मध्यप्रदेश में बदहाल अवस्था में पहुंच गई राशन दुकानों की शक्ल बदलने के लिए राज्य की भाजपा सरकार वर्ष 2009से खासी मशक्कत कर रही है,लेकिन तब भी राशन दुकानों की स्थिति जस की तस है। यहां तक कि खाद्य विभाग ने दुकानों को जनरल स्टोर का रूप देने की योजना भी बनाई और बडी कंपनिया गोदरेज एवं बिटानिया से अनुबंध किया,लेकिन तब भी प्रदेश की बीस हजारों दुकानों में से महज 200राशन दुकानों ने ही इन कंपनियों के प्रोडेक्ट अपने यहां रखे,लेकिन न तो उपभोक्ताओं ने कोई रूचि दिखाई और न ही राशन दुकानदारों ने इस व्यवसाय को आगे बढाने में बढ चढ करके हिस्सा लिया। आलम यह रहा कि तीन साल में ही योजना दम तोड गई। योजना फलाप होने के पीछे का मुख्य कारण यह है कि लोगों में आज भी राशन दुकानों के प्रति आम धारणा है कि इन दुकानों पर सिर्फ शक्कर,चावल और मिटटी का तेल मिलता है। अभी भी उपभोक्ता अगर अन्य कोई वस्तु लेने जाता है,तो उसका रूझान किसी किराने की दुकान पर अधिक होता है।इसके अलावा एक बडा कारण यह है कि राशन दुकाने हर समय खुली नहीं मिलती हैं,जिससे उपभोक्ता को किराने की दुकान की ओर रूख करना ही पडता है। इसी के साथ ही सीलबंद वस्तुएं मंहगी होती हैं और उपभोक्ता थोडी भी मंहगी वस्तुएं खरीदने में हिच-किचाते हैं। यूं तो प्रदेश में राशन दुकानों को लेकर खासा विवाद पिछले एक दशक से बना हुआ है। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर बनी जस्टिस डी0पी0 बाधवा कमेटी ने तो अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि मध्यप्रदेश में पीडीएस व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। पीडीएस राजनेताओं और अफसरों के हाथों का खिलौना बन गई है। दलालों के हाथों में दुकानों के पहुंच जाने से आम आदमी को आज भी सस्ता राशन नहीं मिल पा रहा है। खाद सुरक्षा पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त आयुक्त के राज्य सलाहकार सचिन जैन भी मानते हैं कि प्रदेश में राशन की दुकानें दलालों के हाथों में पहुंच गई है,जिसका गरीब आदमी को लाभ नहीं मिल पा रहा है अगर बहु राष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद इन दुकानों से बिकने लगे तो फिर राशन दुकान समाज के गरीब और वंचित तबको को लिए सहारा नहीं रहेगी,बल्कि कंपनियों के उत्पाद बेचने का मार्केट बन जायेगा। अगर बाकई में सरकार उपभोक्ताओं को सस्ती वस्तुएं दिलाना चाहता है,तो राशन दुकानों से कापी किताब, स्टेशनरी तथा कपडा बेचा जाये। 80 के दशक तक यह सिलसिला चलता रहा है,लेकिन बाद में सरकार ने बंद कर दिया। कुल मिलाकर यह सच है कि मप्र की सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरी तरह से फलाप साबित हुई है।इस व्यवस्था को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास सरकार कर रही है,लेकिन तब भी उसमें कामयाबी मिल नहीं पा रही है।
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