भाजपा को मध्यप्रदेश में इतिहास दर्ज करना है। तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा ने नई पठकथा लिखने का जिम्मा ठाकुर नेता नरेंद्र सिंह तोमर को सौंपा है। राह जटिल है। कदम-कदम पर चुनौतियां और गुटबाजी है। इससे पार पाने के रास्ते खोजने होंगे। भाजपा के इरादे और मंजिल जाहिर हो चुके हैं। इन्हें पाने के लिए तोमर नई कथा गढ़ने के लिए अपने अंदाज में पेश हो गये हैं। हर स्तर पर पार्टी में वह स्वीकार्य नेता हैं। इससे पहले भी 2008 से 2010 तक पार्टी की कमान संभाल चुके हैं। उन्हें मालूम है कि कहा-कहां और किस स्तर पर चुनौतियों से जूझना है। इसके लिए वे तैयार हैं पर फिर भी नेताओं की आपसी गुटबाजी को दूर करने में उन्हें पसीना आ जायेगा। इस बार मिशन 2013 को जितना आसान समझा जा रहा है उतना है नहीं। पार्टी ने यह मान लिया है कि सरकार बनना तो आसान है, लेकिन विपक्ष की चुनौती भी कम नहीं है। यह जरूर है कि हर स्तर पर पार्टी को यही फीडबैक मिल रहा है कि भाजपा की सरकार बनना तय है। आने वाला समय चुनौतियों से भरा हुआ है जहां पर हर कहीं से दबाव रहेगा, तब तोमर को अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय देकर एक नई राह बनानी पड़ेगी, तभी वे पार्टी को कामयाब कर पायेंगे।
चुनाव और तोमर की अग्निपरीक्षा :
मिशन 2013 का चुनाव तोमर के लिए अग्निपरीक्षा है। इसके लिए उनका चयन किया गया है कि वह अपने राजनीतिक दूरदृष्टि से लोगों को जोड़कर फिर से सत्ता हासिल कर सकें। फिलहाल तो चुनाव में अभी 10 माह का समय बाकी है। भाजपा अपने दस साल के सत्ता के सिंहासन पर फिर से विराजमान होना चाहती है, इसके लिए सारे दाव-पेंच खेले जायेगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में यह चुनाव होगा और चौहान की बाजीगरी की भी परीक्षा होगी। उनका सोशल एजेंडा भी देखा जायेगा कि वह कितना कामयाब है। फिलहाल तो पार्टी ने अपनी तरफ से एक ऐसा दाव खेला है जिसके लिए पार्टी का एक बड़ा वर्ग भीतर ही भीतर नाराज भी हो सकता है। यह नाराजगी फिलहाल तो सामने नहीं आ रही है, लेकिन भविष्य में उसका खुलासा होने के आसार बढ़ गये हैं। पार्टी के निवर्तमान अध्यक्ष प्रभात झा भी अपनी नाराजगी भले सार्वजानिक न करें, लेकिन पर्दे के पीछे कोई खेल दिखाये तो आश्चर्य नहीं होगा। अब उनके निशाने पर तोमर नहीं, बल्कि चौहान होंगे। तोमर के बारे में यह कहा जा रहा है कि वह संगठन कुशलता के खिलाड़ी है, लेकिन 2003 की अपेक्षा 2008 में भाजपा को वोट और सीटे कम मिली हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में तो और भी स्थिति खराब हो गई थी। अब 2013 उनके सामने हैं। ऐसी स्थिति में तोमर को उन हजारों कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना है, जो कि घर बैठे हुए हैं। मंत्री, सांसद, विधायक और अलग-अलग मोर्चों पर जनप्रतिनिधि की भूमिका अदा कर रहे नेताओं को भी मनाना इतना आसान नहीं होगा, जितना कि समझा जा रहा है।
''मध्यप्रदेश की जय हो''
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