नदी और बांध हमारा है फिर भी मध्यप्रदेश सिंचाई के लिए बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है। आलम यह है कि पानी की जरूरत है पर अनुबंध के बाद भी राजस्थान देने को तैयार नहीं है। तब मध्यप्रदेश को स्वाभाविक रूप से राजस्थान को आंखे दिखानी पड़ेगी। यह विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि वर्षों से चला रहा है और इसका कोई हल नहीं निकल रहा है। मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग के इलाकों में किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है, जब बार-बार राजस्थान से गुहार की जा रही है तब भी वहां के अफसरों की नींद नहीं खुल रही है। हालात यह हो गये हैं कि हमारा पानी राजस्थान में तालाब और नदियों में बहाया जा रहा है और मध्यप्रदेश को पानी के लिए तरसाया जा रहा है। इस पर 10 दिसंबर,2012 को राजस्थान की राजधानी जयपुर में मध्यप्रदेश और राजस्थान के अधिकारियों के बीच जमकर तनातनी हो गई। यहां तक कि मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया बैठक में जब सात घंटे पर भी कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो वह बौखला गये और उन्होंने राजस्थान के अधिकारियों को धमकी भरे स्वर में कह दिया कि अगर पानी के बंटवारे पर यही रवैया रहा तो वह किसी भी अधिकारी को मध्यप्रदेश में घुसने नहीं देंगे। उनकी अनुमति के बिना कोई बांधों का निरीक्षण भी नहीं कर पायेगा। यह बैठक मध्यप्रदेश, राजस्थान अंतर्राज्यीय नियंत्रण बोर्ड की स्टेंडिंग कमेटी टू की बैठक जयपुर में थी, दोनों राज्यों के जल संसाधन विभाग के अधिकारी मौजूद थे। मध्यप्रदेश की तरफ से जुलानिया ने तर्क दिया कि बार-बार कहने के बाद भी राज्य को पानी नहीं मिल रहा है, जो अनुबंध के तहत पानी मिलना चाहिए, वह भी नहीं दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश को प्रतिदिन अनुबंध के तहत 3900 क्यूबिक पानी प्रति सेकेण्ड मिलना चाहिए, लेकिन हफ्ते में एक दिन पानी मिलता है और सात दिन इसके लिए तरसना पड़ता है। राजस्थान का जल संसाधन विभाग अनुबंध तोड़ने में माहिर हो गया है। इसी प्रकार बकाया राशि को लेकर भी खूब बहस हुई। राजस्थान का कहना है कि मध्यप्रदेश से उसे 101 करोड़ की बकाया राशि लेनी है पर मध्यप्रदेश के अफसर इस पर दूसरी बात कहते हैं। वह कहते हैं कि वर्ष 2006 के बाद वित्त समिति की बैठक ही नहीं हुई, तो फिर किस आधार पर बकाया राशि तय की जा रही है। इन सारे मुद्दों को लेकर विवाद गहरा गया है। मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव जुलानिया ने राजस्थान के सीएस से उनके अधिकारियों द्वारा किये गये दुर्व्यवहार की शिकायत कर दी है, तो राजस्थान के अधिकारियों ने मध्यप्रदेश के सीएस को जुलानिया के व्यवहार की कहानी सुना दी है। विवाद बेहद गहरा गया है। अब आगे क्या होगा यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन पानी को लेकर टकराव लगातार बढ़ना ही है।
मध्यप्रदेश में पानी के बंटवारे को लेकर गुजरात से भी विवाद बना हुआ है। सरदार सरोबर बांध मध्यप्रदेश में है, पर उसका लाभ गुजरात उठा रहा है। नर्मदा नदी का पानी हमारा है, लेकिन लाभ गुजरात ले रहा है। इस पर भी कई बार विवाद हो चुका है। अब राजस्थान में विवाद तूल पकड़ रहा है। आखिरकार जब पानी वितरण की प्रक्रिया शुरू होती है, तो एक अनुबंध होता है। उस अनुबंध को राज्य क्यों तोड़ते हैं। इस पर अमल करने की बेहद जरूरत है। अगर यही हाल रहा, तो फिर मध्यप्रदेश को अपने तेवर और तीखे करने होंगे।
''मध्यप्रदेश की जय हो''
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