एक बार फिर मप्र का किसान अपने भविष्य को लेकर परेशान हो गया है। इसकी वजह है समय पर मानसून न आना। अमूमन 14 जून को मानसून आ जाना चाहिए पर 24 जून तक भी मानसून ने दस्तक नहीं दी है। इससे किसानों की जिंदगी में एक बार फिर बीरानिया छाने लगी हैं। अगर आठ-दस दिन और पानी नहीं गिरा तो किसानों को एक बार फिर सूखे का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि बौनी का समय निकट है और पानी गिर नहीं रहा है, ऐसी स्थिति में किसान बौनी करने के बारे में बारबार विचार करने पर विवश है। मौसम विभाग भोपाल के डायरेक्टर डॉ0 डी0पी0 दुबे का मानना है कि उत्पादन की कल्पना सीजन में हुई कुल वर्षा के आधार पर नहीं की जा सकती। मानसून फिलहाल भटक जरूर गया है, लेकिन 28 से 29 जून के बीच मानसून का सिस्टम नया बन सकता है और किसानों के लिए नई खुश खबरी होगी।
निश्चित रूप से वर्षा राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए आक्सीजन का काम करती है। राज्य सरकार भी इसी आधार पर रोड मैप बनाती है। कई बार स्थितियां विषम हो जाती है, तो सरकार को अपना रोड मैप बदलना भी पड़ता है। बारिश के दौरान अर्थव्यवस्था न सिर्फ प्रभावित होती है, बल्कि विकसित होने की ज्यादा संभावनाएं रहती है, क्योंकि बारिश से बिजली का उत्पादन निर्भर है और पीने का पानी भी उपलब्ध हो जाता है, वहीं खेती के लिए तो बारिश अमृत का काम करती है। मप्र में मानसून हमेशा से जून के महीने में आता रहा है, लेकिन वर्ष 2007 में 23 जून, 2008 में 12 जून, 2009 में 26 जून, 2010 में 16 जून और 2011 में 18 जून को मानसून ने प्रवेश किया था। इस बार मानसून की फिजा बदल गई है और मौसम विभाग भी अपनी भविष्यवाणी करने में थोड़ा सो विचलित हो गया है। अगर मानसून में और देरी हुई, तो राज्य की अर्थव्यवस्था तो प्रभावित होगी ही, साथ ही खेती-किसानी पर असर हो सकता है।
'' जय हो मप्र की''
निश्चित रूप से वर्षा राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए आक्सीजन का काम करती है। राज्य सरकार भी इसी आधार पर रोड मैप बनाती है। कई बार स्थितियां विषम हो जाती है, तो सरकार को अपना रोड मैप बदलना भी पड़ता है। बारिश के दौरान अर्थव्यवस्था न सिर्फ प्रभावित होती है, बल्कि विकसित होने की ज्यादा संभावनाएं रहती है, क्योंकि बारिश से बिजली का उत्पादन निर्भर है और पीने का पानी भी उपलब्ध हो जाता है, वहीं खेती के लिए तो बारिश अमृत का काम करती है। मप्र में मानसून हमेशा से जून के महीने में आता रहा है, लेकिन वर्ष 2007 में 23 जून, 2008 में 12 जून, 2009 में 26 जून, 2010 में 16 जून और 2011 में 18 जून को मानसून ने प्रवेश किया था। इस बार मानसून की फिजा बदल गई है और मौसम विभाग भी अपनी भविष्यवाणी करने में थोड़ा सो विचलित हो गया है। अगर मानसून में और देरी हुई, तो राज्य की अर्थव्यवस्था तो प्रभावित होगी ही, साथ ही खेती-किसानी पर असर हो सकता है।
'' जय हो मप्र की''
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