यह समझ से परे है कि आज की युवा पीढी नशे में डूबकर अपनी जिंदगी तो तबाह कर ही रही है पर नशे में डूबने की खातिर अपराधी भी दर्जा उन्हें मिल रहा है आलम यह है कि जब नशा नहीं चढ पा रहा तो फिर प्रतिबंधित दवाओं का उपयोग कर नशे का ग्राफ बढाया जा रहा है, जब नशा नहीं मिल रहा है तो लूट का सहारा लेकर अपराध तक की दुनिया में प्रवेश कर रहे है, यह विषम स्थितियां मप्र में तेजी से पनप रही है, न तो इसकी सरकार को चिंता है और न समाज इस दिशा में विचार कर रहा है,हाल में प्रदेश के महानगरों में ऐसी घटनाओं ने चौंकाओं है, यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि ऐसा पहली बार हो रहा है, समय समय पर ऐसे प्रसंग सामने आ रहे है, इन पर शोध करने का काम विश्वविघालय के समाज विज्ञान का है और उस पर गंभीरता से विचार कर सरकार को रिपोर्ट देने का है पर वहां पर औपचारिकताएं निभाएं जा रही है जिसके फलस्वरूप घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है,मीडिया जरूर घटनाओ को फोकस करके अपने कर्त्तव्यों को पूरा कर रहा है, यह कहना भी सच नहीं होगा कि पूरी पीढी ही नशे में डूबी है कुछ युवा वर्ग जो कि राह से भटक कर अपनी दुनिया अलग बना लेते है। 18 जून की रात्रि में इंदौर जैसे महानगर में युवकों ने शराब और पीने की खातिर लूटमार मचाई, जिसमें लोगों को मारा पीटा उन्हें घायल किया, यह उत्पात सडकों पर मचाया, जब तक पुलिस पहुंची तो नशेडी भाग चुके है उन नशेडियों के बारे में कहा गया कि वे शराब पिए थे पर आपस में बात कर रहे थे कि शराब का नशा नहीं चढा है इसलिए अब लूट की रकम से प्रतिबंधित दवाएं लेकर नशे को ओर ताकत देंगे, ऐसे प्रसंग इंदौर ही नहीं बल्कि हर शहर में किसी न किसी सप्ताह हो रहे है ओर हम सब मूक दर्शक बन कर देख रहे है समझ रहा है कि आखिरकार इन घटनाओं के सरकार और समाज सजग क्यों नहीं हो रहा है,वैसे भी अब समाज की आदत में शुमार हो गया है कि जो घटना हो गई है उसे भूल जाओ क्योंकि हर घटनाओं की बाढ सी रही है किस किस को रोकने का प्रयास करे, पर हमे यह तो समझना ही होगा कि आखिरकार युवा पीढी अपने नशे की खातिर अपराधी भी बन रहा है जो कि गंभीर विषय है जिस पर विचार की आवश्यकता है।
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