''रैंप पर कैटवॉक : चलिए हमारी अदाएं भी देख दीजिए'' |
अगर पिछड़े और गरीब राज्य में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो का चलन बढ़ जाये, तो यह मान लीजिए कि अब राज्य तरक्की करने लगा है। यह स्थिति अब मप्र में आम बात हो गई है। राज्य के महानगरों और शहरों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो के कार्यक्रम नित-प्रति होने लगे हैं फिर भले ही मुंबई की भांति इनका व्यवसायिकरण न हुआ हो, लेकिन इन आयोजनों के पीछे स्वार्थी तत्व जरूर हावी होने लगे हैं।
''जलवा तो हमी दिखायेंगे'' |
अभी तक कॉलेजों और स्कूलों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो नहीं होते थे पर 2000 के दशक से इसका भी दौर शुरू हो गया। बीच-बीच में भाजपा सरकार में इस पर तीखी नाराजगियां जाहिर की गई, यहां तक कि उच्च शिक्षा मंत्री रही अर्चना चिटनीस ने तो सरकारी कॉलेजों के वार्षिक उत्सव में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो पर प्रतिबंध लगा दिया था। एक-डेढ़ साल बाद फिर से कॉलेजों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो फिर होने लगे हैं। अब तो इंजीनियरिंग और मेडीकल कॉलेज के वार्षिक उत्सव में हर साल सजधज कर कॉलेज की लड़कियां पहुंचती हैं और फेंशन शो के नाम पर फूहड़ फिल्मी गानों पर नाज-गाने होते हैं और जमकर अश्लीलता परोसी जा रही है। यह सच है कि जिस तेजी से महानगरों का विकास हो रहा है उसमें रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो भी व्यवसाय का एक अंग बन गया है, लेकिन उसकी भी एक मर्यादा है। मप्र में न तो रैंप पर कैटवॉक व्यवसाय का रूप ले पाया है और न ही फेंशन शो पर कपड़ों का कोई कारोबार फलफूल रहा है, बल्कि इस बहाने अश्लीलता जरूर परोसने का काम किया जा रहा है जिसमें कुछ लोगों की आंखे ठंडी हो रही हैं, बाकी राज्य से न तो प्रतिभाएं इस क्षेत्र में विकसित हो रही हैं और न ही वह एक कदम आगे बढ़ पा रही हैं। अब इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि क्या कॉलेजों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो जरूरी है अथवा इन पर रोक लगानी चाहिए।
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