यूं तो भारतीय जनमानस इतिहास से सीख लेने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि हमारी परंपराएं और उसकी धरोहर को बारबार क्षति पहुंचाई जाती है और हम चुप्पी बनाये रखते हैं। इसके चलते धरोहर तो नष्ट हो ही रही है। इसके साथ ही परंपराएं भी ध्वस्त हो रही हैं। मध्यप्रदेश सरकार में पुरातत्व और पर्यटन विभाग का मुख्य काम ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और उनका विस्तार करना है। इसके बाद पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी आती है। पर्यटन विभाग उन्हें विकसित करके ऐतिहासिक स्थलों को आधुनिक स्वरूप देकर जनता को इतिहास से जोड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह कोशिश भी न काफी है। पुरातत्व विभाग तो पूरी तरह से नकारा साबित हो रहा है, क्योंकि उसकी आंखों के सामने प्रदेश के कई स्थलों की धरोहर धीरे-धीरे नष्ट हो रही है अथवा उन्हें लोग नष्ट करने पर तुले हुए हैं। इसे बचाने के लिए न तो पुरातत्व विभाग को कोई चिंता है और न ही बचाने की पहल की जा रही है। कभी-कभार स्थानीय शासन मंत्री बाबूलाल गौर अपने बयानों के जरिए इन धरोहरों को बचाने की बातें तो करते हैं, लेकिन अफसर उन्हें भी महत्व नहीं देते हैं।
यह समझ से परे हैं कि आखिरकार हम अपनी धरोहर को बचाने की दिशा में आगे क्यों नहीं आ रहे हैं। प्रदेश के कई स्थानों पर राजा-नबावों द्वारा बनाए गए स्थल आज बद से बदतर स्थिति में पहुंच गए हैं। ऐसी धरोहर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, सतना, मंदसौर, उज्जैन, रतलाम, विदिशा आदि स्थलों पर काफी संख्या में हैं, लेकिन इन स्थानों की धरोहर को दीमक लग रही है। कई जगह तो ऐतिहासिक स्थलों के द्वार धीरे-धीरे टूट रहे हैं, उनके भवनों में आसपास से लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। भवनों की रंग और रौनक पूरी तरह से खत्म की जा रही है। पर्यटन विभाग ने इन भवनों की हालत सुधारने के लिए कई बार पहल की है, लेकिन फिर भी सार्थक परिणाम आज तक नहीं मिले हैं। मप्र की राजधानी भोपाल में ऐतिहासिक स्थलों की भरमार है। नबाव कार्यकाल के दौरान बनाई गई कोठियां और द्वार आज भी आकर्षण के स्थल हैं। कई महलों को नया स्वरूप दिया गया है, लेकिन कई स्थान ऐसे हैं, जो कि स्थान-स्थान से टूट रहे हैं, लेकिन उन्हें बचाने की कोई पहल नहीं हो रही है। चाहे शौकत महल हो अथवा इकबाल मैदान का मुख्य द्वार हो, इनकी हालत बेहतर नहीं है। भोपाल नगर निगम कार्यालय जहां लगता है, उसे सदर मंजिल कहते हैं। वह भी हमारी एक धरोहर है और इस कार्यालय को कई बार स्थानांतरित करने पर विचार हुआ, लेकिन आज भी कार्यालय यथावत् इसी धरोहर के स्थान पर लग रहा है जिसके चलते कार्यालय जगह-जगह से टूट रहा है। निश्चि रूप से भोपाल में ऐतिहासिक धरोहर अनुकरणीय है, लेकिन उनके संरक्षण के लिए कोई भी चिंतित नहीं हैं, जो कि धरोहर के लिए शुभ नहीं है। ऐतिहासिक धरोहर धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही हैं।
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