बुधवार, 27 अप्रैल 2011
गर्व है मध्यप्रदेश पर .....
प्राक़तिक संपदा से भरपूर राज्य पर गर्व है। विकास की गंगा बह रही है, गांव से लेकर शहरो तक विकास का पैमाना बदला है। सडके चौडी हो रही हैं, कही-कहीं कारखानों की गूंज सुनाई दे रही है,मिल-जुलकर रहने की संस्क़ति में हम रच-बस गये हैं, फिर भले ही अलग-अलग भाषाओं और बोलियों में हमने अपनी पहचान बनाने की कोशिश की है, यही वजह है कि हम वर्षो से अलग-अलग परिवेश और बोलियों के बीच रह रहे हैं, लेकिन मालवी, बुंदेलखण्डी, विंध्य, महाकौशलवासी और भोपाली और जब तक छत्तीसगढ नहीं तब तक छत्तीसगढिया और सभी अपने अपने को बढिया मानते रहे हैं। आज भी भले ही अलग अलग क्षेत्र और इलाकों की बात करें तब भी मध्यप्रदेश की जय हो की गूंज चारो तरफ गूंजने लगी है। इसकी ध्वनि और तेज होनी बाकी है। हमें इस बात पर गर्व है कि हिमालय से प्राचीन और उत्तर-दक्षिण का सेतू विंध्यांचल हमारा मुकुट है और गंगा से प्राचीन पवित्र नर्मदा हमारी प्राणदाहिनी है, काल पर विजय के प्रतीक महाकाल हमारे हैं और क़ष्ण ने सांदीपनी आश्रम में शिक्षा पाई थी, तो वनवासी राम का आश्रम स्थल मंदाकिनी का तट बना था, बौद्व का संदेश सांची से ही विश्व में गया है, अम़त घट क्षिप्रा की धारा में ही छलका है, इसलिए मध्यप्रदेश हमारे मन, तन,मस्तिष्क में अपनेपन के साथ अंतरधारा में प्रवेश कर गया है, जो कभी खत्म होने वाला नहीं है। इस राज्य की धरोहर हमारे आपकी सबकी है, जिसका संरक्षण करना सबका दायित्व है।
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