भले ही मध्यप्रदेश विकास के पथ पर तेजी से दौड़ रहा है पर आज भी सामाजिक कुरीतियां उसका पीछा नहीं छोड़ रही हैं। जादू-टोना के नाम पर आदिवासियों को नंगा करके गांव में घुमाया जाता है और प्रशासन चुप्पी साधे रहता है। जादू-टोना के संदेह पर लोगों को प्रताडि़त करना, उन्हें मारना-पीटना और गांव से बाहर खदेड़ देने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह प्रसंग सबसे ज्यादा आदिवासी बाहुल्य जिलों में हो रहे हैं। कहीं-कहीं तो आदिवासी महिलाओं को जादू-टोने के संदेह में मार तक डाला गया है। ऐसी घटनाएं आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला, डिंडोरी, शहडोल, झाबुआ, अलीराजपुर, बैतूल आदि जिलों में अखबारों की सुर्खिया बनी रहती हैं। ऐसा नहीं है कि इन जिलों के अलावा अन्य जिलों में भी जादू-टोने नहीं हो रहे हैं। अंधविश्वास का कुचक्र इस कदर फैला हुआ है कि प्रदेश के जो प्रमुख शहर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में भी जादू-टोने का कारोबार खुलकर चल रहा है। इन महानगरों की शक्ल ले रहे शहरों में कई स्थानों पर जादू-टोने के स्थान पर दरवार चल रहे हैं जहां पर बीमारियां भगाने के मंत्र दिये जाते हैं, तो कहीं जल्दी नौकरी मिलने का सपना दिखाया जाता है, तो कहीं-कहीं लड़की की शादी जल्दी होने, बच्चा पैदा होने, अफसर का प्रताडि़त करना और दुश्मन को जड़मूल से समाप्त करने सहित आदि बिन्दुओं पर जादू-टोने हो रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब आदिवासी बाहुल्य जिला बैतूल में 27 से 28 नवंबर के बीच जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर आरूल गांव में तीन भाई अशोक, राजू, गुड्डू और पिता ओझा उईके ने गांव के 65 वर्षीय आदिवासी चुन्नी और 60 वर्षीय कोकीलाल को गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक बेरहमी से पीटते हुए घुमाया। इन दबंगों को रोकने का साहस कोई नहीं कर सका। जब दो बुजुर्ग आदिवासियों को गांव में चक्की के पाट गले में टांगकर बगैर कपड़े में घुमाया गया। इन निर्वस्त्र आदिवासियों को घुमाते समय बार-बार पीटा गया, फिर भी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की है। यह सिलसिला घंटो गांव में चलता रहा। आदिवासी मजबूर और विवश होकर चुपचाप अत्याचार सहते रहे। यहां तक कि जब इन आदिवासियों ने पुलिस प्रशासन को शिकायत की, तो उस पर भी कोई कार्यवाही करने की बजाये इन आदिवासियों को ही डांट-फटकार कर भगा दिया गया। इन बुजुर्गों पर जादू-टोना करने का शक था जिसके चलते दबंगों ने उन्हें अपने अंदाज में कार्यवाही कर ली। मध्यप्रदेश में आदिवासी इलाकों में ऐसी घटनाएं नित-प्रति सामने आ रही हैं। यहां तक कि इसके पीछे कुछ लोगों की सम्पत्ति हड़पने का भी मामला सामने आया है, इसके बाद भी राज्य सरकार का कोई विभाग जादू-टोने के शक पर गांव-गांव होने वाली कार्यवाहियों पर कोई कदम नहीं उठाता है और अंतत: बेवश, मजबूर, गरीब आदिवासी के प्रताडि़त होने का सिलसिला चल रहा है, जो थमने का नाम नहीं ले रहा है।
यादगार पल :
- मध्यप्रदेश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान बनी नदी जोड़ योजना को आकार देने के लिए 29 नवंबर, 2012 को उज्जैन में नर्मदा-शिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना की बुनियाद रखी गई। यह कार्य लालकृष्ण आडवाणी के हाथों से हुआ। इस योजना से मध्यप्रदेश में नदी जोड़ योजना एक कदम आगे बढ़ी है। इससे पहले भी पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने यूपी के साथ मिलकर केन-बेतबा योजना को भी नदी जोड़ योजना की तरह प्रचारित किया था। यह योजना तो फिलहाल फाइलों में है पर अब मालवांचल में पानी की समस्या हल करने के लिए नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना पर 432 करोड़ रूपये खर्च होंगे। यह योजना एक साल में पूरी होनी है इसके तहत शिप्रा से होते हुए नर्मदा का पवित्र जल चंबल में जायेगा। मालवा के डेढ़ सौ गांवों में पानी की समस्या का हल होगा। इस योजना से सिर्फ नर्मदा-शिप्रा ही नहीं, बल्कि चंबल, यमुना और गंगा नदी का भी आपस में मिलन होगा।