शनिवार, 30 अप्रैल 2011
विकास की संभावनाओं की प्रतीक्षा
नैर्सिगक संपदा से लबालब मध्यप्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि राज्य की स्थापना का लम्बा सफर तय होने के बाद भी विकास के फलक पर आज भी म0प्र0 पिछडा हुआ है। म0प्र0 के बाद जो राज्य अस्तित्व में आये वे आज विकास की दौड में तेजी से आगे बढ रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश अभी भी सडक, बिजली, पानी से बाहर नहीं निकल पाया है। पंजाब, हरियाणा, गोवा जैसे राज्य मध्यप्रदेश के बाद बने हैं, लेकिन इन राज्यों में विकास का जो स्वरूप दिखता है वह मध्यप्रदेश में अभी नजर ही नहीं आता है। इसके लिए मूल रूप से जनप्रतिनिधि ही जिम्मेदार है, क्योंकि उन्होंने ऐसी नीतियां और कार्यक्रमों को अंजाम नहीं दिया जिनके दूरगामी परिणाम मिल सकें। वोटो की राजनीति के चक्रव्यूह में उलझकर राजनेता अपने अपने स्वार्थो में उलझे रहे, इसका लाभ नौकरशाही ने भरपूर उठाया। आज भी नौकरशाही का राज्य में बोलबाला है, क्योंकि उनके सामने नेता नीति नियंत्रक के रूप में सामने नहीं आ पा रहे हैं, बल्कि जो नौकरशाह कह रहे हैं, वहीं हो रहा है। इससे प्रदेश का भला कैसे होगा। वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश विखण्डन के बाद भी विंध्यांचल और सतपुडा की छत्रछाया में विकास की संभावना की प्रतीक्षा में अविचल खडा है। हम नदियों के जल प्रवाह को बांध नहीं पाये और बेसकीमती पानी अरब सागर में जा रहा है। गुजरात की नदियां और तालाब नर्मदा जल से लबालब हो रहे हैं और मालवा में जल स्तर नीचे जा रहा है। राजनेताओं को वोट, चुनाव, चंदा, संगठन, समर्थक, कार्यकर्ता से उपर निकलकर प्रदेश के विकास की बहु-आयामी नीतियां बनानी होगी तभी प्रदेश का भला हो पायेगा।
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