मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

'' मध्‍यप्रदेश को पहचान का संकट ''

आबादी, क्षेत्रफल और प्राक़तिक संपदा से भरपूर मध्‍यप्रदेश को आज भी पहचान का संकट का सामना करना पड् रहा है। कदम-कदम पर समस्‍याओं का अम्‍बार है। दुखद पहलू यह है कि प्रदेश 54 साल का सफर पार कर चुका है, लेकिन आज भी पहचान का संकट कायम है। सबका अपना-अपना राग है। राजनीति के दाव-पेंच मैदान में तो नजर आते नहीं है बस बयानों के जरिए इधर-उधर प्रहार हो रहे हैं। राज्‍य को नई उचाईयों पर ले जाने का सपना हर राजनेता के दिल और दिमाग में है, पर इसके लिए पहल किसी स्‍तर पर नहीं हो रही है। केंद्र सरकार के सामने भी राजनैतिक गुणा-भाग के तहत अपने तर्क गढे जा रहे है। प्रदेश आज भी सड्क, बिजली, पानी, रोजगार, असमानता, गरीबी, पिछडापन से जूझ रहा है। न तो बडे-बडे कारखाने राज्‍य में आ रहे हैं और न ही रोजगार के कोई बडे द्वार खोले जा रहे हैं। राजनैतिक दलों की बागडोर संभाले नेत़त्‍व भी अपनी गति से चल रहा हैं, लेकिन उन्‍हें राज्‍य की विकास यात्रा को नया आयाम देने की चिंता नहीं है। मध्‍यप्रदेश एक सर्वाधिक संभावना वाला प्रदेश है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना प्रदेश बनाने का जो संकल्‍प लिया है, उससे एक शुभ संकेत के द्वार खुले हैं वह अपनी सभाओं में जय मध्‍यप्रदेश का नारा भी लगवाते हैं और पहली बार उनकी पहल पर मध्‍यप्रदेश पर आधारित गीत भी तैयार हुआ है। यह निश्‍ि‍चत रूप से राज्‍य के लिए एक अच्‍छा संकेत है, लेकिन अभी भी एक अलग पहचान स्‍थापित करने के लिए सबको आगे आना ही होगा, तभी राज्‍य पहचान के संकट से बाहर निकल पायेगा। अभी तो पहचान का एक बडा संकट हमारे आसपास मडरा ही रहा है।

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