दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद अचानक मध्यप्रदेश में भी महिला उत्पीड़न, गैंगरेप, बलात्कार और बच्चियों का उत्पीड़न पर बहस शुरू हो गई है। यह राज्य इन उत्पीड़न के मामले में अव्वल माना जा रहा है। शर्मनाक घटनाएं नित-प्रति अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। शासन और सरकार मरहम लगाने की बजाय एक ही राग अलाप रहा है कि समाज को आगे आना होगा। आखिरकार पुलिस अपनी जिम्मेदारी से क्यों भाग रही है। महिला उत्पीड़न को लेकर मध्यप्रदेश में भी गुस्सा बढ़ता जा रहा है। जगह-जगह लोगों का आक्रोश सड़कों पर उतर रहा है। रोज हो रहे प्रदर्शनों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नींद उड़ा दी है। उन्होंने 22 दिसंबर को चुनिंदा अधिकारियों की बैठक बुलाकर महिला उत्पीड़न रोकने पर मंथन चिंतन किया और यह तक कह दिया कि मप्र के माथे से यह कलंक हटाना है कि बलात्कार के मामले में प्रदेश देश में नंबर एक पर है। मुख्यमंत्री ने अफसरों से पूछा है कि क्या फास्ट ट्रेक कोर्ट की स्थापना करने से मामले जल्दी सुलझेंगे। इस पर फिलहाल तो कोई निर्णय नहीं हो सका है।
महिला अफसर भी अपनी जिम्मेदारी से बच रही :
मध्यप्रदेश में महिला आईपीएस अफसर भी अगर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सारी जिम्मेदारी समाज पर डाल दे तो फिर महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी समाज ही कर लेगा,तो फिर महिला पुलिस की आवश्यकता ही क्या है। इंदौर जोन के आईजी अनुराधा शंकर कहती हैं कि अगर महिलाओं के अपराध रोकना है, तो पारिवारिक सिस्टम और माहौल बदलना होगा। उनका मानना है कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराध 94फीसदी लोग पारिवारिक और निकटवर्ती होते हैं। दूसरी ओर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्रीमती अरूणा मोहन राव कहती हैं कि केवल पुलिस के दम पर महिला अपराध नहीं रोके जा सकते हैं। अगर महिलाओं को ही अपनी सुरक्षा स्वयं करनी है,तो फिर पुलिस की क्या भूमिका है यह एक बड़ा सवाल हर तरफ गूंज रहा है। पुलिस ने छेड़छाड़ रोकने के लिए कॉलेजो और स्कूलों में जूडो-कराटे प्रशिक्षण अनिवार्य करने का भी सुझाव दिया है।
हर रोज एक गैंगरेप :
मध्यप्रदेश के लिए वाकई में यह कलंक की बात है कि प्रदेश में हर दिन सामूहिक बलात्कार की एक से अधिक घटनाएं हो रही हैं, जबकि बलात्कार की प्रतिदिन पांच घटनाएं हो रही हैं। बलात्कार में धार्मिक नगरीय होशंगाबाद अव्वल है। यह जानकारी मीडिया की नहीं,बल्कि राज्य के होम मिनिस्टर उमाशंकर गुप्ता ने विधानसभा में लिखित में जानकारी दी है। गुप्ता भी बार-बार पुलिस की भूमिका का बचाव करते हैं और समाज को अपराध रोकने के लिए आगे आने की बात करते हैं। यानि गृह मंत्री भी अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। बकौल उमाशंकर गुप्ता के अनुसार 01 जुलाई 2012 से 15 नवंबर, 2012 के बीच 108 दिनों के भीतर 121 सामूहिक बलात्कार के मामले दर्ज किये गये, जिसमें से 66 आरोपी अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। सामूहिक बलात्कार की सबसे अधिक घटनाएं ग्वालियर जिले में हुई हैं। दूसरे नंबर पर सागर जिला है,जहां पर 06 घटनाएं हुई हैं,जबकि बालाघाट, छतरपुर में पांच-पांच, शिवपुरी, सतना, भिंड और नरसिंहपुर में 04-04 और शाजापुर में 03घटनाएं हुई है। दुखद पहलू यह है कि बलात्कार की सबसे अधिक बारदाते धार्मिक नगरी होशंगाबाद में हुई है, जहां पर 58 बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गई हैं। दूसरे नंबर पर भोपाल और तीसरे नंबर पर छिंदवाड़ा जिला है। होशंगाबाद,भोपाल और छिंदवाड़ा को छोड़कर बलात्कार के मामले में टॉन टेन जिलों में छिंदवाड़ा जिले में 49, सागर 49, जबलपुर 47, रीवा 42, सतना 37, इंदौर 29,ग्वालियर और शाजापुर में 28-28, खंडवा 27,रतलाम 24 शामिल हैं। इन घटनाओं से साफ जाहिर है कि महिला उत्पीड़न के मामले में सारे रिकार्ड टूट रहे हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की अगुवाई में 22 दिसंबर को मुख्यमंत्री निवास पर प्रदर्शन कर गिरफ्तारी दी जा चुकी है,इसके अलावा भी महिला संगठन समय-समय पर अपराध विरोध दर्ज कर रही हैं। अब सरकार को अपनी भूमिका अदा करनी है।
''मध्यप्रदेश की जय हो''
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