क्या शिक्षक भी इतना क्रूर हो सकता है कि वह एक बाल्टी की खातिर अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे को इतना मारे कि वह जान ही हाथ से गवा बैठे। यह हादसा मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिला बेतूल में हुआ है। जहां पर बैतूल के निकट पाथाखेड़ा प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाला सात वर्षीय छात्र असलम को 16 नवंबर, 2012 को स्कूल के दो शिक्षक बिरजू सोनरिया और विजयराम भगत ने इसलिए इतना मारा कि वह बेहोश होकर गिर पड़ा। कारण था बाल्टी का टूटना। शिक्षकों ने उसकी रीड की हड्डी तोड़ दी। उसको उपचार के लिए पहले बैतूल, नागपुर और भोपाल लाने के बाद 4 दिसंबर को उसकी हमीदिया अस्पताल में मौत हो गई। इस मामूली बात पर पिटाई का मामला निश्चित रूप से गंभीर है। अभी तक पुलिस ने एक शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया है और गैर इरादतन हत्या का कैश भी दर्ज कर लिया है। दुखद पहलू यह है कि घटना होने के बाद भी न तो समय पर बच्चे को इलाज मिला और न ही किसी प्रकार की सहायता। बल्कि शिक्षक ने भी बच्चे को माता-पिता को अंधरे में रखा। अब स्कूल शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस कह रही है कि वह कड़ी कार्यवाही करेगी, लेकिन सात वर्षीय असलम 18 दिनों तक अस्पताल में मौत से संघर्ष करता रहा, इसके बाद भी स्कूल शिक्षा विभाग की नींद नहीं खुली। उसके मस्तिष्क के पास वाली रीड की हड्डी में फैक्चर हुआ था जिसके कारण बच्चे को असहनीय दर्द होता था। बच्चे की हालत देखकर दोनों शिक्षक पॉर्ढर अस्पताल से गायब हो गये। मध्यप्रदेश में शिक्षकों द्वारा बच्चों को मारपीट करने की घटनाएं कई बार सामने आ रही हैं। इसके बाद भी सरकार ने किसी कड़ी कार्यवाही का प्लान नहीं बनाया। प्राइवेट स्कूलों में अगर बच्चों के साथ ऐसी कोई घटनाएं होती है, तो शहरों में बड़ा हंगामा होता है, लेकिन आदिवासी जिले में हुई घटना के बाद न तो सरकार की नींद खुली और न ही कोई सामाजिक संगठन ने हाय-तौबा मचाई और अंतत: बच्चे की मौत हो गई। अब हर तरफ से शोरगुल हो रहा है पर क्या हम अब भी इन घटनाओं के पहलूओ पर गंभीरता से विचार करेंगे या फिर जांच रिपोर्ट में सारे मामले दबकर रह जायेंगे।
मध्यप्रदेश की जय हो
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