मंगलवार, 29 नवंबर 2011

चल ग्‍ाया है सिक्‍का अजय सिंह का मध्‍यप्रदेश में



         मध्‍यप्रदेश  कांग्रेस में नेत़त्‍व की कमी बार-बार अखरती रही है,जो नेता मध्‍यप्रदेश की राजनीति में शिखर पर थे,उन्‍होंने अपना आशियाना राष्‍ट्रीय राजनीति में बना लिया है और वहां वे जमकर राजनीति कर रहे हैं। इसके चलते कांग्रेस की राजनीति में बडा खालीपन महसूस किया जा रहा है। न कांग्रेस सडक पर नजर आ रही थी और न ही विधानसभा में आक्रमक तेवर दिखते थे,इसके चलते यह कहा जाने लगा था कि कांग्रेस भविष्‍य में अब चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं होगी। इस धुंधली तस्‍वीर को बदलने के लिए अब मोर्चा संभाला है नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने। सिंह ने आठ साल की भाजपा सरकार के खिलाफ पहली बार 28 नवंबर,2011 को लाये अविश्‍वास प्रस्‍ताव में सरकार के खिलाफ जमकर तीखा प्रहार किया,न सिर्फ अपनी छबि के विपरीत मंत्रियों के कारनामों से सदन को अवगत कराया,बल्कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ड्रीम प्रोजेक्‍ट स्‍वर्णिम राज्‍य की भी खिल्लिया उडाई। यहां तक कि उन्‍होंने कहा कि प्रदेश तो स्‍वर्णिम नहीं बन रहा है,लेकिन मंत्री स्‍वर्णिम जरूर हो गये हैं। मुख्‍यमंत्री के नाते-रिश्‍तेदारों पर भी उन्‍होंने प्रहार करने का कोई मौका नहीं छोडा। अपने ढाई घंटे के अभिभाषण में अजय सिंह ने सरकार की खामियों को सिलसिलेवार दस्‍तावेजों के साथ गिनाया। देश के जाने माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने 11सितंबर,2011को अपने आलेख में लिखा है कि ''जहां सुप्रशासन विफल हो जाता है,वहीं भ्रष्‍टाचार की विषबेल पनपती है।''यह सूत्र वाक्‍य मप्र की सरकार पर पूरी तरह से फिट बैठती है। भाजपा सरकार में प्रशासन बुरी तरह से पटरी से उतर चुका है। सरकार के कर्ता-धर्ता भ्रष्‍टाचार में डूबे हुए हैं,ऐसी स्थिति में विपक्ष के नेता अजय सिंह ने जो मारक हमला बोला है वह अपने आप में मील का पत्‍थर साबित होगा। सिंह ने आंकडों की जुगाली की बजाय दस्‍तावेजों के साथ भ्रष्‍टाचार में घिरे मंत्रियों के कारनामों को सदन के सामने पेश किया। यह भी देखने में आया है कि अजय सिंह अपने वरिष्‍ठ नेताओं की छाया से दूर होते नजर आये और अपना खुद का व्‍यक्तित्‍व सबारने में लगे रहे। निश्चित रूप से अजय सिंह की यह यात्रा की शुरूआत है अभी तो कई पडावों से गुजरना है,जहां वे अपना राजनीतिक चमत्‍कार और कुशलता का प्रदर्शन करेंगे।
                                                   '' जय हो मध्‍यप्रदेश की ''

सोमवार, 28 नवंबर 2011

मप्र में तैयार हुई आदिवासियों की डीएनए कुंडली


                आदिवासियों को लेकर मध्‍यप्रदेश में अलग-अलग प्रकार के भ्रम बने हुए हैं। आदिवासियों को लगता है कि उनकी घोर उपेक्षा हो रही है,जबकि सरकार के विकास कार्यो के एजेंडे में वे आज भी अव्‍वल हैं। केंद्र और राज्‍य सरकार की बजट राशि का एक बडा हिस्‍सा उनके विकास कार्यों पर व्‍यय हो रहा है। इसके बाद भी आदिवा‍सी विकास की मुख्‍यधारा से जुड नहीं पा रहे हैं। अरबो रूपया अब तक खर्च हो चुका है,लेकिन तब भी आदिवासी आज भी लगोटी लगाकर अपनी आजीविका चलाने को विवश है। यह सच है कि आदिवासी मार्ग तक जाने की सडकें बन गई, स्‍कूलों में बच्‍चे पडने लगे, रोजगार के साधन मिलने लगे,लेकिन विकास के जो सपने बुने गये थे,उनमें अभी भी कामयाबी नहीं मिली है। मप्र में पहली बार राज्‍य के आदिवासी जनजाति समूह का डाटाबेश तैयार किया गया है। इसकी मूल वजह आदिवासियों की मूल निवासी प्रमाण पत्र व्‍यवस्थित करना है। सागर स्थित एफएसएल स्थित डीएनए लैब इसका शीघ्र प्रकाशन करने जा रहा है। वैज्ञानिकों की टीम का कहना है कि यह शोध प्रदेश में आदिवासी समुदाय की बसाहट से लेकर वर्तमान में उनके शारीरिक,मानसिक,आनुवांशिक बदलाव का अध्‍ययन करने में महत्‍वपूर्ण कडी साबित होगा। इस शोध में आदिवासियों का मध्‍यप्रदेश का मूल निवासी माना गया है। भारत सरकार की ओर से कराये गये,सामाजिक एवं मानवशास्‍त्री अध्‍ययनों में सिद्व हुआ है कि मध्‍यप्रदेश ईसा काल के पहले से आदिवासियों की आश्रय स्‍थली रहा है। आदिवासियों का आधुनिक सभ्‍यता से दूरी बनाये रखने एवं उनमें अंतर जातीय-जनजा‍तीय विवाह की परंपरा नहीं होने के कारण उनके आनुवांशिकीय गुणों में विशेष परिवर्तन नहीं आया। इन्‍हीं कारणों से डीएनए वैज्ञानिकों ने यह डाटा तैयार किया है। इस डाटावेस के आधार पर आदिवासियों का विकास करने में अहम भूमिका रहेगी। 
नेत़त्‍व उभरता और फिर गायब होता है -
             मध्‍यप्रदेश की राजनीति में आदिवासी नेत़त्‍व तेजी से उभरता है और फिर अचानक गायब हो जाता है। बार-बार राजनैतिक दल मौका देते हैं,लेकिन जाने क्‍यों मुख्‍यधारा की राजनीति में आदिवासी आ ही नहीं पाते हैं। आदिवासी नेता आरोप लगाते हैं कि उन्‍हें मुख्‍यधारा से गायब किया जा रहा है। वर्तमान में कांग्रेस ने आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को पार्टी की कमान सौंप रही है,जबकि भाजपा में पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्‍गन सिंह कुलस्‍ते एवं शिवराज सरकार में मंत्री विजयशाह,रंजना बघेल के हाथों में बागडोर है तब भी अभी तक नेत़त्‍व जैसा उभरकर आना चाहिए था,लेकिन वह आ नहीं पा रहा है।
आदिवासी बनाम मध्‍यप्रदेश -
             जनसंख्‍या के आधार पर देश में सबसे अधिक जनजातीय आबादी मध्‍यप्रदेश में ही निवास करती है। आज भी मध्‍यप्रदेश बारहवें क्रम पर है। राज्‍य में अनुसूचित जनजाति की संख्‍या का प्रदेश की कुल जनसंख्‍या का 20.3फीसदी है। वर्ष 1991 से 2001 की जनगणना में भी आदिवासी आबादी की व़द्वि दर 24.3आकी गई है। प्रदेश में कुल 46अनुसूचित जनजातियां निवास करती हैं। राज्‍य में सबसे ज्‍यादा आदिवासी ग्रामीणों में 93.6फीसदी रहते हैं जिसमें सर्वाधिक झाबुआ जिले में 86.9है। आदिवासियों के बीच राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और ईसाई मिशनरी भी लगातार काम कर रहे हैं और इनमें टकराव भी समय समय पर होता रहता है।

रविवार, 27 नवंबर 2011

घुंघरू की गूंज पर चलती जिंदगी, बेडनियां शहरों में भी पहुंची

              
            घुंघरू की गूंज और उस पर थिरकते पैर उनकी जिंदगी के अंग बन गये हैं। शाम ढलते ही घुंघरू बजने लगते हैं ढोल की थाप पर वह अपनी कला-कुशलता दिखाकर लोगों का मन बहलाती हैं यह सिलसिला मध्‍यप्रदेश में वर्षो से चला आ रहा है और थमने का नाम नहीं ले रहा है बीते दो दशक में कई सरकारों ने लुभावनी योजनाएं बनाई,लेकिन फिर भी बेडनियां जस की तस जीवन-बसर करने के लिए विवश हैं। पराई खुशियों पर वह थिरकती है और अब तो महानगरों और शहरों में बे‍डनियों ने अपना कारोबार फैला लिया है।
            सामाजिक विषमताओं का अंबार मध्‍यप्रदेश में है वही  राज्‍य सरकार बेटी बचाओ अभियान चला रही है,तो दूसरी तरफ कई घरो की बेटियां नाच-गाना कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही है। राज्‍य के कई हिस्‍सों में परंपरागत पीढियों से लोक ऩत्‍य 'राई 'तथा शादी विवाह एवं मेलो में बेडनियां नाच गाना करके अपना जीवन गुजर बसर कर रही हैं। अब धीरे-धीरे महानगरों में रात्रिकालीन होने वाले क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भी बेडनियां चेयर लीडर में भी प्रवेश कर गई है, जो कि अत्‍याधुनिक पोशकों में नाचती कूदती नजर आ रही है,इसके अलावा पर्दे के पीछे देह व्‍यापार भी पनप रहा है। मध्‍यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बडी संख्‍या में बेडियां जाति के लोग रहते है,इस समाज की महिलाएं बेडनियां कहलाती हैं,जो कि सदियों से सामाजिक उपेक्षा, आर्थिक विपन्‍नता और देह शोषण को अपनी नियति मानती रही हैं। बेडनियों का घर परिवार इनके नाचने-गाने एवं वैश्‍याव़त्ति पर ही चलता है। बुंदेलखंड में वर्षों से जागीरदारों-जमीदारों के घरों में कोई भी उत्‍सव,त्‍यौहार बे‍डनियों के ठुमकों के बिना अंधूरे माने जाते रहे हैं,लोक ऩत्‍य राई पर जब वे झूमती हैं,तो लोग आंख झपकना तक भूल जाते हैं। इसके अलावा विदिशा,रायसेन, राजगढ,जिले में भी बेडनियों के गांव हैं। अशोकनगर जिले के करीला गांव में तो रंग-पंचमी के दिन रात भर घुंघरू की झंकार और ढोल की थाप पर नाचती हैं। अब धीरे-धीरे बे‍डनियां महानगरों में राई ऩत्‍य के साथ-साथ अन्‍य धंधों में भी शामिल होने लगी हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग ने जवाली नाम से एक योजना चलाई हुई है,लेकिन इस योजना से किसी भी महिला का उद्वार नहीं हुआ है,बल्कि यह एक व्‍यापार में बदल रहा है,जो कि शहरों में कॉलगर्ल के नाम से जाना जाता है पर बेडनियां भी गांव-गांव में आज भी अपने अस्तित्‍व के लिए जूझ भी रही हैं। दुखद पहलू यह है कि बुंदेलखंड के राजनेताओं ने कभी भी इस बीमारी को जड से खत्‍म करने की पहल नहीं की और न ही इस कलंक को समाप्‍त कर बेडनियों को मुख्‍य धारा में जोडा गया वे आज भी अपनी गति से घुंघरूओं पर नाच रही हैं।

शनिवार, 26 नवंबर 2011

मध्‍यप्रदेश सरकार दस लाख लोगों की रोजी-रोजी छिनने नहीं देगी


                देशभर में खुदरा क्षेत्र (रिटेल सेक्‍टर) में विदेशी निवेश के भारत में प्रवेश को लेकर हर तरफ उठ रहे विरोधी स्‍वर के बीच मध्‍यप्रदेश न तो साफतौर पर एलान कर दिया है कि बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को राज्‍य में घुसने नहीं दिया जायेगा। राज्‍य की  भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने ताल-ठोककर एलान किया है कि वे दस लाख लोगों की रोजी-रोटी छिनने नहीं देंगे और किसी भी हाल में बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को मध्‍यप्रदेश में प्रवेश  करने नहीं दिया जायेगा। राज्‍य में पहली बार बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों के प्रवेश को लेकर विरोध नहीं हो रहा है इसके पहले भी वर्ष 2007में पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती खुलकर विरोध कर चुकी हैं। केंद्र सरकार ने 24नवंबर 2011को रिटेल सेक्‍टर में विदेश निवेश पर मुहर लगा दी है। पूरे देश में इसका विरोध हो रहा है,क्‍योंकि करोड लोग बेरोजगार हो जायेगे। मप्र में दस लाख लोगों की रोजी-रोटी छिनन का आकलन किया गया है। इससे करीब दो लाख खुदरा व्‍यापारी प्रभावित होंगे और दो सौ करोड का कारोबार भी प्रभावित होगा। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफतौर पर कह दिया है कि बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को प्रदेश में खुदरा व्‍यापार के लिए घुसने नहीं दिया जायेगा। राज्‍य सरकार इस बात के पूरे प्रयास कर रही है कि छोटे व्‍यापारी और किसानों के हितों पर कोई विपरीत प्रभाव न पडे। राज्‍य सरकार के इस निर्णय से उन छोटे किसान और व्‍यापारियों को राहत मिलेगी जो छोटे-छोटे उद्योग-धंधो चलकर अपनी अजीविका चला रहे हैं। श्री चौहान ने कहा कि वे प्रधानमंत्री से मिलकर रिटेल सेक्‍टर का विरोध दर्ज करेगे। वही दूसरी ओर एक बार फिर से उमाभारती ने एलान किया है कि यदि बाल मार्ट खुला तो अपने हाथ से आग लगा दूंगी तथा इसके लिए मैं जेल जाने को भी तैयार हूं। इससे पहले मध्‍यप्रदेश में सुश्री भारती ने भोपाल में रिलायन्‍स ग्रुप के रिटेल शॉप का विरोध किया था तथा दुकानों में ताले जड दिये थे और उनमें तोड-फोड की गई थी। मप्र की सरजमी से उन लोगों के बारे में पहली बार सरकार साथ खडी हुई है, जो कि अपने जीविको उपार्जन में दिन-रात लगे रहते हैं उन्‍हें न तो राजनीति से मतलब है और न ही सरकार से, लेकिन अपने व्‍यापार में डूबे रहते हैं, इनके पक्ष में सरकार खडी हो गई है यह एक अच्‍छा शुभ संकेत है। कुलमिलाकर मध्‍यप्रदेश में विदेशी बाल मार्ट का विरोध अब तेज होने के आसार हो गये है।

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

मप्र में परीक्षा में फेल और प्रेम रोग होने पर सबसे ज्‍यादा विद्यार्थी लगा रहे हैं मौत को गले

        जहां एक ओर नौजवान पीढी नये कीर्तिमान गढ रही है और राज्‍य का नाम रोशन कर रही है,तो वही इस पीढी में ही एक ऐसा वर्ग भी है,जो निराशा और हताशा में आत्‍महत्‍या का मार्ग चुनकर मौत को गले लगा रहा है। पिछले दो सालों में परीक्षा में फेल होने और प्रेम प्रसंग में असफल होने पर 472 विद्यार्थियों ने अपनी जीवनलीला समाप्‍त कर ली। परिवार और चाहने वालों को रोता-विलखता छोड गये। लगातार इस बात पर अध्‍ययन नहीं हो रहा है कि यह मौत का ग्राफ क्‍यों बढ रहा है। मध्‍यप्रदेश की सरकार ने इस गंभीर विषय को अनदेखा किया हुआ है,न तो स्‍कूल शिक्षा विभाग और न ही ग्रह विभाग ऐसा कोई आकलन कर रहा है ताकि आने वाली पीढी बार-बार मौत को गले न लगाये। 21नवंबर को विधानसभा में कांग्रेस विधायक तुलसी सिलावट के एक लिखित जवाब में ग्रह विभाग ने बताया  कि वर्ष 2009 से अक्‍टूबर 2010 तक 472 विद्यार्थियों ने मौत को गले लगाया, जिसमें मुख्‍य कारण परीक्षाओं में फेल होना,प्रेम प्रसंग,डिप्रेशन और मानसिक रूप से परेशान होना शामिल है। प्रेम रोग में असफल होने पर 38विद्यार्थियों ने आत्‍महत्‍या की है। सबसे दिलचस्‍प मामला तो यह है कि आत्‍महत्‍या करने के मामले महानगरों में सर्वाधिक है, जिनमें इंदौर, भोपाल, रीवा जैसे शहरों में आत्‍महत्‍या के मामले ज्‍यादा सामने आ रहे हैं,जबकि जो छोटे जिले हैं उनमें किसी भी छात्र छात्रा ने आत्‍महत्‍या नहीं की है,इनमें श्‍योपुर,सिवनी, दमोह, उमरिया आदि शामिल हैं। निश्चित रूप से आत्‍महत्‍या एक गंभीर विषय तो है ही,क्‍योंकि कम उम्र में अगर कोई बच्‍चा आत्‍महत्‍या जैसा कदम उठा रहा है तो फिर इस विषय पर चिंतन मंथन होना ही चाहिए। हाल ही भोपाल में दसवीं कक्षा में पढने वाले दो छात्र छात्रा ने इसलिए आत्‍महत्‍या कर ली थी कि उनके मां-बाप उन्‍हें मिलने से रोकते थे। यह घातक संकेत हैं। समाजशास्‍त्री और मनोवै‍ज्ञानिकों को व्‍यापक स्‍तर पर इन विषयों पर अध्‍ययन करना चाहिए।

रविवार, 20 नवंबर 2011

मध्‍यप्रदेश की खूबसूरती में झलकता इतिहास

        विविध आयमों से परिपूर्ण मध्‍यप्रदेश की छटा निराली है। यहां की प्राक़तिक सौन्‍दर्यता लुभावनी और मनमोहक है। इतिहास की झलक कदम-कदम पर नजर आती है। इतिहास मध्‍यप्रदेश के लिए गौरव है। इस गौरवशाली परंपरा को आज भी 56साल बाद  मध्‍यप्रदेश कायम किये हुए है। आम आदमी की विकास में भागीदारी लगातार बढ रही है। रोजगार के नये-नये द्वार खुल रहे हैं,उद्योग दस्‍तक दे रहे हैं,मानव विकास तेजी से हो रहा है,संसाधनों का भरपूर उपयोग हो रहा है प्रदेश आज देशभर में अपनी एक अलग छबि बनाने में कामयाब हुआ है। यह सिलसिला सतत जारी है और जारी रहेगा। आईये मध्‍यप्रदेश की खूबसूरती को इतिहास के आयने में चित्रों के माध्‍यम से देखे और समझे......


मेरा मध्‍यप्रदेश

मध्‍यप्रदेश का परिद़श्‍य

खजुराहो कलाक़तियां

खजुराहो भारतनाटय
बेगा लोकऩत्‍य

महेश्‍वर का प्राक़तिक सौंदर्य

ओरछा का मनमोहन परिद़श्‍य

सांची के स्‍तूप की सुन्‍दरता

ग्‍वालियर का अद्वितीय किला
 
ग्‍वालियर के अद्वितीय किले का दूसरा परिद़श्‍य



मांडू का अदभुत किला

नर्मदा नदी का मनमोहन एवं लुभावना बहाव


प्राक़तिक सौन्‍दर्य

मध्‍यप्रदेश की प्राक़तिकता में चार चांद लगाते शेर, निहारते हुए
  
पेड पर चढने की कोशिश करता हुआ 'शेर'
  
जंगलों में निहारती हुई हिरण

सोना उगाता किसान

विचरण करते हुए पशु एवं उनकी सौन्‍दर्यता

विकास कार्यों का परिद़श्‍य

''  जय हो मध्‍यप्रदेश की ''













शक्‍ल नहीं बदल पाई राशन दुकानों की


       मध्‍यप्रदेश में बदहाल अवस्‍था में पहुंच गई राशन दुकानों की शक्‍ल बदलने के लिए राज्‍य की भाजपा सरकार वर्ष 2009से खासी मशक्‍कत कर रही है,लेकिन तब भी राशन दुकानों की स्थिति जस की तस है। यहां तक कि खाद्य विभाग ने दुकानों को जनरल स्‍टोर का रूप देने की योजना भी बनाई और बडी कं‍पनिया गोदरेज एवं बिटानिया से अनुबंध किया,लेकिन तब भी प्रदेश की बीस हजारों दुकानों में से महज 200राशन दुकानों ने ही इन कंपनियों के प्रोडेक्‍ट अपने यहां रखे,लेकिन न तो उपभोक्‍ताओं ने कोई रूचि दिखाई और न ही राशन दुकानदारों ने इस व्‍यवसाय को आगे बढाने में बढ चढ करके हिस्‍सा लिया। आलम यह रहा कि तीन साल में ही योजना दम तोड गई। योजना फलाप होने के पीछे का मुख्‍य कारण यह है कि लोगों में आज भी राशन दुकानों के प्रति आम धारणा है कि इन दुकानों पर सिर्फ शक्‍कर,चावल और मिटटी का तेल मिलता है। अभी भी उपभोक्‍ता अगर अन्‍य कोई वस्‍तु लेने जाता है,तो उसका रूझान किसी किराने की दुकान पर अधिक होता है।इसके अलावा एक बडा कारण यह है कि राशन दुकाने हर समय खुली नहीं मिलती हैं,जिससे उपभोक्‍ता को किराने की दुकान की ओर रूख करना ही पडता है। इसी के साथ ही सीलबंद वस्‍तुएं मंहगी होती हैं और उपभोक्‍ता थोडी भी मंहगी वस्‍तुएं खरीदने में हिच-किचाते हैं। यूं तो प्रदेश में राशन दुकानों को लेकर खासा विवाद पिछले एक दशक से बना हुआ है। सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर बनी जस्टिस डी0पी0 बाधवा कमेटी ने तो अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि मध्‍यप्रदेश में पीडीएस व्‍यवस्‍था पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। पीडीएस राजनेताओं और अफसरों के हाथों का खिलौना बन गई है। दलालों के हाथों में दुकानों के पहुंच जाने से आम आदमी को आज भी सस्‍ता राशन नहीं मिल पा रहा है। खाद सुरक्षा पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा नियुक्‍त आयुक्‍त के राज्‍य सलाहकार सचिन जैन भी मानते हैं कि प्रदेश में राशन की दुकानें दलालों के हाथों में पहुंच गई है,जिसका गरीब आदमी को लाभ नहीं मिल पा रहा है अगर बहु राष्‍ट्रीय कंपनियों के उत्‍पाद इन दुकानों से बिकने लगे तो फिर राशन दुकान समाज के गरीब और वंचित तबको को लिए सहारा नहीं रहेगी,बल्कि कंपनियों के उत्‍पाद बेचने का मार्केट बन जायेगा। अगर बाकई में सरकार उपभोक्‍ताओं को सस्‍ती वस्‍तुएं दिलाना चाहता है,तो राशन दुकानों से कापी किताब, स्‍टेशनरी तथा कपडा बेचा जाये। 80 के दशक तक यह सिलसिला चलता रहा है,लेकिन बाद में सरकार ने बंद कर दिया। कुल मिलाकर यह सच है कि मप्र की सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरी तरह से फलाप साबित हुई है।इस व्‍यवस्‍था को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास सरकार कर रही है,लेकिन तब भी उसमें कामयाबी मिल नहीं पा रही है।

सोमवार, 14 नवंबर 2011

करिश्‍मा दिखा रही है नन्‍हीं प्रतिभाएं



          प्रतिभाएं कहीं थमती नहीं है, जहां उन्‍हें मौका मिलता है वह उंचे फलक पर अपना परचम फैला ही देती है। यह बात बच्‍चों के बारे में भी कही जा सकती है। छोट-छोटे बच्‍चे अपनी प्रतिभाओं का खुलकर प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्‍हें शाबासी भी मिल रही है।  पढाई,होमवर्क में भी पीछे नहीं है। बच्‍चों ने हर क्षेत्र में अपना करिश्‍मा दिखाया है। मप्र में बाल दिवस पर हर साल कार्यक्रम होते हैं, नेहरू जी को याद किया जाता है, मीडिया भी नेहरू जी के बचपन और बच्‍चों से प्रेम का खूब गुण-गान करता  रहा है,लेकिन अब मीडिया का भी नजारिया बदला है। नेहरू जी को स्‍मरण करने के साथ-साथ उन बच्‍चों की प्रतिभाओं का भी प्रदर्शन मीडिया में हो रहा है, जो कि कम उम्र में अपन जौहर दिखा रहे हैं। आज बच्‍चे लेखन, गीत-संगीत, खेल-कूद, ऩत्‍य, भाषण यानि हर क्षेत्र में जलवा बिखेर रहे हैं। मप्र की सरजमी पर कई प्रतिभाशाली बच्‍चे हैं, जो कि अपने तकदीर और तस्‍वीर स्‍वयं गढ रहे हैं। यह बच्‍चे जितना चिंतित अपने कैरियर को लेकर चिंतित है उतना ही पढाई और शौक को लेकर भी गंभीर हैं। यह बच्‍चे कम उम्र में ही आज रोल मॉडल बन रहे हैं, जो कि माता पिता के लिए तो गौरव है ही पर स्‍कूल भी उन पर नाज करता है। मप्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है प्रतिभाओं को विकसित करने और बढावा देने में भी हर तरफ से हाथ उठ रहे है,जिससे नन्‍हीं-नन्‍ही प्रतिभाएं आज प्रदेश की शान बनी हुई है,जो कि भविष्‍य में राज्‍य का नाम रोशन करेगी।  इन बच्‍चों में अपने गायन से समा बांधने वाली आक़ति मेहरा,तैराकी के हीरो हिमांशु धाकड,अपने ऩत्‍य से मन मोह लेने वाली प्रत्‍यक्षा भटयाचार्य पांच वर्षीय घुडसवार रित्विका शर्मा, नन्‍ही चित्रकार दिशा चतुर्वेदी, भजन गायिका दिव्‍यांशी दुबे, सुरीली आवाज के जादूगर अबीर वैष्‍णव, मोबाइल में करिश्‍मा करने वाले 8 वर्षीय धुर्व,गिनीज बुक आफ वाइल्‍ड में नाम दर्ज कराया 12वर्षीय पंकज मिथानी ने, 6वर्षीय उम्र में ही बन गये ढोलक के कलाकर बन गये वैभव मसराम, सात  वर्षीय अंश मालवीय जिन्‍हें दुनिया की तमाम जानकारियां मौखिक याद है, 12 वर्षीय मन दुबे ने ली लंदन में बैटिंग की विशेष ट्रेनिंग और 14वर्षीय आशो रोका बॉकसिंग में दिखा रहे है अपना करिश्‍मा।  यह संख्‍या चुनिंदा जरूर है,लेकिन ऐसी कई प्रतिभाएं राज्‍य के विभिन्‍न कौनों में बिखरी हुई है,जिन्‍हें हमें सबारना और सहेजना है। निश्चित रूप से मप्र में प्रतिभाओं की एक नई कडी तैयार हो रही है,जिसका हम सबको बेसबरी सेइंतजार है। जय हो मध्‍यप्रदेश की।
पर चु‍नौतियां भी हैं -
     यह स‍च है कि बाल प्रतिभाएं तेजी से सामने आ रही है, लेकिन आज भी मप्र में बाल श्रमिक है जो कि पढने की वजह सुबह से देर रात तक काम में लगे रहते हैं। बच्‍चों का शोषण होने के साथ-साथ उनके साथ शारीरिक और मानसिक अत्‍याचार हो रहा है। ऐसी घटनाएं लगातार सामने आ रही है, इन चुनौतियों पर भी हमें विचार करना चाहिए।



रविवार, 13 नवंबर 2011

कारवा बढता ही जा रहा है


ऩत्‍य की आराधना में लीन हेमा मालिनी

अनूंठी ऩत्‍य शैली का प्रदर्शन                 
              अपनी रोजाना की जददोजहद के बीच भी मध्‍यप्रदेश का कारवा लगातार बढता ही जा रहा है। कदम-कदम पर चुनौतियां है,लेकिन फिर भी नये सपनों को साकार करने का जज्‍बां बना हुआ है यही वजह है कि मध्‍यप्रदेश हर साल अपनी स्‍थापना दिवस  01 नवंबर को जोर-शोर से मनाकर  नये संकल्‍पों को साकार करने  के लिए प्रतिवद्व है। जश्‍न मानने का सिलसिला भाजपा सरकार आने के बाद से प्रदेश में शुरू हुआ। निश्चित रूप से जश्‍न को लेकर विपक्ष का विरोध भी अपनी भूमिका के कारण है,लेकिन राज्‍य की स्‍थापना का विरोध विपक्ष को करने का कोई अधिकार नहीं है,क्‍योंकि राज्‍य सबका है,तो सबको मिल जुलकर राज्‍य का जश्‍न जोर-शोर से मनाना ही चाहिए। इस बार जश्‍न को लेकर खूब राजनीति हुई। राज्‍यपाल तक शिकवा-शिकायतें हुई ,मीडिया में विपक्ष ने हल्‍ला मचाया पर भाजपा सरकार ने जश्‍न के कार्यक्रम में कोई परिवर्तन नहीं किया,बल्कि और जोर-शोर से कार्यक्रम का आगाज हुआ। 01नवंबर हर नागरिक के लिए महत्‍वपूर्ण दिन है,क्‍योंकि इसी दिन राज्‍य अस्तित्‍व में आया और धीरे-धीरे विकास की दौड में तेज गति से चल रहा है। कही-कही विकास में बाधायें भी आ रही है,फिर भी राजनीतिक दलों की जो इच्‍छा शक्ति होनी चाहिए उसमें कमी महसूस की जाती है,वहीं नौकरशाही भी अभी भी अपने कर्त्‍तव्‍यों के प्रति जिस प्राकर सजग होना चाहिए उसमें कही न कही कमी नजर आती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार से अरबो रूपये मिलने के बावजूद भी उस राशि का समय पर उपयोग नहीं हो पाता है। एक नहीं अनेक रिपोर्ट जब तब राज्‍य को लेकर सामने आती है,जिसमें राज्‍य के पिछडेपन की बातें उजागर होती है,इस दिशा में सरकार और उसका प्रतिनिधित्‍व करने वाले दलों को योजनाओं के बार-बार मंथन की आवश्‍यकता होनी चाहिए अक्‍सर योजनाएं तो लुभावनी बन जाती है,लेकिन उन्‍हें जमीन पर उतारने में बार-बार पसीना भी आता है। मध्‍यप्रदेश का स्‍थापना दिवस वर्षों से मनाया जा रहा है,लेकिन 2010से जो करवा तेजी से आगे बडा है वह अब थमने का नाम नहीं ले रहा है,क्‍योंकि 2011में पिछले साल की अपेक्षा ज्‍यादा उत्‍साह और उल्‍लास से जन्‍मदिन मनाया गया। इस जन्‍मदिन की खासियत यह रही कि जन्‍मदिन पर आयोजित सांस्‍क़तिक कार्यक्रमों की छटा ने आम आदमी की भागीदारी ने सरकार में नया उत्‍सव पैदा किया और संस्‍क़ति विभाग भी अपनी मुहिम से संतुष्‍ट रहा। इन आयोजनाओं को करने में संस्‍क़ति मंत्री लक्ष्‍मीकांत शर्मा की विशेष भूमिका रही जिन्‍होंने सांस्‍क़तिक कार्यक्रमों को नई उंचाईयां देकर प्रदेश का नाम रोशन किया है। यह स‍िलसिला लगातार चलता रहे
फिल्‍म अभिनेत्री हेमा मालिनी का स्‍वागत करते संस्‍क़ति मंत्री लक्ष्‍मीकांत शर्मा

वर्ष 2010 का जश्‍न मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और तत्‍कालीन राज्‍यपाल रामेश्‍वर ठाकुर और सुरेश पचौरी
                                                                ''जय हो मध्‍यप्रदेश की''

शनिवार, 12 नवंबर 2011

पहली बार भाजपा सरकार के खिलाफ आ रहा है अविश्‍वास प्रस्‍ताव ''मध्‍यप्रदेश' में'

         मध्‍यप्रदेश में भाजपा सरकार के सात साल के सफर में पहली बार विपक्ष अविश्‍वास प्रस्‍ताव ला रहा है। इससे पहले प्रयास हुए,लेकिन विपक्ष कामयाब नहीं हुआ। अब विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ने अपनी नियुक्ति के बाद पहली पत्रकार वार्ता में एलान किया था कि  भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव लायेंगे। यह सच है कि सरकार के खिलाफ आने वाले अविश्‍वास प्रस्‍ताव से  न तो सरकार  गिरेगी और न ही कोई संकट आयेगा,बल्कि विपक्ष सिर्फ आरोप प्रत्‍यारोप लगाकर अपनी जिम्‍मेदारी का निर्वाह  करेंगा। 21नवंबर से विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है। इसके बाद ही नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अविश्‍वास प्रस्‍ताव की सूचना विधानसभा को देंगे। कांग्रेस की आपसी रस्‍सा-कस्‍सी के चलते बीच में यह बात बाहर आई थी कि अविश्‍वास प्रस्‍ताव को लेकर संशय का वातावरण बना हुआ है,लेकिन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने नवंबर माह के प्रथम सप्‍ताह में साफ कर दिया कि अविश्‍वास प्रस्‍ताव तो हर हाल में आयेगा इसको लेकर कोई भ्रम नहीं है। विपक्ष की झोली में सरकार को घेरने के लिए एक नहीं कई मुददो की भरमार है‍ जिसमें मंत्रियों के भ्रष्‍टाचार,मुख्‍यमंत्री पर निशाने,सरकारी कामकाज में फैलता भ्रष्‍टाचार,खाद-बीज का संकट,किसानों द्वारा आत्‍महत्‍या करना,ध्‍वस्‍त कानून व्‍यवस्‍था सहित आदि मुददे हैं। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को विश्‍वास है कि सरकार के खिलाफ सदन में पूरी ताकत से मुददे उठाये जायेंगे और उम्‍मीद की जायेगी की सरकार उनका सिलसिलेवार जवाब दें। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के प्रयास है कि सरकार को हर मोर्चे पर घेरा जाये, विपक्ष की तैयारियों के बीच सरकार ने भी अब अपने स्‍तर पर विपक्ष को जवाब देने के लिए सरकारी मशीनरी को सक्रिय कर दिया है। नौकरशाही उन मुददो को तलाश रही है,जिस पर विपक्ष को घेरा जाये। इसके चलते मंत्रालय में चुनिंदा अधिकारियों को यह जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। वही दूसरी ओर विपक्ष के नेता अजय सिंह ने भी अविश्‍वास प्रस्‍ताव तैयार करने के लिए तैयारियां तेज कर दी है, वे लगातार विधायकों की बैठकें कर रहे हैं। अब 14 नवंबर को फिर विधायक दल की बैठक होंगी जिसमें अविश्‍वास प्रस्‍ताव के मुददे तय होंगे। कुल मिलाकर पहली बार अविश्‍वास प्रस्‍ताव भाजपा सरकार के खिलाफ आ रहा है तो इसको लेकर सरकार,राजनेतिक दल और मीडिया में अलग-अलग तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
अविश्‍वास प्रस्‍ताव और सरकार :
        अमूमन अविश्‍वास प्रस्‍ताव से किसी भी सरकार पर कोई असर नहीं होता है। वर्ष 1993 से 2003 तक प्रदेश में दिग्विजय सिंह ने दस साल तक कांग्रेस की सरकार चलाई इस दौरान तीन विपक्ष के नेता रहे जिसमें विक्रम वर्मा, डॉ0 गौरीशंकर शेजवार और बाबूलाल गौर शामिल हैं। इन दस सालों के सफर में सिर्फ विक्रम वर्मा दो बार और डॉ0शेजवार एक बार सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाये थे जिस पर सरकार को घेरने के हर संभव प्रयास किये गये। अब फिर एक बार मध्‍यप्रदेश में 2003 से भाजपा राज कर रही है जिसके कार्यकाल में दो मुख्‍यमंत्री उमाभारती और बाबूलाल गौर बदले गये हैं और अब शिवराज सिंह चौहान राज्‍य का नेत़त्‍व कर रहे हैं। इन सात सालों में नेता प्रतिपक्ष रही जमुना देवी ने एक बार अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाने का प्रयास किया था,लेकिन वह कामयाब नहीं पाई अब वर्तमान नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने एलान किया है,तो जबर्दस्‍त जिज्ञासा हर वर्ग  में है देखना है वह कितने कामयाब हो पाते हैं।


शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

गाय प्रेम कही धोखा तो नहीं



       अक्‍सर भाजपा और संघ परिवार से जुडे राष्‍ट्र भक्‍त अपने आपको गाय  बताने में कोई कौर कसर नहीं छोडते हैं। गाय को मां से भी उपर दर्जा मानने वाली भाजपा सरकार ने गाय और गौशाला की अनदेखी होने पर बार-बार यह सवाल उठता है कि मध्‍यप्रदेश में गाय प्रेम कही धोखा तो साबित नहीं हो रहा है। वर्ष 2003में पहली बार मुख्‍यमंत्री बनी साधवी उमा भारती ने गाय को राज्‍य का पवित्र पशु घोषित करने  एलान किया था और इसके लिए एक सदस्‍यीय कमेटी तत्‍कालीन मुख्‍य सचिव बी0के0शाह की अध्‍यक्षता में बनी थी,इस कमेटी ने उत्‍तर प्रदेश की कई गौशालाओं का दौरा करने के बाद मध्‍यप्रदेश को आदर्श गौशालाएं बनाने का प्रोजेक्‍ट कैबिनेट के समक्ष प्रस्‍तुत किया था इसी के साथ ही गाय को राज्‍य का पवित्र पशु घोषित करने का प्रस्‍ताव भी रखा था। यह मामला सात साल बाद भी जस का तस है। वही गौशालाओं की हालत भी कोई बेहतर नहीं हो पाई है। स्‍वदेशी आंदोलन के कभी अगुवा रहे गोविंदाचार्य ने भी गौमाता आधारित उत्‍पाद पर एक बडी रिपोर्ट तैयार कर मध्‍यप्रदेश सरकार को सौंपी थी इस दिशा में भी कोई पहल अभी तक नजर नहीं आ रही है। गौशालाओं पर प्रतिवर्ष करीब 18करोड रूपये राज्‍य की 1,115गौशालाओं पर खर्च हो रहे हैं, लेकिन इन गौशालाओं में 9 हजार से अधिक गौ वंश की उपलब्‍धता के बाद भी गोबर से खाद बनाने का कार्य एक कदम आगे नहीं बढा है। गौ वंश के संवर्धन और गौ आधारित उत्‍पादों को बढावा देने में उल्‍लेख कार्य नहीं हो रहे हैं। कागजों पर योजनाएं बन रही है,लेकिन कोई खास उपलब्धियां अभी तक सामने नहीं आ पाई हैं। यह सच है कि मालवा अंचल में गौशाला के माध्‍यम से गाय की सेवा करने का अनूंठा कार्य किया जा रहा है। दुखद पहलू तो यह है कि मध्‍यप्रदेश के कुछ हिस्‍सों से बूढी गाय और बेलों की तस्‍करी भी हो रही है।       
अब संघ परिवार का पथ संचलन कभी भी:

   वैसे तो राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवकसंघ हर साल दशहरा पर्व पर ही पथ संचलन करता रहा है,लेकिन अब मध्‍यप्रदेश में यह परंपरा लगातार टूट रही है। संघ परिवार ने 2010में हथियारों की पूजा के दौरान एक स्‍वयंसेवक की मौत होने के बाद यह तय किया था कि पथ संचलन में हथियारों का उपयोग नहीं किया जायेगा। इस मामले में संघ अपनी बात पर कायम है। पथ संचलन में कही भी हथियारों का उपयोग नहीं किया जा रहा है यह एक अच्‍छा शुभ संकेत है। संघ परिवार का पथ संचलन अब कभी भी कही भी होने पर सवाल उठने लगे हैं,लेकिन प्रदेश में सरकार भाजपा की है,तो फिर पथ संचलन करने से कौन रोक सकता है। संघ परिवार तो गांधी जयंती पर भी पथ संचलन निकाल चुका है यानि अब यह हो गया है कि संघ परिवार की जब इच्‍छा होगी तब संघ परिवार कही भी पथ संचलन कर सकता है। संघ परिवार के एक वरिष्‍ठ पदाधिकारी कहते हैं कि पथ संचलन निकालने के लिए कोई दिन और समय तय नहीं है। *जय हो मध्‍यप्रदेश की*

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

इसलिए पिछड रहे है शिक्षा में


मध्‍यप्रदेश में न तो शैक्षणिक वातावरण बन पा रहा है और न ही बालक-बालिकाओं को सरकारी स्‍कूलों में वैज्ञानिक ढंग पढाई कराई जा रही है,जिसके फलस्‍वरूप राज्‍य की शिक्षा व्‍यवस्‍था लगातार पिछड रही है और नई पीढी  प्रतिस्‍पर्धा से बाहर हो रही है,जिसमें हमारी सीमाओं से जुडे राज्‍यों के बच्‍चे लगातार उंचाईयां छू रहे हैं। प्रायवेट सेक्‍टर के स्‍कूलों में पढाई बेहतर होने से अधिकांश अभिभावक अपने बच्‍चों को खासी फीस देने के बावजूद भी प्रायवेट स्‍कूलों में भेज रहे हैं,लेकिन जिनके पास विकल्‍प नहीं है वे मजबूरन सरकारी स्‍कूलों में बच्‍चों को दाखिला दिखा रहे हैं,कोई पांच वर्षों में से सर्वशिक्षा अभियान के तहत काफी पैसा राज्‍य में आया है जिसके चलते सरकारी स्‍कूलों का शैक्षणिक वातावरण सुधारने के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बालिकाओं को साईकिल देकर उन्‍हें शिक्षा के प्रति जागरूक करने का प्रयास तो किया है और अब दो ड्रेस भी दी जा रही है,लेकिन यही सरकार चूक गई,क्‍योंकि दो ड्रेस के लिए 400रूपये अभिभावको को दिये जा है,जबकि 400रूपये में एक भी ड्रेस बामुश्किल मिल पाती है। जोडी यूनिफार्म बाजार में एक हजार में मिल रही है। राज्‍य सरकार ने स्‍कूलों को ड्रेस वितरण के लिए पैसा आवंटित कर दिया है,लेकिन सरकारी स्‍कूलों में चल रहे पुराने ढर्रे के कारण अभी तक बच्‍चों को ड्रेस का पैसा नहीं मिल पाया है,इसकी एक बडी वजह है,बैंक में एकाउंट का न खुलना है,क्‍योंकि अभिभावक आईडी प्रूफ नहीं दे पा रहे है। शैक्षणिक सत्र आधे से अधिक खत्‍म होने जा रहा है,लेकिन मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के 1200 सरकारी और मिडिल स्‍कूल में आज भी आधे स्‍कूलों में बच्‍चों को ड्रेस नहीं मिल पाई है। इससे जाहिर है कि स्‍कूल शिक्षा विभाग धीमी गति से काम कर रहा है उसे न तो बच्‍चों के परिणामों से मतलब है और न ही शैक्षणिक वातावरण सुधारने में कोई दिलचस्‍पी है यही वजह है कि आज भी बच्‍चों को ड्रेस नहीं मिल पा रही है। राज्‍य शिक्षा आयुक्‍त मनोज झालानी दावा कर रहे हैं कि ड्रेस के पैसे पहुंचा दिये गये हैं,लेकिन उन्‍हें राजधानी में बच्‍चों को नहीं मिल पाई ड्रेस से कोई बास्‍ता नहीं है। इससे साफ जाहिर है कि मध्‍यप्रदेश की शैक्षणिक स्थिति कोई सुधारने की पहल भी नहीं कर रहा है तो फिर प्रदेश कहा से प्रगति के नये सौपान छू पायेगा।
साक्षरता दर भी राष्‍ट्रीय औसत से कम :
वर्ष 2001के अनुसार मध्‍यप्रदेश की कुल साक्षरता दर राष्‍ट्रीय औसत से कम ही है। प्रदेश की साक्षरता दर 41.16है,जबकि राष्‍ट्रीय औसत47.1है। मध्‍यप्रदेश में प्राथमिक शालायें 105592 है, ज‍बकि माध्‍यमिक शालायें 43752 हैं। स्‍कूलों में स्‍टाफ का भारी अकाल है। सरकारी स्‍कूलो में सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के बावजूद भी पीने के पानी और बाथरूम की व्‍यवस्‍थायें नहीं हो पाई हैं।



बुधवार, 9 नवंबर 2011

मध्‍यप्रदेश्‍ा अब तो जागो


मध्‍यप्रदेश के विकास को लेकर हमेशा चिंतित रहने वाले और जब तब राजनेताओं और नौकरशाही को राज्‍य की असलियत से रूबरू कराने वाले राजेंद्र कोठारी को उस वक्‍त धक्‍का लगा जब उन्‍होंने एक राष्‍ट्रीय पत्रिका में राज्‍यों की दशा और दिशा पर सर्वे पडा और उसमें मध्‍यप्रदेश गायब नजर आया। तब उन्‍होंने अपने मित्र से कहा कि अब तो मध्‍यप्रदेश को जागना ही चाहिए अन्‍यथा भविष्‍य का चित्र भयावह नजर आ रहा है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान युवा है और उनमें कार्य करने की क्षमता और ललक भी है,लेकिन डिलेवरी में हम लगातार पिछड रहे है इसी से विकास नहीं हो पा रहा है। यह सच है कि मध्‍यप्रदेश की तस्‍वीर जितनी चमकीली बताई जा रही है उतनी है नहीं। एक राष्‍ट्रीय पत्रिका ने अपने 16नवंबर को प्रकाशित अंक में देश भर के राज्‍यों के उन्‍नत इलाकों पर रिपोर्ट जारी की है,जिसमें मध्‍यप्रदेश किसी भी क्षेत्र में अव्‍वल नहीं है,बल्कि राज्‍य सर्वांगीण विकास,शिक्षा,सुशासन में तो 20वें नंबर पर पहुंच गया है। यही हालत स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र और निवेश की है,जो कि 18वें पायदान पर है। इससे साफ जाहिर है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश को स्‍वर्णिम राज्‍य बनाने का सपना तो दिखा है,लेकिन सर्वे में तो हम पूरी तरह से राज्‍यों के विकास में पर्दे से ही गायब है। यह बहुत ही दुखद पहलू है। प्रत्‍येक जागरूक नागरिक के लिए सोचनीय एवं विचारणीय प्रश्‍न है कि आखिरकार मध्‍यप्रदेश लगातार विकास में क्‍यों पिछड रहा है,जो सर्वे जारी हुआ है,उसको तैयार करने में लवीश भंडारी की अहम भूमिका है। लवीश भंडारी का तो मध्‍यप्रदेश से गहरा नाता-रिश्‍ता है। वह मध्‍यप्रदेश के इंदौर शहर के निवासी है,उनके पिता आर0एस0भंडारी जाने माने चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। इस सर्वे ने राज्‍य के विकास की कलई खोलकर रख दी है कि आखिरकार प्रदेश विकास में किस तरह से धीमी गति से कछुआ की चाल चल रहा है,न तो शिक्षा में कोई खास तरक्‍की कर पा रहे है और न ही अच्‍छी गवर्नेन्‍स देने की पहल हो रही है। सिर्फ खेती में हम कुछ करिश्‍मा दिखा पाये हैं,क्‍‍‍योंकि खेती को लाभ का धंधा बनाने का एजेंडा मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चला रहा है और आंशिक उपलब्धि हमारी है। जय हो मध्‍यप्रदेश की ।
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मंगलवार, 8 नवंबर 2011

मध्‍यप्रदेश आज भी अविकसित राज्‍यों में शुमार

बार-बार मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनमानस में राज्‍य के विकास का सपना तो रोज ही दिखाते हैं निश्चित रूप से नये सपने देखना चाहिए,लेकिन जमीनी हकीकत तो यह है कि राज्‍य अविकसित राज्‍यों में आज भी शुमार हैं। पूर्व राष्‍ट्रपति और वैज्ञानिक अब्‍दुल कलाम भी युवकों के बीच बार-बार यही दोहराते हैं कि सपने तो बढे देखना चाहिए,लेकिन उन्‍हें जमीन पर उतारने की पहल भी करना चाहिए।यहां तक कि अब्‍दुल कलाम ने भी मध्‍यप्रदेश की विधानसभा में विकास के एजेंडों का खुलासा किया था, लेकिन उन पर अमल तो दूर कोई उन पर गौर तक नहीं कर रहा है। राज्‍य का विकास जिस तेजी से होना चाहिए उसमें गति नहीं पकड पा रहा है। हाल ही में पीएचडी0चैम्‍बर ऑफ कॉमर्स की जारी रिपोर्ट के अनुसार देश के दस राज्‍यों में मध्‍यप्रदेश विकास सूचकांक में फिसडडी है। मध्‍यप्रदेश में गरीबी रेखा से जीवन यापन करने वालों का आंकडा 30 प्रतिशत को पार कर चुका है। यही आलम बालिका संरक्षण का है। इसके लिए सरकार तमाम योजनाएं बेटी बचाओ,लाडली लक्ष्‍मी,जननी सुरक्षा योजना,कन्‍यादान सहित आदि चलाई जा रही है,ल‍ेकिन तब भी मध्‍यप्रदेश में शिशु म़त्‍युदर सबसे अधिक बनी हुई है। प्रति व्‍यक्ति आय में भी मध्‍यप्रदेश पिछडा हुआ है। दिल्‍ली राज्‍य की प्रति व्‍यक्ति आय 1 लाख 17 हजार रूपये हैं, जबकि छत्‍तीसगढ और राजस्‍थान की 30 से 40 हजार रूपये है मगर मध्‍यप्रदेश में प्रति व्‍यक्ति आयु 27,250रूपये है। इससे साफ जाहिर है कि मध्‍यप्रदेश की विकास की रफतार कैसी चल रही है, न तो शहरों में विकास हो रहा है और न ही गांव के विकास के सोपान पर चल रहा है। आज भी मध्‍यप्रदेश देश के विभिन्‍न राज्‍यों की अपेक्षा अविकसित राज्‍यों में शुमार है। क़षि आधारित प्रदेश में क़षि अनुत्‍‍पादक है,जिसके कारण राज्‍य में गरीबी विद्यमान है। सात सालों में 23हजार किसानों ने आत्‍महत्‍या कर ली है,पैदावार तो अच्‍छी हो रही है,लेकिन को लागत मूल्‍य आज भी नहीं मिल रहा है। बार-बार किसान सडक पर आंदोलन करने के लिए मजबूर है। सिंचाई के पर्याप्‍त साधन नहीं होने के कारण किसान आज भी जो उत्‍पादन करना चाहता है वह नहीं कर पा रहा है,जिसका असर फसलों पर पड रहा है। मध्‍यप्रदेश से बेहतर विकास छत्‍तीसगढ, महाराष्‍ट्र, राजस्‍थान, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पंजाब और हरियाणा तथा दिल्‍ली राज्‍य कर रहा है। मध्‍यप्रदेश सडकों का आलम यह है कि एक लाख हजार किलोमीटर सडकें है,जबकि महाराष्‍ट्र में दो लाख 42हजार किलोमीटर सडकें हैं। आज भी प्रदेश में सडकों की स्थिति राष्‍ट्रीय औसत से तीन गुनी कम है। विकास सूचकांक में मध्‍यप्रदेश 0.490है,जबकि गुजरात की स्‍थापना 01मई 1960को हुई और उसका विकास सूचकांक 0.814है। भले ही मध्‍यप्रदेश विकास के मामले में तेज गति से नहीं बढ रहा हो लेकिन आबादी के मामले में जरूर उछाले मार रहा है। 1956 में मध्‍यप्रदेश की आबादी 3 करोड 24 लाख थी, जो कि वर्ष 2011 में बढकर 7 करोड 25 लाख हो गई है। अब आसानी से यह समझा जा सकता है कि राज्‍य का विकास किस दिशा में हो रहा है।
क्‍यों पिछड रहा है राज्‍य :
       जनमानस में विकास की ललक नहीं, भविष्‍य की योजनाओं का अकाल, आर्थिक राजनीतिक,सांस्‍क़तिक और सामाजिक क्षेत्र में भारी उतार-चढाव,विकास को लेकर राजनीतिक इच्‍छा शक्ति का अभाव, प्राक़तिक संसाधनों का दोहन नहीं कर पा रहे, प्रशासन में विकास की कमी, भ्रष्‍टाचार चरम पर, कुशल श्रमिकों का अभाव, सडकों का न होना, शिक्षा के मामले में लगातार पिछडापन, विकास के आधारभूत मानकों को पूरा नहीं कर पा रहे, क़षि उत्‍पादकता भी अपेक्षाक़त कम, आर्थिक विकास थमा, अपराधों में लगातार अव्‍वल।

सोमवार, 7 नवंबर 2011

अब बंदरों की भी होगी नशबंदी



              यूं तो मध्‍यप्रदेश का वन विभाग जंगलों की अवैध कटाई, अवैध उत्‍खनन,वनभूमि पर अवैध कब्‍जे रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। कदम-कदम पर विभाग की कलई खुल रही है,लेकिन इस सब से हटकर वन विभाग ने बंदरो की नशबंदी करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। इस योजना पर करोडों रूपये खर्च करने का विभाग का इरादा है। इसके पीछे का तर्क बढा दिलचस्‍प है। कहा जा रहा है कि पर्यटन स्‍थल,पुरातात्विक महत्‍व की ऐतिहासिक धरोहर तथा धार्मिक स्‍थलों पर बंदरों ने आंतक मचा रखा है और आने-जाने वालों को परेशान करते हैं। धर्मशास्‍त्रों के अनुसार बंदरों को भगवान हनुमान जी का दूत माना जाता है। कई धर्म प्रेमी लोग बंदरो को चने खिलाने के लिए दूर-दूर तक जाते हैं। इसी के साथ ही जब-जब पर्यटक अपने पसंदीदा स्‍थलों पर पहुंचते हैं,तो उन्‍हें अपने ईद-गिर्द जंगलों और ऐतिहासिक धरोहारों से कूदते-फादते जब नजर आते हैं,इसका कभी कभी पर्यटक आनंद भी उठाते है, लेकिन जब कभी बंदरों से छेडछाड की जाती है,तो फिर बंदर हमले भी करने लगते हैं। वन विभाग को लगातार शिकायतें मिल रही है कि बंदरो के आंतक से लोग परेशान है। वन्‍य जीव प्रेमियों ने तो बंदरों के उत्‍पात पर नियंत्रण के लिए अपनी-अपनी योजनाएं भी सरकार को भेजी हैं। मप्र में बंदरो की संख्‍या में लगातार इजाफा हो रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए वन विभाग ने अब बंदरो की नशबंदी करने की योजना बनाई है,जिसके तहत वन विभाग के आला अफसरो ने वैटनरी लैव के वैज्ञानिकों से चर्चा करके बैक्‍सीन की जानकारियां ली जा रही है। मध्‍यप्रदेश में बंदरो की नशबंदी करना आसान काम नहीं होगा। कोई एक दशक पहले दिल्‍ली सरकार ने भी बंदरों से परेशान होकर उन्‍हें मध्‍यप्रदेश भेजने की पहल की थी,लेकिन आज तक बंद मध्‍यप्रदेश नहीं आ पाये,क्‍योंकि बंदरों को पकडना सबसे जटिल काम है। अब सरकार का वन विभाग बंदरो की नशबंदी करने पर विचार कर रहा है,जो कि सुनने में ही जटिल लग रहा है,तो उसे अंजाम देने में पसीना आना स्‍वाभाविक है अथवा योजना कागजों पर बनकर रह जायेगी।
बंदर और मध्‍यप्रदेश :
राज्‍य में 2004 की जनगणना के अनुसार 3,90,000 बंदर हैं, इनमें से 25 फीसदी ने गांव और शहरों में अपना आसरा बनाया हुआ है। अक्‍सर बंदरों को वन विभाग सतपुडा राष्‍ट्रीय उद्यान,टाईगर रिजर्व भोपाल  वन विहार एवं जंगलों में छोड देते हैं। बंदरों की संख्‍या सबसे अधिक पचमढी, चित्रकूट, ओरछा, खजुराहो, होशंगाबाद, जबलपुर, महेश्‍वर, मैहर, सलकनपुर, मढई, माडव आदि स्‍थानों पर है। बंदरो की नशबंदी पर वन विभाग ने 20 से 30 करोड बजट खर्च की योजना बनाई है। यह योजना 1 लाख बंदरों पर खर्च होगी।
               

रविवार, 6 नवंबर 2011

बीमारियों की चपेट में फंसा मध्‍यप्रदेश

खुशिया और उत्‍सव का दौर अभी थमा भी नहीं था कि अचानक मध्‍यप्रदेश की सरजमी पर बीमारियों का ऐसा जाल फैला कि हर कौनों में लोग बीमार हो रहे हैं। सरकारी और प्राइवेट अस्‍पतालों में मरीजों की संख्‍या में इजाफा हुआ  है। इन दिनों मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीज सबसे अधिक मिल रहे हैं। मलेरिया से प्रदेश में अब तक 50मौतें हो चुकी हैं। यह मौते विंध्‍य और मालवा अंचल में हुई हैं। मौतों पर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जा रही है पर यह सच है कि स्‍वास्थ्‍‍य अमला अभी भी नींद से जागा नहीं है। प्रदेश में सीधी,रीवा, झाबुआ,धार,मंदसौर एवं ग्‍वालियर में मलेरिया और चिकनगुनियां का प्रकोप लोगों को अपने जाल में समेट रहा है। चिकनगुनिया बीमारी बुखार के साथ-साथ हाथ-पैर में जकडन पैदा कर रहा है। स्‍वास्‍थ्‍य विभाग एक बार फिर पंगु साबित हुआ है। ग्‍वालियर संभाग से जुडे स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री नरोत्‍तम मिश्रा के इलाके में भी चिकनगुनियां ने दस्‍तक दे दी है,इन इलाकों में करीब इस रहस्‍यमय बीमारी से लगभग 200लोग पीडित हैं,तो झाबुआ जिले के प्रभारी स्‍वास्‍थ्‍य राज्‍यमंत्री महेंद्र हार्डिया भी अपने प्रभार वाले जिले में बीमार लोगों का इलाज नहीं करा पा रहे हैं। यहां से मरीजों ने अन्‍य शहरों में इलाज कराने के लिए जाना शुरू कर दिया है, वहीं मंदसौर में 04, सीधी में 50 मौते होने का दावा नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस जिले में 17बच्चियों की मौत हो चुकी हैं। आदिवासी अंचलों में मलेरिया का ऐसा प्रकोप फैला है कि बूढे, बच्‍चे, महिला उसकी चपेट में आ रहे हैं। सिंह ने सीधी में 03 नवंबर को कलेक्‍टर कार्यालय के सामने धरना भी दिया था और उन गांवों में जाकर हालातों का दौरा भी किया,जहां पर बीमारियों का प्रकोप चरम पर है। इन गांवों में मरीजों को दवाईयां तक नहीं मिल रही हैं। स्‍वास्‍थ्‍य विभाग का जो अमला पदस्‍थ है,वह भी समय पर गांवों में नहीं पहुंच पा रहा है। इसके कारण मरीजों की हालत दिन प्रतिदिन बिगड रही है। प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी फैलती बीमारियों से हो रही मौतों पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। इसके बाद भी स्‍वास्‍थ्‍य विभाग का अमला अभी भी नींद से जागा नहीं है और दिन प्रतिदिन बीमारियों से मौतों का ग्राफ बढता ही जा रहा है।
स्‍वास्‍थ्‍य विभाग और मध्‍यप्रदेश में ढांचा :
राज्‍य में स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यवस्‍थाएं अक्‍सर चरमाराती रहती हैं। चिकित्‍सकों की कमी एक समस्‍या बन गई है, दवाओं के घोटाले आम बात हो गये हैं, अस्‍पतालों में सुविधाएं नहीं मिलने का राग अब स्‍थाई हो गया है। प्रदेश में जिला अस्‍पताल 50, शहरी सिविल अस्‍पताल 54, सामुद‍ायिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र 70, प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र 1149 एवं उप स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र 8834 हैं।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

मप्र : नेशनल हाइवे बने राजनीति के अखाडे

मप्र में फैला सडकों का जाल और उन पर सियासत राजनेताओं का शगल बन गया है। हर चुनाव में सडकें मुददा बनती है,खूब हल्‍ला मचता है फिर भी सडके जस की तस हो जाती हैं। इस बात पर कोई सोचने को तैयार नहीं है कि आखिरकार सडकों की गुणवत्‍ता उच्‍चकोटि की क्‍यों नहीं है। प्रदेश के नेशनल हाइवे तो पिछले एक दशक से राजनीति की सियासत पर भेट चढ रहे हैं। इन हाइवे की हालत यह है कि वाहनों का चलना मुश्किल है ही,लेकिन दो पहिया वाहन भी आसानी से चल नहीं पा रहे हैं, क्‍योंकि कदम-कदम पर गहरे गडडे हो गये हैं। इन सडकों पर 20 महीनों से कोई मरम्‍मत नहीं हुई, बारिश के बाद तो इस कदर सडके बदतर हो गई है कि लोगों ने उन मार्गों पर जाना बंद सा कर दिया है अथवा मजबूरी में जाते हैं,तो जाम में फंसना सामान्‍य बात हो गई है। प्रदेश की भाजपा सरकार ने 09 अगस्‍त11 को कैबिनेट की बैठक कर दस नेशनल हाइवे मार्गों को प्रदेश को देने के लिए प्रस्‍ताव पारित कर केंद्र को भेज दिया है, केंद्र सरकार भी इन सडकों को राज्‍य को वापस करने के लिए तैयार हो गई है और पहली किस्‍त में 04राष्‍ट्रीय राजमार्ग प्रदेश को मिलने वाले हैं। सडक विशेषज्ञों का कहना है कि नेशनल हाइवे जितनी देरी से मिलेगे उतना ही समय उनके निर्माण में लगेगा। यहां तक कहा जा रहा है कि 2013 तक सडकों का निर्माण होना संभव नहीं है और तब तक विधानसभा चुनाव आ जायेंगे और एक बार फिर से चुनाव में सडक ही मुददा बनेगी। भले ही आज भी प्रदेश की जनता 2393 किलोमीटर लंबे खराब मार्गों से गुजरने को विवश है,लेकिन सरकार अपने ढंग से सडकों पर राजनीति कर रही है और केंद्र सरकार भी चुनाव का इंतजार कर रही है। अब जनता को घटियां सडकों पर चलने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं है। कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी सियासत करने में पीछे नहीं है। जय हो मध्‍यप्रदेश की ।