मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र 04 दिसंबर से शुरू हो गया। इसके साथ ही विपक्ष ने सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली है। अपने-अपने अस्त्र तैयार है बस उनको छोड़ने की जरूरत है। विपक्ष के पास कई मुद्दे हैं जिन पर खूब चर्चा हो सकती है। अब विपक्ष के ऊपर निर्भर है कि वह सदन में चर्चा कराना चाहता है अथवा हंगामा-शोरगुल करके अपनी भूमिका तय करेगा। मध्यप्रदेश में विधानसभा के भीतर चर्चाओं का सिलसिला विषयवार कम होता जा रहा है। बार-बार हर विषय हंगामे की भेंट चढ़ रहा है जिसमे फलस्वरूप जो सार्थक बहस के जरिये परिणाम मिल सकते हैं वह राज्य को नहीं मिल पा रहे हैं। सत्ता
पक्ष भी इस मंशा में रहता है कि उनके विधायी कार्य समय पर हो जाये, विपक्ष के जवाब जितने संभव है उतने दिये जा सकें। सदन में हंगामा और शोरगुल न हो इसको लेकर विपक्ष और सरकार के बीच वार्ताओं का दौर चला है। अरसे बाद संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने नेता प्रतिपक्ष के निवास पर जाकर सौजन्य मुलाकात सदन शुरू होने के पहले की है। इससे ऐसा आभास होता है कि सदन में चर्चाएं होगी, जबकि विपक्ष्ा आक्रमक तेवर अपनाये हुए है और वह कह रहा है कि इस बार, सड़क, बिजली, और जमीन अधिग्रहण तथा बिगड़ती कानून व्यवस्था पर चर्चा अवश्य करायी जायेगी। संसदीय परंपराओं के अनुसार चर्चा के परिणाम निश्चित रूप से बेहतर होते हैं बस दोनों दल मिलकर चर्चा करें, तो कोई न कोई निष्कर्ष निकलेगा ही।
''मध्यप्रदेश की जय हो''
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