रविवार, 9 दिसंबर 2012

जी का जंजाल बना बुंदेलखंड पैकेज मध्‍यप्रदेश में


           करोड़ों रूपया खर्च करने के बाद भी बुंदेलखंड का इलाका बर्बादी के आंसू बहा रहा है। न तो इसकी चिंता राजनेताओं को है और न ही बुंदेलखंड के विकास का हल्‍ला मचाने वाले शुभचिंतकों को है। लंबे समय से उपेक्षित और बुनियादी सुविधाओं से वंचित बुंदेलखंड को चमकदार बनाने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 में एमपी और यूपी के इलाकों को विकास से जोड़ने के लिए बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर करोड़ों की राशि आवंटित की थी। इस राशि का उपयोग जिस गति से होना चाहिए था उस हिसाब से नहीं हो पा रहा है। बुंदेलखंड की स्थिति जस की तस है। यहां तक कि आवंटित राशि का एक चौथाई हिस्‍सा भी बामुश्किल हिस्‍सा ही खर्च हो पाया है, जो 
राशि पैकेज के नाम पर खर्च की गई है उसमें भी घोटाले और अनियमितताएं सामने आ रही है। हालत यह हो गई है कि विकास के नाम पर भ्रष्‍टाचार की गंगा बह रही है। इसके पीछे की बड़ी वजह बुंदेलखंड में राजनैतिक चेतना का न होना है। इस इलाके में आधा दर्जन से अधिक जिले शामिल हैं। कांग्रेस और भाजपा ही मुख्‍य दल हैं। कहीं-कहीं तीसरी ताकत भी जोर मारती है, लेकिन फिर भी कांग्रेस और भाजपा के अपनी-अपनी हैसियत है। इसके बाद भी इन दलों ने कभी भी बुंदेलखंड पैकेज का ठीक ढंग से क्रियान्‍वयन हो, इस पर ध्‍यान नहीं दिया। नेताओं का ध्‍यान कमीशन पर रहा और उन्‍होंने भरपूर आनंद भी लिया, लेकिन जिन दलों को विरोध का झंडा उठाना था, वह भी चुप रहे। कभी-कभार विधानसभा में कांग्रेस विधायक गोविंद सिंह राजपूत ने जरूर बुंदेलखंड पैकेज में हो रही अनियमितताओं को उजागर किया। शिवराज सरकार में बुंदेलखंड से तीन कैबिनेट और दो राज्‍यमंत्री हैं, जिसमें जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, डॉ0 रामकृष्‍ण कुसमरिया, हरिशंकर खटीक तथा बृजेंद्र प्रताप सिंह शामिल हैं। इन मंत्रियों को बुंदेलखंड पैकेज को व्‍यवस्थित ढंग से जमीन पर उतारने की जिम्‍मेदारी थी, लेकिन जिस जागरूकता के साथ काम करना था, वह काम नहीं हो पाया। यही वजह है कि लगातार घोटाले उजागर हो रहे हैं, यहां तक कि राज्‍य सरकार 422 करोड़ खर्च ही नहीं कर पाई। केंद्र ने बुंदेलखंड पैकेज के लिए 1953 करोड़ 20 लाख के विरूद्व 1425 करोड़ 64 लाख आवंटित कर दिये थे, लेकिन राज्‍य सरकार 422 करोड़ का तो उपयोग ही नहीं कर पाई। इसके साथ ही अभी तक 1033 करोड़ की खर्च राशि में से 458 करोड़ 44 लाख का ही उपयोगिता प्रमाण पत्र भेज सकी है, बाकी राशि का प्रमाण पत्र नहीं भेजा जा सका। ऐसा लगता है
कि राज्‍य सरकार पिछले तीन वर्षों से बुंदेलखंड पैकेज की मिली राशि खर्च करने में कंजूसी बरत रही है जिसके फलस्‍वरूप राज्‍य सरकार राशि खर्च करने में फिसड्डी साबित हो रही है। एक तरफ केंद्र सरकार को रोजाना कोसने वाली राज्‍य सरकार जब राशि ही खर्च नहीं करेगी, तो फिर सवाल उठाने का क्‍या अधिकार है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समय-समय पर राशि खर्च नहीं करने को लेकर नाराजगी जाहिर करते रहे हैं। इसके बाद भी विभागों की गति जस की तस है। दुर्भाग्‍यपूर्ण स्थिति यह है कि बुंदेलखंड को विकास की जिस धारा में बहना चाहिए, वह मंजिल अभी तक नहीं मिली है। आम आदमी बुनियादी सुविधाओं के लिए आज भी रो रहा है पर राजनेताओं और नौकरशाही को इसकी कोई चिंता नहीं है। सब अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग अलाप रहे हैं।
                                            ''मध्‍यप्रदेश की जय हो''

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