सोमवार, 25 अप्रैल 2011
जनपद पंचायतः न अधिकार, न बजट, न काम
जनपद पंचायतः न अधिकार, न बजट, न काम
मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत राज की महत्वपूर्ण कड़ी जनपद पंचायतें
प्रदेश में मात्र शो पीस बनकर रह गई हैं, न तो इनके पास बजट है, न काम
स्वीकृत करने का अधिकार। इसके अलावा आय का भी कोई स्त्रोत नहीं है। ऐसी
स्थिति में जनपद अध्यक्षों ने तो इन पंचायतों को भंग करने तक की गुहार
लगाई है।
स्थिति यह है कि जनपद पंचायतों के अध्यक्ष एवं कायर्पालन अधिकारी अपनी
भूमिका डािकया तक ही सीमित समझते हैं। इनमें से अधिकांश कहते हैं कि जिले
की डाक को ग्राम पंचायत तक पहुंचाना ही उनका काम रह गया है। थोड़ा बहुत
जो कुछ काम बचा है उसमें पेंशन वितरण, जनजागृति शिविर, जनसमस्या निवारण
शिविर, पंच, सरपंच सम्मेलन करान आदि प्रमुख हैं। इन पंचायतों के पास न तो
कोई योजना है, न ही कर वसूलने का अधिकार है। जनपद पंचायतों को अपना खर्च
चलाने तके लिए मुद्रांक शुल्क और खनिज रॉयल्टी पर निर्भर होना पड़ता है।
इसमें भी तुर्रा यह कि खनिज रॉयल्टी की राशि समय पर नहीं मिल पाती। भोपाल
जिल की दोनों जनपद पंचायतों फंदा और बैरसिया को दिसंबर माह तक रॉयल्टी
नहीं मिल पाई। हाल ही में जनपद पंचायतो का महीने भर वान चालने का अधिकार
मिला है, लेकिन इसके लिए पेट्रोल की राशि कहां से मिलेगी इसका अभी खुलासा
नहीं किया गया है। उधर वाहन भी पूरे नहीं हैं। वर्ष 1998 में विकास खंड
स्तर के सारे वाहन बेचे जा चुके हैं । पहले जनपद पंचायतों के अधीन 29
विभाग थे, लेकिन अब यह अधिकार भी समाप्त कर दिया गया है। एक जनपद अध्यक्ष
नेे नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वर्ष 1994 से 2000 के बीच जनपद
पंचायतों को सारे अधिकार थे, लेकिन वर्ष 2005 से यह अधिकार सीमित कर दिए
गए हैं। आय की स्थिति यह है कि मुद्रांक शुल्क से एक जनपद को पांच से दस
लाख की राशि वर्ष भर में मिल पाती है, लेकिन यह राशि कर्मचारियों के
वेतन, जनपद के रखरखाव एवं स्टेशनरी पर ही खर्च हो जाती है। अधिकार और
सुविधाओं से वंचित हुए जनपद अध्यक्ष नए वर्ष में एकजुट होकर मुख्यमंत्री
से मिलने का मन बना रहे हैं। इस दौरान जनपद पंचायतों को भंग करने पर जोर
डाला जाएगा।
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