शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011
कुपोषण बनी गंभीर समस्या
कुपोषण एक गंभीर समस्या राज्य में बन गयी है। हर छ: महीने में किसी न किसी हिस्से में कुपोषित बढते बच्चों की संख्या सामने आ रही है। महिला एवं बाल विकास इस समस्या से जूझने में नाकाम साबित हुआ है। बार बार विभाग का रोना यही होता है कि इस समस्या से जूझने के लिए अन्य एजेंसियों को भी सक्रिय भाग लेना होगा। कुपोषण की समस्या 80 के दशक से राज्य में तेजी से फैलती ही जा रही है। इस समस्या ने गंभीर रूप वर्ष 1990 के बाद धारण कर लिया है । हर वर्ष कुपोषण के आंकडे चौकाने वाले आ रहे है। एक बार फिर से अंतर्राष्टीय संस्था चाइल्ड राईटस एण्ड यूं (क्राई) में हाल ही में मध्यप्रदेश के 10 जिलों में किये गये सर्वे के आधार पर दावा किया है कि राज्य में कुपोषित बच्चों की संख्या 60 फीसदी से ज्यादा है। इस एजेंसी का कहना है कि पूरे राज्य में आदिवासी समुदाय के 74 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि भोपाल की पुर्नवास कॉलोनियों के 49 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार पाये गये है। सबसे ज्यादा कुपोषण से ग्रसित बच्चे 83 फीसदी रीवा जिले में ही मिले हैं। निश्चित रूप से यह सर्वे आंकडों के आधार पर नहीं हैं, बल्कि जमीनी हकीकत जानने के लिए जिलों में सर्वे किये गये हैं। यह समझ से परे है कि मध्यप्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग को प्रतिवर्ष करोड रूपये का बजट कुपोषण से जूझने के लिये मिल रहा है इसके बाद भी कुपोषित बच्चों की सख्या में इजाफा होने से साफ जाहिर है कि जो राशि बच्चों के विकास के लिए जारी की जा रही है उसमें कही न कही गोलमाल हो रहा है। कुपोषण रोकने के लिए राज्य सरकार को एक अभियान के रूप में लेना चाहिए अन्यथा यह बीमारी गंभीर रूप धारण करती जायेगी।
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