मंगलवार, 26 जून 2012

आईएएस अफसरों की कार्यशैली पर उठे सवाल


     आईएएस अफसरों के पावर के सामने बड़े से बड़ा राजनेता दंडवत् हो जाता है। इसकी वजह है राजनेताओं का नियम-प्रक्रियाओं के ज्ञान का न होना अन्‍यथा गुजरे जमाने में ऐसे राजनेता हो चुके हैं, जिनके सामने आईएएस अफसर ज्‍यादा सवाल जवाब नहीं कर पाते थे। मप्र में आईएएस अफसरों की तूती हमेशा बोलती रही है। चाहे कांग्रेस सरकार हो या भाजपा राज, हर समय आईएएस अफसर ही ताकतवर रहे हैं। इन बेलगाम अफसरों को समय-समय पर दंडित कर भय पैदा करने की कोशिश की गई है, लेकिन फिर भी आईएएस अफसर अपने हिसाब से ही काम करते हैं। इसकी एक बड़ी वजह सरकार का नेतृत्‍वकर्त्‍ता भी है, क्‍योंकि अगर वे आईएएस अफसरों को निर्देशों का पालन कराने में कामयाब नहीं है, तो फिर सवाल उठना स्‍वाभाविक है। ऐसा नहीं है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आईएएस अफसरों पर कार्यवाही करने पर कोई कोताही बरती हो। उनके साढ़े छह साल के कार्यकाल में करीब आधा दर्जन आईएएस अफसरों को निलंबित किया गया है। सार्वजनिक स्‍थलों पर आईएएस अफसरों को डांटा-फटकारा भी गया है, इसके बाद भी अफसरों ने अपनी कार्यशैली में कोई आमूल-चूल परिवर्तन नहीं किया है। सीएम बारबार कह चुक हैं कि आईएएस अफसरों को गांव में दौरे करना चाहिए और रात्रि विश्राम भी वहीं करना चाहिए, लेकिन इसके बाद भी प्रदेश के आईएएस अफसरों ने इस निर्देश का न तो पालन किया और न ही गांव में पहुंचे। अब आईएएस अफसरों की कार्यशैली से नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर भी दुखी हो गये हैं। गौर ने हाल ही में अपनी इंदौर यात्रा के दौरान 25 जून को कहा कि आईएएस अफसरों की काम करने में कोई रूचि नहीं है। वह नगर निगमों में तो काम करना ही नहीं चाहते हैं। शुरूआती दिनों में तो आईएएस अफसर अपनी सक्रियता दिखाते हैं और फिर समय काटते नजर आते हैं। उनकी कार्यप्रणाली सब कुछ बयां कर देती हैं। जबलपुर नगर निगम में पदस्‍थ आईएएस अफसर तो महीने में 15 दिन छुट्टी पर ही रहते हैं, उनका काम में मन ही नहीं लगता है। ऐसी स्थिति में अभी विचार किया जा रहा है कि नगरीय निकायों के लिए राज्‍य नगरीय प्रशासनिक सेवा का गठन किया जाये, ताकि सभी दूर ऐसे अफसर तैनात हो, जो मन लगाकर काम कर सकें। इससे साफ जाहिर है कि गौर प्रदेश में एक नई धारा बहाना चाहते हैं, लेकिन आईएएस अफसर इसके लिए तैयार नहीं हुए। आईएएस अफसरों को यह नागवार गुजरता है कि कोई उनके अधिकारों पर बार करें। कभी परिवहन विभाग आईएएस के अधीन हुआ करता था, लेकिन वर्तमान में आईपीएस अफसर विभाग के आयुक्‍त हैं।
इस विभाग में फिर से आईएएस की नियुक्ति के लिए ऐसा संशोधन किया गया है कि कोई भी अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा का अफसर परिवहन आयुक्‍त बन सकता है। इससे साफ जाहिर है कि आईएएस अफसर किसी भी तरह से राज्‍य नगरीय प्रशासन सेवा का गठन नहीं होने देंगे, क्‍योंकि इससे उनके पद तो कम होंगे ही, बल्कि शहरों में ताकत भी घटेगी। इससे पहले ही राज्‍य सरकार प्रदेश के दो नगरों में पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू करना चाहती है। अगर यह लागू हो गई, तो संभागायुक्‍त और कलेक्‍टरों के अधिकार अपने आप सीमित हो जायेगे। इससे भी आईएएस अफसर परेशान और दुखी है, तब फिर गौर के सुझाव पर कैसे अमल होगा यह तो समय ही बतायेगा।

सोमवार, 25 जून 2012

आयकर छापों से मप्र की सियासत में उबाल

                यूं तो आयकर के छापे व्‍यापारियों के यहां पड़ते ही रहते हैं और उन पर मीडिया दो-चार दिन हल्‍ला मचाकर शांत हो जाता है और फिर रिपोर्ट कहां गायब होती है, इसका पता ही नहीं चलता है पर अरसे बाद आयकर के छापों ने मप्र की सियासत में उबाल ला दिया है। इन छापों पर कांग्रेस और भाजपा में कोई अंदरूनी राजनीति नहीं हो रही है और नही बयानबाजी हो रही है पर नेताओं की दबी जुबान ही सियासत को नये-नये रंग दिखा रही है। भाजपा से जुड़े कारोबारी दिलीप सूर्यवंशी और सुधीर शर्मा के ठिकानों पर आयकर के छापों ने राजनीति को विद्रूप कर दिया है। जहां भाजपा संगठन के मुखिया प्रभात झा दंभ से कह रहे हैं कि व्‍यापार करना कोई गुनाह नहीं है, लेकिन वे इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि सरकार की वैशाखियों के सहारे व्‍यवसाय करना और जनता की गाड़ी कमाई पर अपनी धन-दौलत में देखते ही देखते इजाफा कर लेना। इस पर झा कुछ नहीं बोल रहे हैं। इस पूरे मामले में विपक्ष की भूमिका अदा कर रही कांग्रेस की चुप्‍पी तो और भी रहस्‍यमय है। जब भाजपा से जुड़े कारोबारियों के छापों के तार सीधे मुख्‍यमंत्री से जुड़ रहे हों, तब भी कांग्रेस का चुप रहना लोगों को नागवार गुजर रहा है। राजनीति निश्चित रूप से अंधकार की दिशा में जा रही है, न तो प्रदेश के विकास पर लग रहे ग्रहण पर सवाल हो रहे हैं और न ही जो विकास के नाम पर लूट का खेल खेला जा रहा है उस पर भी कोई गंभीर प्रश्‍न नहीं किये जा रहे हैं। इसके चलते आम आदमी एक बार फिर अपने आपको ठगा महसूस कर रहा है। छापों की कहानियां भले ही कुछ भी कहें, लेकिन अगर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के खर्चे भी अगर भाजपा से जुड़े कारोबारी उठा रहे हैं, तो फिर कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका अदा करने का कोई हक नहीं है। वहीं दूसरी ओर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी छापे के बाद सुधीर शर्मा पर तो हमला बोला, लेकिन दिलीप सूर्यवंशी पर चुप्‍पी साध गये। जब राज्‍य में नेता प्रतिपक्ष के बयानों को लेकर खूब हल्‍ला मचा तो तीसरे दिन यानि 23 जून, 2012 को नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सुधीर शर्मा के साथ-साथ दिलीप सूर्यवंशी पर भी प्रहार किया है, लेकिन तब तक तीर निकल चुका था। यही वजह है कि 24 जून, 2012 को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जब मप्र में ग्‍वालियर पहुंचे, तो उनसे पत्रकारों ने यह सवाल दाग ही दिया कि दिलीप सूर्यवंशी और नेता प्रतिपक्ष के बीच क्‍या संबंध हैं। इस पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि इसका जवाब तो नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पीसीसी देगी। कुल मिलाकर आयकर छापों ने प्रदेश कांग्रेस पर तो छींटे पड़े ही हैं, जो कि विपक्ष की भूमिका में है, जबकि भाजपा को घेरने का सुनहरा मौका कांग्रेस के हाथ से निकल गया है, जिसका उसे लंबे समय तक इंतजार करना पड़ेगा।

अपनी पहचान कहीं न खो दें

         यूं तो भारतीय जनमानस इतिहास से सीख लेने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि हमारी परंपराएं और उसकी धरोहर को बारबार क्षति पहुंचाई जाती है और हम चुप्‍पी बनाये रखते हैं। इसके चलते धरोहर तो नष्‍ट हो ही रही है। इसके साथ ही परंपराएं भी ध्‍वस्‍त हो रही हैं। मध्‍यप्रदेश सरकार में पुरातत्‍व और पर्यटन विभाग का मुख्‍य काम ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और उनका विस्‍तार करना है। इसके बाद पर्यटन विभाग की जिम्‍मेदारी आती है। पर्यटन विभाग उन्‍हें विकसित करके ऐतिहासिक स्‍थलों को आधुनिक स्‍वरूप देकर जनता को इतिहास से जोड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह कोशिश भी न काफी है। पुरातत्‍व विभाग तो पूरी तरह से नकारा साबित हो रहा है, क्‍योंकि उसकी आंखों के सामने प्रदेश के कई स्‍थलों की धरोहर धीरे-धीरे नष्‍ट हो रही है अथवा उन्‍हें लोग नष्‍ट करने पर तुले हुए हैं। इसे बचाने के लिए न तो पुरातत्‍व विभाग को कोई चिंता है और न ही बचाने की पहल की जा रही है। कभी-कभार स्‍थानीय शासन मंत्री बाबूलाल गौर अपने बयानों के जरिए इन धरोहरों को बचाने की बातें तो करते हैं, लेकिन अफसर उन्‍हें भी महत्‍व नहीं देते हैं। 
          यह समझ से परे हैं कि आखिरकार हम अपनी धरोहर को बचाने की दिशा में आगे क्‍यों नहीं आ रहे हैं। प्रदेश के कई स्‍थानों पर राजा-नबावों द्वारा बनाए गए स्‍थल आज बद से बदतर स्थिति में पहुंच गए हैं। ऐसी धरोहर भोपाल, इंदौर, ग्‍वालियर, सतना, मंदसौर, उज्‍जैन, रतलाम, विदिशा आदि स्‍थलों पर काफी संख्‍या में हैं, लेकिन इन स्‍थानों की धरोहर को दीमक लग रही है। कई जगह तो ऐतिहासिक स्‍थलों के द्वार धीरे-धीरे टूट रहे हैं, उनके भवनों में आसपास से लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। भवनों की रंग और रौनक पूरी तरह से खत्‍म की जा रही है। पर्यटन विभाग ने इन भवनों की हालत सुधारने के लिए कई बार पहल की है, लेकिन फिर भी सार्थक परिणाम आज तक नहीं मिले हैं। मप्र की राजधानी भोपाल में ऐतिहासिक स्‍थलों की भरमार है। नबाव कार्यकाल के दौरान बनाई गई कोठियां और द्वार आज भी आकर्षण के स्‍थल हैं। कई महलों को नया स्‍वरूप दिया गया है, लेकिन कई स्‍थान ऐसे हैं, जो कि स्‍थान-स्‍थान से टूट रहे हैं, लेकिन उन्‍हें बचाने की कोई पहल नहीं हो रही है। चाहे शौकत महल हो अथवा इकबाल मैदान का मुख्‍य द्वार हो, इनकी हालत बेहतर नहीं है। भोपाल नगर निगम कार्यालय जहां लगता है, उसे सदर मंजिल कहते हैं। वह भी हमारी एक धरोहर है और इस कार्यालय को कई बार स्‍थानांतरित करने पर विचार हुआ, लेकिन आज भी कार्यालय यथावत् इसी धरोहर के स्‍थान पर लग रहा है जिसके चलते कार्यालय जगह-जगह से टूट रहा है। निश्चि रूप से भोपाल में ऐतिहासिक धरोहर अनुकरणीय है, लेकिन उनके संरक्षण के लिए कोई भी चिंतित नहीं हैं, जो कि धरोहर के लिए शुभ नहीं है। ऐतिहासिक धरोहर धीरे-धीरे नष्‍ट होती जा रही हैं।

रविवार, 24 जून 2012

भविष्‍य को लेकर परेशान मप्र का किसान

 
      एक बार फिर मप्र का किसान अपने भविष्‍य को लेकर परेशान हो गया है। इसकी वजह है समय पर मानसून न आना। अमूमन 14 जून को मानसून आ जाना चाहिए पर 24 जून तक भी मानसून ने दस्‍तक नहीं दी है। इससे किसानों की जिंदगी में एक बार फिर बीरानिया छाने लगी हैं। अगर आठ-दस दिन और पानी नहीं गिरा तो किसानों को एक बार फिर सूखे का सामना करना पड़ सकता है, क्‍योंकि बौनी का समय निकट है और पानी गिर नहीं रहा है, ऐसी स्थिति में किसान बौनी करने के बारे में बारबार विचार करने पर विवश है। मौसम विभाग भोपाल के डायरेक्‍टर डॉ0 डी0पी0 दुबे का मानना है कि उत्‍पादन की कल्‍पना सीजन में हुई कुल वर्षा के आधार पर नहीं की जा सकती। मानसून फिलहाल भटक जरूर गया है, लेकिन 28 से 29 जून के बीच मानसून का सिस्‍टम नया बन सकता है और किसानों के लिए नई खुश खबरी होगी। 

      निश्चित रूप से वर्षा राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था के लिए आक्‍सीजन का काम करती है। राज्‍य सरकार भी इसी आधार पर रोड मैप बनाती है। कई बार स्थितियां विषम हो जाती है, तो सरकार को अपना रोड मैप बदलना भी पड़ता है। बारिश के दौरान अर्थव्‍यवस्‍था न सिर्फ प्रभावित होती है, बल्कि विकसित होने की ज्‍यादा संभावनाएं रहती है, क्‍योंकि बारिश से बिजली का उत्‍पादन निर्भर है और पीने का पानी भी उपलब्‍ध हो जाता है, वहीं खेती के लिए तो बारिश अमृत का काम करती है। मप्र में मानसून हमेशा से जून के महीने में आता रहा है, लेकिन वर्ष 2007 में 23 जून, 2008 में 12 जून, 2009 में 26 जून, 2010 में 16 जून और 2011 में 18 जून को मानसून ने प्रवेश किया था। इस बार मानसून की फिजा बदल गई है और मौसम विभाग भी अपनी भविष्‍यवाणी करने में थोड़ा सो विचलित हो गया है। अगर मानसून में और देरी हुई, तो राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था तो प्रभावित होगी ही, साथ ही खेती-किसानी पर असर हो सकता है। 
                                       '' जय हो मप्र की''

शनिवार, 23 जून 2012

बारिश का इंतजार और मीडिया की बल्‍ले-बल्‍ले

         इन दिनों मप्र बेसब्री से झमाझम बारिश का इंतजार कर रहा है। सूरज के तीखे तेवर बरकरार हैं। उमस परेशान कर रही है, गर्मी की तपन से लोग बेहाल हैं। मानसून की भविष्‍यवाणी एक बार फिर धोखा खा गई। मौसम विशेषज्ञों ने दावा किया था कि 22 जून को मौसम राज्‍य में दस्‍तक दे देगा, लेकिन अभी मानसून नजर भी नहीं आ रहा है। बारिश्‍ा की झमाझम के इंतजार के बीच मीडिया की भी इन दिनों बल्‍ले-बल्‍ले हो रही है, क्‍योंकि प्रदेश की राजधानी का विशेषकर प्रिंट मीडिया खासा चर्चा का विषय बना हुआ है। इसकी वजह है भाजपा व्‍यापारियों से जुड़े दो बड़े कारोबारियों के ठिकानों पर आयकर के छापों की खबरों का प्रकाशन। इन खबरों ने राजनीति और प्रशासन तंत्र में भूचाल ला दिया है। हर तरफ छापों की ही चर्चा है। राजनीति में तो छापों के अलावा और किसी विषय पर बात नहीं हो रही है, लेकिन राज्‍य के नौकरशाह भी इन दिनों आयकर छापे पर ही इन दिनों केंद्रित किये हुए हैं। कुछ आईएएस अफसरों की तो धुक-धुकी मची हुई है वे बारबार अपने पत्रकार मित्रों से दस्‍तावेज और मिले कागजों के बारे में पूछताछ भी कर रहे हैं। निश्‍चित रूप से राजधानी के मीडिया ने एक बार फिर छापों की खबरों में जिस प्रकार से निष्‍पक्षता दिखाई है वह अपने आप में न सिर्फ सलाम करने वाली है, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम भी होंगे। मीडिया की धूम के बीच भाजपा के नेता भले ही दुखी हो, लेकिन आम आदमी मीडिया की खबरों से बेहद गद-गद है और लंबे समय बाद राजधानी का पाठक एक नहीं कई अखबार पढ़कर अपनी प्‍यास बुझा रहा है, जो कि अपने आप में उल्‍लेखनीय पहलू है।

शुक्रवार, 22 जून 2012

हवा से बातें करेंगे पर्यटक

     यूं तो पर्यटकों के लिए मध्‍यप्रदेश स्‍वर्ग है। यहां पर प्राकृतिक और पुरातात्विक पर्यटक स्‍थलों की भरमार है। प्रकृति से निकटता तो जग जाहिर है, क्‍योंकि घने जंगल और सुरम्‍य सौंदर्यता का अहसास तो कदम- कदम पर होता है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे  हैं अब मप्र ईको-टूरिज्‍म बोर्ड ने प्रकृति से पर्यटकों को निकट का अहसास कराने के लिए एक नई योजना बनाई है जिसके तहत हवा से रोमांच का आनंद पर्यटक ले लेंगे। इस कार्य में अभी एक साल लग जायेगा। साऊथ एशिया की तर्ज पर मप्र की राजधानी भोपाल में ट्-विन जिप लाइन के जरिए पर्यटक प्रकृति से रूबरू हो सकेंगे। ईको बोर्ड ने इस कार्य के लिए फ्लाईंग फॉक्‍स कंपनी को यह काम सौंपा है। अभी तक साऊथ एशिया में लंबी ट्-विन जिप लाइन बिछी है जिसके तहत पर्यटक हवा में झूल सकते हैं। 

        इसके साथ ही राजस्‍थान के निमराना जोधपुर में एवं चंडीगढ़ में इसका आनंद लिया जा सकता है अब यह कार्य भोपाल में केरवा स्थित झील के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जिप लाइन बिछाने की योजना है ताकि पर्यटक हवा में लहराते हुए प्रकृति के नजारों को देख सकेंगे, बल्कि झील का भी लुप्‍त उठायेंगे। निश्चित रूप से यह एक अदभुत और आकर्षित कार्य ईको बोर्ड कर रहा है जिसके लिए वह बधाई का पात्र है। इससे पर्यटक काफी तादाद में जुडेंगे।

बुधवार, 20 जून 2012

सरकारी स्‍कूलों में छात्राएं पहले लगाती है झाडू, फिर रोटियां

      मध्‍यप्रदेश के सरकारी स्‍कूलों की व्‍यवस्‍थाएं किस कदर चरमरा गई है इसके एक नहीं कई उदाहरण मिल जायेंगे। स्‍कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं से साफ-सफाई अभी अभी भी कराई जा रही है, न तो स्‍कूल के शिक्षक-शिक्षिकाओं को शर्म आती है और न ही वे सफाई व्‍यवस्‍था के लिए कोई पहल करती हैं। वे तो शान के साथ कुर्सी डालकर बैठ जाती हैं और फरमान जारी कर देती है कि कमरों की सफाई करों और फिर स्‍कूलों में पढ़ने के लिए आई छात्राओं को हाथ में झाडू लेकर सफाई में जुटना पड़ता है। छात्राओं से इतना ही काम नहीं कराया जाता है, बल्कि मध्‍यान्‍ह् भोजन का खाना भी इन छात्राओं से पकवाया जाता है। छात्राएं रोटी बनाती हैं और बर्तन भी साफ करती हैं। इसके बदले में उन्‍हें मिलती है, पतली दाल और कच्‍ची रोटियां। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन बच्चियों को अपनी भांजियां मानते हैं और वे मामा होने के नाते भांजियों के लिए हरसंभव मदद के लिए भी तैयार रहते हैं। मामा की पहल पर ही भांजियों को स्‍कूल जाने के लिए साइकिल दिलाई गई, पढ़ने के लिए किताब-कापी उपलब्‍ध करा रहे हैं और पहनने के लिए ड्रेस तक दी जा रही है, इसके बाद भी निचले स्‍तर के सरकारी अधिकारी/कर्मचारी आज भी पुरानी मानसिकता में जीने को विवश हैं। उन्‍हें मुख्‍यमंत्री के आदेशों की कोई परवाह नहीं है। यही वजह है कि स्‍कूलों में बच्चियों से काम कराया जा रहा है, जबकि बच्चियों को पढ़ाकर उनका भविष्‍य संभारने का काम शिक्षकों का है, लेकिन इस दिशा में कोई पहल नहीं हो रही है। हरदा जिले में तो माध्‍यन्‍ह् भोजन के लिए बच्चियों से खाना पकवाया जा रहा है उससे पहले झाडू लगवाने और टाट-पट्टी बिछवाने का काम भी हो रहा है। ऐसी घटनाएं पहली बार सामने नहीं आई हैं, लेकिन स्‍कूल शिक्षा विभाग इन घटनाओं पर कोई भी कार्यवाही नहीं करता है जिसके कारण सरकार स्‍कूलों के शिक्षक शिक्षिकाएं आज भी छात्राओं से ही ज्‍यादा काम कराते हैं और उन्‍हें मुख्‍यमंत्री के आदेशों की भी कोई परवाह नहीं।

मंगलवार, 19 जून 2012

मस्‍त- मस्‍त हुआ मौसम

           इन दिनों मध्‍य प्रदेश का मौसम मस्‍त - मस्‍त हो गया है, फिजा की ठंडक ने दिल और दिमाग को राहत दी है, भले ही मानसून ने अभी दस्‍तक नहीं दी है लेकिन बारिश झमा झम हो रही है, विशेषकर झीलो और पहाडियों के शहर भोपाल का मौसम तो अलग ही अंदाज में है, दो दिनों से बादल गरज - गरज कर बरस रहे है, हर तरफ ठंडक का घोल नजर आ रहा है, इस मौसम में चार चांद तब लग जाते है जब चारों तरफ हरियाली ही हरियाली अपनी अलग छटा बिखेर देती तो फिर मौसम का अंदाज ही निराला होता है, प्री मानसून की सोमवार रात हुई बारिश से शहर तरबतर हो गया था, 18 जनू की रात्रि में एक बार अचानक जोरदार बारिश हुई, इस बारिश ने शहर की फिजा की रंगत बदल दी है, दक्षिण पश्चिमी मानसून तेजी से मप्र की तरफ बढ रहा है, मौसम केंद्र के निदेशक डॉ:डीपी दुबे के अनुसार मानसून महाराष्‍ट के विदर्भ के बाद गुजरात और छत्‍तीसगढ में सक्रिय हो गया है, एक दो दिन में मप्र में पहुंचने के आसार है, मौसम विभाग का आकलन है कि 20 जनू तक मप्र में मानसून दस्‍तक दे देगा।


नशा बना रहा है अपराधी

       यह समझ से परे है कि आज की युवा पीढी नशे में डूबकर अपनी जिंदगी तो तबाह कर ही रही है पर नशे में डूबने की खातिर अपराधी भी दर्जा उन्‍हें  मिल रहा है आलम यह है कि जब नशा नहीं चढ पा रहा  तो फिर प्रतिबंधित दवाओं का उपयोग कर नशे का ग्राफ बढाया जा रहा है, जब नशा नहीं मिल रहा है तो लूट का सहारा लेकर अपराध तक की दुनिया में प्रवेश कर  रहे है, यह विषम स्थितियां मप्र में तेजी से पनप रही है, न तो इसकी सरकार को चिंता है और न समाज इस दिशा में विचार कर रहा है,हाल में प्रदेश के महानगरों में ऐसी घटनाओं ने चौंकाओं है, यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि ऐसा पहली बार हो रहा है, समय समय पर ऐसे प्रसंग सामने आ रहे है, इन पर शोध करने का काम विश्‍वविघालय के समाज विज्ञान का है और उस पर गंभीरता से विचार कर सरकार को रिपोर्ट देने का है पर वहां पर औपचारिकताएं निभाएं जा रही है जिसके फलस्‍वरूप घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है,मीडिया जरूर घटनाओ को फोकस करके अपने कर्त्‍तव्‍यों को पूरा कर रहा है, यह कहना भी सच नहीं होगा कि पूरी पीढी ही नशे में डूबी है कुछ युवा वर्ग जो कि राह से भटक कर अपनी दुनिया अलग बना लेते है। 18 जून की रात्रि में इंदौर जैसे महानगर में युवकों ने शराब और पीने की खातिर लूटमार मचाई, जिसमें लोगों को मारा पीटा उन्‍हें घायल किया, यह उत्‍पात सडकों पर मचाया, जब तक पुलिस पहुंची तो नशेडी भाग चुके है उन नशेडियों के बारे में कहा गया कि वे शराब पिए थे पर आपस में बात कर रहे थे कि शराब का नशा नहीं चढा है इसलिए अब लूट की रकम से प्रतिबंधित दवाएं लेकर नशे को ओर ताकत देंगे, ऐसे प्रसंग इंदौर ही नहीं बल्कि हर शहर में किसी न किसी सप्‍ताह हो रहे है ओर हम सब मूक दर्शक बन कर  देख रहे है समझ रहा है कि आखिरकार इन घटनाओं के सरकार और समाज सजग क्‍यों नहीं हो रहा है,वैसे भी अब समाज की आदत में शुमार हो गया है कि जो घटना हो गई है उसे भूल जाओ क्‍योंकि हर घटनाओं की बाढ सी रही है किस किस को रोकने का प्रयास करे, पर हमे यह तो समझना ही होगा कि आखिरकार युवा पीढी अपने नशे की खातिर अपराधी भी बन रहा है जो कि गंभीर विषय है जिस पर विचार की आवश्‍यकता है।

गुरुवार, 14 जून 2012

फिर केंद्र को ललकारा शिवराज ने

           एक बार फिर से मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। इस बार उनका मुद्दा किसानों का है। अपने कार्यकाल में श्री चौहान चौ‍थी बार केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। इससे पहले भी समय-समय पर चौहान केंद्र के खिलाफ मुखर होकर नीतियों पर बोलते रहे हैं। अब चौहान ने खाद के दामों में हुई वृद्वि के खिलाफ 24 घंटे का उपवास करने का एलान किया है। यह उपवास 15 जून को शुरू होगा। इससे पहले किसानों को राहत पैकेज की मांग को लेकर 13 फरवरी, 2011 को सीएम ने सविनय आग्रह उपवास का एलान किया था, लेकिन तत्‍कालीन राज्‍यपाल रामेश्‍वर ठाकुर की पहल पर चौहान ने सांकेतिक उपवास करके 02 घंटे बाद अपना उपवास स्‍थगित कर दिया था। इस बार चौहान अडिग है कि वे 24 घंटे तक किसानों के पक्ष में उपवास पर बैठेंगे। 
         जब-जब चौहान ने केंद्र के खिलाफ आंदोलन शुरू करते हैं, तो कांग्रेस भी रटा-रटाया आरोप लगाने की कला में माहिर हो गई है कि सीएम को सिर्फ केंद्र के खिलाफ बोलने के अलावा और कोई विषय नहीं मिलता है। इस पर सीएम का मानना है कि अगर उनके राज्‍य की जनता को समस्‍याएं होगी, तो वे केंद्र के खिलाफ सांकेतिक उपवास करने में क्‍यों पीछे रहे। चौहान का मानना है कि खाद के दामों में केंद्र सरकार ने अप्रत्‍याशित इजाफा किया है। पिछले एक साल में खाद के दाम प्रति बोरी दोगुने से भी अधिक हो गये हैं। पिछले साल डीएपी की कीमत 1080 प्रति बोरी थी, अब इसमें वृद्वि 192 रूपये की हो गई है। इस वृद्वि के खिलाफ भी सरकार केंद्र से बेहद खफा हो गई है। हर खाद के दाम बढ़ाये गये हैं। दूसरी ओर विपक्ष के नेता अजय सिंह कह रहे हैं कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उपवास और अनुष्‍ठान की नोटंकी करने की बजाय सरकार ने करों से जो खाद की कीमत बढ़ाई है उसे तत्‍काल समाप्‍त किया जाना चाहिए। वर्तमान में रासायनिक खाद पर 4 प्रतिशत वाणिज्‍ियक कर, रासायनिक खाद पर 5 प्रतिशत प्रवेश कर, कृषि उपकरण पर 9 प्रतिशत वाणिज्यिक कर और ट्रेक्‍टर-ट्रॉली पर 5 प्रतिशत वा0कर लिया जा रहा है। इन करों को वापस लिया जाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि राज्‍य सरकार टेक्‍स तो कम ले रही है, लेकिन केंद्र सरकार ने खादों के दामों में ऐसी वृद्वि कर दी है जिससे किसानों की कमर ही टूट गई है। मुख्‍यमंत्री तो उपवास पर बैठ ही रहे हैं साथ ही साथ मंत्रि परिषद के प्रत्‍येक मंत्री को अपने प्रभार वाले जिलों में कार्यकर्ताओं के साथ उपवास पर बैठना है। मुख्‍यमंत्री के इस आंदोलन से निश्चित रूप से एक नई बहस फिर छिड़ जायेगी। बार-बार यह सवाल भी खड़ा होता है कि मुख्‍यमंत्री के उपवास करने से संवैधानिक संकट खड़ा हो जायेगा, जबकि मुख्‍यमंत्री ने कहा है कि वे जनता के सेवक है और किसानों के मामलों पर धरने पर बैठने पर कोई संवैधानिक संकट खड़ा नहीं होता है। कुल मिलाकर मप्र में एक बार फिर से राज्‍य सरकार और केंद्र सरकार के बीच तनातनी बढ़ गई है। अब आगे क्‍या होगा यह तो वक्‍त ही बतायेगा, लेकिन जैसे-जैसे राज्‍य में चुनाव निकट आ रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस अपने अपने मिशन पर जुट गये हैं।

सोमवार, 11 जून 2012

सास ने बहु का कन्‍यादान कर निभाया मां का धर्म

       हमारे आसपास के परिवारों में सास की भूमिका को लेकर बहुएं अलग-अलग कहानियां बयां करती हैं। हमेशा सास की आलोचना करना बहु का ध्‍येय वाक्‍य होता है। घर-घर में सास और बहु में टकराव आम बात है। अब तो यह लड़ाई झगड़े थाने तक पहुंचने लगे हैं। ऐसी भी बहुएं समाज में सामने आ रही हैं, जिन्‍होंने सास को घर से निकाल कर वृद्वा आश्रम तक पहुंचा दिया है पर इस आधुनिक युग में ऐसी भी सास है, जो कि अपने हाथों से अपनी विधवा बहु को कन्‍या के रूप में शादी कराकर कन्‍यादान तक की भूमिका अदा कर रही हैं। ऐसी सास को बारबार नमन, क्‍योंकि ऐसी सास ही आदर्श मां की भूमिका में है। सास का बहु के लिए कन्‍यादान की भूमिका अदा करने का ऐतिहासिक क्षण मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 10 जून को टी0टी0नगर स्थित आर्य समाज में दर्ज हुआ। जहां पर सास सविता बैन ने अपनी बहु सुषमा का कन्‍यादान किया। 
मध्‍यप्रदेश की धार्मिक नगरी होशंगाबाद के कृष्‍णपुरी निवासी गुजराती क्षत्रिय परिवार की सविता बैन चावरा पर दो साल पहले उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उनके बेटे मनोज को हार्ट-अटैक ने हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया। बहु सुषमा की सूनी मांग और उनके जीवन की खुशियों को ग्रहण लग गया। घर में सास सविता बैन को बार-बार अपनी बहु की सूनी मांग को देखकर अफसोस होता था और यह सोचती थी कि इसका जीवन किस प्रकार कटेगा। क्‍योंकि सविता बैन भी अपना जीवन विधवा के रूप में जो बिता रही हैं और उन्‍हें कदम-कदम पर कई दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा है। इन्‍हीं परेशानियों के बीच परिवार को पाला-पोशा है और आज बुजुर्ग हो गई हैं, लेकिन उन्‍हें बार-बार अपनी विधवा बहु के अकेलेपन की तकलीफ होती थी। इसी पीड़ा का अंत करने के लिए उन्‍होंने अपने नाते-रिश्‍तेदारों के सामने यह प्रस्‍ताव रखा कि क्‍यों न विधवा बहु सुषमा का विवाह कर दिया जाये। समाज और रिश्‍तेदारों ने इस प्रस्‍ताव पर सहमति जाहिर की, तो फिर दूल्‍हे की तलाश जारी हुई। कई चेहरे देखे, कहीं से भी उम्‍मीद की किरण नजर नहीं आई, लेकिन अचानक जून के महीने में भोपाल के एक सब इंजीनियर जीतेंद्र दिनेश बेगड़ पर जाकर तलाश खत्‍म हुई। जीतेंद्र की पत्‍नी की कैंसर से मौत हो चुकी है और उसके दो पुत्र हैं। इसके लिए उसे मां की जरूरत थी। काफी पूछ-परख के बाद 10 जून, 2012 को सुषमा और जीतेंद्र शादी के बंधन में बंध गये। इस मौके पर सास सविता बैन ने मां की भूमिका अदा कर बेटी का कन्‍यादान किया। जैसे घर से शादी के मौके पर लड़की को विदा किया जाता है उसी प्रकार से मां ने अपनी बहु को रोते-बिलखते विदा किया। ऐसे उदाहरण निश्चित रूप से हमारे समाज के लिए एक आइना है और अंधेरे की टिम-टिमाती लौ में उजाले की किरण भी है।

रविवार, 10 जून 2012

वीर और वीरांगनाओं के स्‍थलों की खोज


          जिन्‍होंने देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया उनके स्‍थलों को चिन्हित करने का काम अब मप्र का पुरातत्‍व एवं संस्‍कृति विभाग ने अपने हाथ में लिया है। इस विभाग का इरादा है कि राज्‍य में जिन वीर और वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी है उनको याद करने के लिए स्‍थलों को तलाश किया जाये और उन्‍हें चिन्हित कर वीर भूमि निर्मित की जाये। मध्‍यप्रदेश में प्राचीन स्‍थल कई स्‍थानों पर मौजूद हैं उनको हम नमन भी करते हैं, लेकिन अभी भी ऐसे वीर सैनिक गायब हैं, जिनके बारे में बहुत सारी जानकारियां नहीं हैं। प्रदेश में सैकड़ों वीर और वीरांगनाएं हुई जिन्‍होंने स्‍वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्‍सा लिया था। ऐसे वीर और साहसी लोगों के ग्रह स्‍थलों एवं आवासों को सहेजने की मंशा से योजना बनाई गई है। प्रदेश में 1857 से पहले के स्‍मारकों को सहेजने के लिए पुरातत्‍व विभाग और संस्‍कृति विभाग मिलकर रणनीति तैयार कर रहा है। निश्चित रूप से यह एक सराहनीय कदम है। 
हम भूले शहीदों को : 
        यह भी कड़वा सच है कि जिन शहीदों ने हमें आजादी दिलाई हम उनके कर्त्‍तव्‍य और अधिका‍रों को तो भूल ही गये हैं, बल्कि उनके स्‍मारक भी हम भूलते जा रहे हैं। यहां तक कि कई प्राचीन स्‍मारक स्‍थल तो अतिक्रमण की भेंट चढ़ गये हैं। इन पुरातात्विक महत्‍व के स्‍थलों पर अतिक्रमणकारियों ने हैंडपंप खुदवा लिया है, तो कहीं पार्क बना लिया है, तो कहीं चाय की गुमटी खुल गई है। इन्‍हें दूर करने के लिए स्‍थानीय शासन विभाग कोई पहल नहीं कर रहा है। इसी प्रकार पुरातात्विक महत्‍व के स्‍थलों से मूर्तियों की चोरियां भी हो रही हैं। विशेषकर बुंदेलखंड इलाकों में चोरी की बारदातें लगातार बढ़ी हैं। 

शनिवार, 9 जून 2012

रैंप कैटवॉक और फेंशन शो का चलन बढ़ा

''रैंप पर कैटवॉक : चलिए हमारी अदाएं भी देख दीजिए''
        अगर पिछड़े और गरीब राज्‍य में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो का चलन बढ़ जाये, तो यह मान लीजिए कि अब राज्‍य तरक्‍की करने लगा है। यह स्थिति अब मप्र में आम बात हो गई है। राज्‍य के महानगरों और शहरों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो के कार्यक्रम नित-प्रति होने लगे हैं फिर भले ही मुंबई की भांति इनका व्‍यवसायिकरण न हुआ हो, लेकिन इन आयोजनों के पीछे स्‍वार्थी तत्‍व जरूर हावी होने लगे हैं।
''जलवा तो हमी दिखायेंगे''
अभी तक कॉलेजों और स्‍कूलों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो नहीं होते थे पर 2000 के दशक से इसका भी दौर शुरू हो गया। बीच-बीच में भाजपा सरकार में इस पर तीखी नाराजगियां जाहिर की गई, यहां तक कि उच्‍च शिक्षा मंत्री रही अर्चना चिट‍नीस ने तो सरकारी कॉलेजों के वार्षिक उत्‍सव में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो पर प्रतिबंध लगा दिया था। एक-डेढ़ साल बाद फिर से कॉलेजों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो फिर होने लगे हैं। अब तो इंजीनियरिंग और मेडीकल कॉलेज के वार्षिक उत्‍सव में हर साल सजधज कर कॉलेज की लड़कियां पहुंचती हैं और फेंशन शो के नाम पर फूहड़ फिल्‍मी गानों पर नाज-गाने होते हैं और जमकर अश्‍लीलता परोसी जा रही है। यह सच है कि जिस तेजी से महानगरों का विकास हो रहा है उसमें रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो भी व्‍यवसाय का एक अंग बन गया है, लेकिन उसकी भी एक मर्यादा है। मप्र में न तो रैंप पर कैटवॉक व्‍यवसाय का रूप ले पाया है और न ही फेंशन शो पर कपड़ों का कोई कारोबार फलफूल रहा है, बल्कि इस बहाने अश्‍लीलता जरूर परोसने का काम किया जा रहा है जिसमें कुछ लोगों की आंखे ठंडी हो रही हैं, बाकी राज्‍य से न तो प्रतिभाएं इस क्षेत्र में विकसित हो रही हैं और न ही वह एक कदम आगे बढ़ पा रही हैं। अब इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि क्‍या कॉलेजों में रैंप पर कैटवॉक और फेंशन शो जरूरी है अथवा इन पर रोक लगानी चाहिए।   
फेंशन शो के नाम पर आजकल हर कहीं आयोजन हो रहे हैं इन पर प्रशासन की तो कोई नजर ही नहीं है। अब तो दुल्‍हनों की तलाश पर आयोजित कार्यक्रमों में भी फेंशन शो का सिलसिला शुरू हो गया है।

शुक्रवार, 8 जून 2012

ई-नेटवर्क का जाल फैलाना चाहते हैं मध्‍यप्रदेश में सेम पित्रौदा

''मुख्‍यमंत्री चौहान से चर्चा करते प्रधानमंत्री के आईटी सलाहकार सेम पित्रौदा''
          फिलहाल तो मध्‍यप्रदेश बार-बार बिजली की आंख मिचौली से त्रस्‍त है। बिजली की सप्‍लाई बार-बार बाधक बनती है जिसके कारण शहरों और गांवों के विकास के जो सपने हम सब देखते हैं वह सब पूरे नहीं हो पा रहे हैं। मप्र निश्चित रूप से विकास के नये आयाम छूना चाहता है। इसके लिए प्रयासरत भी है। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान है कि प्रदेश स्‍वर्णिम राज्‍य बने इसके लिए वह समय-समय पर सक्रिय भी नजर आते हैं, लेकिन नौकरशाही कहीं न कहीं बाधा बनी है जिसके चलते स्‍वर्णिम राज्‍य का सपना एक कदम आगे भी नहीं बढ़ पाया है। अब मुख्‍यमंत्री ने सूचना प्रौद्योगिकी के पेरोकार और नेशनल नॉलेज कमीशन के चैयरमैंन सेम पित्रौदा के साथ ई-नेटवर्क का जाल राज्‍य में फैलाने का इरादा बनाया है। सेम पित्रौदा ने भी 07 जून को अपने दौरे के दौरान स्‍वीकार किया कि राजनीतिक इच्‍छा शक्ति और नवाचारी प्रयासों से मप्र ई-गवर्नेन्‍स में आदर्श राज्‍य बन सकेगा, उनका विश्‍वास है कि भोपाल विश्‍व परिदृश्‍य में आदर्श एनवारनमेंट सिटी और उज्‍जैन में नॉलेज सिटी भविष्‍य में बनेगी। धार्मिक नगरी उज्‍जैन में नॉलेज सिटी को विकसित करने का काम राज्‍य सरकार लंबे समय से कर रही है। 3500 करोड़ की लागत से करीब 450 हेक्‍टेयर क्षेत्र में यह नॉलेज सिटी बन रही है, जहां पर 50 हजार विद्यार्थी एक साथ पड़ सकेंगे। इसी स्‍थान पर विश्‍व स्‍तर का कालीदास स्‍कूल फॉर वर्ल्‍ड थ्रेटर भी बनाया जायेगा। नॉलेज सिटी में ही धनवंतरी स्‍कूल खोलने की भी योजना है। इसके साथ ही मप्र की राजधानी भोपाल के निकट विश्‍व की दो बड़ी धरोहर भीम बैठिका और सांची हैं। यही वजह है कि सेम पित्रौदा ने संकल्‍प लिया है कि अगले पांच साल में भोपाल को ग्‍लोबल एनवायर्नमेंट सिटी बनाई जायेगी। इसके साथ ही जगह-जगह इंफार्मेशन कियोस्‍क बीपीओ, वायरलेस इनेबल्‍ड सिटी, भोपाल में लाइव साइंस, बायो साइंस, एनवायर्नमेंट फ्रेंडली टेक्‍नोलॉजी को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। सेम पित्रौदा चाहते हैं कि अदालतों में ई-ऑर्डर, ई-सम्‍मन, ई-लायब्रेरी जैसी व्‍यवस्‍थाएं स्‍थापित हो। इन व्‍यवस्‍थाओं से पुलिस, अस्‍पताल और जेल को भी जोड़ा जाये। ई-गवर्नेन्‍स के क्षेत्र में भी सेम पित्रौदा ने जोर दिया। ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों को ई-परियोजना से जोड़ने की योजना है। इसके तहत मध्‍यप्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायतों को ब्राडबैंड कनेक्विटी प्रदान की जायेगी। ई-कोर्ट्स एवं कोर्ट्स ऑफ टूमारो एवं सेंटर फॉर इनोवेशन की स्‍थापना पर भी विचार किया गया। निश्‍चित रूप से मप्र में आईटी के क्षेत्र में कई दिशा में काम हो रहे हैं, लेकिन आज भी सरकारी विभागों में उनकी बनी हुई वेबसाइट न तो खोली जाती है और न ही अपडेट होती हैं। यहां तक कि इन वेबसाइटों पर विभागों में होने वाले निर्णयों को भी अपडेट नहीं किया जा रहा है। 
''योजनाओं पर मंथन करते सेम पित्रौदा एवं अधिकारीगण''
      मप्र में सिर्फ जल संसाधन विभाग इकलौता विभाग है जिसकी वेबसाइट हर दिन अपडेट होती है। यहां तक कि मुख्‍यमंत्री सचिवालय की वेबसाइट भी प्रतिदिन अपडेट नहीं होती होगी। यह सच है कि पिछले पांच वर्षों में आईटी के क्षेत्र में राज्‍य ने एक कदम आगे बढ़ाया है। तकनीकी शिक्षा विभाग ने तो इंजीनियरिंग के प्रवेश ऑनलाईन कराये हैं। ऐसे कई अन्‍य काम हो रहे हैं, लेकिन अभी भी संतोष इन कामों पर नहीं किया जा सकता है। बेहतर सोच और नये नजरिएं के साथ हमको मैदान में उतरना होगा, तभी प्रदेश आईटी के क्षेत्र में चमक सकता है। 
                   ''जय हो मप्र की'' 

गुरुवार, 7 जून 2012

आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार की हत्‍या पर से उठा पर्दा

''क्‍या दिन थे हमारे''
             मध्‍यप्रदेश में पहली बार किसी आईपीएस की हत्‍या ने हर व्‍यक्ति को चौंका दिया है। मुरैना में अवैध रूप से गिट्टी, पत्‍थर भरकर ले जा रही ट्रेक्‍टर ट्रॉली को रोकने के कारण मौत हो गई थी। सीबीआई ने 90 दिन में इस पूरे मामले को हत्‍या नहीं, बल्कि एक हादसा करार दिया है। 08 मार्च, 2012 को होली के दिन खेले गये इस खून की होली के छींटे खनन माफिया पर नहीं पड़े हैं, बल्कि एक दुर्घटना सीबीआई ने माना है। नरेंद्र कुमार की हत्‍या के बाद विपक्ष ने इस पूरे मामले को खनन माफिया से जोड़‍ दिया था। भाजपा सरकार कटघरे में फंस गई थी।
''आईपीएस नरेंद्र कुमार अपनी पत्‍नी मधुरानी के साथ''

''पिकनिक का भी भरपूर आनंद लिया''
मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आनन-फानन में सीबीआई जांच के आदेश दिए। सीबीआई ने भी तीन महीने की जांच में खुलासा कर दिया कि नरेंद्र कुमार की मौत एक हादसा है। नरेंद्र कुमार की पत्‍नी मधुरानी जो कि स्‍वयं आईएएस है एवं पिता केशव देव को भी आशंका थी कि नरेंद्र कुमार की खनन माफिया ने हत्‍या की है। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ट्रेक्‍टर-ट्रॉली को रोकने के लिए नरेंद्र उस पर चढ़ गये, तभी ड्राईवर ने उन्‍हें धक्‍का दिया, ड्राईवर पर शासकीय कार्य में बाधा और मोटर व्‍हीकल एक्‍ट का चार्ज भी लगाया गया। इस पूरे मामले की जांच से यह खुलासा हो गया है कि मुरैना में खनन माफिया तो है, लेकिन उसने किसी आईपीएस की हत्‍या नहीं की है। अब भाजपा हल्‍ला मचा रही है कि कांग्रेस को प्रदेश की जनता से मांफी मांगना चाहिए। इस मामले को लेकर कांग्रेस ने मप्र बंद कराया था और जमकर विधानसभा में भी हल्‍ला मचाया था। इस घटना से एक बात तो साफ जाहिर हो गई है कि राजनीति जिस तरह से घटनाओं पर होती है उसके कई बार अर्थ दूसरे निकलते हैं, तब तक समय काफी गुजर चुका होता है। 

 

खुशी बरसी आसमान से, मौसम हुआ सुहाना

''बादलों की बिखरी छटा ने दिखाया अपना नया रूप''
         गर्मी की तपन और उमस ने लोगों को कदम-कदम पर तकलीफ दी पर अचानक मौसम ने 06 जून को करवट ली और आसमान से खुशियों की झमाझम बारिश हुई। बादलों का नजारा ही निराला था। मौसम के इस प्रिय मानसून ने कई कायसों पर से पर्दे उठा दिए हैं। यूं तो प्रदेश के कई हिस्‍सों में सुबह से ही बादल छा गये थे, यही स्थिति गुरूवार को भी बनी हुई है। मौसम के बदले मिजाज ने लोगों को राहत दी है और पसीने से छुटकारा दिलाया है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि प्रिय मानसून की गतिविधियां शुरू हो गई है। 
''वाह क्‍या आनंद आ रहा है पहली बारिश में''
आने वाले दिनों में आंधी-तूफान का दौर शुरू होगा। बादलों की आमद हो गई है, ठंडी-ठंडी हवाएं चल रही है, लोग राहत महसूस कर रहे हैं। हल्‍की बारिश ने मौसम में एक अलग ही फिजा घोल दी है। मप्र मौसम केंद्र के निदेशक डॉ0 डी0पी0 दुबे का मानना है कि अरब सागर में बेदर सिस्‍टम बना होने से वहां से प्रदेश में काफी मात्रा में नमी आ रही है। यही कारण है कि मौसम का मिजाज अचानक बदला है। इस बदले मौसम ने आम आदमी को महीने बाद राहत दी है। लोग झील किनारे भी बदले मौसम का नजारा देखने के लिए दौड़ पड़े थे। अब वैसे भी मौसम की इस अदला-बदली से समाज का हर वर्ग प्रभावित होता है। किसानों के लिए तो बारिश सोना-चांदी लेकर उनके घरों में प्रवेश करती है। मप्र में मौसम की आंख-मिचौली लंबे समय से देखी जा रही है जिसका असर यहां के कारोबार और किसानों की जिंदगी पर नजर आता है, फिलहाल मौसम की बदली फिजा ने सब कुछ बदल डाला है।

''आंधी और अंधड़ के यह रूप कभी भी नजर आयेंगे''

बुधवार, 6 जून 2012

धार्मिक कट्टरता ने फैलाये मप्र में पैर

      जब तब राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की गतिविधियों को लेकर कांग्रेस धार्मिक कट्टरता का आरोप लगाने में देरी नहीं करती है, क्‍योंकि पिछले आठ सालों में मप्र में धार्मिक कट्टरता बढ़ी है जिसके चलते कदम-कदम पर प्रमाण भी सामने आये हैं। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह लंबे समय से आशंका जाहिर कर रहे हैं कि भाजपा सरकार के संरक्षण के चलते राज्‍य में धार्मिक कट्टरता का जाल फैलता जा रहा है। वह तो हिन्‍दू और मुस्लिम दोनों प्रकार की कट्टरता की ओर संकेत करते रहे हैं। यूं भी भाजपा सरकार में मुस्लिम कट्टरता फैलाने का काम कर रहे सिमी संगठन का जाल ध्‍वस्‍त किया है, जबकि संघ के नाम पर कुछ संगठन समय-समय पर धार्मिक कट्टरता फैलाने में देरी नहीं करते हैं। अब तो देश के गृहमंत्री पी0चिदंबरम ने भी 05 जून को भोपाल में ही कह दिया कि मप्र में धार्मिक कट्टरतावाद बढ़ रहा है। इसी वजह से आतंकी घटनाएं भी हो रही हैं। उनका मानना है कि देश की ज्‍यादातर दक्षिण पंथी कट्टरता से जुड़ी आतंकी घटनाओं के तार मप्र से जुड़े हैं। खासतौर से मालवा के आसपास इंदौर में इन घटनाओं के सबूत मिले हैं। इनमें कुछ लोग पकड़े भी गये हैं और कुछ लोग अभी भी खुले घूम रहे हैं। उनका कहना है कि उन्‍हें ऐसे संगठनों के नाम मालूम है, लेकिन वह उनका नाम नहीं लेना चा‍हते हैं। यह सच है कि इंदौर के साथ-साथ उज्‍जैन, रतलाम, मंदसौर के जिलों में धार्मिक कट्टरता के अवशेष ज्‍यादा फैलते जा रहे हैं, जो कि चिंता का विषय है। इस दिशा में राज्‍य सरकार को पहल करना चाहिए, क्‍योंकि किसी भी प्रकार की कट्टरता विकास में हमेशा बाधक रही है। आज प्रदेश के कई शहर विकास की दौड़ में तेजी से भाग रहे हैं उस स्थिति में धार्मिक कट्टरता पर विराम लगा सकती है।

नाज है इन पर

''60 वर्ष का बेटा और 80 साल की मां : आधुनिक जमाने का श्रवण कुमार''
       समाज में हमारे आसपास ऐसे पात्र होते हैं, जिन पर कोई गौर नहीं करता है, लेकिन वह दुनिया से हटकर ऐसा काम करते हैं जिन पर सबको नाज होता है। मध्‍यप्रदेश में ऐसे लोगों की संख्‍या सीमित तो है, लेकिन लगातार उन लोगों का काफिला बढ़ता जा रहा है, जो कि अपनी भावनाओं और लीग से हटकर काम कर रह हैं। इनकी सेवा, समर्पण और विश्‍वास देखकर लगता है कि ऐसे लोग ही समाज के रखवाले हैं और हमें उन पर नाज भी होना चाहिए। 
60 वर्ष का श्रवण कुमार : 
         मध्‍यप्रदेश के शहरों में आजकल ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि बुजुर्ग माता-पिता को उनके कमाऊपूत बेटे घर से प्रताडि़त करके बाहर निकाल रहे हैं और बुजुर्ग मां बाप रैन बसेरों में अपनी जिंदगी गुजर-बसर करने के लिए मजबूर हैं। बुजुर्गों की पिछले म‍हीने हुई सीएम हाउस में पंचायत के दौरान भी बुजुर्ग लोगों ने ऐसी शिकायत मुख्‍यमंत्री से की थी। भोपाल, इंदौर में तो ऐसे प्रसंग अनगिनत मिल जायेंगे, जिनके बेटे मोटी-मोटी रकम नौकरी से कमा रहे हैं, लेकिन मां-बाप कहीं और उपेक्षित रहकर जीवनयापन कर रहे  हैं। मध्‍यप्रदेश में साडि़यों और तोतों के लिए प्रसिद्व चंदेरी में तो 60 साल का श्रवण कुमार अपनी मां को बीते पांच सालों से लगातार देवी के दर्शन कराने के लिए गोदी में बैठकर गांव से लाकर दर्शन करा रहा है। चंदेरी से 05 किमी दूर सिंहपुर पांडरी गांव के निवासी 60 वर्षीय आदिवासी गणेशराम अपनी 80 वर्षीय मां रतनिया बाई को कंधे और गोदी में  बैठाकर गांव से मां जागेश्‍वरी मैया के दर्शन कराने ला रहा है। इसके पीछे का कारण यह है कि मां को एक दिन रात में दुर्गा मैया ने दर्शन दिये कि अगर तुम्‍हें रोशनी चाहिए, तो दर्शन करने आओ, तो फिर क्‍या था बूढ़ी मां के आग्रह को बेटा टाल नहीं सका और लगातार दर्शन करा रहा है। इससे मां के आंखों की रोशनी थोड़ी-थोड़ी आने भी लगी है। 
बेसहारा महिला का बेटा बन निभाया बादा : 
        समाज में ऐसे भी लोग मौजूद हैं, जो कि हर किसी के लिए कोई भी काम करने के लिए समर्पित हो जाते हैं। मप्र के टीकमगढ़ जिले में 80 वर्षीय बेसहारा सियाबाई यादव की मौत के बाद उसकी अंत्‍योष्टि करने का जिम्‍मा बेटे के रूप में नगर पालिका अध्‍यक्ष राकेश गिरी ने उठाया। न सिर्फ गिरी ने मां-बेटे के रिश्‍तों को मजबूत किया, बल्कि अंत्‍योष्टि के दिन  अपनी भूमिका अदा करके बाल भी कटवाएं और उनकी अस्थियां संचित करके इलाहाबाद भी ले गये। इसके बाद गिरी ने 9 करोड़ की लागत से बन रहे पालिका प्‍लेजा का नाम अपनी मां के नाम से रखा है। निश्चित रूप से भले ही समाज दुआ न दें, लेकिन बूढ़ी मां जरूर दुआएं दे रही होंगी, बेटे को। 
विदिशा के इंजीनियर को 80 लाख का पैकेज : 
मध्‍यप्रदेश की प्रतिभाएं न सिर्फ देश भर में धूम मचा रही है, बल्कि अब तो विदेशों में भी उनकी मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्‍वराज के संसदीय क्षेत्र विदिशा का आईआईटी इंजीनियर स्‍वप्निल जैन को टिवटर कंपनी से 80 लाख रूपये सालाना पैकेज के रूप में आफर मिला है। 22 साल के स्‍वप्निल अक्‍टूबर म‍हीने में कैलीफोनिया प्रांत के सैन फ्रांसिको शहर में अपना कैरियर शुरू करेंगे। इसी साल उन्‍होंने आईआईटी दिल्‍ली से कम्‍प्‍यूटर साईंस में बीटेक किया है। स्‍वप्निल के पिता संजय जैन का ज्‍वलेरी का व्‍यवसाय है। इससे पहले भी इस नौजवान को फेसबुक ने 28 लाख और गोगुल ने 75 लाख का ऑफर दिया था। इस युवक का सपना है कि पहले वह नौकरी करेगा उसके बाद वह मप्र में इंस्‍ट्री खोलेगा। 
बेटियां भी दिखा रही खेलों में हौंसला : 
        अभी तक मप्र के खेलों में बेटियां बढ़-चढ़ कर हिस्‍सा नहीं लिया करती थी, लेकिन अब बेटियां भी किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं। मप्र की बेटी और भोपाल निवासी मेरीकॉम ने तो बॉकसिंग रिंग में एक अलग ही स्‍थान बना लिया है। इसी के साथ ही सरिता तोमर भी मुक्‍केबाज बनकर उभर रही हैं। वहीं दूसरी ओर हॉकी जैसे जोखिम भरे खेल में अब लड़कियों ने आना शुरू कर दिया है। 
भोपाल की शान है, बड़ा तालाब : शाम का खूबसूरत मंजर
       
वाह क्‍या दृश्‍य है
रात्रि का नजारा और खूबसूरत झील

मंगलवार, 5 जून 2012

दरिंदगी की सीमाएं तोड़ी, पहले बालिका से गैंगरेप फिर जिंदा जलाया

       मध्‍यप्रदेश में बालिकाओं के भविष्‍य को सुनहरा बनाने के लिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नित-प्रति नये सपने देखते हैं। उन्‍हें साकार करने के लिए जमीन पर कार्य योजनाएं शुरू करवाते हैं। ऊपर से नीचे तक अधिकारी/कर्मचारी उसमें सक्रिय भी रहते हैं। बेटी बचाओ अभियान इसका उदाहरण है। इस अभियान को न सिर्फ सरकार चला रही है, बल्कि समाज भी भरपूर मदद कर रहा है। इसके बाद भी बालिकाओं के साथ दरिंदगी के मामले सामने आये तो दिल दहल जाता है। बलात्‍कार की घटनाएं राज्‍य में थमने का नाम नहीं ले रही हैं, अब तो एनसीआरबी की रिपोर्ट में भी खुलासा हो गया है कि मध्‍यप्रदेश में सबसे ज्‍यादा रेंप हो रहे हैं। पुलिस महकमा एक ही राग अलापता है कि आखिरकार हम हर बच्‍ची की सुरक्षा तो कर नहीं सकते, लेकिन उन कारणों की अभी भी तपतीश नहीं हो रही जिसके चलते रेंप के कारणों की खोज हो सके। 04 जून, 2012 को सागर जिले के खुरई थाना क्षेत्र के ग्राम खेजराहरचन में एक 15 वर्षीय बालिका के साथ पहले युवकों ने गैंगरेंप किया और बाद में मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जला दिया। बालिका अस्‍पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है। इस बालिका के साथ चार युवक दीपक विश्‍वकर्मा, मुकेश कुर्मी, विवेक कुर्मी और मुरलीधर विश्‍वकर्मा ने बलात्‍कार किया। इसके बाद जब यह बालिका इन दरिंदों से छूटकर घर की ओर भागने लगी तो इन युवकों ने उस पर मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जला डाला। परिवार के लोगों ने जब बालिका को आग की लपटों घिरा देखा तो उसे अस्‍पताल पहुंचाया। बालिका ने भी चार युवकों के नाम बताये हैं। इस नाबालिग के साथ खेत में शौच के दौरान रेंप किया गया है। गांव के लोग इस घटना को लेकर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं, क्‍योंकि इसमें दो मासूम बच्‍चों को भी पकड़ा गया है जिसकी उम्र 9 और 11 साल है। इसके पीछे प्रेम प्रसंग भी एक कारण बताया जा रहा है। दूसरी ओर दिल्‍ली की सूचना के अनुसार एनसीआरबी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच मप्र में सबसे अधिक 15,275 बलात्‍कार के मामले दर्ज किये गये हैं। इसके बाद बलात्‍कारों के मामले में पश्चिम बंगाल, यूपी और महाराष्‍ट्र आते हैं। यानि मप्र बलात्‍कार के मामले में भी अव्‍वल हो गया है, जो कि शर्मनाक है। समझ में नहीं आता है कि जो सामाजिक संगठन महिलाओं और युवतियों की जागृति के नाम पर चलाये जा रहे हैं, वे आखिरकार क्‍या कर रहे हैं। इन संगठनों की भूमिका कई बार संदिग्‍ध हो जाती है। यही हाल राजनैतिक दलों के महिला संगठनों का है। समझ से परे हैं कि जो महिला संगठन काम कर रहे हैं वे क्‍यों नहीं गुस्‍से में आते हैं। महिलाओं के साथ रेंप के मामले बढ़ रहे हैं और महिला संगठन हाथ पर हाथ धरे बैठी है। 
पहले मासूम की हत्‍या फिर बलात्‍कार : 
       दमोह जिले के पथरिया में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई। यहां पर एक बैंहशी दरिंदें ने एक दलित महिला के घर में घुस कर दो माह के मासूम बच्‍चे को जमीन पर पटक कर हत्‍या कर दी, उसके बाद हत्‍यारे ने महिला के साथ बलात्‍कार किया और उसके बाद लूटपाट करके फरार हो गया। रिंकी नामक महिला पेशे से सब्‍जी बेचने का काम करती है। कुछ दिन पहले आरोपी से उसकी स्‍टेशन पर मुलाकात हुई थी और एक दिन 03 जून को अचानक आरोपी शराब के नशे में धुत्‍त होकर घर पहुंचा और महिला के साथ बदतमीची करने लगा। महिला के विरोध करने पर बच्‍चे को मार डाला और बाद में महिला के साथ रेंप किया। महिला फिलहाल अस्‍पताल में भर्ती किया।  

सोमवार, 4 जून 2012

जुझारू और लड़ाकू प्रवृत्ति के युद्वाओं का पड़ा टोटा

          मध्‍यप्रदेश के विकास के सपने तो खूब दिखाये जाते हैं। इन सपनों को अमलीजामा करने के लिए जो प्रयास होना चाहिए वह नहीं हो पाते हैं। यही वजह है कि  मध्‍यप्रदेश की स्‍थापना के 56 साल बाद भी हम सड़क, बिजली, पानी की समस्‍या से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। आज भी हर तरफ इन्‍हीं मुद्दों पर विवाद होते हैं। राजनेता भी यही सवाल बार-बार जनता के सामने खड़ा करते हैं। जनता भी अपने इलाके की सड़के बनाने की गुहार राजनेताओं से करती है। राजनेता भी जनता को सड़कों की मरम्‍मत और नये निर्माण के सपने दिखाकर वोट हासिल कर लेता है। दुखद पहलू यह है कि न तो जनता नये सपने देख रही है और न ही राजनेता उन्‍हें साकार करने पर ध्‍यान देते हैं जिसके चलते प्रदेश लगातार गर्त में जा रहा है। शहरों के विकास की परिकल्‍पनाएं बुनी गई, लेकिन आज भी हम मध्‍यप्रदेश में एक भी बड़ा महानगर तैयार करने में कामयाब नहीं हो पाये। आबादी के हिसाब से इंदौर को महानगर कहा जाता है, लेकिन केंद्र सरकार के मापदंड में इंदौर भी महानगर नहीं है। इसके अलावा अन्‍य जो शहर है उनमें भी बुनियादी संरचनाएं विकसित करने की कोई पहल नहीं हो रही है। इन शहरों में भी बुनियादी सुविधाओं के लिए लोग रोना रोते रहते हैं। गांवों की हालत तो और भी बदतर है। इन सब कारणों की मूल वजह मप्र की जनता में लड़ाकूपन का न होना है। यहां की जनता न तो संघर्ष करना जानती है और न ही अपने अधिकारों के लिए लड़ना आता है, जो जैसा चल रहा है उसी पर अपनी गाड़ी दौड़ती रहती है। नये सपने देखना तो लोगों को आता ही नहीं है। यही वजह है कि मप्र के बाद बने राज्‍य गुजरात, हरियाणा, पंजाब, गोवा आज देश के नक्‍शे पर चमक रहे हैं और हम मप्र वासी आज भी पिछड़ापन, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, अज्ञानता जैसे तमगे लगाकर जीने को विवश है। राजनेताओं का हाल यह है कि न तो वे इसके लिए लड़ रहे हैं और न ही जनता को लड़ने के लिए उदेलित कर रहे हैं। राजनेता को तो पांच साल में एक बार वोट चाहिए उसके बाद उनका कोई वास्‍ता नहीं। जनता संघर्ष करें या न करें पर मप्र को अगर देश के नक्‍शे पर चमकाना है, तो जनता को संघर्ष का रास्‍ता अपनाना ही होगा। 
              जय हो मध्‍यप्रदेश की

रविवार, 3 जून 2012

छोटे भाई ने प्रेम किया और बड़े भाई को मिली मौत

छोटे भाई के प्रेम की सजा बड़े भाई को भुगतनी पड़ी
         मध्‍यप्रदेश में इन दिनों प्रेम प्रसंगों का अंत बड़ा बुरा हो रहा है। कहीं पर प्रेमिका प्रेमी नहीं मिलने पर मौत को गले लगा रही है, तो कभी प्रेमी ट्रेन से कटकर प्रेमिका की चाहत में जान गवा रहा है। प्रेम प्रसंगों पर परिवार और गांव-गांव में मारपीट और टकराव के साथ-साथ हिंसक घटनाएं हो रही हैं। अब तो छोटे भाई के प्रेम की सजा बड़े भाई को मौत के रूप में मिली है। सजा भी इतनी घिनौनी है कि बड़े भाई को जिंदा जला कर मार डाला गया है। यह घटना मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे सीहोर जिले के ग्राम तिलाडि़या की है, जहां पर राजपूत समाज की एक युवती से प्रेम करना दूसरे परिवार को एक बड़ा सजा मौत के रूप में भोगनी पड़ी। इसके घटना के पीछे का मूल कारण प्रेम प्रसंग को पुलिस भी बता रही है। कहा जा रहा है कि मृतक अमर सिंह का छोटा भाई सबल सिंह 26 अप्रैल को ग्राम तिलाडि़या की एक विवाहिता को लेकर भाग गया। इस विवाहिता से सबल सिंह के प्रेम के रिश्‍ते महीनों से चल रहे थे और दोनों के बीच इस कदर निकटता हो गई थी कि वह घर छोड़कर प्रेमी के साथ भाग खड़ी हुई और इन दोनों ने कोर्ट में शादी भी कर ली। अदालत ने दोनों को साथ रहने की इजाजत भी दे दी थी। प्रेमी महिला के अपने पूर्व पति से दो बच्‍चे भी है, जो कि वह घर छोड़ गई है। इस प्रेम प्रसंग और शादी के बाद से गांव में तनातनी का माहौल बन गया था जिस घर की विवाहिता भागी थी उसके लोगों ने काफी प्रयास करने के बाद भी शादी करने वाले प्रेमी-प्रेमिका को तो तलाश नहीं कर पाये, क्‍योंकि वह अज्ञात स्‍थान पर रह रहे हैं। इसी बीच 02 जून 2012 को करीब 12 बजे प्रेमी सबल सिंह के भाई अमर सिंह को ग्राम झागर की ओर जा रहा था, तभी उसको कुछ लोगों ने घेर लिया और जिंदा आग के हवाले कर दिया, जिन लोगों ने अमर सिंह को जलाया है वे एक बुलेरो वाहन से आये थे और जलती लाश को खेत में छोड़कर भाग गये। गांव वालों ने जब तक देखा तब तक व्‍यक्ति की मौत हो चुकी थी, पुलिस ने जला हुआ शव बरामद कर लिया है और नौ लोगों को गिरफ्तार भी किया है। प्रेम की नियति देखिए कि छोटे भाई ने प्रेम किया और उसकी सजा बड़े भाई को जिंदा जलकर चुकानी पड़ी। इस प्रेम कहानी की दुखद स्थिति यह है कि अंत्‍योष्टि में छोटा भाई शामिल भी नहीं हो सकेगा। क्‍योंकि आसपास के लोगों की निगाहें उसके ऊपर ही टिकी हुई हैं। मध्‍यप्रदेश में इन दिनों प्रेम-प्रसंगों का अंत बड़ा बुरा हो रहा है।

शुक्रवार, 1 जून 2012

तीन साल, तीन बच्‍चे : घर में खोद लिया कुंआ

दो बहनों और एक साथी का कमाल, तीन साल में खोद डाली कुईयां, यह बालिकाएं हैं रचना और लीला
      दिल में अगर तमन्‍ना हो तो कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है। इसी राह पर चलकर मध्‍यप्रदेश के विदिशा जिले की तहसील गंजबासौदा में तीन बच्‍चों ने तीन साल में रात-दिन मेहनत करके 35 फीट का कुंआ (कुईयां) खोद डाला। बच्‍चों की लगन, परिश्रम का ही परिणाम था कि आज उनके घर में एक कुंआ हो गया है, जहां वे अब आसानी से सुबह-शाम पानी उससे ले सकते हैं, जबकि इससे पहले उन्‍हें पानी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता था। इन बच्‍चों ने अपने घर में कुंआ इसलिए खोदा कि उनमें से एक बच्‍चे के स्‍वाभिमान को इस कदर चोटर लगी कि वे कुंआ खोदने के लिए प्रतिज्ञा कर बैठे। हुआ यह है कि सार्वजनिक हैंडपंप पर हुए विवाद से एक बालिका रचना को पड़ोसियों ने तमाचे जड़ दिये, जिससे विचलित होकर रचना ने नई कुईयां घर में ही खोदने का इरादा बना लिया। इस काम में उसकी छोटी बहन लीला और पड़ोस में ही साथ में खेलने वाले 14 वर्षीय बालक राजेश कुशवाहा ने इस अभियान में हाथ बटाया और देखते-ही-देखते तीन साल में कुईयां पानी देने लगी। यह इलाका गंजबासौदा में लाल पठार मुहल्‍ले का है, जहां पर ग्‍यारसपुर के मोहम्‍मदगढ़ गांव का खेत सिंह मालवीय का भूमिहीन परिवार रहता है। इन बच्‍चों के माता-पिता मजदूरी करके अपने परिवार का लालन-पोषण करते हैं। इन बच्‍चों की मेहनत का ही प्रतिफल है कि आज उनके घर में खोदी गई कुईयां से वह आसानी से पानी निकाल रहे हैं। अब इस पानी का उपयोग आस-पड़ोस के लोग भी करते हैं। जिस किशोरी रचना ने एक चाटा खाने के बाद यह कुईयां खोदने का निर्णय लिया था अब वह 12 वर्ष की हो गई है । उसके पिता खेत सिंह और मां गुलाबी बाई भी अपनी इस बेटी के अथक परिश्रम के साक्षी हैं, क्‍योंकि उन्‍होंने भी इस कुईयां को खोदने में अहम भूमिका अदा की है। वैसे भी कहा जाता है कि बाल मन विचलित जल्‍दी होता है और वह जो तय कर लेता है उसमें उसे सफलता ही मिलती है। इसका उदाहरण सामने है। 
                            '' जय हो मध्‍यप्रदेश की''