापित किये जिसके तहत भ्रष्‍टाचार के तहत कमाई गई सम्‍पत्ति को राजसात करने का अधिकार उन्‍हें दिया गया। इस कड़ी में 1 नवंबर, 2012 को विशेष न्‍यायालय इंदौर ने इंदौर आरटीओ कार्यालय में पदस्‍थ सहायक ग्रेड-3 रमेंद्र उर्फ रमण धोलधोए की 1.18 करोड़ की सम्‍पत्ति अधिग्रहीत की जायेगी। इसका बाजार मूल्‍य करीब सात करोड़ बताया जा रहा है। यह अपने आप में राज्‍य में एक अनूठा मामला है। इसके साथ ही सम्‍पत्ति जप्‍त करने की प्रक्रिया और तेज होगी और उन भ्रष्‍टों पर नकेल कसी जायेगी, जो कि सरकारी योजनाओं के जरिए करोड़ों के बारे-न्‍यारे कर रहे हैं। 
जप्‍त सम्‍पत्ति पर बनेंगे आंगनवाड़ी केंद्र : 
        बिहार की तर्ज पर मध्‍यप्रदेश में भी जिन भ्रष्‍ट अधिकारियों/ कर्मचारियों की सम्‍पत्ति जप्‍त की जायेगी, उन स्‍थानों पर आंगनवाड़ी केंद्र और स्‍कूल खोले जायेंगे। मुख्‍यमंत्री चौहान ने एलान किया है कि राजसात में जो चल-अचल सम्‍पत्ति जप्‍त की जायेगी उसका उपयोग जनता के हित में होगा। बिहार में इस तरह का प्रयोग पिछले दो सालों से चल रहा है। जिस आरटीओ कर्मचारी की सम्‍पत्ति जप्‍त की जा रही है उसके निवास और अन्‍य स्‍थानों से ईओडब्‍ल्‍यू ने छापामार कार्यवाही करके 40 करोड़ों से ज्‍यादा की सम्‍पत्ति का खुलासा किया था। ईओडब्‍ल्‍यू ने यह मामला 17 अप्रैल, 2012 को विशेष न्‍यायालय इंदौर में दायर किया था जिसमें सात माह के बाद 01 नवंबर, 2012 को कोर्ट ने निर्णय सुना दिया। जिसके तहत इंदौर कलेक्‍टर जमीन, फार्म हाउस, बहुमंजिला घर और वाहनों का राजसात करेगा और उनका उपयोग शासन की योजनाओं के लिए किया जायेगा। यह कार्यवाही 30 दिनों के भीतर की जानी है। कोर्ट ने कहा कि अगर जरूरत पड़े तो बल प्रयोग भी करें। 
छह की सम्‍पत्ति और राजसात होगी : 
        प्रदेश की विशेष अदालतों में अभी छह मामले और सम्‍पत्ति राजसात करने के लंबित हैं। इनमें भोपाल, जबलपुर और ग्‍वालियर की विशेष अदालतों में दो-दो मामले हैं। भोपाल में पूर्व सत्‍कार अधिकारी त्‍योफिल तिग्‍गा और राजगढ़ के विद्युत मंडल के अधीक्षण यंत्री की सम्‍पत्ति भी राजसात की जानी है। निश्चित रूप से यह कार्यवाही अपने आप में चौंकाने वाली है और इससे भविष्‍य में भ्रष्‍टाचार पर धीरे-धीरे अंकुश लग सकता है।

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

पग-पग अपनी नई राह बना रहा मध्‍यप्रदेश

         मध्‍यप्रदेश ने आज 01 नवंबर, 2012 को अपने 56 साल पूरे कर लिये। अब नये बदलाव के साथ 57वें वर्ष में राज्‍य प्रवेश कर गया। इस परिवर्तन में आम आदमी की भागीदारी भी धीरे-धीरे हो रही है। पग-पग अपनी नई राह मध्‍यप्रदेश बना रहा है। जो संसाधन है उसके सहारे अपनी ताकत को पूरी करने में जुटा है। जहां कमी है उसे स्‍वीकार कर नई मंजिल पर छूने की बेताबी साफ तौर पर नजर आती है। बार-बार मध्‍यप्रदेश को बीमारू और पंगु कहा गया, लेकिन धीरे-धीरे इस धुंधली तस्‍वीर से भी राज्‍य बाहर निकल आया है। अब कोई भी मध्‍यप्रदेश को उस नजर से नहीं देख रहा है, जो कि आज से एक दशक पहले स्थितियां बन गई थी। अब तो हम अन्‍य विकासशील राज्‍यों से कदमताल कर रहे हैं। हमारी योजनाएं अन्‍य राज्‍य स्‍वीकार कर रहे हैं फिर चाहे उत्‍तर हो या दक्षिण भारत के राज्‍य अब मध्‍यप्रदेश की योजनाओं को स्‍वीकार कर अपने यहां अंगीकार कर रहे हैं। यह राज्‍य के लिए शुभ लक्ष्‍ाण है, क्‍योंकि प्रदेश की योजनाएं अगर दूसरा राज्‍य स्‍वीकार कर रहा है, तो निश्चित रूप से हम जिस धारा में बहना चाहते हैं उसके निकट पहुंच रहे हैं। अभी भी राज्‍य के नवनिर्माण के लिए उन योजनाओं को ज्‍यादा स्‍वीकार करना है, जिनसे आम आदमी का विकास हो सके। कई स्‍तर पर विकास योजनाएं निश्चित रूप से जो परिणाम देना चाहिए वह नहीं दे पाती हैं। इसके बाद भी उन योजनाओं की खामियों को विचार करके नये सिरे से लागू करना चाहिए। 
       यह राज्‍य के लिए एक सुखद पहलू है कि वर्ष 2011-12 में हमने 12 फीसदी आर्थिक विकास दर हासिल की है पर फिर भी मध्‍यप्रदेश अभी भी देश के विकसित राज्‍यों से बहुत पीछे हैं। ऐसा नहीं है कि हम देश के अग्रणी राज्‍य नहीं बन सकते। पूरी क्षमताएं और संसाधन है। प्राकृतिक संसाधन तथा सशक्‍त संसाधन मौजूद हैं बस उनका उपयोग करने की जरूरत है। अभी भी मध्‍यप्रदेश स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, पर्यटन, सड़क, परिवहन, उद्योग, निवेश, बिजली, ग्रामीण क्षेत्र आदि में अन्‍य राज्‍यों से पीछे है, लेकिन धीरे-धीरे अपने विकास की गति बढ़ाई जा रही है जिसके परिणाम नजर भी आने लगे हैं। यही वजह है कि स्‍वर्णिम राज्‍य और आओ बनाएं मध्‍यप्रदेश के सपने बुने जा रहे हैं। इससे एक कदम आगे बढ़कर विकास की नई परिकल्‍पनाएं फाइलों से बाहर निकल रही है, जो कि शुभ संकेत है। 
इरादा : 
  • प्रदेश के गौरव की भावना को जागृत करने के लिए हम सतत् सक्रिय है। मप्र स्‍वर्णिम राज्‍य और अपना प्रदेश बनाओ अभियान के बाद अब अपना गांव चलाने का संकल्‍प है इसके पीछे का मकसद जो गांव अपने बलबूते पर अच्‍छा काम करेंगे, उन्‍हें विकास में ज्‍यादा राशि दी जायेगी। - शिवराज सिंह चौहान, मुख्‍यमंत्री, मध्‍यप्रदेश।       
  • जब व्‍यक्ति अपने जन्‍मदिन और विवाह समारोह पर करोड़ों रूपये खर्च कर सकता है, तो फिर प्रदेश का जन्‍मदिन जोर-शोर से क्‍यों न मनाया जाये, आखिरकार यह हमारे गौरव से जुड़ा हुआ क्षण है। - लक्ष्‍मीकांत शर्मा, संस्‍कृति मंत्री।      
फोकस पाइंट: 
  • वर्ष 2001-2011 तक 20.30 प्रतिशत आबादी बढ़ी
  • प्रदेश में 4 बड़े शहर - इंदौर, भोपाल, ग्‍वालियर एवं जबलपुर
  • 52,114 गांव, जिनमें 56 फीसदी में आज भी बिजली नहीं
  •  स्‍वास्‍थ्‍य खर्च - 214 रूपये प्रति व्‍यक्ति हो रहा है
  • साक्षरता दर - 74 प्रतिशत है। बढ़ाने के हर स्‍तर पर प्रयास
  • 2012 में विदेशी पर्यटक मप्र में आये - 2.69 लाख 
  • बिजली कमी से जूझ रहा प्रदेश - 20 प्रतिशत 
यह है हमारी कमजोरी : 
  • 36 जिलों में ग्रामीण आबादी ज्‍यादा
  • 29 जिलों में ज्‍यादातर ग्रामीण बेरोजगार 
  • 01 लाख की आबादी के क्षेत्र विकास से दूर