मध्यप्रदेश के कांग्रेसी नेता सपनों की दुनिया में रहने के आदी हो गये हैं। उन्हें दिन में भी सुनहरे सपने सताते हैं। जिसके चलते न तो वे एसी रूम से बाहर निकलने की जरूरत समझते हैं और न ही कहीं आक्रमक तेवर दिखाने की उनकी मंशा है, बल्कि उन्हें लगता है कि अब तो दस साल बाद जनता अपने आप कांग्रेस को सत्ता में वापस लायेगी। कांग्रेसियों को कोई नींद से जगाने वाला लीडर भी नहीं है। इसके चलते वे अपनी दुनिया में मस्त हैं और अपने नेताओं के दरवार में जिंदा वाद के नारे लगाना और किसी न किसी तरह नेता के पैर पड़ लेने की कला सीखना उनकी जिंदगी का लक्ष्य हो गया है। इसके चलते मप्र की कांग्रेस चार, पांच धड़ो में बंटकर रह गई है। पिछले आठ सालों में तीसरी बार प्रदेश अध्यक्ष बने आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया भी इन दिनों अग्निपरीक्षा से गुजर रहे हैं। उन्हें भी कांग्रेसी बार-बार असफल बताकर नये अध्यक्ष के लिए पलक पावड़े बिछाने का सपना भी खूब देख रहे हैं। यह सच है कि भूरिया ने एक साल में कांग्रेस के भीतर जो उत्साह और उमंग पैदा करनी थी वह उसमें कामयाब नहीं हुए। उनके खाते में मार्च के महीने में मप्र बंद करना एक बड़ी कामयाबी है और छुट-पुट धरना प्रदर्शन और ज्ञापन देना भी उसमें शामिल हैं।
अब कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और महासचिव बीके हरिप्रसाद की नींद खुली है और वे बार-बार भोपाल आकर कांग्रेसियों को धमकाने की अदा में कह रहे हैं कि भीड नहीं लाये तो कार्यवाही होगी। इससे साफ जाहिर है कि हरिप्रसाद को भी अहसास हो गया है कि कांग्रेस नेताओं को हड़काना पड़ेगा तब वे जाग पायेंगे, लेकिन उनसे भी यह सवाल किया जाना चाहिए कि आखिरकार वह लंबे समय से प्रदेश प्रभारी हैं फिर उन्होंने संगठन में जान फूंकने के लिए क्या किया। कुल मिलाकर मप्र कांग्रेस संगठन की निष्क्रियता देखकर कांग्रेसियों को भी भीतर ही भीतर पीड़ा होती है पर वे अपने इस दर्द को आपस में बांट भी नहीं पाते हैं और कांग्रेस जिस हाल में है उसी में छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। अगर यही हाल रहा तो भाजपा के लिए तीसरी बार फिर से सत्ता का मुकुट पहनने में कोई बाधाएं नहीं आयेगी। यूं भी आम आदमी से लेकर नौकरशाही के बीच यह संदेश चला गया है कि भाजपा ही तीसरी बार सरकार बना रही है। इस कड़ी को तोड़ने के लिए कांग्रेसियों को बेहद पसीना बहाना पड़ेगा जिसके लिए कांग्रेस फिलहाल दिखती नजर नहीं आ रही है।
जय हो मप्र की