हमारे आसपास के परिवारों में सास की भूमिका को लेकर बहुएं अलग-अलग कहानियां बयां करती हैं। हमेशा सास की आलोचना करना बहु का ध्येय वाक्य होता है। घर-घर में सास और बहु में टकराव आम बात है। अब तो यह लड़ाई झगड़े थाने तक पहुंचने लगे हैं। ऐसी भी बहुएं समाज में सामने आ रही हैं, जिन्होंने सास को घर से निकाल कर वृद्वा आश्रम तक पहुंचा दिया है पर इस आधुनिक युग में ऐसी भी सास है, जो कि अपने हाथों से अपनी विधवा बहु को कन्या के रूप में शादी कराकर कन्यादान तक की भूमिका अदा कर रही हैं। ऐसी सास को बारबार नमन, क्योंकि ऐसी सास ही आदर्श मां की भूमिका में है। सास का बहु के लिए कन्यादान की भूमिका अदा करने का ऐतिहासिक क्षण मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 10 जून को टी0टी0नगर स्थित आर्य समाज में दर्ज हुआ। जहां पर सास सविता बैन ने अपनी बहु सुषमा का कन्यादान किया।
मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी होशंगाबाद के कृष्णपुरी निवासी गुजराती क्षत्रिय परिवार की सविता बैन चावरा पर दो साल पहले उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उनके बेटे मनोज को हार्ट-अटैक ने हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया। बहु सुषमा की सूनी मांग और उनके जीवन की खुशियों को ग्रहण लग गया। घर में सास सविता बैन को बार-बार अपनी बहु की सूनी मांग को देखकर अफसोस होता था और यह सोचती थी कि इसका जीवन किस प्रकार कटेगा। क्योंकि सविता बैन भी अपना जीवन विधवा के रूप में जो बिता रही हैं और उन्हें कदम-कदम पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। इन्हीं परेशानियों के बीच परिवार को पाला-पोशा है और आज बुजुर्ग हो गई हैं, लेकिन उन्हें बार-बार अपनी विधवा बहु के अकेलेपन की तकलीफ होती थी। इसी पीड़ा का अंत करने के लिए उन्होंने अपने नाते-रिश्तेदारों के सामने यह प्रस्ताव रखा कि क्यों न विधवा बहु सुषमा का विवाह कर दिया जाये। समाज और रिश्तेदारों ने इस प्रस्ताव पर सहमति जाहिर की, तो फिर दूल्हे की तलाश जारी हुई। कई चेहरे देखे, कहीं से भी उम्मीद की किरण नजर नहीं आई, लेकिन अचानक जून के महीने में भोपाल के एक सब इंजीनियर जीतेंद्र दिनेश बेगड़ पर जाकर तलाश खत्म हुई। जीतेंद्र की पत्नी की कैंसर से मौत हो चुकी है और उसके दो पुत्र हैं। इसके लिए उसे मां की जरूरत थी। काफी पूछ-परख के बाद 10 जून, 2012 को सुषमा और जीतेंद्र शादी के बंधन में बंध गये। इस मौके पर सास सविता बैन ने मां की भूमिका अदा कर बेटी का कन्यादान किया। जैसे घर से शादी के मौके पर लड़की को विदा किया जाता है उसी प्रकार से मां ने अपनी बहु को रोते-बिलखते विदा किया। ऐसे उदाहरण निश्चित रूप से हमारे समाज के लिए एक आइना है और अंधेरे की टिम-टिमाती लौ में उजाले की किरण भी है।
नारी को हमारा समाज श्रध्दा और सम्मान से देखता है ,कभी कभी हमारे ये कथन संदिग्ध ( नारी के शोषण के सिलसिले को देख)
जवाब देंहटाएंलगते हैं ,पर इस तरह यदि हम अपनी सवेंदना और सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो हमारे कथन सार्थक होंगे .
dhany hai yah sasu maa
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