बुधवार, 27 अप्रैल 2011
लेखक की नजर में मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश की विकास गाथा इतिहास का ऐसा प़ष्ठ बन गया है, जिस पर वेदना के स्वर अधिक है, संतोष और सुख के व्यंजन कम हैं। वेदना इसलिए कि देश में मध्यप्रदेश ही एक ऐसा राज्य था, जहां बहुत कुछ किया जा सकता था, किन्तु उपलब्धि आशातीत नहीं रही। प्रक़ति ने हमारे साथ उदारता बरती, हमे उर्वर भूमि दी, खनिज दिये, वन दिये पर इस विटप सरिता गिरि धरनी वाले राज्य में हम प्रक़ति के वरदान को खुशहाली के रूप में सभी तक पहुंचाने में असफल रहे। हमनें आंकडो को छला और आंकडो ने हमें। नई सदी की दहलीज पर प्रदेश के नये सपनों के साथ हम फिर दस्तक दे रहे हैं।
विष्णुनागर 01 नवम्बर, 1999 में प्रकाशित लेख का अंश
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