शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

मप्र : नेशनल हाइवे बने राजनीति के अखाडे

मप्र में फैला सडकों का जाल और उन पर सियासत राजनेताओं का शगल बन गया है। हर चुनाव में सडकें मुददा बनती है,खूब हल्‍ला मचता है फिर भी सडके जस की तस हो जाती हैं। इस बात पर कोई सोचने को तैयार नहीं है कि आखिरकार सडकों की गुणवत्‍ता उच्‍चकोटि की क्‍यों नहीं है। प्रदेश के नेशनल हाइवे तो पिछले एक दशक से राजनीति की सियासत पर भेट चढ रहे हैं। इन हाइवे की हालत यह है कि वाहनों का चलना मुश्किल है ही,लेकिन दो पहिया वाहन भी आसानी से चल नहीं पा रहे हैं, क्‍योंकि कदम-कदम पर गहरे गडडे हो गये हैं। इन सडकों पर 20 महीनों से कोई मरम्‍मत नहीं हुई, बारिश के बाद तो इस कदर सडके बदतर हो गई है कि लोगों ने उन मार्गों पर जाना बंद सा कर दिया है अथवा मजबूरी में जाते हैं,तो जाम में फंसना सामान्‍य बात हो गई है। प्रदेश की भाजपा सरकार ने 09 अगस्‍त11 को कैबिनेट की बैठक कर दस नेशनल हाइवे मार्गों को प्रदेश को देने के लिए प्रस्‍ताव पारित कर केंद्र को भेज दिया है, केंद्र सरकार भी इन सडकों को राज्‍य को वापस करने के लिए तैयार हो गई है और पहली किस्‍त में 04राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्रदेश को मिलने वाले हैं। सडक विशेषज्ञों का कहना है कि नेशनल हाइवे जितनी देरी से मिलेगे उतना ही समय उनके निर्माण में लगेगा। यहां तक कहा जा रहा है कि 2013 तक सडकों का निर्माण होना संभव नहीं है और तब तक विधानसभा चुनाव आ जायेंगे और एक बार फिर से चुनाव में सडक ही मुददा बनेगी। भले ही आज भी प्रदेश की जनता 2393 किलोमीटर लंबे खराब मार्गों से गुजरने को विवश है,लेकिन सरकार अपने ढंग से सडकों पर राजनीति कर रही है और केंद्र सरकार भी चुनाव का इंतजार कर रही है। अब जनता को घटियां सडकों पर चलने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं है। कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी सियासत करने में पीछे नहीं है। जय हो मध्‍यप्रदेश की ।
                                                              

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