गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
फिर करवट लेगी प्रदेश की राजनीति
राज्य की राजनीति का पहिया एक बार फिर करवट लेने के लिए बेचैन है। एक दशक बाद राजनीति के चेहरे और मोहरे बदल गये हैं। बहस के मुद्दों में भी नई जान फूंकी जा रही है, ऐसा अभास हो रहा है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में वर्ष 2003 की राजनीतिक परिस्थितियां फिर से पटल पर छाने वाली है। भाजपा ने तो 2008 से ही फिर तीसरी बार सरकार बनाने का संकल्प कर रखा है और इसके लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं, जबकि कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन फिर से पाने के लिए बेताब तो है, पर जमीन पर फिलहाल कांग्रेस गायब है। दोनों दल अपने-अपने राजनीतिक अस्त्र और शस्त्र के साथ मैदान में उतरने के लिए बेताब हैं। कौन किस पर पहला प्रहार करेगा यह तो समय ही बतायेगा। फिलहाल इन दिनों मध्यप्रदेश में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति का दौर चल रहा है। राजनेता एक दूसरे पर टीका-टिप्पणियां कर रहे हैं। विकास की बातें गांैण हो गई हैं सिर्फ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान विकास पर जोर दे रहे हैं, लेकिन वे भी कभी कभी कांग्रेस की प्रतिक्रियों से नाराज होकर केंद्र सरकार पर तीखंे प्रहार करते हैं, जिसके चलते राजनीति फिर आरोपों के घेरे में चली जाती है। राज्य में दो दलीय राजनीति है। यहां पर कांग्रेस और भाजपा का ही वर्चस्व है। चुनाव में दोनों पार्टियां आमने-सामने होती हैं। वर्ष 2003 से राज्य पर भाजपा ने सरकार बनाई तो फिर पीछे पलटकर नहीं देखा और 2008 में फिर से सरकार बनाई। अब इस सरकार का कार्यकाल ढाई साल बाकी है। इसी के साथ ही एक बार फिर राजनीतिक दंगल शुरू हो गया है। फिर वही आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। दुखद पहलू यह है कि इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच विकास पीछे छूट रहा है, लेकिन एक अच्छा काम हो रहा है कि राज्य की जनता को यह मालूम पड़ रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार प्रदेश के विकास के लिए क्या कदम उठा रहे हैं और कहां कमियां रह गई हैं। वर्ष 2002 मंे तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया दिग्विजय सिंह के खिलाफ जिस तरह से भाजपा ने आक्रमक तेवर दिखाये थे, वहीं परिस्थितियां वर्ष 2011 में नजर आ रही हैं। अब राजनीतिक चेहरे जरूर बदल गये हैं। वर्ष 2002 में कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरलाल पटवा, उमा भारती, कैलाश जोशी, विक्रम वर्मा और युवा तुर्क शिवराज सिंह चैहान, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, कमल पटेल, विजयशाह, सुमित्रा महाजन सहित आदि मैदान थे, इनमें से कुछ चेहरों पर दाग भी लगे हैं तब कांग्रेस की तरफ से दिग्विजय सिंह मैदान में थे और उनका साथ देने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह, माधवराव सिंधिया, कमलनाथ, सुरेश पचैरी मैदान में थे। अब 2011 में राजनैतिक परिस्थितियां बदली हुई है अब भाजपा में मुखिया के रूप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान चमकते सितारे हैं, तो उमाभारती मैदान से बाहर हैं। चैहान के साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा कदम-ताल कर रहे हैं। इसके अलावा सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, थावरचंद्र गेहलोत, रघुनंदन शर्मा, नंदकुमार चैहान, सुमित्रा महाजन सहित आदि भी राजनीति की जंग में नजर आयेंगे। लेकिन कांग्रेस की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी हैं। अब इसकी कमान आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के हाथों में होगी। कंेद्रीय मंत्री भूरिया को अप्रैल 2011 में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है उनके साथ कदम ताल करने के लिए स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह को कांग्रेस विधायक दल नेता का दायित्व मिला है। इनकी राजनीतिक की डोर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के हाथों में है। इस मुहिम में केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव के साथ-साथ सुरेश पचैरी, मीनाक्षी नटराजन, श्रीनिवास तिवारी, महेश जोशी, हरवंश सिंह, सज्जन सिंह वर्मा, प्रेमचंद्र गुड्डु सहित आदि चेहरे भी मैदान में नजर आयेंगे। यानि मध्यप्रदेश की राजनीति फिर करवट ले रही है और राजनीतिक जंग न सिर्फ दिलचस्प होगी, बल्कि नये आयाम स्थापित हो जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी, क्योंकि भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और लगातार तैयारियां कर रही है, जबकि कांग्रेस तो वर्ष 2011 अप्रैल से जागी है। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस को और मेहनत तो करनी ही होगी, लेकिन भाजपा किसी से कमतर नहीं है।
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