मध्यप्रदेश में न तो शैक्षणिक वातावरण बन पा रहा है और न ही बालक-बालिकाओं को सरकारी स्कूलों में वैज्ञानिक ढंग पढाई कराई जा रही है,जिसके फलस्वरूप राज्य की शिक्षा व्यवस्था लगातार पिछड रही है और नई पीढी प्रतिस्पर्धा से बाहर हो रही है,जिसमें हमारी सीमाओं से जुडे राज्यों के बच्चे लगातार उंचाईयां छू रहे हैं। प्रायवेट सेक्टर के स्कूलों में पढाई बेहतर होने से अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को खासी फीस देने के बावजूद भी प्रायवेट स्कूलों में भेज रहे हैं,लेकिन जिनके पास विकल्प नहीं है वे मजबूरन सरकारी स्कूलों में बच्चों को दाखिला दिखा रहे हैं,कोई पांच वर्षों में से सर्वशिक्षा अभियान के तहत काफी पैसा राज्य में आया है जिसके चलते सरकारी स्कूलों का शैक्षणिक वातावरण सुधारने के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बालिकाओं को साईकिल देकर उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करने का प्रयास तो किया है और अब दो ड्रेस भी दी जा रही है,लेकिन यही सरकार चूक गई,क्योंकि दो ड्रेस के लिए 400रूपये अभिभावको को दिये जा है,जबकि 400रूपये में एक भी ड्रेस बामुश्किल मिल पाती है। जोडी यूनिफार्म बाजार में एक हजार में मिल रही है। राज्य सरकार ने स्कूलों को ड्रेस वितरण के लिए पैसा आवंटित कर दिया है,लेकिन सरकारी स्कूलों में चल रहे पुराने ढर्रे के कारण अभी तक बच्चों को ड्रेस का पैसा नहीं मिल पाया है,इसकी एक बडी वजह है,बैंक में एकाउंट का न खुलना है,क्योंकि अभिभावक आईडी प्रूफ नहीं दे पा रहे है। शैक्षणिक सत्र आधे से अधिक खत्म होने जा रहा है,लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के 1200 सरकारी और मिडिल स्कूल में आज भी आधे स्कूलों में बच्चों को ड्रेस नहीं मिल पाई है। इससे जाहिर है कि स्कूल शिक्षा विभाग धीमी गति से काम कर रहा है उसे न तो बच्चों के परिणामों से मतलब है और न ही शैक्षणिक वातावरण सुधारने में कोई दिलचस्पी है यही वजह है कि आज भी बच्चों को ड्रेस नहीं मिल पा रही है। राज्य शिक्षा आयुक्त मनोज झालानी दावा कर रहे हैं कि ड्रेस के पैसे पहुंचा दिये गये हैं,लेकिन उन्हें राजधानी में बच्चों को नहीं मिल पाई ड्रेस से कोई बास्ता नहीं है। इससे साफ जाहिर है कि मध्यप्रदेश की शैक्षणिक स्थिति कोई सुधारने की पहल भी नहीं कर रहा है तो फिर प्रदेश कहा से प्रगति के नये सौपान छू पायेगा।
साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से कम :
वर्ष 2001के अनुसार मध्यप्रदेश की कुल साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम ही है। प्रदेश की साक्षरता दर 41.16है,जबकि राष्ट्रीय औसत47.1है। मध्यप्रदेश में प्राथमिक शालायें 105592 है, जबकि माध्यमिक शालायें 43752 हैं। स्कूलों में स्टाफ का भारी अकाल है। सरकारी स्कूलो में सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के बावजूद भी पीने के पानी और बाथरूम की व्यवस्थायें नहीं हो पाई हैं।
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